कटिहार: कृषि आधारित जिले में नदियों के कटाव से पारंपरिक खेती में कमी आई है. पहले जहां 80 हजार हेक्टेयर में खेती होती थी, वहीं अब 73 हजार हेक्टेयर सिमट कर रह गई है. आंकड़े बताते हैं 2017-18 में जिले में 80 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती थी. ठीक एक साल बाद इसका रकबा घटकर 2018-19 में 78 हजार हेक्टेयर रह गया. वहीं, 2019-20 में धान की खेती पर वज्रपात ही हो गया.
पारंपरिक खेती में कमी
जिले में धान, मक्का, जूट जैसे परंपरागत फसलों की खेती हुआ करती थी. माना जाता था कि धान की खेती से हुई आमदनी से किसान सालों भर आराम से घर का खर्चा चला सकते थे. बदलते समय के साथ कुछ किसानों ने धान जैसे परंपरागत खेती को छोड़ अधिक आमदनी के लिए केले की खेती का रुख किया.
धान की खेती में आई कमी
मॉनसून का समय पर ना आना और महंगे पटवन की खेती ने किसानों की कमर तोड़ डाली. आंकड़ों के मुताबिक एक साल में 5 हजार हेक्टेयर धान की खेती कम हो गई. माना जा रहा है कि नदियों में हो रहा लगातार कटाव इसकी मुख्य वजह है. नदियां उपजाऊ जमीनें लील ले जा रही हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद ने भी माना कि 2019 में मात्र 73 हजार हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती हो रही है, जो पिछले साल की तुलना में 5 हजार हेक्टेयर कम है.