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कभी खास रहे सम्राट कैसे बन गए विरोधी गुट की आवाज, नीतीश को चुभ रहे BJP के 'तीर'

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Published : Aug 3, 2021, 12:22 PM IST

बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) गठबंधन में रार चल ही रही है. कभी खुले मैदान कोई नेता तल्ख बयान देता तो कोई सीधे सूबे के मुखिया नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को ही निशाने पर ले लेता है. ऐसे ही नेताओं में शामिल हैं भाजपा के सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary). उनके हाल में नीतीश कुमार को लेकर दिये बयान की राजनीतिक रूप से खूब चर्चा हो रही है. पढ़ें खास रिपोर्ट.

Samrat Chaudhary
Samrat Chaudhary

पटना: बिहार में भले ही नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) की सरकार चल रही है लेकिन इसमें कई ऐसे हैं जो नीतीश की नीतियों पर सवाल उठाते रहते हैं. बीजेपी के एमएलसी सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) भी उन्हीं में से एक नाम है लेकिन सम्राट चौधरी सिर्फ नीतीश पर ही नहीं बल्कि अपनों पर बयानों देकर बीजेपी में भी चर्चा में रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष को 'बेचैन मत होइए' जैसी भाषा का इस्तेमाल कर चर्चा में रहे हैं लेकिन इस बार नीतीश पर सीधा हमला कर सम्राट चौधरी ने जिस सियासत को जगह दी है, बिहार में उसे लेकर बड़ी चर्चा शुरू हो गई है.

ये भी पढ़ें: सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार का जवाब- कोई दिक्कत है तो अपनी पार्टी के नेता से करें बात

सम्राट चौधरी पहली बार नीतीश के विरोध में ऐसा बयान नहीं दिए हैं. मजबूत छांव में रहने के आदी सम्राट चौधरी मौसम को बेहतर तरीके से समझ कर ही बयान देते हैं. दरअसल, सम्राट चौधरी की नीतीश कुमार से नाराजगी की एक बड़ी वजह कुशवाहा राजनीति है. 2010 में अपनी पारिवारिक राजनीति के सबसे बड़े घराने और उनके पिता के मित्र लालू यादव का साथ छोड़कर नीतीश की कुनबे में शामिल होने वाले सम्राट चौधरी को इस बात का यकीन था कि नीतीश उन्हें कुशवाहा नेता के तौर पर स्थापित करेंगे. कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी आधा दर्जन से ज्यादा बार विधायक सम्राट चौधरी की माता भी विधायक रह चुकी हैं.

आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) के घर में सीधा आने-जाने में अगर किसी को कोई रोक नहीं था तो उसमें एक सम्राट चौधरी भी थे. उसके बाद भी 2010 में 13 विधायकों के साथ सम्राट चौधरी ने राजद (RJD) को तोड़ दिया और नीतीश से नाता जोड़ लिए. हालांकि इसका परिणाम भी उन्हें मिला, बिहार सरकार में मंत्री बने लेकिन सियासत में जाति की राजनीति जिस तरह से जदयू में गोलबंद थी, उसमें सम्राट चौधरी की राजनीति हाशिए पर ही जाती रही.

सम्राट चौधरी को कुशवाहा राजनेता के तौर पर नीतीश स्थापित करेंगे ऐसा वह चाहते थे लेकिन बदली-बदली राजनैतिक फिजा में ऐसा होना संभव नहीं हो सका. परिणाम नीतीश कुमार के आत्ममंथन और कुर्सी के बदलने के निर्णय के बाद सम्राट चौधरी मांझी गुट में चले गए और नीतीश के विरोध का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ. उम्मीद था कि कुशवाहा वोट पर सम्राट चौधरी की हर बात को मानी जाएगी लेकिन बातें भी दरकिनार होती गई और बिहार में जिस जाति राजनीति को बीजेपी भरना चाहती थी.

उसने कुशवाहा राजनीति का एक नेता बीजेपी को चाहिए था ऐसे में बीजेपी ने मौका मिलते ही सम्राट चौधरी को लपक लिया और अपने कोटे से एमएलसी बनाया. नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. कुशवाहा समीकरण की राजनीति बिहार में जब भी खड़ी होती है, उसमें जदयू अपने नेताओं के साथ चाहे जितना भ्रमण करें लेकिन बीजेपी के वार रूम में कुशवाहा समीकरण को साधने के लिए सम्राट चौधरी का हर फॉर्मूला काम किया है.

