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बिहार के सुग्रीव की कहानी, पहाड़ की पथरीली जमीन पर एक नहीं तीन तालाब खोद कर कायम की मिसाल - STORY OF SUGRIVA OF BIHAR

बिहार के सुग्रीव की कहानी न केवल दिलचस्प है, बल्कि प्रेरणादायक भी है. जिन्होंने पहाड़ की पथरीली जमीन पर तीन तालाब खोदकर मिसाल कायम की.

Story of Sugriv of Bihar
बिहार के सुग्रीव की प्रेरणादायी कहानी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 20, 2025, 8:14 AM IST

गया: बिहार का गया जिला दुनिया भर में मोक्ष और ज्ञान की नगरी से प्रसिद्ध है. वैसे यहां के लोग एक और खासियत के लिए भी जाने जाते हैं, उनकी वो खासियत पहाड़ों और पथरीली मिट्टी से टकराने की है. यहां के लोग मन में किसी संकल्प को ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं. चाहे वो दशरथ मांझी हो, जिन्होंने अपनी पत्नी फगुनिया की पीड़ा से दुखी होकर पहाड़ से टक्कर ली तो पर्वत पुरुष बन कर पहाड़ को चिर कर आम रास्ता बना दिया. या फिर लौंगी भुइयां हों जिन्होंने गांव में पानी पहुंचाने के लिए पथरीले रास्ते को काटकर नहर बना दी.

सुग्रीव राजवंशी ने पेश की मिसाल: अब इन महान पुरुषों के साथ एक और नाम जुड़ गया है. जिन्हें कम लोग ही जानते हैं. हम आपको इनके संघर्ष और लक्ष्य के लिए समर्पण की कहानी बताते हैं. जिन्होंने 16 वर्षों में पथरीली मिट्टी को काटकर एक नहीं तीन तालाबों की खुदाई कर पानी निकाल दिए. इस व्यक्ति का नाम है सुग्रीव राजवंशी.

बिहार के सुग्रीव की कहानी (ETV Bharat)

पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद डाला : जिले के अतरी प्रखंड में चकरा पंचायत अंतर्गत रंगपुर भोजपुर गांव है. गांव गया के जेठियन और नालंदा जिले के राजगीर पंच पहाड़ी के बीच में स्थित है. गांव में 300 घरों की आबादी होगी जिस में एक सुग्रीव राजवंशी भी हैं. 40 वर्ष की उम्र से सुग्रीव ने पथरीली मिट्टी को काट कर तालाब खोदना शुरू किया और आज 55 वर्ष की उम्र में इन्होंने पंच पहाड़ी की तराई में पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद दिए.

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पथरीली जमीन पर तीन तालाब खोदे (ETV Bharat)

5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती : सुग्रीव के तालाबों से जानवर पानी पीते हैं. साथ ही आसपास की भूमि की सिंचाई भी की जाती है. जिस जमीन पर तालाब बनाए हैं वो वन विभाग की बताई जाती है. हालांकि अब इनके दो तालाब सुख गए हैं, एक तालाब में पानी है. जिससे 5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है.

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5-6 एकड़ भूमि की होती है सिंचाई (ETV Bharat)

सुग्रीव राजवंशी मैट्रिक पास हैं. उन्होंने 1985 में अपनी बहन के घर में रहकर मैट्रिक की परीक्षा दी थी. हलांकि उन्हें मलाल है कि अपने 6 बच्चों में सिर्फ एक को पढ़ा सके. सुग्रीव बताते हैं की पर्वत पुरुष दशरथ मांझी उनके गुरु हैं. उनके कार्यों से वो प्रभावित होकर कुछ करने की इच्छा रखते थे, पर गरीबी इतनी थी कि वह कुछ कर नहीं सकते थे.

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गया के सुग्रीव राजवंशी ने पेश की मिसाल (ETV Bharat)

''एक दिन दशरथ मांझी की प्रेरणा ने ऐसा झिंझोड़ा की पथरीली भूमि पर तालाब खोदने का संकल्प ले लिया. हालांकि यह संकल्प आसान नहीं था क्योंकि इसको पूरा करने की कठिनाई पहाड़ काटने से कम नहीं थी.''- सुग्रीव राजवंशी

2009 में चलाई थी पहली कुदाल : सुग्रीव बताते हैं कि साल 2009 में तालाब खोदने के लिए पहली कुदाल चलाई थी. बिना रुके, थके दो वर्षों तक मिट्टी काटते रहे जिसके परिणाम स्वरूप 130 फिट लंबा, 50 फिट चौड़ा और 15 फिट गहरा पहला तालाब बनाया. सुग्रीव बताते हैं कि पहले तालाब को खोदकर वो रुके नहीं बल्कि अपने कार्यों को जारी रखा और एक-एक कर 2024 तक 3 तालाब के खोदने के कार्य को पूर्ण कर लिया.

