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गया: बीहड़ जंगल में पति-पत्नी चलाते हैं 'गुरुकुल', दीक्षा में लेते हैं एक किलो चावल

जिले का बाराचट्टी अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. यहां आज भी नक्सली हिंसा की घटना को अंजाम देते है. इस क्षेत्र में एसएसबी जवानों का पहरा रहता है. इस नक्सल क्षेत्र के बीहड़ जंगल में बच्चों को उन्हीं की भाषा मे उनकी तरह वेश में रहकर शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने का अनिला का ये अनोखा प्रयास सराहनीय है.

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Published : Aug 26, 2020, 10:04 PM IST

Updated : Aug 29, 2020, 12:15 PM IST

गया: जिले के बाराचट्टी प्रखंड के बीहड़ जंगलों में एक दंपति गांव के बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा दे रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर दोनों दंपति बच्चों को आवासीय शिक्षा देने के एवज में शुल्क के तौर पर महज एक किलो चावल लेते हैं. सभी बच्चे को शिक्षा के साथ ही खाना बनाने से लेकर खेती करने तक का प्रशिक्षण दिया जाता है.

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बीहड़ में गुरुकुल में पढ़ते बच्चे

कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित
बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित काहूदाग पंचायत के कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित है. इस आश्रम को एक दंपति संचालित करते हैं. इस आश्रम में 25 बच्चों को आवसीय शिक्षा दी जाती है. यहां बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए पुराने जमाने की विधि यानी ऋषि मुनियो की दी जाने वाली शिक्षा की तर्ज पर आज के बच्चों को शिक्षित किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है सहोदय आश्रम
सहोदय आश्रम जहां स्थापित है वहां हर तरफ जंगल ही जंगल है. बाराचट्टी प्रखण्ड मुख्यालय से 6 किलोमीटर का रास्ता जंगल के बीच से पगडंडियों के सहारे पार करना पड़ता है. सड़क और जंगल की समस्या के बाद यहां सबसे बड़ी समस्या है नक्सली. सहोदय आश्रम अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है.

अनिल कुमार हैं सहोदय आश्रम के संचालक
सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार हैं. इसके संचालन में उनकी पत्नी उनका साथ देती हैं. अनिल कुमार मुख्य रूप से पटना के बिहटा प्रखण्ड के पहाड़पुर गांव के रहने वाले हैं. अनिल और रेखा शादी के बाद दिल्ली गए. उन्होंने दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की और वहीं से एमफिल किया.

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सहोदय आश्रम में अध्ययनरत बच्चे

बीहड़ जंगलों में शिक्षा की अलख
उनकी पत्नी रेखा ने भी पीजी तक की पढ़ाई की है. दोनों पति पत्नी को गांव से प्यार था. दिल्ली की भागदौड़ वाली जिंदगी उनको पसंद नहीं आई. इसके बाद दोनों पति-पत्नी बीहड़ जंगलों में आकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

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पढ़ाई करते बच्चे

बच्चों को शिक्षित करने का विचार
अनिल बताते हैं कि नौकरी करके और शहर में रहकर में मैं खुश नहीं था. मेरी पत्नी की भी चाहत थी हम गांव में रहे, वहीं खेती करे या बच्चों को शिक्षित करे. खेती करने के लिए जमीन चाहिए थी जो मेरे पास नहीं थी. इसके बाद बच्चों को शिक्षित करने का विचार किया.

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सहोदय आश्रम

भूदान कमेटी से मिली जानकारी
अनिल ने कहा कि भूदान कमेटी ने इस जगह के बारे में जानकारी दी. यहां आकर देखा इस सुदूर इलाके में शिक्षा की जरूरत है. हम दिल्ली से 2017 में आकर इस गांव में एक झोपड़ी में रहने लगे.पहले लोगों को समझ नहीं आया. आज लोग चाहते हैं कि मेरा बच्चा सहोदय आश्रम में पढ़े. यहां बच्चों को पढ़ाई का बोझ नहीं देना चाहते हैं. बच्चे को हम माहौल देते हैं, खुद से पढ़ें और दूसरे को पढ़ाएं. यहां बच्चों को खाना बनाना, पशुपालन, खेती करना भी सिखाते हैं.

