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तीसरी बार MLC चुनाव में मांझी के हाथ खाली, बोले- 'NDA में हो रही घुटन, को-ऑर्डिनेशन कमेटी जरूरी'

बिहार NDA में लगता है सब कुछ ठीक नहीं (All is Not Well in Bihar NDA) है. मुकेश साहनी एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं. अब पूर्व सीएम जीतन राम मांझी (Former CM Jitan Ram Manjhi) की नाराजगी सामने आ रहा है. वो एनडीए में असहज महसूस कर रहे हैं. विधान परिषद चुनाव में लगातार हो रहे उपेक्षा के बाद हम पार्टी की ओर से छोटे दलों को इग्नोर करने का आरोप लगाया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार NDA में असजह महसूस कर रहे हैं मांझी
बिहार NDA में असजह महसूस कर रहे हैं मांझी
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Published : Jun 7, 2022, 9:05 PM IST

पटना: बिहार में 7 सीटों पर विधान परिषद चुनाव (Bihar MLC Election 2022) हो रहे हैं. राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है. भाजपा और जदयू ने सीटों को आपस में बांट लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी एक सीट के लिए उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन मांझी के लिए भाजपा और जदयू ने सीट नहीं छोड़ी है. हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी ने किशनगंज के राष्ट्रीय कार्यसमिति में एनडीए नेताओं पर जमकर भड़ास निकाला. मांझी ने कहा कि हम एनडीए के अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Bihar MLC Election: सत्तारुढ़ NDA में सीट शेयरिंग पर बवाल, 1 सीट पर महागठबंधन में भी उबाल

आइए जानते हैं मांझी एनडीए में क्यों है असहज: पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हम का गठबंधन जदयू के साथ है, और सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लगातार जीतन राम मांझी की मांग को अनसुनी कर रहे हैं. दरअसल, राज्यपाल कोटे से हो रहे मनोनयन के दौरान भी जितना मांझी ने हम पार्टी के लिए एक सीट मांगी थी लेकिन भविष्य के आश्वासन पर उन्हें मना लिया गया. स्थानीय निकाय के चुनाव में हम पार्टी की ओर से दावेदारी की गई थी, लेकिन निकाय चुनाव में भी हम पार्टी के लिए सीट नहीं छोड़ी गई और अब यह तीसरा मौका है जब हम पार्टी को निराशा हाथ लगी है.

NDA में को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मांग: भाजपा और जदयू के एकतरफा ऐलान के बाद से हम पार्टी नेताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है. और अब NDA में को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है. आपको बता दें कि को-ऑर्डिनेशन कमेटी के मामले पर ही जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग हुए थे. अब विधान परिषद चुनाव की प्रक्रिया को भी समझना जरूरी है. इस बार जो चुनाव हो रहे हैं, उसमें मतदान में विधायक हिस्सा लेते हैं. और विधायकों के संख्या के हिसाब से ही राजनीतिक दलों को हिस्सेदारी मिलती है. फिलहाल बिहार में 31 विधायकों के समर्थन से एक विधान पार्षद को जिताया जा सकता है.

मांझी के बयान के क्या है राजनीतिक मायने?: वर्तमान परिस्थितियों में जदयू के पास 46 विधायक हैं और उन्हें कुल 62 विधायकों के समर्थन की दरकार थी. जदयू ने भाजपा से 15 विधायकों का समर्थन लिया और तब दूसरी सीट भी उनके पाले में गई. अगर आठवां उम्मीदवार मैदान में नहीं आता है तब वोटिंग की नौबत नहीं आएगी. और फिर निर्विरोध सातों प्रत्याशी चुनाव जीत जाएंगे. जीतन राम मांझी के पास महज 4 विधायक हैं. ऐसे में अंक गणित के लिहाज से भाजपा और जदयू नेता मांझी को हिस्सेदारी देने के लिए तैयार नहीं है. दूसरी तरफ हम पार्टी का मानना है कि पिछले कई चुनावों में या तो हमारे विधायकों ने उनके पक्ष में मतदान किया या फिर हमारे वोटरों ने भाजपा जदयू के प्रत्याशियों के लिए वोट किया. इस लिहाज से हमारा हक भी बनता है.