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सुग्रीव ने खोद डाले तीन तालाब (ETV Bharat)

तालाबों का कर दिया नामकरण : सुग्रीव ने अपनी मेहनत और संघर्षों से निर्माण किए तालाबों का नामकरण भी कर दिया है. इनके द्वारा निर्माण किए गए तीनों तालाबों में प्रभात सरोवर, वंदना सरोवर और गठबंधन सरोवर है. सुग्रीव नामकरण के पीछे कारण बताते हैं कि प्रभात सरोवर इसलिए रखा क्योंकि वे सुबह 3 बजे से खुदाई शुरू करते और सूरज उगने से पहले बंद कर देते.

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पानी पहुंचाने के लिए पथरीले रास्ते को काटकर बनाया नहर (ETV Bharat)

कई महीनों तक गांव के लोगों को इनके बारे में पता नहीं चला, लोग खुदाई देखकर परेशान होते थे कि आखिर ऐसा कौन कर रहा है? तालाब से गांव की आबादी लगभग 1 किलोमीटर दूर है. कई महीनों बाद लोगों ने सुग्रीव को जब पथरीली मिट्टी को काटते देखा तब लोगों को पता चला कि सुग्रीव ही हैं जो खुदाई कर रहे हैं. जबकि दूसरे सरोवर की कहानी इनके प्रेरणा पुरुष दशरथ मांझी से जुड़ी है.

सुग्रीव बताते हैं कि एक ऐसा समय आया जब उन्हें गांव के लोगों से ताने सुनने पड़े, गांव के लोग उनके संघर्षों की कदर करने के बजाय 'पगला' जैसे शब्दों से पुकारने लगे. पत्नी भी नाराज थी कि घर में कोई कमाने वाला नहीं है. काम करने के बजाए ये मिट्टी काटने में लगे हैं. तब ऐसी स्थिति में सुग्रीव की हिम्मत ने जवाब दे दिया. हौसले टूटने लगे, लेकिन तभी दशरथ मांझी के संघर्ष याद आए. फिर क्या था हर दिन दशरथ मांझी की वंदना कर खुदाई करने लगे और अब उसका नाम ही वंदना सरोवर रख दिया.

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सुग्रीव ने 2009 में चलाई थी पहली कुदाल (ETV Bharat)

दिलचस्प है गठबंधन तालाब : सुग्रीव राजवंशी ने सबसे आखिर में गठबंधन तालाब की खुदाई की. हालांकि इनके गठबंधन शब्द का राजनीतिक कोई अर्थ नहीं है. सुग्रीव ने अपने आखिरी तालाब का नामांकरण गठबंधन इसलिए किया क्योंकि दो तालाबों की खुदाई में घर के सदस्य भी उनके कार्य से खुश नहीं थे, लेकिन जब दो तालाब की भूमिका सामने आने लगी तो घर के सदस्य भी तीसरे तालाब को खोदने में हाथ बंटाने लगे. सुग्रीव ने उनकी मदद को याद रखने के लिए उसका नाम ही गठबंधन रख दिया.

डीएम ने बनवाया था रास्ता : सुग्रीव राजवंशी बताते हैं कि 1990 के दशक में गया जिला पदाधिकारी के रूप में जब राजबाला वर्मा पदस्थापित थीं. तब उन्होंने अतरी के टेकरा पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने का निर्देश दिया था. उस काम को करने के लिए सुग्रीव राजवंशी लगे थे. तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा ने पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने के कार्यों के मार्गदर्शन के लिए दशरथ मांझी को जिम्मेदारी सौंपी थी. एक साल तक सुग्रीव ने दशरथ मांझी के मार्गदर्शन में काम किया. तभी से वह दशरथ मांझी को अपना गुरु मानने लगे.

