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CAG की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, बिहार में जमीन अधिग्रहण के नाम पर हो रहा बड़ा खेल

बिहार में जमीन अधिग्रहण (Land Acquisition) को लेकर सीएजी (CAG) ने खुलासा करते हुए कहा कि जमीन अधिग्रहण में लंबा वक्त लगने के कारण सरकार को 150 गुना अधिक तक राशि का भुगतान करना पड़ता है. पढ़ें रिपोर्ट..

पटना
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Published : Aug 8, 2021, 8:43 PM IST

Updated : Aug 8, 2021, 11:06 PM IST

पटना: बिहार में जमीन अधिग्रहण (Land Acquisition) एक बड़ी समस्या रही है. इसके कारण पथ निर्माण की कई योजनाओं के शुरू करने में काफी विलंब होता रहा है. पथ निर्माण विभाग (Road Construction Department) की कई योजनाएं इसी के कारण आज भी अटकी हुई हैं. सीएजी (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया है. इसमें कहा गया है कि जमीन अधिग्रहण में लंबा समय लगने के कारण जमीन की कीमत 150 गुना तक बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें- CAG रिपोर्ट पर मंत्री नितिन नवीन ने दी सफाई- कहा, इंडो-नेपाल सड़क का मामला पथ निर्माण विभाग का नहीं

भूमि अधिग्रहण के 7 जिलों को लेकर सीएजी ने जो खुलासा किया है, उसमें 2012 में जो वास्तविक कीमत थी, 2017 में संशोधित कीमत में 150 गुना से अधिक की वृद्धि हो गई. अररिया, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, किशनगंज, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल जिलों में 552 किलोमीटर से अधिक की लंबाई में जमीन का अधिग्रहण किया गया.

देखें रिपोर्ट

2012 में जिसकी 868 करोड़ से अधिक की वास्तविक कीमत थी, लेकिन 2017 में इसकी कीमत बढ़कर 2244 करोड़ से अधिक हो गई. जमीन अधिग्रहण करने में हो रहे विलंब के कारण सरकार को 150 प्रतिशत अधिक राशि जो 1375 करोड़ से अधिक का भुगतान करना पड़ा है. 7 जिलों में कुछ इस प्रकार से जमीन का अधिग्रहण करना था जिसकी 2012 में कीमत और 2017 की कीमतों में जमीन आसमान का फर्क आ गया.

अररिया में 102.12 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 203.02 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 591.61 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 388.59 करोड़ की वृद्धि हो गई. पूर्वी चंपारण में 77.24 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 130.02 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 269.30 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 139.28 करोड़ की वृद्धि हो गई. किशनगंज में 91.60 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 71.74 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 250.77 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 179.03 करोड़ की वृद्धि हो गई.

मधुबनी में 39.21 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 21.97 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 136.74 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 114.77 करोड़ की वृद्धि हो गई. सीतामढ़ी में 89.93 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 288.19 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 587.73 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 299.54 करोड़ की वृद्धि हो गई.

ये भी पढ़ें- अधर में CM नीतीश का एक और 'ड्रीम प्रोजेक्ट', लोहिया पथ चक्र का डिजाइन बना अड़ंगा

सुपौल में 40.99 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 23.12 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 106.60 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 83.48 करोड़ की वृद्धि हो गई. पश्चिम चंपारण में 111.10 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 130.86 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 301.50 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 107.40 करोड़ की वृद्धि हो गई.

बता दें कि जमीन अधिग्रहण नहीं होने के कारण समय पर योजनाओं का पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती होता है. कई योजनाएं विलंब होने का बड़ा कारण समय पर जमीन की उपलब्धता संबंधित एजेंसी को नहीं कराना भी रहा है, लेकिन सीएजी ने जिस ओर इशारा किया है उसमें साफ है कि जमीन खरीदने में बिहार में बड़ा खेल हो रहा है और उसके कारण सरकार को बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है.

पटना: बिहार में जमीन अधिग्रहण (Land Acquisition) एक बड़ी समस्या रही है. इसके कारण पथ निर्माण की कई योजनाओं के शुरू करने में काफी विलंब होता रहा है. पथ निर्माण विभाग (Road Construction Department) की कई योजनाएं इसी के कारण आज भी अटकी हुई हैं. सीएजी (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया है. इसमें कहा गया है कि जमीन अधिग्रहण में लंबा समय लगने के कारण जमीन की कीमत 150 गुना तक बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें- CAG रिपोर्ट पर मंत्री नितिन नवीन ने दी सफाई- कहा, इंडो-नेपाल सड़क का मामला पथ निर्माण विभाग का नहीं

भूमि अधिग्रहण के 7 जिलों को लेकर सीएजी ने जो खुलासा किया है, उसमें 2012 में जो वास्तविक कीमत थी, 2017 में संशोधित कीमत में 150 गुना से अधिक की वृद्धि हो गई. अररिया, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, किशनगंज, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल जिलों में 552 किलोमीटर से अधिक की लंबाई में जमीन का अधिग्रहण किया गया.

देखें रिपोर्ट

2012 में जिसकी 868 करोड़ से अधिक की वास्तविक कीमत थी, लेकिन 2017 में इसकी कीमत बढ़कर 2244 करोड़ से अधिक हो गई. जमीन अधिग्रहण करने में हो रहे विलंब के कारण सरकार को 150 प्रतिशत अधिक राशि जो 1375 करोड़ से अधिक का भुगतान करना पड़ा है. 7 जिलों में कुछ इस प्रकार से जमीन का अधिग्रहण करना था जिसकी 2012 में कीमत और 2017 की कीमतों में जमीन आसमान का फर्क आ गया.

अररिया में 102.12 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 203.02 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 591.61 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 388.59 करोड़ की वृद्धि हो गई. पूर्वी चंपारण में 77.24 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 130.02 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 269.30 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 139.28 करोड़ की वृद्धि हो गई. किशनगंज में 91.60 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 71.74 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 250.77 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 179.03 करोड़ की वृद्धि हो गई.

मधुबनी में 39.21 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 21.97 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 136.74 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 114.77 करोड़ की वृद्धि हो गई. सीतामढ़ी में 89.93 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 288.19 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 587.73 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 299.54 करोड़ की वृद्धि हो गई.

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सुपौल में 40.99 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 23.12 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 106.60 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 83.48 करोड़ की वृद्धि हो गई. पश्चिम चंपारण में 111.10 किमी. जमीन की कीमत 2012 में 130.86 करोड़ थी, 2017 में जिसकी कीमत 301.50 करोड़ थी, जमीन की कीमत में 107.40 करोड़ की वृद्धि हो गई.

बता दें कि जमीन अधिग्रहण नहीं होने के कारण समय पर योजनाओं का पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती होता है. कई योजनाएं विलंब होने का बड़ा कारण समय पर जमीन की उपलब्धता संबंधित एजेंसी को नहीं कराना भी रहा है, लेकिन सीएजी ने जिस ओर इशारा किया है उसमें साफ है कि जमीन खरीदने में बिहार में बड़ा खेल हो रहा है और उसके कारण सरकार को बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है.

Last Updated : Aug 8, 2021, 11:06 PM IST
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