पटना: देश के चंद बेहतरीन संस्थानों में शुमार होने वाला एनआईटी पटना (NIT Patna To Be One Of Best Institutes) के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है. दरअसल एनआईटी पटना को नदी जोड़ो परियोजना (River Linking Project in Bihar jharkhand) के तहत एक प्रोजेक्ट तैयार करने को मिला है. जिसमें बिहार की गंगा और झारखंड की स्वर्ण रेखा और दामोदर नदी को कैसे और कहां जोड़ा जाए, इस पर रिपोर्ट तैयार करनी है. एनआईटी पटना को यह प्रोजेक्ट नेशनल वॉटर डेवलपमेंट अथॉरिटी से मिला है. एक करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट को अगले डेढ़ साल में पूरा कर देना है. प्रोजेक्ट की शुरुआत इसी जुलाई माह से हो रही है.
ये भी पढ़ें- NIT पटना के अभिषेक को अमेजन ने दिया 1.08 करोड़ का पैकेज, ठुकरा चुके हैं paytm के लाखों का ऑफर
NIT पटना के खाते में एक और उपलब्धि : इस बारे में और जानकारी देते हुए एनआईटी पटना के प्रोफेसर डॉ राजेंद्र और वाटर रिसोर्सेज के प्रोफेसर रमाकर झा ने बताया कि इस परियोजना में पूरे देश की 37 नदियों को एक दूसरे के साथ जोड़ना है जो कि अलग-अलग राज्यों में है. इनमें 14 नदियां हिमालय क्षेत्र की हैं. जबकि 16 सेंट्रल और साउथ इंडिया की है. शेष बची नदियां देश के अलग-अलग हिस्सों की है. प्रोफेसर झा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में तमाम अहम चीजों पर गौर करके रिपोर्ट तैयार करनी है. प्रोफेसर झा ने बताया कि 1960 और 70 के दशक में डॉक्टर केएल राव ने प्रपोज किया था कि नदियों को आपस में जोड़ना चाहिए. जिससे जिन नदियों में पानी नहीं रहता है या जिनमें पानी कम रहता है. उनमें अधिक पानी वाली नदियों को जोड़ देंगे तो पानी की उपलब्धता हो जाएगी और लोगों को इससे काफी सहायता मिलेगी. उन्होंने कई जगहों पर प्रपोज किया था कि ऐसा होना चाहिए.
'कई ऐसी परिस्थितियां आई जिसमें यह कार्य नहीं हो पाया. उसके बाद भारत सरकार ने एक कमेटी बनाई. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें 2002 में इनीशिएटिव लिया. उसके बाद 2002 में गवर्नमेंट ने एक सेटअप तैयार किया और एक इंस्टिट्यूट नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी बनाया और उससे कहा कि इसकी विजिबिलिटी रिपोर्ट को तैयार करें. जिसमें सारे इंटरलिंकिंग को जोड़ दिया जाए. उस दिशा में सही उसी ने काम किया और 2016 में मध्य प्रदेश में केन और बेतवा नदी के इंटरलिंकिंग का काम शुरू किया और 2021 में कैबिनेट ने इसे अपरूप किया और इन दोनों नदियों का इंटरलिंकिंग पूरा हो गया.' - प्रोफेसर रमाकर झा, फैकेल्टी, एनआईटी पटना
NIT पटना में सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज है : प्रोफेसर झा ने बताया कि इसके बाद नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी ने कई और लिंक को जोड़ने की कोशिश की और कुछ संस्थानों को आमंत्रित किया कि आप अपने एक्सपर्टीज के अनुसार कार्य करें. जिसमें एनआईटी पटना मे सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज भी है. जिसके बाद उन्होंने एनआईटी पटना को चयनित किया और ईस्टर्न रीजन की जिम्मेदारी एनआईटी पटना को दे दी. कई बार डिस्कशन हुए और डिस्कशन के बाद उन्होंने एक इंटरलिंकिंग जो कि फरक्का में है, वहां से लिंकिंग दामोदर में जाएगा और फिर वहां से स्वर्णरेखा नदी में जाएगा. उसकी जिम्मेदारी दी. उन्होंने यह कहा कि इसकी क्या विजिबिलिटी है और कितना पानी है, उसमें से कितना पानी हम निकाल ले. पानी निकालने से गंगा नदी के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा? दामोदर और स्वर्णरेखा नदी पर कितना पानी स्टोर करें, कितना पानी स्टोर होना चाहिए? क्या आप पानी को हमें नीचे से ऊपर ले जाना है क्योंकि अगर ऊंचाई ज्यादा होगी तो हमें पानी को लिफ्ट करना पड़ेगा.