पगला कहते थे गांव के लोग : सुग्रीव की बेटी मेनका कुमारी कहती हैं कि उनके पिता के जरिए खोदे गए तालाबों से सभी लाभाविन्त हुए हैं. लेकिन जब वो खुदाई कर रहे थे, तब हम लोगों को भी गांव के लोगों से बातें सुननी पड़ती थी, लेकिन वो अपने इरादे पर अटल रहे. आज जंगली जानवर पानी पीते हैं या उस से सिंचाई होती है तो बड़ा सूकून होता है. हालांकि इस कार्य के कारण व्यक्तिगत रूप से परिवार का विकास नहीं हुआ.

'सुखाड़ में जानवर मर रहे थे' : सुग्रीव राजवंशी की पत्नी सुमीर देवी बताती हैं कि ''2009 में सुखाड़ हुआ था, तब पशु पंछी पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण मर रहे थे. इसी को देख उनके पति ने गड्ढा खोदना शुरू किया और पानी की व्यवस्था की, लेकिन फिर बाद में इन्होंने तालाब बनाना शुरू कर दिया. इस कार्य में लगे होने की वजह से घर में कठिनाई होती रही लेकिन फिर भी वह अपने कार्यों से पीछे नहीं हटे. वह कहते थे कि हमें खाना दो या ना दो हम अपने जीवन में कम से कम एक तालाब का निर्माण करेंगे.''

गुरबत में जिंदगी काट रहा है परिवार : सुग्रीव ने पशुओं को पानी पिलाने और खेतों में सिंचाई के लिए तालाब की खुदाई की. उनके इस कार्यों की प्रशंसा 2015 में जिला प्रशासन और प्रखंड स्तरीय अधिकारियों के द्वारा खूब की गई. हालांकि उनकी आर्थिक तंगियों से संबंधित किसी ने कोई सहयोग नहीं किया. मिट्टी की टूटी हुई झोपड़ी में सुग्रीव राजवंशी और उनका परिवार रहने को मजबूर है.

''मेरे पति ने पथरीली जमीन को काटकर तालाब खोदना शुरू किया तो उस समय हमें भी बड़ी तकलीफ हुई कि घर में कोई कमाने वाला नहीं, परिवार का लालन पोषण कैसे होगा. हमसे झगड़ा भी होता था लेकिन बाद में उनके संघर्षों को देखकर हम भी राजी हो गए. उनके तालाब को देखने के लिए कई बार प्रखंड विकास पदाधिकारी भी आए. आश्वासन दिया कि सहयोग किया जाएगा, लेकिन आज तक किसी ने सहयोग नहीं किया. हम इतने गरीब हैं के खुद का एक मकान भी नहीं बना सकते, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना का भी लाभ नहीं मिला है.''- सुमीर देवी, सुग्रीव राजवंशी की पत्नी

''सुग्रीव राजवंशी बड़ी मेहनती हैं. किसी तरह के सहयोग के बिना उन्होंने तालाब बनाया है. आज जब उसमें पानी होता है तो उससे पटवन भी किया जाता है. गांव के लोग उनके कार्यों की अब सराहना करते हैं. वो दूसरे दशरथ मांझी हैं लेकिन इनका परिवार गुरबत में जिंदगी गुजार रहे हैं. उनके संघर्षों का कोई फल नहीं मिला है.''- दिनेश, स्थानीय

छह बच्चों में एक ग्रेजुएट : सुग्रीव राजवंशी को तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. इन्होंने गरीबी में सिर्फ एक बेटे को ग्रेजुएशन तक पढ़ाया, बाकी बच्चे मैट्रिक भी पास नहीं है. बेटे मजदूरी करते हैं, तीन बेटियों में दो की शादी कर दी है. अब सरकारी सहायता के लिए आश लगाए बैठे हैं. परिवार के सदस्यों का कहना है कि कम से कम प्रधानमंत्री आवास योजना का ही लाभ मिल जाए.

'तालाबों तक पानी पहुंचाने की हो व्यवस्था' : सुग्रीव राजवंशी ने तीन तालाब तो खोद दिए लेकिन इनमें दो में पानी नहीं रहता. बरसात के बाद पानी सूख जाते हैं. 2018 में सुग्रीव ने ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार को तालाबों की सौंदर्य करण और उनमें बरसात का पानी पहुंचाने की व्यवस्था करने की मांग की थी. ग्रामीण विकास मंत्री को उन्होंने लिखित आवेदन भी दिया था. मंत्री ने जिला प्रशासन को इस संबंध में विधिवत कार्य करने का आदेश दिया था. स्थानीय प्रखंड के अधिकारी भी पहुंचकर जांच की, लेकिन अब तक कोई कार्य नहीं किए गए.

