पटना: इन दिनों बिहार में आपराधिक घटनाएं लगातार (Criminal incidents in Bihar) हो रही हैं. हत्या, अपहरण, लूट, चोरी, डकैती जैसी वारदातों में काफी बढ़ोतरी हुई है. इसे लेकर आम लोग तो आक्रोशित हैं ही, विपक्ष भी लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है. अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) खुद कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर एक्टिव हो गये हैं. उन्होंने इस मुद्दे पर 9 फरवरी को समीक्षा बैठक (Review Meeting on Law and Order in Bihar) बुलाई है. इस बैठक में बिहार के डीजीपी सहित राज्य पुलिस के सभी आला अधिकारी शामिल होंगे.
पिछली बार लॉ एंड आर्डर को लेकर 15 नवंबर को नीतीश कुमार ने बैठक बुलाई की थी. उसमें उन्होंने अधिकारियों को कई तरह के महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए थे. अब इस बैठक में वे समीक्षा करेंगे कि उन निर्देशों का कितना पालन बिहार पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है. मुख्यमंत्री कुछ नये निर्देश भी दे सकते हैं. दरअसल, यह बैठक 6 फरवरी को होने वाली थी परंतु बाद इसे आगे बढ़ा दिया गया.
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13 करोड़ की आबादी पर महज 93 हजार पुलिस कर्मी
बिहार में बिगड़ते लॉ एंड ऑर्डर को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है. बिहार में इन दिनों राजधानी पटना समेत अन्य जिलों में स्वर्ण व्यवसायियों से लूटपाट की कई घटनाएं घटित हो चुकी हैं. सवाल यह उठ रहा है कि समीक्षा बैठक तो होती है, इसके बावजूद अपराध के ग्राफ में क्यों नहीं कमी आ रही है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉ. संजय कुमार ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि बिहार पुलिस और बिहार की आबादी का अनुपात एक बड़ा मुद्दा है. बिहार में जहां 13 करोड़ की आबादी है, वहां पर महज 93,000 पुलिसकर्मी ही हैं. नीतीश सरकार को सबसे पहले पुलिसकर्मियों की बहाली करनी चाहिए.
बेरोजगारी भी है बड़ा कारण
उन्होंने कहा कि इसके अलावा सबसे बड़ा कारण कहीं ना कहीं इस वक्त बेरोजगारी है. कोरोना काल के बाद ज्यादातर लोग बेरोजगार हो गए हैं. ऐसे में राज्य सरकार को सर्वप्रथम बेरोजगारी खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए. बिहार में बेरोजगारी की दर 36 फीसदी है. इसके साथ ही जब तक बिहार सरकार कम्पीटेंट पुलिस पदाधिकारी को टास्क नहीं देगी, उनकी पदस्थापना सही जगह पर नहीं की जाएगी, तब तक लॉ एंड ऑर्डर नहीं सुधरेगा.
शराबबंदी कानून लागू कराने में पुलिस व्यस्त
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने बिहार पुलिस को मल्टीटास्किंग बना दिया है. जिस वजह से बिहार पुलिस का जो मुख्य कार्य अपराध रोकने का होना चाहिए, वह अब इसे छोड़कर शराबबंदी कानून लागू कराने में लगे हुए हैं. नीतीश सरकार ने सभी थानेदारों को उनके क्षेत्र में शराब बंदी कानून का पालन करवाने में और शराबियों को पकड़ने में लगा दिया है. इस वजह से पुलिस का पूरा ध्यान शराब बंदी कानून पर है क्योंकि उन्हें पता है कि उनके क्षेत्र में अगर शराब मिलती है तो उनकी थानेदार जा सकती है.
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पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार सुशासन बाबू की 3C यानी कि क्राइम, कम्युनलिज्म और करप्शन से कोई समझौता नहीं करने का जो दावा था, वह कहीं ना कहीं फेल होता दिख रहा है. बिहार पुलिस इन दिनों अपराध रोकने की जगह बालू और दारू पकड़ने के काम में लगी हुई है. इससे स्वाभाविक है कि अपराधी इसका लाभ उठाएंगे. साल 2005 में जब नीतीश कुमार सत्ता में आए थे, तब उनकी यूएसपी क्राइम पर थी क्योंकि लालू के राज में अपहरण, हत्या, लूट जैसी घटनाओं में हुई वृद्धि थी.
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नीतीश सरकार उसे खत्म करने में कहीं ना कहीं कामयाब भी हुई थी. इसके पीछे का मुख्य कारण यह भी था कि साल 2005 में शराबबंदी कानून लागू नहीं हुआ था. पुलिस पुलिसिंग करती थी ना कि शराब और बालू माफियाओं को पकड़ने में लगी थी. इसके अलावा कहीं ना कहीं अपराधियों में एक डर जरूर था. उस समय अपराधियों के खिलाफ स्पीडी ट्रायल चलाकर सजा दिलाने का काम होता था.
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