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पुणे हादसे के बाद 'माननीय' पहुंचे पीड़ितों के गांव, पिलाई सांत्वना की घुट्टी - state government

पुणे हादसे ने कई सवाल उठाए है. पिछड़ेपन का दंश झेल रहा सूबा पलायन से त्रस्त है. लेकिन मूल समस्या पर कोई चर्चा नहीं करता.

पुणे हादसे के बाद पीड़ितों से मिलने पहुंचे मंत्री
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Published : Jul 1, 2019, 5:27 PM IST

कटिहार: महाराष्ट्र के पुणे में हुए हादसे के बाद से कटिहार के तेरह लोगों की मौत ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. हादसे ने सिस्टम के मुंह पर एक करारा तमाचा जड़ा है. सूबा लंबे अर्से से रोजगार के अभाव में पलायन का दंश झेल रहा है. अफसोस इस बात का की इस मूल समस्या पर कोई जनप्रतिनिधि, कोई नेता, कोई माननीय बात नहीं करना चाहते. सिर्फ मौत के बाद मुआवजे का चेक थमा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है.

पुणे हादसे के बाद पीड़ितों से मिलने पहुंचे मंत्री

हादसे के मुख्य कारणों पर चर्चा नहीं
इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. हादसे के बाद राज्य सरकार के मंत्री विनोद कुमार सिंह पीड़ितों के गांव पहुंचे, सांत्वना की घुट्टी पिलायी, हर मुमकिन मदद का भरोसा दिया और चलते बने. उन्होंने इस हादसे के पीछे उसके मुख्य कारणों पर कोइ चर्चा नहीं की. किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की.

रोजगार का कोई साधन नहीं
पीड़ित परिजन कहते हैं कि यहां से अधिकतर लोग रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करने को मजबूर होते हैं. इलाके में रोजगार का कोई साधन नहीं है. मजबूरन लोगों को बाहर का रुख करना पड़ता है.

सरकार पलायन रोकने के लिये गंभीर- सांसद
स्थानीय सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने भी पलायन के मुद्दे पर गोल-मोल जवाब दिया. उन्होंने कहा कि बिहार पिछड़ा राज्य है. अधिकतर आबादी रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है, लेकिन सालों भर यहां खेती नहीं होती. इसी कारण स्थानीय लोगों को खाली समय में रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है. माननीय इस मामले पर भी अपनी सरकार की तारीफ करना नहीं भूले. सांसद ने कहा कि राज्य की नीतीश सरकार पलायन रोकने के लिये गंभीरता से काम कर रही है.

कटिहार: महाराष्ट्र के पुणे में हुए हादसे के बाद से कटिहार के तेरह लोगों की मौत ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. हादसे ने सिस्टम के मुंह पर एक करारा तमाचा जड़ा है. सूबा लंबे अर्से से रोजगार के अभाव में पलायन का दंश झेल रहा है. अफसोस इस बात का की इस मूल समस्या पर कोई जनप्रतिनिधि, कोई नेता, कोई माननीय बात नहीं करना चाहते. सिर्फ मौत के बाद मुआवजे का चेक थमा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है.

पुणे हादसे के बाद पीड़ितों से मिलने पहुंचे मंत्री

हादसे के मुख्य कारणों पर चर्चा नहीं
इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. हादसे के बाद राज्य सरकार के मंत्री विनोद कुमार सिंह पीड़ितों के गांव पहुंचे, सांत्वना की घुट्टी पिलायी, हर मुमकिन मदद का भरोसा दिया और चलते बने. उन्होंने इस हादसे के पीछे उसके मुख्य कारणों पर कोइ चर्चा नहीं की. किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की.

रोजगार का कोई साधन नहीं
पीड़ित परिजन कहते हैं कि यहां से अधिकतर लोग रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करने को मजबूर होते हैं. इलाके में रोजगार का कोई साधन नहीं है. मजबूरन लोगों को बाहर का रुख करना पड़ता है.

सरकार पलायन रोकने के लिये गंभीर- सांसद
स्थानीय सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने भी पलायन के मुद्दे पर गोल-मोल जवाब दिया. उन्होंने कहा कि बिहार पिछड़ा राज्य है. अधिकतर आबादी रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है, लेकिन सालों भर यहां खेती नहीं होती. इसी कारण स्थानीय लोगों को खाली समय में रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है. माननीय इस मामले पर भी अपनी सरकार की तारीफ करना नहीं भूले. सांसद ने कहा कि राज्य की नीतीश सरकार पलायन रोकने के लिये गंभीरता से काम कर रही है.