तालाब के पास है बगीचा : सुग्रीव राजवंशी ने न सिर्फ तालाब का निर्माण किया बल्कि इन्होंने बंजर और पथरीली जमीन पर हरियाली भी लाई. इनके द्वारा खुदाई कर बनाए गए तालाबों में दो तालाब एक स्थान पर स्थित हैं जबकि एक तालाब कुछ दूरी पर स्थित है. दो तालाबों के बीच में एक बड़ा बगीचा भी है जिसमें लगभग 300 से अधिक अमरूद, आम, नींबू जैसे फलदार पेड़ लगे हैं. पूरे बगीचा को अपने तालाब से ही पटवन कर सींचा है.

''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जब जल जीवन हरियाली योजना लाई थी, तब मैंने बंजर जमीन पर हरियाली उगाने का प्रयास किया. इसमें कुछ पेड़ खुद खरीद कर लगाए, जबकि कुछ पेड़ प्रखंड कार्यालय से मिला था.''- सुग्रीव राजवंशी

पानी की है समस्या : चकरा पंचायत के मुखिया अजय कुमार निराला कहते हैं कि सुग्रीव राजवंशी ने अकेले दम पर तीन तालाब खोदे हैं, लेकिन सरकारी सहयाता नहीं मिली है. तालाब के बीच में उन्होंने बागीचा भी लगाया है. आवास योजना का लाभ नहीं मिला था, अभी सर्वे हो रहा है उसमें हमने सुग्रीव राजवंशी के परिवार का नाम जोड़ा है.

''गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की ही है. सुग्रीव ने तीन तालाब अपनी मेहनत से खोदे हैं लेकिन उसमें पानी जमा होने का कोई प्रबंध नहीं है. एक तालाब में पानी है दो सुख गए हैं. सरकार और प्रशासन इस पर अगर ध्यान दे तो ये तीनों बड़े लाभ वाले तालाब होंगे. इस संबंध में कई बार हमने स्थानीय प्रशासन को भी लिखित आवेदन दिया है.''- अजय कुमार निराला, मुखिया, चकरा पंचायत

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गया: बिहार का गया जिला दुनिया भर में मोक्ष और ज्ञान की नगरी से प्रसिद्ध है. वैसे यहां के लोग एक और खासियत के लिए भी जाने जाते हैं, उनकी वो खासियत पहाड़ों और पथरीली मिट्टी से टकराने की है. यहां के लोग मन में किसी संकल्प को ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं. चाहे वो दशरथ मांझी हो, जिन्होंने अपनी पत्नी फगुनिया की पीड़ा से दुखी होकर पहाड़ से टक्कर ली तो पर्वत पुरुष बन कर पहाड़ को चिर कर आम रास्ता बना दिया. या फिर लौंगी भुइयां हों जिन्होंने गांव में पानी पहुंचाने के लिए पथरीले रास्ते को काटकर नहर बना दी.

सुग्रीव राजवंशी ने पेश की मिसाल: अब इन महान पुरुषों के साथ एक और नाम जुड़ गया है. जिन्हें कम लोग ही जानते हैं. हम आपको इनके संघर्ष और लक्ष्य के लिए समर्पण की कहानी बताते हैं. जिन्होंने 16 वर्षों में पथरीली मिट्टी को काटकर एक नहीं तीन तालाबों की खुदाई कर पानी निकाल दिए. इस व्यक्ति का नाम है सुग्रीव राजवंशी.

बिहार के सुग्रीव की कहानी (ETV Bharat)

पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद डाला : जिले के अतरी प्रखंड में चकरा पंचायत अंतर्गत रंगपुर भोजपुर गांव है. गांव गया के जेठियन और नालंदा जिले के राजगीर पंच पहाड़ी के बीच में स्थित है. गांव में 300 घरों की आबादी होगी जिस में एक सुग्रीव राजवंशी भी हैं. 40 वर्ष की उम्र से सुग्रीव ने पथरीली मिट्टी को काट कर तालाब खोदना शुरू किया और आज 55 वर्ष की उम्र में इन्होंने पंच पहाड़ी की तराई में पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद दिए.