दीक्षा के तौर पर एक किलो चावल
अनिल कुमार कहते हैं कि 25 बच्चे आसपास के अनुसूचित जाति के हैं लेकिन कोई घर नहीं जाता. बच्चों के अभिभावक से बस एक किलो चावल दीक्षा में लेते हैं. बाकी की जरूरत मेरे दिल्ली के कुछ दोस्त और शिक्षक पूरा कर देते हैं. अनिल की पत्नी रेखा भी उनके इस कार्य में उनका खूब साथ देती है.

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बच्चों को शिक्षित करते अनिल कुमार

बच्चों को ब्लैक बोर्ड और बेंच से बांधकर नहीं रखा जाता
रेखा कहती हैं कि यहां हम एक परिवार के साथ हैं. मैं 25 बच्चों को मां की तरह प्यार देती हूं. सुबह उठकर हर कोई काम करता है. सबलोग मिलकर खाना बनाते हैं. यहां बच्चों को ब्लैक बोर्ड और बेंच से बांधकर नहीं रखा जाता है.

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सहोदय आश्रम संचालक अनिल कुमार

अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है बाराचट्टी
गौरतलब है कि जिले का बाराचट्टी अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. यहां आज भी नक्सली हिंसा की घटना को अंजाम देते हैं. इस क्षेत्र में एसएसबी जवानों का पहरा रहता है. इस नक्सल क्षेत्र के बीहड़ जंगल में बच्चों को उन्हीं की भाषा में उनकी तरह वेश में रहकर शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने का अनिल का ये अनोखा प्रयास सराहनीय है.

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गुरुकुल में पढ़ते बच्चे

सहोदय आश्रम से लोगों में एक आशा की किरण
अनिल कुमार बच्चों को उन्नत किस्म की शिक्षा देने के साथ ही आसपास के बंजर गांवों में धान बोकर चावल उपजाते हैं. गांव में लोगों के बीच जाकर शराबबंदी की अलख जगाते है. आज आसपास के गांव में सहोदय आश्रम से लोगों में एक आशा की किरण जगी है.

गया: जिले के बाराचट्टी प्रखंड के बीहड़ जंगलों में एक दंपति गांव के बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा दे रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर दोनों दंपति बच्चों को आवासीय शिक्षा देने के एवज में शुल्क के तौर पर महज एक किलो चावल लेते हैं. सभी बच्चे को शिक्षा के साथ ही खाना बनाने से लेकर खेती करने तक का प्रशिक्षण दिया जाता है.

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बीहड़ में गुरुकुल में पढ़ते बच्चे

कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित
बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित काहूदाग पंचायत के कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित है. इस आश्रम को एक दंपति संचालित करते हैं. इस आश्रम में 25 बच्चों को आवसीय शिक्षा दी जाती है. यहां बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए पुराने जमाने की विधि यानी ऋषि मुनियो की दी जाने वाली शिक्षा की तर्ज पर आज के बच्चों को शिक्षित किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है सहोदय आश्रम
सहोदय आश्रम जहां स्थापित है वहां हर तरफ जंगल ही जंगल है. बाराचट्टी प्रखण्ड मुख्यालय से 6 किलोमीटर का रास्ता जंगल के बीच से पगडंडियों के सहारे पार करना पड़ता है. सड़क और जंगल की समस्या के बाद यहां सबसे बड़ी समस्या है नक्सली. सहोदय आश्रम अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है.

अनिल कुमार हैं सहोदय आश्रम के संचालक
सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार हैं. इसके संचालन में उनकी पत्नी उनका साथ देती हैं. अनिल कुमार मुख्य रूप से पटना के बिहटा प्रखण्ड के पहाड़पुर गांव के रहने वाले हैं. अनिल और रेखा शादी के बाद दिल्ली गए. उन्होंने दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की और वहीं से एमफिल किया.

