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कटिहार: नदियों के कटाव से सिकुड़ रहा है रकबा, हर साल घट रही है धान की खेती

आंकड़ों के मुताबिक एक साल में 5 हजार हेक्टेयर धान की खेती कम हो गई. माना जा रहा है कि नदियों में हो रहा लगातार कटाव इसकी मुख्य वजह हैं.

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Published : Jul 11, 2019, 12:43 PM IST

नदियों के कटाव से घट रहा है धान का रकबा

कटिहार: कृषि आधारित जिले में नदियों के कटाव से पारंपरिक खेती में कमी आई है. पहले जहां 80 हजार हेक्टेयर में खेती होती थी, वहीं अब 73 हजार हेक्टेयर सिमट कर रह गई है. आंकड़े बताते हैं 2017-18 में जिले में 80 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती थी. ठीक एक साल बाद इसका रकबा घटकर 2018-19 में 78 हजार हेक्टेयर रह गया. वहीं, 2019-20 में धान की खेती पर वज्रपात ही हो गया.

पारंपरिक खेती में कमी
जिले में धान, मक्का, जूट जैसे परंपरागत फसलों की खेती हुआ करती थी. माना जाता था कि धान की खेती से हुई आमदनी से किसान सालों भर आराम से घर का खर्चा चला सकते थे. बदलते समय के साथ कुछ किसानों ने धान जैसे परंपरागत खेती को छोड़ अधिक आमदनी के लिए केले की खेती का रुख किया.

नदियों के कटाव से घट रहा है धान का रकबा

धान की खेती में आई कमी
मॉनसून का समय पर ना आना और महंगे पटवन की खेती ने किसानों की कमर तोड़ डाली. आंकड़ों के मुताबिक एक साल में 5 हजार हेक्टेयर धान की खेती कम हो गई. माना जा रहा है कि नदियों में हो रहा लगातार कटाव इसकी मुख्य वजह है. नदियां उपजाऊ जमीनें लील ले जा रही हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद ने भी माना कि 2019 में मात्र 73 हजार हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती हो रही है, जो पिछले साल की तुलना में 5 हजार हेक्टेयर कम है.

कटिहार: कृषि आधारित जिले में नदियों के कटाव से पारंपरिक खेती में कमी आई है. पहले जहां 80 हजार हेक्टेयर में खेती होती थी, वहीं अब 73 हजार हेक्टेयर सिमट कर रह गई है. आंकड़े बताते हैं 2017-18 में जिले में 80 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती थी. ठीक एक साल बाद इसका रकबा घटकर 2018-19 में 78 हजार हेक्टेयर रह गया. वहीं, 2019-20 में धान की खेती पर वज्रपात ही हो गया.

पारंपरिक खेती में कमी
जिले में धान, मक्का, जूट जैसे परंपरागत फसलों की खेती हुआ करती थी. माना जाता था कि धान की खेती से हुई आमदनी से किसान सालों भर आराम से घर का खर्चा चला सकते थे. बदलते समय के साथ कुछ किसानों ने धान जैसे परंपरागत खेती को छोड़ अधिक आमदनी के लिए केले की खेती का रुख किया.

नदियों के कटाव से घट रहा है धान का रकबा

धान की खेती में आई कमी
मॉनसून का समय पर ना आना और महंगे पटवन की खेती ने किसानों की कमर तोड़ डाली. आंकड़ों के मुताबिक एक साल में 5 हजार हेक्टेयर धान की खेती कम हो गई. माना जा रहा है कि नदियों में हो रहा लगातार कटाव इसकी मुख्य वजह है. नदियां उपजाऊ जमीनें लील ले जा रही हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद ने भी माना कि 2019 में मात्र 73 हजार हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती हो रही है, जो पिछले साल की तुलना में 5 हजार हेक्टेयर कम है.

Intro:कटिहार

नदियों में हो रहे कटाव ने घटाया धान का रकबा। पहले होती थी 80,000 हेक्टेयर धान की खेती लेकिन अब 73000 हेक्टेयर जमीन पर सिमट गई है किसानों को सालों भर पेट भरने वाली अनाज की खेती। प्रत्येक वर्ष हजारों हेक्टेयर जमीन नदियों में हो रहे हैं लील।


Body:कटिहार कृषि आधारित जिला है और यहां धान,मक्का,जूट जैसे परंपरागत फसलों की खेती हुआ करती थी और माना जाता था कि धान की खेती से हुई आमदनी से किसानों के सालों भर का पेट से लेकर घर तक का खर्चा चलता था। समय बदला, समय का दौर बदला। कुछ किसान धान जैसे परंपरागत खेती को छोड़कर केले की ओर रुख कर गए क्योंकि वहां इससे अधिक आमदनी थी और कुछ किसान धान की खेती में ही लगे रह गए।

आंकड़े बताते हैं 2017-18 में जिले में 80000 हेक्टेयर में धान की खेती होती थी ठीक एक साल बाद इसका रकबा घट कर 2018-19 में 78000 हेक्टेयर में रह गई। वहीं 2019-20 में मानो धान की खेती पर वज्रपात ही हो गया। मानसून का समय पर ना आना और महंगे पटवन की खेती जहां किसानों की कमर तोड़ डाली वहीं इसका रकबा 78000 हेक्टेयर से घटकर 73000 हेक्टेयर पर जा पहुंचा। यानी एक साल में 5000 हेक्टेयर धान की खेती कम हो गई। बताया जाता है कि ऐसा होने के पीछे नदियों में हो रहे लगातार कटाव इसके मुख्य वजह हैं क्योंकि नदियां उपजाऊ जमीनें अपने जबड़े में लील रही है और जो बचे हैं वह घटते जा रहे हैं।




Conclusion:जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद की मानें तो 2019 में मात्र 73000 हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती हो रही है। जो पिछले वर्ष की तुलना में 5000 हेक्टेयर कम है। इसके पीछे मुख्य वजह है नदियों में तेजी से हो रहे कटाव। कटाव के कारण किसानों के हजारों हेक्टेयर जमीन नदियों में लील हो गए।

यूं तो छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा माना जाता है लेकिन बिहार का सीमांचल खुद राज्य के लिए धान का कटोरा है जहां से हर साल हजारों मेट्रिक टन धान उपजते हैं जो यहां के लोगों को सालाना परिवारिक खर्च के अलावा बाहर के राज्यों में सप्लाई जाता है। कटिहार के घटते जमीन के रकवे से अब यह सवाल उठता है कि यदि किसानों के हाथ से खेती कम होती जा रही है तो सरकार उसके पीछे के कारणों पर क्यों नहीं ध्यान देती है। और कटाव रोकने के लिए जो सैकड़ों करोड़ों रुपये का बोल्डर कटाव निरोधक काम में लगाया जाता हैं तो क्या यह महज सिर्फ कागजी कोरम है या फिर यह रुपया पानी में बहाया जा रहा है और कटावनुमा कैंसर का असर हमारे किसानों को पड़ रहा है। अब देखना बाकी है कि सरकार का ध्यान किसानों की इस गंभीर समस्या पर कब तक जाती है और सरकार इन किसानों के लिए समुचित कदम उठाएगी।
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