सम्राट चौधरी ने जब राजद से नाता तोड़ नीतीश की सरपरस्ती को स्वीकार किया था, तब लालू यादव राबड़ी आवास में काफी गमजदा थे. उनके कुछ खास सहयोगी उस समय वहां मौजूद थे. जिस पर लालू यादव ने बड़े भारी मन से कहा था कि हालात अगर यही रहे तब तो दोस्ती निभाना भी बड़ा मुश्किल होगा.

दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है. बात 1999 की है, शकुनी चौधरी लालू यादव के काफी करीबी थे और लालू के घर में सीधा आना-जाना सम्राट चौधरी का भी था. सम्राट चौधरी पढ़ाई करते थे. लेकिन उन्हें लाल बत्ती की ललक इतनी ज्यादा लगी कि उन्होंने अपने पिता से कह दिया कि उन्हें लाल बत्ती चाहिए. वह गाड़ी में बैठना चाहते हैं. उसके बाद शकुनी चौधरी ने लालू यादव को बेटे की इच्छा बता दी. मित्र के बेटे की बात थी तो लालू यादव मित्रता निभाने में कभी पीछे नहीं रहे.

ये भी पढ़ें: औरंगाबाद में बोले सम्राट चौधरी... 74 सीट जीतने पर भाजपा ने 43 सीट जीतने वाले नीतीश को बनाया सीएम

संविधान में भले ही चुनाव लड़ने की उम्र 25 साल हो लेकिन लालू यादव ने महज 22 साल की उम्र में ही सम्राट चौधरी को मंत्री पद की शपथ दिलवा दी. यह अलग संविधान का हवाला देते हुए राज्यपाल ने इस्तीफा ले लिया हालांकि यह बिहार के उस दौर की बात है जब बहुत कुछ मनमर्जी से होता था, मनमानी चलता था और यही वजह थी कि संविधान की बात को भी ताक पर रखकर महज 22 साल में सम्राट चौधरी को मंत्री बना दिया गया. यह तो लालू का काम था लेकिन लालू के साथ सम्राट चौधरी ने जिस तरीके से 13 विधायकों को तोड़कर पार्टी का साथ छोड़ा, उस पर लालू यादव ने सिर्फ यही कहा था कि अब तो दोस्ती निभाना भी इस समय बड़ा मुश्किल हो गया है, किस पर भरोसा किया जाए समझ नहीं आता.

लालू से दोस्ती तोड़ना, नीतीश से हाथ मिलाना और जिस राजनैतिक मजबूती के लिए सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था उसके न होने मलाल सम्राट चौधरी के मन में है और यही वजह है कि कई बार उनके बयानों में अपनी ही सरकार का विरोध दिख जाता है. सम्राट चौधरी ने जो बयान दिए हैं. उससे कई बार बड़ी विरोध की बात भी सामने आई है.

एक अगस्त को औरंगाबाद में सम्राट चौधरी ने कहा था कि हम गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. 74 सीट के बाद भी हम 43 सीट वाले पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनाए हैं. इससे पहले हाजीपुर में भी उन्होंने कहा था कि जब तक बीजेपी पूर्ण बहुमत में नहीं आएगी, तब तक बिहार का विकास करना संभव नहीं है. पंचायत चुनाव में दो बच्चे वाले मामले पर भी सम्राट चौधरी ने नीतीश के रुख से अलग जाकर ही बयान दिया था.

सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार को लेकर जिस तरीके का रूप अख्तियार कर रखा है, उसने बिहार की सियासत में दो चीजों को खड़ा कर दिया है. नीतीश की राजनीति में कुशवाहा समाज हमेशा किनारे रहा है. यह उपेंद्र कुशवाहा भी कह चुके हैं और आरोप लगाकर नीतीश से अलग जा चुके हैं.

जदयू में जो सियासत हो रही है, उसमें इस बात की उम्मीद थी कि अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को बनाया जाता है तो कुशवाहा वोट बैंक को लेकर नीतीश कुमार की संजीदगी दिखेगी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ललन सिंह को बैठा कर जदयू ने अपनी राजनीतिक राह साफ कर दी. ऐसे में बीजेपी को यह लग रहा होगा कि कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए एक वैसी सियासत जरूर होनी चाहिए, जिससे इस वोट बैंक पर बीजेपी का कब्जा हो जाए. शायद यही वजह है कि सम्राट चौधरी मुखर होकर नीतीश की मुखालफत का बिगुल फूंक रहे हैं, जिसके पीछे कुशवाहा वोट बैंक और कुशवाहा नेता का दाव हो सकता है.