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पथरीली जमीन पर तीन तालाब खोदे (ETV Bharat)

5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती : सुग्रीव के तालाबों से जानवर पानी पीते हैं. साथ ही आसपास की भूमि की सिंचाई भी की जाती है. जिस जमीन पर तालाब बनाए हैं वो वन विभाग की बताई जाती है. हालांकि अब इनके दो तालाब सुख गए हैं, एक तालाब में पानी है. जिससे 5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है.

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5-6 एकड़ भूमि की होती है सिंचाई (ETV Bharat)

सुग्रीव राजवंशी मैट्रिक पास हैं. उन्होंने 1985 में अपनी बहन के घर में रहकर मैट्रिक की परीक्षा दी थी. हलांकि उन्हें मलाल है कि अपने 6 बच्चों में सिर्फ एक को पढ़ा सके. सुग्रीव बताते हैं की पर्वत पुरुष दशरथ मांझी उनके गुरु हैं. उनके कार्यों से वो प्रभावित होकर कुछ करने की इच्छा रखते थे, पर गरीबी इतनी थी कि वह कुछ कर नहीं सकते थे.

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गया के सुग्रीव राजवंशी ने पेश की मिसाल (ETV Bharat)

''एक दिन दशरथ मांझी की प्रेरणा ने ऐसा झिंझोड़ा की पथरीली भूमि पर तालाब खोदने का संकल्प ले लिया. हालांकि यह संकल्प आसान नहीं था क्योंकि इसको पूरा करने की कठिनाई पहाड़ काटने से कम नहीं थी.''- सुग्रीव राजवंशी

2009 में चलाई थी पहली कुदाल : सुग्रीव बताते हैं कि साल 2009 में तालाब खोदने के लिए पहली कुदाल चलाई थी. बिना रुके, थके दो वर्षों तक मिट्टी काटते रहे जिसके परिणाम स्वरूप 130 फिट लंबा, 50 फिट चौड़ा और 15 फिट गहरा पहला तालाब बनाया. सुग्रीव बताते हैं कि पहले तालाब को खोदकर वो रुके नहीं बल्कि अपने कार्यों को जारी रखा और एक-एक कर 2024 तक 3 तालाब के खोदने के कार्य को पूर्ण कर लिया.

Story of Sugriv of Bihar
सुग्रीव ने खोद डाले तीन तालाब (ETV Bharat)

तालाबों का कर दिया नामकरण : सुग्रीव ने अपनी मेहनत और संघर्षों से निर्माण किए तालाबों का नामकरण भी कर दिया है. इनके द्वारा निर्माण किए गए तीनों तालाबों में प्रभात सरोवर, वंदना सरोवर और गठबंधन सरोवर है. सुग्रीव नामकरण के पीछे कारण बताते हैं कि प्रभात सरोवर इसलिए रखा क्योंकि वे सुबह 3 बजे से खुदाई शुरू करते और सूरज उगने से पहले बंद कर देते.

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पानी पहुंचाने के लिए पथरीले रास्ते को काटकर बनाया नहर (ETV Bharat)

कई महीनों तक गांव के लोगों को इनके बारे में पता नहीं चला, लोग खुदाई देखकर परेशान होते थे कि आखिर ऐसा कौन कर रहा है? तालाब से गांव की आबादी लगभग 1 किलोमीटर दूर है. कई महीनों बाद लोगों ने सुग्रीव को जब पथरीली मिट्टी को काटते देखा तब लोगों को पता चला कि सुग्रीव ही हैं जो खुदाई कर रहे हैं. जबकि दूसरे सरोवर की कहानी इनके प्रेरणा पुरुष दशरथ मांझी से जुड़ी है.

सुग्रीव बताते हैं कि एक ऐसा समय आया जब उन्हें गांव के लोगों से ताने सुनने पड़े, गांव के लोग उनके संघर्षों की कदर करने के बजाय 'पगला' जैसे शब्दों से पुकारने लगे. पत्नी भी नाराज थी कि घर में कोई कमाने वाला नहीं है. काम करने के बजाए ये मिट्टी काटने में लगे हैं. तब ऐसी स्थिति में सुग्रीव की हिम्मत ने जवाब दे दिया. हौसले टूटने लगे, लेकिन तभी दशरथ मांझी के संघर्ष याद आए. फिर क्या था हर दिन दशरथ मांझी की वंदना कर खुदाई करने लगे और अब उसका नाम ही वंदना सरोवर रख दिया.

