मुजफ्फरपुर: साल 2019 बीतने को है, धीरे-धीरे वक्त का कांटा आगे बढ़ रहा है. इस साल का जून महिना बिहार के लिए काफी मुश्किलों भरा रहा. जेठ की प्रचंड गर्मी में बिहार के मुजफ्फरपुर से मातम की बेहद दर्दनाक तस्वीरें आई. इन तस्वीरों ने ना सिर्फ प्रदेश बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम यानी एईएस हिंदी में इसे जापानी बुखार भी कहते हैं. इस बीमारी ने प्रदेश के कई परिवारों की खुशियां छीन ली.
एईएस के कारण सुर्खियों में रहा मुजफ्फरपुर
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में कुछ महीनों पहले एईएस से इलाज के लिए पहुंचने वाले कई बच्चों का बेजान शरीर ही बाहर निकल रहा था. जिले में 107 और आस-पास के इलाकों से इलाज कराने पहुंचे कई बच्चों की मौत से हड़कंप मच गया. कुल मिलाकर अकेले मुजफ्फरपुर में ही 180 बच्चे मौत की गोद में समा गए. मुख्यमंत्री से लेकर तमाम नेता और विपक्ष के सदस्य से लेकर देश भर से मीडिया के बड़े पत्रकार भी यहां पहुंचे. शाही लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर इस साल एईएस के कारण सुर्खियों में रहा.
दो दशकों में देश भर में 5000 से अधिक बच्चों की मौत
मुजफ्फरपुर अकेला नहीं जहां मौत का ये तांडव देखने को मिला. पिछले दो दशकों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की वजह से देश भर में 5000 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है. बिहार के गया, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, पटना, भोजपुर, जमुई जैसे जिलों में भी हर साल मई और जून के महीने में बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते हैं और बच्चों के मरने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इन सबके बावजूद पीड़ित परिवारों को सिवाए खोखले दावों के और कुछ नहीं मिला.
1 से 5 साल की उम्र के बच्चे इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित
गया में भी इस साल एईएस ने तांडव मचाया.1 से 5 साल की उम्र के बच्चे इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित हुए. एईएस यानि जापानी बुखार ने 18-20 बच्चों की जिंदगी छीन ली. हालात बिगड़े तो सीएम नीतीश ने दुख जताया और हैरानी भी कि आखिर क्या वजह है कि इस महीने में ही बिहार के इस खास इलाके में बच्चों को ऐसी प्राणघाती बीमारी हो गई. हालांकि माननीय मुखिया बीमारी के कारणों की समीक्षा और जागरुकता की बात कहकर लीपापोती करते नजर आए
चमकी बुखार को लेकर हुई सियासत
साल 2019 में चमकी बुखार को लेकर सियासत भी देखने को मिली.पक्ष विपक्ष के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप हुए. लेकिन, इस बीमारी ने जिनकी दुनिया उजाड़ी वो आज भी कराह रहे हैं. फिलहाल ऐसे वक्त में जब 2019 बीत रहा है. तब इस समय हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले सालों में फिर से बिहार को ना कराहना पड़े. ना तो किसी मां की गोद सूनी हो और ना ही किसी बच्चे की जिंदगी शुरु होने से पहले ही इतनी तकलीफ और दर्द से तड़प-तड़प कर अपनी आखिरी सांस ले.