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बाढ़ से खेत खलिहान डूबे.. फिर भी अच्छी खेती का दावा कर किसानों का दर्द कुरेद रहे कृषि मंत्री! - पटना न्यूज़

बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने एक अजीबो गरीब बयान दिया है. बाढ़ की जद में डूबे बिहार में मंत्री जी अच्छी खेती होने का दावा कर रहे हैं. बाढ़ की विभिषिका झेल रहे अन्नदाताओं के लिए ये किसी क्रूर मजाक से कम नहीं है. और क्या ज्ञान दिया है कृषि मंत्री ने आगे पढ़ें..

Controversial statement of amarendra pratap singh
Controversial statement of amarendra pratap singh
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Published : Oct 5, 2021, 7:10 PM IST

पटना: देश में किसानों पर ज्यादती के मामले कम नहीं हो रहे हैं. कहीं पर किसानों पर लाठी चल रहे हैं, कहीं पर गाड़ियां (Lakhimpur Kheri Incident) चलाई जा रही हैं तो कहीं पर उम्मीदों की खेती पर बयानों से पानी फेर दिया जा रहा है. चेहरे और जगह अलग-अलग हैं. इन सबके बीच बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह (Minister Amarendra Pratap Singh) का विवादास्पद बयान सामने आया है.

यह भी पढ़ें- VIDEO: बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में पैदल ही पहुंचे CM नीतीश.. कटाव क्षेत्र में मरम्मती के निर्देश

सरकार की नीति और दिए जाने वाले बयान अलग-अलग हैं. लेकिन अगर इसे किसानों के हित के तराजू में तौल कर देखें तो सभी सरकारों के मनमानी करने का अंदाज और भाषण देने का तरीका गजब का है. बिहार में किसान आंदोलन तो नहीं चल रहा है, लेकिन किसानों को लेकर जिस तरीके से बयान आ रहे हैं, वह चीजें बताने के लिए अपने आप में काफी हैं कि सरकारें किसान को लेकर कभी संजीदा रही ही नहीं और बिहार की खेती कहां जा रही है, यह सिर्फ राजनीति में चर्चा में होती है.

यह बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि बिहार के कृषि मंत्री ने बिहार में यूरिया की किल्लत पर कह दिया कि बिहार में इस बार अच्छी बारिश हुई है और खेती ज्यादा हो गई, इसलिए राज्य में यूरिया की किल्लत हो गई है. मंत्री को इस बात की जानकारी शायद नहीं है कि नीतीश कुमार हवाई जहाज में क्यों उड़ रहे हैं और बारिश का बिहार में परिणाम क्या आया है.

यह भी पढ़ें- बिहार के दरभंगा जिले में बीते 36 घंटों से लगातार भारी बारिश, लोगों के घरों में घुसा पानी

बिहार के कृषि मंत्री को शायद इस बात की जानकारी नहीं है या जानकारी है तो सत्ता के मद में है कि बिहार के 26 जिले बाढ़ की जद में है. उत्तर बिहार में जिस तरीके से बाढ़ आई है उसमें कई जिलों की पूरी फसल ही चौपट हो गई है. हालत यह है कि जिला मुख्यालयों तक में पानी जमा है.

निचले हिस्सों की बात कर लें तो लगी धान की फसल मक्का और हरी सब्जियां पूरे तौर पर बर्बाद हो गई हैं. बिहार में इस बार आई बाढ़ ने कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. उसमें एक सबसे अहम बात यह थी कि पहले बाढ़ आती थी लेकिन पानी उतर जाता था. इस बार पानी जम गया जिसके चलते 26 जिले पूरे तौर पर इसकी चपेट में आ गए.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने कई चरण में इन बाढ़ प्रभावित जिलों का दौरा कर चुके हैं और बात मंगलवार 5 अक्टूबर की करें तो नीतीश कुमार वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सारण, वैशाली जैसे जिले का दौरा किए हैं. पानी यहां भी भरा हुआ है. खेती यहां की भी चौपट हो गई है. लेकिन हाय रे बिहार के कृषि मंत्री तो पानी पर खेती कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- जगदानंद सिंह का दावा- बाढ़ नियंत्रण के लिए RJD सरकार के प्रयासों पर डबल इंजन ने फेर दिया पानी

बिहार में किसान किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं है और ना ही सड़कों पर उतरें हैं और ना ही सरकार के खिलाफ उन्होंने कोई बात कही है. उसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि बिहार ने किसानों को ज्यादा कुछ दिया ही नहीं और बाढ़ ने तो उनकी कमर तोड़ दी है. ऐसे में यूरिया कहां डालेंगे यह तो किसान तय नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन यूरिया की किल्लत हो गई या यूरिया की किल्लत हो जाएगी, इसे बिहार सरकार भी नहीं तय कर पाई. मंत्री को यहां तक नहीं पता था कि अगर खेती का क्षेत्रफल बढ़ता है तो कितने यूरिया की जरूरत पड़ेगी. इसे पहले ही केंद्र सरकार को भेज दिया जाए. लेकिन उसे भी भेजने में बिहार का कृषि विभाग और कृषि मंत्री फेल ही रहे.