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सुग्रीव ने 2009 में चलाई थी पहली कुदाल (ETV Bharat)

दिलचस्प है गठबंधन तालाब : सुग्रीव राजवंशी ने सबसे आखिर में गठबंधन तालाब की खुदाई की. हालांकि इनके गठबंधन शब्द का राजनीतिक कोई अर्थ नहीं है. सुग्रीव ने अपने आखिरी तालाब का नामांकरण गठबंधन इसलिए किया क्योंकि दो तालाबों की खुदाई में घर के सदस्य भी उनके कार्य से खुश नहीं थे, लेकिन जब दो तालाब की भूमिका सामने आने लगी तो घर के सदस्य भी तीसरे तालाब को खोदने में हाथ बंटाने लगे. सुग्रीव ने उनकी मदद को याद रखने के लिए उसका नाम ही गठबंधन रख दिया.

डीएम ने बनवाया था रास्ता : सुग्रीव राजवंशी बताते हैं कि 1990 के दशक में गया जिला पदाधिकारी के रूप में जब राजबाला वर्मा पदस्थापित थीं. तब उन्होंने अतरी के टेकरा पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने का निर्देश दिया था. उस काम को करने के लिए सुग्रीव राजवंशी लगे थे. तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा ने पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने के कार्यों के मार्गदर्शन के लिए दशरथ मांझी को जिम्मेदारी सौंपी थी. एक साल तक सुग्रीव ने दशरथ मांझी के मार्गदर्शन में काम किया. तभी से वह दशरथ मांझी को अपना गुरु मानने लगे.

पगला कहते थे गांव के लोग : सुग्रीव की बेटी मेनका कुमारी कहती हैं कि उनके पिता के जरिए खोदे गए तालाबों से सभी लाभाविन्त हुए हैं. लेकिन जब वो खुदाई कर रहे थे, तब हम लोगों को भी गांव के लोगों से बातें सुननी पड़ती थी, लेकिन वो अपने इरादे पर अटल रहे. आज जंगली जानवर पानी पीते हैं या उस से सिंचाई होती है तो बड़ा सूकून होता है. हालांकि इस कार्य के कारण व्यक्तिगत रूप से परिवार का विकास नहीं हुआ.

'सुखाड़ में जानवर मर रहे थे' : सुग्रीव राजवंशी की पत्नी सुमीर देवी बताती हैं कि ''2009 में सुखाड़ हुआ था, तब पशु पंछी पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण मर रहे थे. इसी को देख उनके पति ने गड्ढा खोदना शुरू किया और पानी की व्यवस्था की, लेकिन फिर बाद में इन्होंने तालाब बनाना शुरू कर दिया. इस कार्य में लगे होने की वजह से घर में कठिनाई होती रही लेकिन फिर भी वह अपने कार्यों से पीछे नहीं हटे. वह कहते थे कि हमें खाना दो या ना दो हम अपने जीवन में कम से कम एक तालाब का निर्माण करेंगे.''

गुरबत में जिंदगी काट रहा है परिवार : सुग्रीव ने पशुओं को पानी पिलाने और खेतों में सिंचाई के लिए तालाब की खुदाई की. उनके इस कार्यों की प्रशंसा 2015 में जिला प्रशासन और प्रखंड स्तरीय अधिकारियों के द्वारा खूब की गई. हालांकि उनकी आर्थिक तंगियों से संबंधित किसी ने कोई सहयोग नहीं किया. मिट्टी की टूटी हुई झोपड़ी में सुग्रीव राजवंशी और उनका परिवार रहने को मजबूर है.

