पटना: बिहार में खेल (Bihar Sports News) चाहे वो क्रिकेट हो, फुटबॉल हो या फिर हॉकी, इन दिनों सभी खेलों के प्रति नौजवानों का रुझान बढ़ा है. बिहार की राजधानी पटना में खेल के मैदान एक दो ही हैं, लेकिन वह रखरखाव के अभाव में बिहार के स्टेडियम का बुरा हाल (Bihar Stadium in bad condition) हो गया है. मैदान से घास गायब हो गई हैं, मैदान में जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं. खिलाड़ी मैदान पर समतल बनाकर प्रैक्टिस करते हैं. यहां तक कि गांधी मैदान में भी प्रतिदिन खेल में रुचि रखने वाले हजारों युवा प्रैक्टिस करते हैं. सरकार की तरफ से खेल ग्राउंड बनाने की घोषणा केवल सुर्खियां बनकर रह जाती हैं.
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पटना के खिलाड़ियों का साफ तौर पर कहना है कि बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. किसी भी क्षेत्र में हम बिहार के युवा किसी राज्य के मुकाबले कम नहीं है, लेकिन यहां पर ग्राउंड का अभाव होने के कारण सही से प्रैक्टिस नहीं हो पाती है, जिस कारण से वह अपनी प्रतिभा को निखार नहीं पा रहे हैं और जो खिलाड़ी सक्षम हैं, वह बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में जाकर खेल में प्रतिभा निखारने का काम कर रहे हैं.
हालात ऐसे हैं कि खिलाड़ी प्रैक्टिस के लिए दूसरे खेलों के लिए बनाए गए खेल मैदान में प्रैक्टिस कर रहे हैं. फुटबॉल खिलाड़ी नियमित प्रैक्टिस करके अपने खेल में सुधार करने के लिए खेलते हैं. ग्राउंड के अभाव में गांधी मैदान में प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं. यहां के खिलाड़ियों को स्टेट से बाहर नेशनल प्रतियोगिताओं में भी खेलने का मौका मिले इसके लिए खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं मिल रही है. जिस कारण से यहां के खिलाड़ी बड़ी मुश्किल से जिला और राज्य स्तर पर ही पहुंच पाते हैं.
हालांकि, कई खिलाड़ी नेशनल भी खेल चुके हैं, लेकिन उन्होंने झारखंड और बंगाल में जाकर अपनी प्रैक्टिस तैयारी पूरी की है. नेशनल के लिए बिना खेल मैदान पहुंच पाना आज भी राजधानी पटना के खिलाड़ियों के लिए सपने से कम नहीं है.
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''हमने ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम खेला है, नेशनल गेम भी खेल चुके हैं, लेकिन बिहार में खेल ग्राउंड की स्थिति बहुत बुरी है. गांधी मैदान में प्रैक्टिस करने के लिए तो पहुंचते हैं, लेकिन इसमें लेबलिंग सही नहीं है और यह पूरी तरह से खुला ग्राउंड है. यहां पर इंज्यूरी का ज्यादा खतरा रहता है. गर्दनीबाग ग्राउंड या मोइनुल हक स्टेडियम में फुटबॉल ग्राउंड नहीं है. यानी कि ग्राउंड में पूरी तरह से घास समाप्त हो गई है, ऐसे में वहां पर फुटबॉल का आयोजन नहीं हो पाता है. जिसका नतीजा है कि बिहार में खेल का परफॉर्मेंस नहीं बढ़ पा रहा है.''- सर्वेश कुमार, खिलाड़ी
''दुर्भाग्य की बात यह है कि फुटबॉल एसोसिएशन के पास अपना कोई भी एक ग्राउंड नहीं है, जिस कारण से खिलाड़ियों को काफी दिक्कत होती है और कुछ ग्राउंड है भी तो वह पूरी तरह से जर्जर हो गए हैं. वहां पर प्रैक्टिस करना बहुत ही मुश्किल है. यहां के खिलाड़ियों को सही प्लेटफार्म नहीं मिल रहा है, जिस कारण से यहां के खिलाड़ी अपना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं.''- रंजन कुमार, खिलाड़ी
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नंदकिशोर प्रसाद भारतीय खेल प्राधिकरण से सेवानिवृत्त खिलाड़ी हैं, उनका साफ तौर पर कहना है कि पटना ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में खेल की स्थिति पूरी तरह से गड़बड़ है. इसका एकमात्र कारण है कि खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने के लिए कोई ग्राउंड नहीं है. मोइनुल हक स्टेडियम (Moinul Haque Stadium) में कोई अभी खेल नहीं हो रहा है. पाटलिपुत्र स्टेडियम (Patliputra Stadium) है लेकिन उसमें लीग मैच नहीं कराया जा सकता है. आखिरकार पटना के बच्चे प्रैक्टिस करेंगे कहां और अपना प्रदर्शन कैसे दिखा पाएंगे.
''कहीं ना कहीं सरकार को खेल के प्रति अपनी रुचि दिखाना होगी. तब जाकर के बिहार और पटना के बच्चे अच्छा प्रदर्शन करके अपने राज्य का नाम रोशन कर सकेंगे. पहले स्कूल और कॉलेजों में कुछ छोटे-छोटे ग्राउंड थे. जहां बच्चे प्रैक्टिस करते थे, लेकिन वहां पर रोक लगा दी गई जिस कारण से बच्चों को प्रैक्टिस करने में काफी दिक्कत आती है.''- नंदकिशोर प्रसाद, सेवानिवृत्त खिलाड़ी, भारतीय खेल प्राधिकरण
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