Intro:........महाराष्ट्र के पुणे में एक सोसाइटी की गिरे दीवार से दबकर कटिहार के तेरह लोगों की मौत के तीन दिन बीतने को हैं लेकिन इस हादसे के बाद मौजूदा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया हैं । राज्य से लेकर केन्द्र की सरकारों ने मजदूरों के लिये कई लाभकारी योजनायें चला रखी हैं । जिस बिल्डिंग कंट्रक्शन के मजदूरों की मौत हुई हैं , उसी योजना में सूबे का श्रम विभाग छोटे - छोटे सामान तक लोगों को उपलब्ध कराता हैं , कामगारों को प्रोत्साहन के लिये नगद राशि तक उपलब्ध करायी जाती है । केन्द्र सरकार की मनरेगा भी कुछ इसी तरह की योजना हैं लेकिन इस सबके बाबजुद रोजगार के नाम पर मजदूरों का आखिर क्यों नहीं थम रहा हैं । क्यों नहीं लग पा रहें इसपर ब्रेक और क्या मौतों के बाद मुआवजे का चेक थमा देने से सरकार के कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती हैं , इसी सवालों की जबाब तलाशती एक रिपोर्ट.....।


Body:दरअसल , पुणे में दीवार ढहने से तेरह मजदूरों की मौत हुई , मृतकों की लाश सरकार द्वारा बीती रात सेना के विमान से बागडोगरा भेजा गया जहाँ से एम्बुलेन्स से पीड़ितों के गाँव पहुँचा , स्थानीय ग्रामीणों की मदद से शव का दाह संस्कार कर दिया गया .....। राज्य सरकार के कैबिनेट मिनिस्टर विनोद कुमार सिंह पीड़ितों के गाँव पहुँचे , सांत्वना की घुट्टी पिलायी , हर मुमकिन मदद का भरोसा दिया और चलते बने लेकिन इस हादसे के पीछे के मुख्य कारणों पर किसी ने सिस्टम को जिम्मेदार नहीं बताया । बघार गाँव के स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि अभी भी सैकड़ों लोग महाराष्ट्र के जलगाँव , भुसावल , कल्याण ऐसे इलाके में पेट की आग बुझाने के लिये कार्यरत हैं । कई लोग तो ऐसे हैं कि 365 दिन के साल में किसी भी दिन , त्यौहार को नही परदेश से घर नहीं लौटते । क्या खुशी , क्या गम.....उसे तो पता ही नहीं चलता , कई महिलाओं को मोबाइल से पति की बात ही उसके जिन्दे रहने के सुबूत देता हैं । कई नवविवाहिताएं तो महज एक रात की दुल्हन बनती हैं और सुहागरात के बाद तुरंत उसका पति दिल्ली, पंजाब , महाराष्ट्र चला जाता हैं लेकिन पलायन क्यों नहीं थम रहें और कब कब होती रहेंगी मौतें , इसपर सिस्टम का कोई मुलाजिम बात तक नहीं सुनना चाहता । बिहार सरकार के पूर्व श्रम मंत्री और वर्तमान में कटिहार से लोकसभा सदस्य दुलाल चन्द्र गोस्वामी बताते हैं कि पलायन के पीछे कई कारण हैं जिसमें कृषि भी एक बड़ी समस्या हैं क्योंकि कृषि प्रधान राज्य में खेती के कार्य सालों भर नहीं चलते लिहाजा खेती से बचे खाली समय मे लोग बाहर जा कमाते - खाते हैं और राज्य सरकार पलायन रोकने के लिये गंभीरता से काम कर रही हैं ......।


Conclusion:तो अब सवाल उठता हैं कि क्या सचमुच बिहार के लोग खेती से बचे खाली समय मे रोजगार के नाम पर परदेश कमाते हैं और क्या हर आदमी खेती से जुड़ा हैं , शायद ऐसा नहीं हैं । जनप्रतिनिधि जिस सधे अंदाज में मामले को ट्वीस्ट कर सिस्टम की नाकामियों पर नकाब पहनाते हैं , इससे तो अच्छा होता कि विधानसभा और लोकसभा की पटल पर यह सवाल उठता और सरकारों को इसपर कारगर कदम उठाने के लिये मजबूर किये होते तो अपना बिहार मजदूरों की सफ्लाई करने वाले राज्यों में नहीं शुमार होता और ना ही समय - समय पर यहाँ की महिलाओं के माँग के सिन्दूर ही हादसे में पति की मौतों के बाद सदा के लिये धोये जातें .......।
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