'भाजपा और जदयू के लोग छोटे दलों की उपेक्षा कर रहे हैं. एनडीए में सामंजस्य का घोर अभाव है और बगैर सहमति के ही एक तरफा ऐलान कर दिया जाता है. एमएलसी की 1 सीट हमारी पार्टी को भी मिलना चाहिए. एनडीए के अंदर यथाशीघ्र को-ऑर्डिनेशन कमेटी बननी चाहिए.' - विजय यादव, प्रदेश प्रवक्ता, हम

'पार्टी को एनडीए पूरा सम्मान दे रही है. उनके पुत्र सरकार में मंत्री हैं. इस बार सीटें कम थी, इस वजह से हम पार्टी को नहीं दिया जा सका. जीतन राम मांझी को सब्र करना चाहिए.' - विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

'मुकेश साहनी के बाद जीतन राम मांझी एनडीए के लिए मजबूरी है. इस बात का इल्म जीतन राम मांझी को है. जीतन राम मांझी दबाव की राजनीति कर रहे हैं. लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा और जदयू के लोग मांझी के दबाव में आएंगे.' - डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

MLC चुनाव में उपेक्षा से नाराज हैं मांझी: गौरतलब है कि बिहार विधान परिषद चुनाव के लिए जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (JDU State President Umesh Kushwaha) ने कहा कि एनडीए कोटे में आई 4 में से 2 सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ेगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सचिव अफाक अहमद खान और राष्ट्रीय सचिव रविंद्र प्रसाद सिंह एमएलसी चुनाव में पार्टी की ओर से कैंडिडेट होंगे. अफाक अहमद 2020 में आरजेडी से पाला बदलकर जेडीयू में शामिल हुए थे. वहीं, रविन्द्र सिंह पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं.

21 जुलाई को समाप्‍त होगा 7 सदस्‍यों का कार्यकाल : बता दें कि बिहार विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या 75 है, जिनमें विधायकों द्वारा निर्वाचित किए जाने वाले सदस्यों की संख्या 27 है. इसी 27 में से सात सीटें 21 जुलाई को खाली हो रही हैं. विधान परिषद में इसके अलावा स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भी छह-छह यानी कुल 12 सदस्य चुन कर आते हैं. वहीं, स्थानीय निकायों से 24 और विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता रखने वाले 12 सदस्यों को राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है.

नौ जून तक होगा नामांकन: विधानसभा कोटे की इन सातों सीटों पर नामांकन नौ जून तक चलेगा. नामांकन पत्रों की जांच 10 जून को होगी, जबकि नाम वापसी की अंतिम तिथि 13 जून निर्धारित की गई है. सातों सीटों के लिए मतदान 20 जून को सुबह नौ बजे से चार बजे तक होगा. मतों की गणना 20 जून को ही शाम पांच बजे से होगी.

ये भी पढ़ें- माले और कांग्रेस ने बढ़ायी लालू की मुसीबत, कहा- 'एक सीट पर चाहिए हमारा उम्मीदवार'

ये भी पढ़ें- Bihar MLC Election 2022: RJD के तीनों MLC उम्मीदवारों ने किया नामांकन

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पटना: बिहार में 7 सीटों पर विधान परिषद चुनाव (Bihar MLC Election 2022) हो रहे हैं. राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है. भाजपा और जदयू ने सीटों को आपस में बांट लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी एक सीट के लिए उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन मांझी के लिए भाजपा और जदयू ने सीट नहीं छोड़ी है. हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी ने किशनगंज के राष्ट्रीय कार्यसमिति में एनडीए नेताओं पर जमकर भड़ास निकाला. मांझी ने कहा कि हम एनडीए के अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं.

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आइए जानते हैं मांझी एनडीए में क्यों है असहज: पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हम का गठबंधन जदयू के साथ है, और सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लगातार जीतन राम मांझी की मांग को अनसुनी कर रहे हैं. दरअसल, राज्यपाल कोटे से हो रहे मनोनयन के दौरान भी जितना मांझी ने हम पार्टी के लिए एक सीट मांगी थी लेकिन भविष्य के आश्वासन पर उन्हें मना लिया गया. स्थानीय निकाय के चुनाव में हम पार्टी की ओर से दावेदारी की गई थी, लेकिन निकाय चुनाव में भी हम पार्टी के लिए सीट नहीं छोड़ी गई और अब यह तीसरा मौका है जब हम पार्टी को निराशा हाथ लगी है.

