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21 से 77 का सफर: 42 साल में BJP बिहार की सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन CM पद से दूर

आज बीजेपी अपना 42वां स्थापना दिवस (BJP Foundation Day) मना रही है. 6 अप्रैल 1980 को अस्तित्व में आई बीजेपी ने एक लंबा सफर तय कर लिया है. बिहार में भी बीजेपी का इतिहास गौरवशाली रहा है. लंबे समय से पार्टी अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ बिहार की सत्ता पर काबिज है लेकिन अभी तक इसकी कमान उसके हाथ में नहीं आयी है.

BJP Foundation Day in Bihar
BJP Foundation Day in Bihar
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Published : Apr 6, 2022, 12:26 PM IST

Updated : Apr 6, 2022, 12:42 PM IST

पटना: भारतीय जनता पार्टी 42 साल की हो चुकी है. आज बीजेपी का स्थापना दिवस (BJP Foundation Day in Bihar) मनाया जा रहा है. इस मौके पर आयोजित सबसे बड़े कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. बिहार में भी कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. अगर बिहार बीजेपी की बात करें तो पार्टी का इतिहास गौरवशाली रहा है. यहां पार्टी की यात्रा 21 सीटों से शुरू हुई थी. आज की तारीख में बीजेपी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी (BJP is Biggest Party of Bihar) बन चुकी है. हालांकि यहां लंबे समय सत्ता में भागीदार है लेकिन उसके हाथ अभी तक सरकार की कमान नहीं आ पाई है. मतलब ये कि बिहार में बीजेपी आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य से अभी भी दूर है.

ये भी पढ़ें: BJP के 42वें स्थापना दिवस पर पटना में प्रभात फेरी, बोले प्रदेश अध्यक्ष- 'गरीबों की मदद करने का संकल्प लें कार्यकर्ता'

जगदंबी यादव बने पहले प्रदेश अध्यक्ष: बीजेपी का औपचारिक रूप से गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ था. आज की तारीख में पार्टी अकेले दम पर देश की सत्ता पर काबिज है. जगदंबी यादव को पार्टी का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल है. बिहार में भी भाजपा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. 1962 में जो तीसरा विधानसभा चुनाव हुआ था, उसमें भारतीय जनसंघ के तीन उम्मीदवार जीत कर आये थे. सिवान सीट से जनार्दन तिवारी, हिलसा से जगदीश प्रसाद और नवादा सीट से गौरीशंकर केसरी चुनाव जीते थे. भारतीय जनसंघ ने कुल 75 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे.

डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

ये भी पढ़ें: संजय जायसवाल बोले- अभी तो नीतीश मुख्यमंत्री हैं लेकिन आगे क्या होगा, ये कौन जानता है?

1980 में 21 सीटों पर मिली थी जीत: अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था. उस वक्त जब बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 324 सीटों वाली विधानसभा में 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी ने 246 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. 1985 के चुनाव में भाजपा को 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इस चुनाव में पार्टी ने 234 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. पार्टी को 16 सीटें मिलीं. 1990 में भाजपा ने 40 सीटें जीतीं. उसे 23 सीटों का फायदा हुआ था. आडवाणी की रथयात्रा जैसे बड़े मुद्दों के बाद 1995 में भाजपा को केवल 41 सीटें ही मिल पाईं यानी कि उन्हें सिर्फ 2 सीटों का ही फायदा हुआ.

अब बिहार की सबसे बड़ी पार्टी: 2005 के विधानसभा का चुनाव में बीजेपी और जेडीयू साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, तब उसे 2 सीटों का लाभ मिला था. चुनाव में भाजपा 130 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 2005 में दोबारा चुनाव हुए तो भाजपा ने 102 उम्मीदवार उतारे और 55 सीटों पर जीत हासिल की. 2010 में भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें जीतने में कामयाब रही. आज की तारीख में भाजपा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है. उसके कुल 77 विधायक हैं. हालांकि भाजपा को यह कसक है कि बिहार में उसे सत्ता तो मिली लेकिन कमान अब तक नहीं मिली.