''मेरे पति ने पथरीली जमीन को काटकर तालाब खोदना शुरू किया तो उस समय हमें भी बड़ी तकलीफ हुई कि घर में कोई कमाने वाला नहीं, परिवार का लालन पोषण कैसे होगा. हमसे झगड़ा भी होता था लेकिन बाद में उनके संघर्षों को देखकर हम भी राजी हो गए. उनके तालाब को देखने के लिए कई बार प्रखंड विकास पदाधिकारी भी आए. आश्वासन दिया कि सहयोग किया जाएगा, लेकिन आज तक किसी ने सहयोग नहीं किया. हम इतने गरीब हैं के खुद का एक मकान भी नहीं बना सकते, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना का भी लाभ नहीं मिला है.''- सुमीर देवी, सुग्रीव राजवंशी की पत्नी

''सुग्रीव राजवंशी बड़ी मेहनती हैं. किसी तरह के सहयोग के बिना उन्होंने तालाब बनाया है. आज जब उसमें पानी होता है तो उससे पटवन भी किया जाता है. गांव के लोग उनके कार्यों की अब सराहना करते हैं. वो दूसरे दशरथ मांझी हैं लेकिन इनका परिवार गुरबत में जिंदगी गुजार रहे हैं. उनके संघर्षों का कोई फल नहीं मिला है.''- दिनेश, स्थानीय

छह बच्चों में एक ग्रेजुएट : सुग्रीव राजवंशी को तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. इन्होंने गरीबी में सिर्फ एक बेटे को ग्रेजुएशन तक पढ़ाया, बाकी बच्चे मैट्रिक भी पास नहीं है. बेटे मजदूरी करते हैं, तीन बेटियों में दो की शादी कर दी है. अब सरकारी सहायता के लिए आश लगाए बैठे हैं. परिवार के सदस्यों का कहना है कि कम से कम प्रधानमंत्री आवास योजना का ही लाभ मिल जाए.

'तालाबों तक पानी पहुंचाने की हो व्यवस्था' : सुग्रीव राजवंशी ने तीन तालाब तो खोद दिए लेकिन इनमें दो में पानी नहीं रहता. बरसात के बाद पानी सूख जाते हैं. 2018 में सुग्रीव ने ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार को तालाबों की सौंदर्य करण और उनमें बरसात का पानी पहुंचाने की व्यवस्था करने की मांग की थी. ग्रामीण विकास मंत्री को उन्होंने लिखित आवेदन भी दिया था. मंत्री ने जिला प्रशासन को इस संबंध में विधिवत कार्य करने का आदेश दिया था. स्थानीय प्रखंड के अधिकारी भी पहुंचकर जांच की, लेकिन अब तक कोई कार्य नहीं किए गए.

तालाब के पास है बगीचा : सुग्रीव राजवंशी ने न सिर्फ तालाब का निर्माण किया बल्कि इन्होंने बंजर और पथरीली जमीन पर हरियाली भी लाई. इनके द्वारा खुदाई कर बनाए गए तालाबों में दो तालाब एक स्थान पर स्थित हैं जबकि एक तालाब कुछ दूरी पर स्थित है. दो तालाबों के बीच में एक बड़ा बगीचा भी है जिसमें लगभग 300 से अधिक अमरूद, आम, नींबू जैसे फलदार पेड़ लगे हैं. पूरे बगीचा को अपने तालाब से ही पटवन कर सींचा है.

''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जब जल जीवन हरियाली योजना लाई थी, तब मैंने बंजर जमीन पर हरियाली उगाने का प्रयास किया. इसमें कुछ पेड़ खुद खरीद कर लगाए, जबकि कुछ पेड़ प्रखंड कार्यालय से मिला था.''- सुग्रीव राजवंशी

पानी की है समस्या : चकरा पंचायत के मुखिया अजय कुमार निराला कहते हैं कि सुग्रीव राजवंशी ने अकेले दम पर तीन तालाब खोदे हैं, लेकिन सरकारी सहयाता नहीं मिली है. तालाब के बीच में उन्होंने बागीचा भी लगाया है. आवास योजना का लाभ नहीं मिला था, अभी सर्वे हो रहा है उसमें हमने सुग्रीव राजवंशी के परिवार का नाम जोड़ा है.

''गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की ही है. सुग्रीव ने तीन तालाब अपनी मेहनत से खोदे हैं लेकिन उसमें पानी जमा होने का कोई प्रबंध नहीं है. एक तालाब में पानी है दो सुख गए हैं. सरकार और प्रशासन इस पर अगर ध्यान दे तो ये तीनों बड़े लाभ वाले तालाब होंगे. इस संबंध में कई बार हमने स्थानीय प्रशासन को भी लिखित आवेदन दिया है.''- अजय कुमार निराला, मुखिया, चकरा पंचायत

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