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सहोदय आश्रम में अध्ययनरत बच्चे

बीहड़ जंगलों में शिक्षा की अलख
उनकी पत्नी रेखा ने भी पीजी तक की पढ़ाई की है. दोनों पति पत्नी को गांव से प्यार था. दिल्ली की भागदौड़ वाली जिंदगी उनको पसंद नहीं आई. इसके बाद दोनों पति-पत्नी बीहड़ जंगलों में आकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

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पढ़ाई करते बच्चे

बच्चों को शिक्षित करने का विचार
अनिल बताते हैं कि नौकरी करके और शहर में रहकर में मैं खुश नहीं था. मेरी पत्नी की भी चाहत थी हम गांव में रहे, वहीं खेती करे या बच्चों को शिक्षित करे. खेती करने के लिए जमीन चाहिए थी जो मेरे पास नहीं थी. इसके बाद बच्चों को शिक्षित करने का विचार किया.

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सहोदय आश्रम

भूदान कमेटी से मिली जानकारी
अनिल ने कहा कि भूदान कमेटी ने इस जगह के बारे में जानकारी दी. यहां आकर देखा इस सुदूर इलाके में शिक्षा की जरूरत है. हम दिल्ली से 2017 में आकर इस गांव में एक झोपड़ी में रहने लगे.पहले लोगों को समझ नहीं आया. आज लोग चाहते हैं कि मेरा बच्चा सहोदय आश्रम में पढ़े. यहां बच्चों को पढ़ाई का बोझ नहीं देना चाहते हैं. बच्चे को हम माहौल देते हैं, खुद से पढ़ें और दूसरे को पढ़ाएं. यहां बच्चों को खाना बनाना, पशुपालन, खेती करना भी सिखाते हैं.

दीक्षा के तौर पर एक किलो चावल
अनिल कुमार कहते हैं कि 25 बच्चे आसपास के अनुसूचित जाति के हैं लेकिन कोई घर नहीं जाता. बच्चों के अभिभावक से बस एक किलो चावल दीक्षा में लेते हैं. बाकी की जरूरत मेरे दिल्ली के कुछ दोस्त और शिक्षक पूरा कर देते हैं. अनिल की पत्नी रेखा भी उनके इस कार्य में उनका खूब साथ देती है.

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बच्चों को शिक्षित करते अनिल कुमार

बच्चों को ब्लैक बोर्ड और बेंच से बांधकर नहीं रखा जाता
रेखा कहती हैं कि यहां हम एक परिवार के साथ हैं. मैं 25 बच्चों को मां की तरह प्यार देती हूं. सुबह उठकर हर कोई काम करता है. सबलोग मिलकर खाना बनाते हैं. यहां बच्चों को ब्लैक बोर्ड और बेंच से बांधकर नहीं रखा जाता है.

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सहोदय आश्रम संचालक अनिल कुमार

अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है बाराचट्टी
गौरतलब है कि जिले का बाराचट्टी अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. यहां आज भी नक्सली हिंसा की घटना को अंजाम देते हैं. इस क्षेत्र में एसएसबी जवानों का पहरा रहता है. इस नक्सल क्षेत्र के बीहड़ जंगल में बच्चों को उन्हीं की भाषा में उनकी तरह वेश में रहकर शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने का अनिल का ये अनोखा प्रयास सराहनीय है.

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गुरुकुल में पढ़ते बच्चे

सहोदय आश्रम से लोगों में एक आशा की किरण
अनिल कुमार बच्चों को उन्नत किस्म की शिक्षा देने के साथ ही आसपास के बंजर गांवों में धान बोकर चावल उपजाते हैं. गांव में लोगों के बीच जाकर शराबबंदी की अलख जगाते है. आज आसपास के गांव में सहोदय आश्रम से लोगों में एक आशा की किरण जगी है.

Last Updated : Aug 29, 2020, 12:15 PM IST
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