बीजेपी के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्र: कैलाशपति मिश्र काे बिहार भाजपा में भीष्म पितामह माना जाता है. कैलाशपति मिश्र पहले संगठन महामंत्री थे. उन्होंने ही बिहार और झारखंड में भाजपा को सींचा. कैलाशपति मिश्र के अलावा अलावा अश्वनी कुमार ने अपना पूरा जीवन बिहार भाजपा को समर्पित कर दिया था. संगठन मंत्री के रूप में अश्वनी कुमार सबसे ज्यादा चर्चित हुए थे. जगदंबी यादव पहली बार मुंगेर से उप चुनाव जीते थे. जगदंबी यादव को भाजपा का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त है.

अपनी सभा का खुद करते प्रचार: कैलाशपति मिश्र से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया है. वे पटना से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे. उन दिनों पार्टी में बड़े नेताओं की कमी थी. कैलाशपति मिश्र दिन में खुद ही अपनी सभा के लिए ऑटो रिक्शा में प्रचार करते थे. माइक पर कैलाशपति मिश्र कहते थे कि आज पटना में कैलाशपति मिश्र की चुनावी सभा होने वाली है. आप लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचकर उनके भाषण का लाभ उठाएं. शाम में कैलाशपति मिश्र खुद पहुंचकर मंच से भाषण देते थे.

लाल मुनि चौबे ने दिया मजबूत आधार: जगबंधु अधिकारी कटिहार से जीतकर आते थे. विजय कुमार मित्रा भागलपुर से चुनाव जीते थे. लाल मुनि चौबे का नाम भी भाजपा को मजबूत आधार देने के लिए जाना जाता है. लालमुनि चौबे 1962 में चुनावी राजनीति में आये थे. लालमुनि चौबे पहले विधायक बने. उसके बाद बिहार सरकार में मंत्री भी बने. वे बक्सर से चार बार सांसद चुने गये थे. ताराकांत झा भी संघ के प्रचारक रहे और बाद में विधान परिषद के सदस्य बने. वे पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी बने. ताराकांत झा बिहार विधान परिषद के सभापति भी रहे.

42 साल का सफर: राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि भाजपा ने फर्श से अर्श का सफर तय कर लिया है लेकिन उसे अभी और दूरी तय करनी है. भाजपा बिहार में स्वाबलंबी होना चाहती है और इसके लिए पार्टी नेता लगातार मेहनत कर रहे हैं. कैलाशपति मिश्र समेत कई नेताओं ने अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा है. उनकी बदौलत पार्टी आज नंबर वन का तमगा हासिल कर चुकी है. अब पार्टी बिहार में आत्मनिर्भर होना चाहती है.

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पटना: भारतीय जनता पार्टी 42 साल की हो चुकी है. आज बीजेपी का स्थापना दिवस (BJP Foundation Day in Bihar) मनाया जा रहा है. इस मौके पर आयोजित सबसे बड़े कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. बिहार में भी कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. अगर बिहार बीजेपी की बात करें तो पार्टी का इतिहास गौरवशाली रहा है. यहां पार्टी की यात्रा 21 सीटों से शुरू हुई थी. आज की तारीख में बीजेपी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी (BJP is Biggest Party of Bihar) बन चुकी है. हालांकि यहां लंबे समय सत्ता में भागीदार है लेकिन उसके हाथ अभी तक सरकार की कमान नहीं आ पाई है. मतलब ये कि बिहार में बीजेपी आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य से अभी भी दूर है.

ये भी पढ़ें: BJP के 42वें स्थापना दिवस पर पटना में प्रभात फेरी, बोले प्रदेश अध्यक्ष- 'गरीबों की मदद करने का संकल्प लें कार्यकर्ता'

जगदंबी यादव बने पहले प्रदेश अध्यक्ष: बीजेपी का औपचारिक रूप से गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ था. आज की तारीख में पार्टी अकेले दम पर देश की सत्ता पर काबिज है. जगदंबी यादव को पार्टी का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल है. बिहार में भी भाजपा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. 1962 में जो तीसरा विधानसभा चुनाव हुआ था, उसमें भारतीय जनसंघ के तीन उम्मीदवार जीत कर आये थे. सिवान सीट से जनार्दन तिवारी, हिलसा से जगदीश प्रसाद और नवादा सीट से गौरीशंकर केसरी चुनाव जीते थे. भारतीय जनसंघ ने कुल 75 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे.

डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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1980 में 21 सीटों पर मिली थी जीत: अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था. उस वक्त जब बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 324 सीटों वाली विधानसभा में 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी ने 246 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. 1985 के चुनाव में भाजपा को 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इस चुनाव में पार्टी ने 234 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. पार्टी को 16 सीटें मिलीं. 1990 में भाजपा ने 40 सीटें जीतीं. उसे 23 सीटों का फायदा हुआ था. आडवाणी की रथयात्रा जैसे बड़े मुद्दों के बाद 1995 में भाजपा को केवल 41 सीटें ही मिल पाईं यानी कि उन्हें सिर्फ 2 सीटों का ही फायदा हुआ.

अब बिहार की सबसे बड़ी पार्टी: 2005 के विधानसभा का चुनाव में बीजेपी और जेडीयू साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, तब उसे 2 सीटों का लाभ मिला था. चुनाव में भाजपा 130 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 2005 में दोबारा चुनाव हुए तो भाजपा ने 102 उम्मीदवार उतारे और 55 सीटों पर जीत हासिल की. 2010 में भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें जीतने में कामयाब रही. आज की तारीख में भाजपा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है. उसके कुल 77 विधायक हैं. हालांकि भाजपा को यह कसक है कि बिहार में उसे सत्ता तो मिली लेकिन कमान अब तक नहीं मिली.



बीजेपी के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्र: कैलाशपति मिश्र काे बिहार भाजपा में भीष्म पितामह माना जाता है. कैलाशपति मिश्र पहले संगठन महामंत्री थे. उन्होंने ही बिहार और झारखंड में भाजपा को सींचा. कैलाशपति मिश्र के अलावा अलावा अश्वनी कुमार ने अपना पूरा जीवन बिहार भाजपा को समर्पित कर दिया था. संगठन मंत्री के रूप में अश्वनी कुमार सबसे ज्यादा चर्चित हुए थे. जगदंबी यादव पहली बार मुंगेर से उप चुनाव जीते थे. जगदंबी यादव को भाजपा का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त है.

अपनी सभा का खुद करते प्रचार: कैलाशपति मिश्र से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया है. वे पटना से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे. उन दिनों पार्टी में बड़े नेताओं की कमी थी. कैलाशपति मिश्र दिन में खुद ही अपनी सभा के लिए ऑटो रिक्शा में प्रचार करते थे. माइक पर कैलाशपति मिश्र कहते थे कि आज पटना में कैलाशपति मिश्र की चुनावी सभा होने वाली है. आप लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचकर उनके भाषण का लाभ उठाएं. शाम में कैलाशपति मिश्र खुद पहुंचकर मंच से भाषण देते थे.

लाल मुनि चौबे ने दिया मजबूत आधार: जगबंधु अधिकारी कटिहार से जीतकर आते थे. विजय कुमार मित्रा भागलपुर से चुनाव जीते थे. लाल मुनि चौबे का नाम भी भाजपा को मजबूत आधार देने के लिए जाना जाता है. लालमुनि चौबे 1962 में चुनावी राजनीति में आये थे. लालमुनि चौबे पहले विधायक बने. उसके बाद बिहार सरकार में मंत्री भी बने. वे बक्सर से चार बार सांसद चुने गये थे. ताराकांत झा भी संघ के प्रचारक रहे और बाद में विधान परिषद के सदस्य बने. वे पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी बने. ताराकांत झा बिहार विधान परिषद के सभापति भी रहे.

42 साल का सफर: राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि भाजपा ने फर्श से अर्श का सफर तय कर लिया है लेकिन उसे अभी और दूरी तय करनी है. भाजपा बिहार में स्वाबलंबी होना चाहती है और इसके लिए पार्टी नेता लगातार मेहनत कर रहे हैं. कैलाशपति मिश्र समेत कई नेताओं ने अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा है. उनकी बदौलत पार्टी आज नंबर वन का तमगा हासिल कर चुकी है. अब पार्टी बिहार में आत्मनिर्भर होना चाहती है.

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Last Updated : Apr 6, 2022, 12:42 PM IST
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