अब जब किसानों को यह बताने की बारी आई कि यूरिया की किल्लत क्यों है तो बता दिए कि ज्यादा क्षेत्रफल में खेती हो गई. लेकिन मंत्री जी शायद आपको पता नहीं है कि मुख्यमंत्री जी ज्यादा क्षेत्र में आए बाढ़ का दौरा कर रहे हैं. और बाढ़ से स्थिति भयावह हो गई है. कई जिलों की तो पूरी खेती ही चौपट हो गई है. अब जरा आप यह बता दीजिए कि किस क्षेत्रफल में खेती बढ़ गई है या फिर पानी बढ़ने से पानी पर ही खेती हो रही है.

किसानों को लेकर संजीदगी लगभग हर प्रकार की यही है. अगर उसके फसल की पैदावार हो गई तो खरीदारी नहीं होगी और पैदावार करना है तो खाद नहीं मिलेगी. अब किसान करे तो क्या करें क्योंकि उसने वोट देकर के मंत्री तो बना दिया है. आप समय पर मंत्री जी को वेतन मिलता रहेगा यह तो बिल्कुल तय है. और मंत्री पद से चले जाएंगे तो भी वेतन मिलता रहेगा. यह अलग बात है कि जिस किसानी के लिए इनको विभाग दिया गया, जिन किसानों को सुविधा देने के लिए इन्हें गद्दी दी गई, वह करने में इन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है. हां जिस कोटे से मंत्री हैं उसके सबसे ब्रांड नेता नरेंद्र मोदी भले कहते रहे हैं कि किसानों की कमाई दोगुनी करनी है.

लेकिन बिहार के किसानों की नियति है यह सब कुछ बाढ़ में गंवा चुके हैं. और जो कुछ बचा है उसमें सरकार की नीतियों की उर्वरा शक्ति इतनी जल्दी उर्वरक उपलब्धि नहीं करा पाएगी कि बिहार के किसान खेती से अपने पेट भरने के लिए अनाज पैदा कर पाए. अब इसके बाद तो सवाल कई खड़े होते हैं कि बिहार में पलायन होगा नहीं होगा? रोजगार कहां मिलेगा कैसे मिलेगा? सरकार की नीतियां क्या होंगी?

सवाल बहुत सारे हैं लेकिन सत्ता के गलियारे में गाना तो बस एक है बिहार में बहार है नीतीश कुमार है. अब सोचिए नीतीश जी के बिहार के कृषि मंत्री पानी पर खेती करवा रहे हैं. कहते हैं क्षेत्रफल बढ़ गया है यूरिया इसीलिए नहीं मिली. ऐसे बयान वाकई हास्यास्पद हैं.

पटना: देश में किसानों पर ज्यादती के मामले कम नहीं हो रहे हैं. कहीं पर किसानों पर लाठी चल रहे हैं, कहीं पर गाड़ियां (Lakhimpur Kheri Incident) चलाई जा रही हैं तो कहीं पर उम्मीदों की खेती पर बयानों से पानी फेर दिया जा रहा है. चेहरे और जगह अलग-अलग हैं. इन सबके बीच बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह (Minister Amarendra Pratap Singh) का विवादास्पद बयान सामने आया है.

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सरकार की नीति और दिए जाने वाले बयान अलग-अलग हैं. लेकिन अगर इसे किसानों के हित के तराजू में तौल कर देखें तो सभी सरकारों के मनमानी करने का अंदाज और भाषण देने का तरीका गजब का है. बिहार में किसान आंदोलन तो नहीं चल रहा है, लेकिन किसानों को लेकर जिस तरीके से बयान आ रहे हैं, वह चीजें बताने के लिए अपने आप में काफी हैं कि सरकारें किसान को लेकर कभी संजीदा रही ही नहीं और बिहार की खेती कहां जा रही है, यह सिर्फ राजनीति में चर्चा में होती है.

यह बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि बिहार के कृषि मंत्री ने बिहार में यूरिया की किल्लत पर कह दिया कि बिहार में इस बार अच्छी बारिश हुई है और खेती ज्यादा हो गई, इसलिए राज्य में यूरिया की किल्लत हो गई है. मंत्री को इस बात की जानकारी शायद नहीं है कि नीतीश कुमार हवाई जहाज में क्यों उड़ रहे हैं और बारिश का बिहार में परिणाम क्या आया है.