हाइड्रोलॉजी में क्या-क्या इफेक्ट पड़ेगा? : प्रोफेसर झा ने आगे बताया कि जलवायु में, हाइड्रोलॉजी में क्या-क्या इफेक्ट पड़ेगा? इन सब की डिटेल एनालिसिस हमें डेढ़ साल में करना है. एनआईटी पटना को यह जिम्मेदारी दी गई है यह प्रोजेक्ट करीब एक करोड़ रुपए का है. जिसमें हमारे कई फैकल्टी, स्टूडेंट्स, रिसर्च स्कॉलर्स इंवॉल्व रहेंगे. हमें उम्मीद है कि डेढ़ साल बाद हम इसकी डिटेल एनालिसिस करके भारत सरकार को सौंप देंगे. प्रोफेसर झा ने आगे बताया कि बिहार में छोटी-छोटी नदियों को जोड़ने की बात हो रही है जिसमें कोसी नदी को मेची नदी से, बागमती को कमला बलान व बूढ़ी गंडक से, इस तरह से छोटे छोटे लिंक को जोड़ने की बात हो रही है. केंद्रीय एजेंसी ने बिहार सरकार को यह भी कहा है कि अगर वह इस बारे में कुछ स्टडी कर सकते हैं तो उसे भी बताएं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस तरह की लिंकिंग हो जाती है तो बाढ़ की समस्या पर काफी हद तक निदान भी पाया जा सकता है.
'पर्यावरण पर अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़ सकता है' : प्रोफेसर झा ने यह भी बताया कि इसका पर्यावरण पर अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़ सकता है. इसके लिए ही हम लोगों को जब कोई प्रोजेक्ट लागू होता है तो यह देखा जाता है कि क्या यह संभव है या नहीं है. उसका वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. अगर हम पानी को गंगा से निकालकर दामोदर में या फिर उसी से निकालकर मेची में ले जाते हैं, तो यदि प्रॉपर कैनाल कंक्रीट का नहीं बनाया है तो यहां से पानी अगर 100 लीटर निकलेगा तो हो सकता है कि वहां तक 40 लीटर ही पहुंचे. क्योंकि रास्ते में ही वह पानी सीपेज के जरिए जमीन में चला जाएगा. वह हमें देखना है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिस रास्ते से हमारा पानी जाएगा, अगर वह कंक्रीट कैनाल या पाइप के जरिए जाएगा तो अच्छी बात है. लेकिन अगर वह कच्चा है तो यह देखना होगा कि वाटर लॉगिंग तो नहीं है? पानी दूसरी जगह तो नहीं निकल जाएगा, हमारा खर्च कितना आएगा. आसपास के वातावरण पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा?
'नदियों को कहीं से कहीं जोड़ देना संभव नहीं है' : उन्होंने आगे बताया कि यह हमारे लिए बहुत इंपॉर्टेंट है क्योंकि इससे जो इकोलॉजी, मोरफोलॉजी है. नदी की संरचना उसके आसपास के वातावरण पर कितना फर्क पड़ जाएगा. यह पूछे जाने पर कि नदियों के इंटरलिंक के लिए फिर जगह का भी चुनाव करना पड़ेगा. प्रोफेसर रमा कर झा ने बताया कि हम नदियों को जब जोड़ने की बात करते हैं तो कहीं से भी कर देते हैं. जबकि नदियों को कहीं से कहीं जोड़ देना संभव नहीं है. वह बताते हैं कि जब हमें इंजेक्शन लगना होता है तो डॉक्टर हमें कहीं पर भी इंजेक्शन नहीं लगा देता है. डॉक्टर एक अमाउंट में इंजेक्शन लेता है फिर एयर निकालता है. फिर पर्टिकुलर जगह पर विशेष एक्शन और एंगिल के द्वारा इंजेक्शन लगाता है.
नदियों को जोड़ने की कवायद : वह कहते हैं इसी तरह जब नदियों को जोड़ते हैं तो यह सोच कर जोड़ देते हैं कि यह ट्रैफिक है जबकि पानी के साथ ऐसा नहीं होता पानी आएगा तो वह उस जगह को हिट करेगा। गोल-गोल घूमेगा और वहां से मिट्टी नीचे लेकर जाएगा. भंवर जैसा हालात क्रिएट कर देगा. वहां से मिट्टी हटाकर कहीं और मिट्टी को डिपॉजिट कर देगा. हमें नदियों को समझना पड़ेगा. कोई भी दो नदियां जब मिलती है, तो हमेशा एक एंगल पर मिलती है. उसका कारण यह है कि जब भी नदी में मोड़ आता है तो वह ऊपर का हिस्सा होता है. इसे कॉन्फ्लूएंस एंगल कहते हैं, प्रोफेसर झा कहते हैं यह जानकारी होना बहुत अहम है कि हम नदियों को किस एंगल से निकाल ले और किस एंगल पर ले जाकर मिलाएं, नहीं तो सारी कहानी ही रह जाएगी.