NDA में को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मांग: भाजपा और जदयू के एकतरफा ऐलान के बाद से हम पार्टी नेताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है. और अब NDA में को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है. आपको बता दें कि को-ऑर्डिनेशन कमेटी के मामले पर ही जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग हुए थे. अब विधान परिषद चुनाव की प्रक्रिया को भी समझना जरूरी है. इस बार जो चुनाव हो रहे हैं, उसमें मतदान में विधायक हिस्सा लेते हैं. और विधायकों के संख्या के हिसाब से ही राजनीतिक दलों को हिस्सेदारी मिलती है. फिलहाल बिहार में 31 विधायकों के समर्थन से एक विधान पार्षद को जिताया जा सकता है.

मांझी के बयान के क्या है राजनीतिक मायने?: वर्तमान परिस्थितियों में जदयू के पास 46 विधायक हैं और उन्हें कुल 62 विधायकों के समर्थन की दरकार थी. जदयू ने भाजपा से 15 विधायकों का समर्थन लिया और तब दूसरी सीट भी उनके पाले में गई. अगर आठवां उम्मीदवार मैदान में नहीं आता है तब वोटिंग की नौबत नहीं आएगी. और फिर निर्विरोध सातों प्रत्याशी चुनाव जीत जाएंगे. जीतन राम मांझी के पास महज 4 विधायक हैं. ऐसे में अंक गणित के लिहाज से भाजपा और जदयू नेता मांझी को हिस्सेदारी देने के लिए तैयार नहीं है. दूसरी तरफ हम पार्टी का मानना है कि पिछले कई चुनावों में या तो हमारे विधायकों ने उनके पक्ष में मतदान किया या फिर हमारे वोटरों ने भाजपा जदयू के प्रत्याशियों के लिए वोट किया. इस लिहाज से हमारा हक भी बनता है.

'भाजपा और जदयू के लोग छोटे दलों की उपेक्षा कर रहे हैं. एनडीए में सामंजस्य का घोर अभाव है और बगैर सहमति के ही एक तरफा ऐलान कर दिया जाता है. एमएलसी की 1 सीट हमारी पार्टी को भी मिलना चाहिए. एनडीए के अंदर यथाशीघ्र को-ऑर्डिनेशन कमेटी बननी चाहिए.' - विजय यादव, प्रदेश प्रवक्ता, हम

'पार्टी को एनडीए पूरा सम्मान दे रही है. उनके पुत्र सरकार में मंत्री हैं. इस बार सीटें कम थी, इस वजह से हम पार्टी को नहीं दिया जा सका. जीतन राम मांझी को सब्र करना चाहिए.' - विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

'मुकेश साहनी के बाद जीतन राम मांझी एनडीए के लिए मजबूरी है. इस बात का इल्म जीतन राम मांझी को है. जीतन राम मांझी दबाव की राजनीति कर रहे हैं. लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा और जदयू के लोग मांझी के दबाव में आएंगे.' - डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

MLC चुनाव में उपेक्षा से नाराज हैं मांझी: गौरतलब है कि बिहार विधान परिषद चुनाव के लिए जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (JDU State President Umesh Kushwaha) ने कहा कि एनडीए कोटे में आई 4 में से 2 सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ेगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सचिव अफाक अहमद खान और राष्ट्रीय सचिव रविंद्र प्रसाद सिंह एमएलसी चुनाव में पार्टी की ओर से कैंडिडेट होंगे. अफाक अहमद 2020 में आरजेडी से पाला बदलकर जेडीयू में शामिल हुए थे. वहीं, रविन्द्र सिंह पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं.

21 जुलाई को समाप्‍त होगा 7 सदस्‍यों का कार्यकाल : बता दें कि बिहार विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या 75 है, जिनमें विधायकों द्वारा निर्वाचित किए जाने वाले सदस्यों की संख्या 27 है. इसी 27 में से सात सीटें 21 जुलाई को खाली हो रही हैं. विधान परिषद में इसके अलावा स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भी छह-छह यानी कुल 12 सदस्य चुन कर आते हैं. वहीं, स्थानीय निकायों से 24 और विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता रखने वाले 12 सदस्यों को राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है.

नौ जून तक होगा नामांकन: विधानसभा कोटे की इन सातों सीटों पर नामांकन नौ जून तक चलेगा. नामांकन पत्रों की जांच 10 जून को होगी, जबकि नाम वापसी की अंतिम तिथि 13 जून निर्धारित की गई है. सातों सीटों के लिए मतदान 20 जून को सुबह नौ बजे से चार बजे तक होगा. मतों की गणना 20 जून को ही शाम पांच बजे से होगी.

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