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बिहार के कृषि मंत्री को शायद इस बात की जानकारी नहीं है या जानकारी है तो सत्ता के मद में है कि बिहार के 26 जिले बाढ़ की जद में है. उत्तर बिहार में जिस तरीके से बाढ़ आई है उसमें कई जिलों की पूरी फसल ही चौपट हो गई है. हालत यह है कि जिला मुख्यालयों तक में पानी जमा है.

निचले हिस्सों की बात कर लें तो लगी धान की फसल मक्का और हरी सब्जियां पूरे तौर पर बर्बाद हो गई हैं. बिहार में इस बार आई बाढ़ ने कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. उसमें एक सबसे अहम बात यह थी कि पहले बाढ़ आती थी लेकिन पानी उतर जाता था. इस बार पानी जम गया जिसके चलते 26 जिले पूरे तौर पर इसकी चपेट में आ गए.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने कई चरण में इन बाढ़ प्रभावित जिलों का दौरा कर चुके हैं और बात मंगलवार 5 अक्टूबर की करें तो नीतीश कुमार वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सारण, वैशाली जैसे जिले का दौरा किए हैं. पानी यहां भी भरा हुआ है. खेती यहां की भी चौपट हो गई है. लेकिन हाय रे बिहार के कृषि मंत्री तो पानी पर खेती कर रहे हैं.

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बिहार में किसान किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं है और ना ही सड़कों पर उतरें हैं और ना ही सरकार के खिलाफ उन्होंने कोई बात कही है. उसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि बिहार ने किसानों को ज्यादा कुछ दिया ही नहीं और बाढ़ ने तो उनकी कमर तोड़ दी है. ऐसे में यूरिया कहां डालेंगे यह तो किसान तय नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन यूरिया की किल्लत हो गई या यूरिया की किल्लत हो जाएगी, इसे बिहार सरकार भी नहीं तय कर पाई. मंत्री को यहां तक नहीं पता था कि अगर खेती का क्षेत्रफल बढ़ता है तो कितने यूरिया की जरूरत पड़ेगी. इसे पहले ही केंद्र सरकार को भेज दिया जाए. लेकिन उसे भी भेजने में बिहार का कृषि विभाग और कृषि मंत्री फेल ही रहे.

अब जब किसानों को यह बताने की बारी आई कि यूरिया की किल्लत क्यों है तो बता दिए कि ज्यादा क्षेत्रफल में खेती हो गई. लेकिन मंत्री जी शायद आपको पता नहीं है कि मुख्यमंत्री जी ज्यादा क्षेत्र में आए बाढ़ का दौरा कर रहे हैं. और बाढ़ से स्थिति भयावह हो गई है. कई जिलों की तो पूरी खेती ही चौपट हो गई है. अब जरा आप यह बता दीजिए कि किस क्षेत्रफल में खेती बढ़ गई है या फिर पानी बढ़ने से पानी पर ही खेती हो रही है.

किसानों को लेकर संजीदगी लगभग हर प्रकार की यही है. अगर उसके फसल की पैदावार हो गई तो खरीदारी नहीं होगी और पैदावार करना है तो खाद नहीं मिलेगी. अब किसान करे तो क्या करें क्योंकि उसने वोट देकर के मंत्री तो बना दिया है. आप समय पर मंत्री जी को वेतन मिलता रहेगा यह तो बिल्कुल तय है. और मंत्री पद से चले जाएंगे तो भी वेतन मिलता रहेगा. यह अलग बात है कि जिस किसानी के लिए इनको विभाग दिया गया, जिन किसानों को सुविधा देने के लिए इन्हें गद्दी दी गई, वह करने में इन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है. हां जिस कोटे से मंत्री हैं उसके सबसे ब्रांड नेता नरेंद्र मोदी भले कहते रहे हैं कि किसानों की कमाई दोगुनी करनी है.

लेकिन बिहार के किसानों की नियति है यह सब कुछ बाढ़ में गंवा चुके हैं. और जो कुछ बचा है उसमें सरकार की नीतियों की उर्वरा शक्ति इतनी जल्दी उर्वरक उपलब्धि नहीं करा पाएगी कि बिहार के किसान खेती से अपने पेट भरने के लिए अनाज पैदा कर पाए. अब इसके बाद तो सवाल कई खड़े होते हैं कि बिहार में पलायन होगा नहीं होगा? रोजगार कहां मिलेगा कैसे मिलेगा? सरकार की नीतियां क्या होंगी?

सवाल बहुत सारे हैं लेकिन सत्ता के गलियारे में गाना तो बस एक है बिहार में बहार है नीतीश कुमार है. अब सोचिए नीतीश जी के बिहार के कृषि मंत्री पानी पर खेती करवा रहे हैं. कहते हैं क्षेत्रफल बढ़ गया है यूरिया इसीलिए नहीं मिली. ऐसे बयान वाकई हास्यास्पद हैं.

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