पटना: बिहार में भले ही नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) की सरकार चल रही है लेकिन इसमें कई ऐसे हैं जो नीतीश की नीतियों पर सवाल उठाते रहते हैं. बीजेपी के एमएलसी सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) भी उन्हीं में से एक नाम है लेकिन सम्राट चौधरी सिर्फ नीतीश पर ही नहीं बल्कि अपनों पर बयानों देकर बीजेपी में भी चर्चा में रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष को 'बेचैन मत होइए' जैसी भाषा का इस्तेमाल कर चर्चा में रहे हैं लेकिन इस बार नीतीश पर सीधा हमला कर सम्राट चौधरी ने जिस सियासत को जगह दी है, बिहार में उसे लेकर बड़ी चर्चा शुरू हो गई है.

ये भी पढ़ें: सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार का जवाब- कोई दिक्कत है तो अपनी पार्टी के नेता से करें बात

सम्राट चौधरी पहली बार नीतीश के विरोध में ऐसा बयान नहीं दिए हैं. मजबूत छांव में रहने के आदी सम्राट चौधरी मौसम को बेहतर तरीके से समझ कर ही बयान देते हैं. दरअसल, सम्राट चौधरी की नीतीश कुमार से नाराजगी की एक बड़ी वजह कुशवाहा राजनीति है. 2010 में अपनी पारिवारिक राजनीति के सबसे बड़े घराने और उनके पिता के मित्र लालू यादव का साथ छोड़कर नीतीश की कुनबे में शामिल होने वाले सम्राट चौधरी को इस बात का यकीन था कि नीतीश उन्हें कुशवाहा नेता के तौर पर स्थापित करेंगे. कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी आधा दर्जन से ज्यादा बार विधायक सम्राट चौधरी की माता भी विधायक रह चुकी हैं.

आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) के घर में सीधा आने-जाने में अगर किसी को कोई रोक नहीं था तो उसमें एक सम्राट चौधरी भी थे. उसके बाद भी 2010 में 13 विधायकों के साथ सम्राट चौधरी ने राजद (RJD) को तोड़ दिया और नीतीश से नाता जोड़ लिए. हालांकि इसका परिणाम भी उन्हें मिला, बिहार सरकार में मंत्री बने लेकिन सियासत में जाति की राजनीति जिस तरह से जदयू में गोलबंद थी, उसमें सम्राट चौधरी की राजनीति हाशिए पर ही जाती रही.

सम्राट चौधरी को कुशवाहा राजनेता के तौर पर नीतीश स्थापित करेंगे ऐसा वह चाहते थे लेकिन बदली-बदली राजनैतिक फिजा में ऐसा होना संभव नहीं हो सका. परिणाम नीतीश कुमार के आत्ममंथन और कुर्सी के बदलने के निर्णय के बाद सम्राट चौधरी मांझी गुट में चले गए और नीतीश के विरोध का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ. उम्मीद था कि कुशवाहा वोट पर सम्राट चौधरी की हर बात को मानी जाएगी लेकिन बातें भी दरकिनार होती गई और बिहार में जिस जाति राजनीति को बीजेपी भरना चाहती थी.

उसने कुशवाहा राजनीति का एक नेता बीजेपी को चाहिए था ऐसे में बीजेपी ने मौका मिलते ही सम्राट चौधरी को लपक लिया और अपने कोटे से एमएलसी बनाया. नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. कुशवाहा समीकरण की राजनीति बिहार में जब भी खड़ी होती है, उसमें जदयू अपने नेताओं के साथ चाहे जितना भ्रमण करें लेकिन बीजेपी के वार रूम में कुशवाहा समीकरण को साधने के लिए सम्राट चौधरी का हर फॉर्मूला काम किया है.

सम्राट चौधरी ने जब राजद से नाता तोड़ नीतीश की सरपरस्ती को स्वीकार किया था, तब लालू यादव राबड़ी आवास में काफी गमजदा थे. उनके कुछ खास सहयोगी उस समय वहां मौजूद थे. जिस पर लालू यादव ने बड़े भारी मन से कहा था कि हालात अगर यही रहे तब तो दोस्ती निभाना भी बड़ा मुश्किल होगा.

दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है. बात 1999 की है, शकुनी चौधरी लालू यादव के काफी करीबी थे और लालू के घर में सीधा आना-जाना सम्राट चौधरी का भी था. सम्राट चौधरी पढ़ाई करते थे. लेकिन उन्हें लाल बत्ती की ललक इतनी ज्यादा लगी कि उन्होंने अपने पिता से कह दिया कि उन्हें लाल बत्ती चाहिए. वह गाड़ी में बैठना चाहते हैं. उसके बाद शकुनी चौधरी ने लालू यादव को बेटे की इच्छा बता दी. मित्र के बेटे की बात थी तो लालू यादव मित्रता निभाने में कभी पीछे नहीं रहे.

ये भी पढ़ें: औरंगाबाद में बोले सम्राट चौधरी... 74 सीट जीतने पर भाजपा ने 43 सीट जीतने वाले नीतीश को बनाया सीएम

संविधान में भले ही चुनाव लड़ने की उम्र 25 साल हो लेकिन लालू यादव ने महज 22 साल की उम्र में ही सम्राट चौधरी को मंत्री पद की शपथ दिलवा दी. यह अलग संविधान का हवाला देते हुए राज्यपाल ने इस्तीफा ले लिया हालांकि यह बिहार के उस दौर की बात है जब बहुत कुछ मनमर्जी से होता था, मनमानी चलता था और यही वजह थी कि संविधान की बात को भी ताक पर रखकर महज 22 साल में सम्राट चौधरी को मंत्री बना दिया गया. यह तो लालू का काम था लेकिन लालू के साथ सम्राट चौधरी ने जिस तरीके से 13 विधायकों को तोड़कर पार्टी का साथ छोड़ा, उस पर लालू यादव ने सिर्फ यही कहा था कि अब तो दोस्ती निभाना भी इस समय बड़ा मुश्किल हो गया है, किस पर भरोसा किया जाए समझ नहीं आता.

लालू से दोस्ती तोड़ना, नीतीश से हाथ मिलाना और जिस राजनैतिक मजबूती के लिए सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था उसके न होने मलाल सम्राट चौधरी के मन में है और यही वजह है कि कई बार उनके बयानों में अपनी ही सरकार का विरोध दिख जाता है. सम्राट चौधरी ने जो बयान दिए हैं. उससे कई बार बड़ी विरोध की बात भी सामने आई है.

एक अगस्त को औरंगाबाद में सम्राट चौधरी ने कहा था कि हम गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. 74 सीट के बाद भी हम 43 सीट वाले पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनाए हैं. इससे पहले हाजीपुर में भी उन्होंने कहा था कि जब तक बीजेपी पूर्ण बहुमत में नहीं आएगी, तब तक बिहार का विकास करना संभव नहीं है. पंचायत चुनाव में दो बच्चे वाले मामले पर भी सम्राट चौधरी ने नीतीश के रुख से अलग जाकर ही बयान दिया था.

सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार को लेकर जिस तरीके का रूप अख्तियार कर रखा है, उसने बिहार की सियासत में दो चीजों को खड़ा कर दिया है. नीतीश की राजनीति में कुशवाहा समाज हमेशा किनारे रहा है. यह उपेंद्र कुशवाहा भी कह चुके हैं और आरोप लगाकर नीतीश से अलग जा चुके हैं.

जदयू में जो सियासत हो रही है, उसमें इस बात की उम्मीद थी कि अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को बनाया जाता है तो कुशवाहा वोट बैंक को लेकर नीतीश कुमार की संजीदगी दिखेगी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ललन सिंह को बैठा कर जदयू ने अपनी राजनीतिक राह साफ कर दी. ऐसे में बीजेपी को यह लग रहा होगा कि कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए एक वैसी सियासत जरूर होनी चाहिए, जिससे इस वोट बैंक पर बीजेपी का कब्जा हो जाए. शायद यही वजह है कि सम्राट चौधरी मुखर होकर नीतीश की मुखालफत का बिगुल फूंक रहे हैं, जिसके पीछे कुशवाहा वोट बैंक और कुशवाहा नेता का दाव हो सकता है.

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