गया: प्यार की यह अद्भुत कहानी बिहार के गया जिले के गहलौर की है. गहलौर के दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी के प्रेम में ऐसा जुनून दिखाया कि दुनिया हैरान रह गई. गया के पहाड़ी क्षेत्र के गहलौर गांव की यह कहानी आज प्यार करने वालों के लिए एक उदाहरण है. साथ ही यह परिभाषा भी कि सच्चा प्रेम क्या होता है. दशरथ मांझी ने पत्नी के प्रेम में 22 वर्षों तक छेनी हथौड़ी चलाकर प्रेम की सच्ची परिभाषा की बड़ी गाथा लिख दी, जो सदियों तक अमर प्रेम कहानी के रूप में जानी जाती रहेगी.
मांझी की समाधि स्थल को ताजमहल मानते हैं लोग : गया के गहलौर घाटी की पहचान आज देश ही नहीं, बल्कि विदेश तक है. गहलौर घाटी में प्रेम की परिभाषा को समझने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं. देश विदेश से आने वाले यहां की प्रेम कहानी जानकर हैरान रह जाते हैं. ऐसी अद्भुत प्रेम कहानी की पटकथा लिख देने वाले दशरथ मांझी के समाधि स्थल को नमन करना नहीं भूलते. कई तो ऐसे हैं, जो इस प्रेम कहानी को शाहजहां और मुमताज की प्रेम के प्रतीक ताजमहल से भी बड़ा मानते हैं.
"यहां घूमने आए हैं. दशरथ मांझी ने अपने प्यार के लिए पहाड़ काट दिया. देखकर बहुत अच्छा लग रहा है. इतना मेहनत कोई नहीं कर सकता है. अकेले के लिए यह असंभव वाली बात है."- सूर्यदेव विश्वकर्मा, पर्यटक
पत्नी का घड़ा फूटा, चोट लगी और फिर मौत: दशरथ मांझी की प्रेम कहानी 1959 से जुड़ी है. दशरथ मांझी एक मजदूर थे. पहाड़ों पर जाकर काम करते थे. पत्नी फाल्गुनी देवी (फगुनिया देवी) उनके लिए रोज उबड़ खाबड़ पहाड़ के रास्ते खाना और पानी लेकर आया करती थी. तब वर्ष 1959 का एक दिन था, जब नित्य दिन की तरह पत्नी फाल्गुनी देवी अपने पति दशरथ मांझी के लिए खाना और पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थी. उसी वक्त उनका पैर फिसला.
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पागल समझते थे लोग: फाल्गुनी का घड़ा फूटा और गंभीर चोट लगी. तब उस समय नजदीक का अस्पताल करीब 55 किलोमीटर दूर था. उनकी पत्नी को सही समय से इलाज नहीं मिला और फाल्गुनी की मृत्यु हो गई. इस घटना से बाबा दशरथ मांझी काफी आहत हुए. दशरथ मांझी अपनी पत्नी फाल्गुनी से बेहद प्रेम करते थे. पत्नी फाल्गुनी की मौत से दशरथ मांझी इस कदर व्यथित हुए, कि उन्होंने दृढ़ संकल्प ले लिया. उनके इस संकल्प का लोग मजाक भी उड़ाते थे और पागल भी समझते थे. हालांकि मांझी का इरादा मजबूत था.
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22 सालों में काट डाला पहाड़: पत्नी से दिलो जान से प्रेम करने वाले दशरथ मांझी ने फाल्गुनी की मौत के बाद दृढ़ संकल्प लिया, कि वे पहाड़ काटकर रास्ता बनाएंगे, क्योंकि उनकी पत्नी की मौत सही समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण हुई थी. बाबा दशरथ मांझी ने छेनी हथौड़ी उठाई और पहाड़ को काटना शुरु कर दिया. दिन, सप्ताह, महीने, 1 साल नहीं बल्कि पूरे 22 साल तक छेनी और हथौड़ी पहाड़ को काटने के लिए चलाई और 360 फीट ऊंचा पहाड़ काट डाला.
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मांझी को मिल चुके हैं कई सम्मान: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें पुरस्कृत किया. इतना ही नहीं, उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ. अस्पताल और पुलिस स्टेशन बने. समाज के विकास पूरक कई योजनाएं चली. उनकी जीवनी पर कई फिल्में भी बनी. बाबा दशरथ मांझी का निधन 17 अगस्त 2007 को नई दिल्ली एम्स में हुआ था. बिहार सरकार ने 'राजकीय सम्मान' के साथ अंतिम संस्कार कराया था.
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लव स्टोरी पुत्र की जुबानी: माउंटेन मैन दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी ने बताया कि बाबा दशरथ ने पत्नी की मौत के बाद जो छेनी हथौड़ी खरीदी, वह अपनी तीन बकरियां को बेचकर लिया था. इसके बाद बकरी बेच कर खरीदी गई छेनी हथौड़ी से अपने दृढ़ संकल्प को पूरा करने में जुट गए. बिना किसी की मदद के अकेले ही 22 सालों तक गहलौर पहाड़ से खुद लड़ते रहे और फिर सुगम रास्ता बनाकर ही दम लिया, जिससे 55 किलोमीटर की दूरी अब 15 किलोमीटर रह गई है.
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"आज लाखों लोगों के लिए यह सड़क है. मां फाल्गुनी के प्रेम में बाबा दशरथ ने छेनी हथौड़ी उठाई थी. आज यह प्रेम का बड़ा उदाहरण है. बाबा दशरथ ने यह भी सोचा, कि हमारी एक फाल्गुनी ही नहीं, इससे कई ऐसी हजारों फाल्गुनी पीड़ित होगी. वे फाल्गुनी से अकूत प्रेम तो करते ही थे, समाज के लोगों को भी काफी प्यार करते थे. आज समाज के लाखों लोगों के लिए यह सड़क है."- भागीरथ मांझी, माउंटेन मैन दशरथ मांझी के बेटे
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आमिर खान से लेकर कई हस्तियां पहुंची: प्रेम की अद्भुत परिभाषा गढ़ने वाले दशरथ मांझी के निधन के बाद गहलौर घाटी में आमिर खान से लेकर एक से एक बड़ी सिने हस्तियां पहुंची. वहीं, कई राजनीतिक दलों का लगातार आना हुआ. केंद्र और राज्य की सत्ता में रहे हस्तियां भी गहलौर घाटी को पहुंचे. हालांकि बाबा दशरथ के परिजनों की हालत आज भी नहीं बदली है. आज भी फूस की झोपड़ी में ही माउंटेन मैन का परिवार निवास करता है. हालांकि, परिवार के लोग इतने संतुष्ट हैं, कि वह किसी भी सरकार के खिलाफ कुछ बोलना नहीं चाहते. वही, मलाल यह जरूर है, कि बाबा दशरथ मांझी को अब तक भारत रत्न नहीं मिल पाया.
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