पटना: बिहार की राजनीति के बड़े चेहरे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और लोजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार चिराग पासवान इस बार चुनाव मैदान में नहीं होंगे. हालांकि तेजस्वी यादव जरूर चुनाव मैदान में हाथ आजमा रहे हैं. जिन सीटों पर सबकी नजर रहेगी उसमें राघोपुर सीट भी है जहां से तेजस्वी चुनाव लड़ सकते हैं.
राघोपुर सीट बना हॉट केक
बिहार विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से अधिक सीटों पर लोगों की नजर है. राघोपुर इस बार भी हॉट केक बना रहेगा यहां से नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव फिर से मैदान में उतरेंगे. राघोपुर पहले से भी चर्चा में बना रहा है. लालू प्रसाद यादव यहां से चुनाव जीते थे और राबड़ी देवी भी चुनाव लड़ीं. हालांकि, 2010 में ऐसे जदयू के उम्मीदवार सतीश कुमार से राबड़ी चुनाव हार गईं थीं. लेकिन 2015 में तेजस्वी यादव महागठबंधन के उम्मीदवार थे और काफी वोटों के अंतर से चुनाव जीते. एक बार फिर से यहां मुकाबला दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि लालू के लिए कभी राघोपुर सीट छोड़ने वाले भोला राय जदयू में आ चुके हैं और तेजस्वी को हराने में अपनी पूरी ताकत लगाने वाले हैं. दिलचस्प मुकाबला तेज प्रताप यादव के चुनाव क्षेत्र का भी होगा तीन बार के विधायक राजकुमार राय तेज प्रताप यादव के लिए बड़ी चुनौती होंगे.
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परसा पर भी रहेगी सबकी नजर
बिहार का झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र भी हमेशा चर्चा में रहा है. जगन्नाथ मिश्रा कई बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं पिछले चुनाव में उनके बेटे नीतीश मिश्रा काफी कम वोटों से हार गए थे इस बार वे एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं. वहीं, तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय का विधानसभा क्षेत्र परसा और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी का विधानसभा क्षेत्र सरायरंजन भी प्रतिष्ठा का विषय होगा. विजय चौधरी लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं और तीसरी बार भाग्य आजमाएंगे. इसके अलावा जय कुमार सिंह की दिनारा सीट भी चर्चा में है क्योंकि बीजेपी के राजेंद्र सिंह टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर लोजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनौती देंगे.
इसके साथ जीतन राम मांझी की सीट पर भी सब की नजर रहेगी. पिछली बार पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को हराकर इमामगंज से मांझी ने चुनाव जीता था. इस बार भी दोनों आमने-सामने होंगे. जीतन राम मांझी पिछली बार 2 सीट पर चुनाव लड़े थे उसमें से एक पर हार गए. बिहार चुनाव से ठीक पहले जिस तरह के राजनीतिक घटनाक्रम बदले हैं उसने चुनावों को दिचस्प बना दिया है.