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दरभंगा के विश्व विख्यात मिथिला संस्कृत शोध संस्थान की दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा डिजिटाइजेशन

मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान की हजारों दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण किया जाएगा. संस्थान में संस्कृत और और पाली भाषाओं में धर्म और न्यायशास्त्र समेत कई विषयों की भोजपत्र और ताड़ पत्र समेत कई दुर्लभ किस्म की पांडुलिपियां हैं. पढ़ें पूरी खबर.

दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा डिजिटाइजेशन
दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा डिजिटाइजेशन
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Published : Aug 18, 2021, 10:59 PM IST

दरभंगा: बिहार का दरभंगा जिला हजारों दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों (Ancient Manuscripts) के लिए दुनिया भर में विख्यात (World Famous) है. दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान (Mithila Sanskrit Institute) की हजारों दुर्लभ पांडुलिपियों (Rare Manuscripts) का संरक्षण किया जाएगा. इनका डिजिटाइजेशन (Digitization) किया जाएगा. इसको लेकर बिहार सरकार (Bihar Government) ने पहल की है. शिक्षा विभाग और कला संस्कृति विभाग ने संस्थान की दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण की योजना बनाई है.

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यह जानकारी संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने दी. प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने कहा कि 5 अगस्त को शिक्षा विभाग के अपर सचिव के साथ संस्थान की पांडुलिपियों के संरक्षण को लेकर उनकी वार्ता हुई थी. 7 अगस्त को लखनऊ से इंटेक की एक टीम संस्थान में आई थी. उनके साथ बिहार अभिलेखागार के दरभंगा के पदाधिकारी भी थे.

'अधिकारियों के साथ यहां की दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण और उनके डिजिटाइजेशन को लेकर बातचीत हुई है और इसकी विस्तृत योजना बनाई जा रही है. जल्द ही इस पर काम शुरू हो सकता है.' : डॉ. राजदेव प्रसाद, प्रभारी निदेशक, मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान

ये भी पढ़ें- जल्द होगा दरभंगा एम्स का शिलान्यास: सांसद गोपाल जी ठाकुर

बता दें कि दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान की स्थापना दरभंगा महाराज ने 16 जून 1951 को अपनी 32 एकड़ जमीन दान में देकर उस समय पर की थी. इस संस्थान के मुख्य भवन का शिलान्यास भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर 1951 को किया था जिसे अब तक पूरा नहीं किया जा सका है.

संस्थान में संस्कृत और और पाली भाषाओं में धर्म और न्यायशास्त्र समेत कई विषयों की भोजपत्र और ताड़ पत्र समेत कई दुर्लभ किस्म की पांडुलिपियां हैं. पिछले सालों में इस संस्थान में भारत के विभिन्न इलाकों के साथ-साथ जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन समेत दुनिया के कई देशों के शोधार्थी शोध के लिए आते रहे हैं.

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पिछले कुछ सालों से संस्थान की हालत ज्यादा खराब हो गई है. सही संरक्षण नहीं होने की वजह से यहां की पांडुलिपियां खराब हो रही हैं. इसको लेकर समय-समय पर कई संस्थाओं और लोगों ने इसके संरक्षण की मांग उठाई थी. इसी के बाद बिहार सरकार ने सक्रियता दिखाई है.

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यह जानकारी संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने दी. प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने कहा कि 5 अगस्त को शिक्षा विभाग के अपर सचिव के साथ संस्थान की पांडुलिपियों के संरक्षण को लेकर उनकी वार्ता हुई थी. 7 अगस्त को लखनऊ से इंटेक की एक टीम संस्थान में आई थी. उनके साथ बिहार अभिलेखागार के दरभंगा के पदाधिकारी भी थे.

'अधिकारियों के साथ यहां की दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण और उनके डिजिटाइजेशन को लेकर बातचीत हुई है और इसकी विस्तृत योजना बनाई जा रही है. जल्द ही इस पर काम शुरू हो सकता है.' : डॉ. राजदेव प्रसाद, प्रभारी निदेशक, मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान

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बता दें कि दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान की स्थापना दरभंगा महाराज ने 16 जून 1951 को अपनी 32 एकड़ जमीन दान में देकर उस समय पर की थी. इस संस्थान के मुख्य भवन का शिलान्यास भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर 1951 को किया था जिसे अब तक पूरा नहीं किया जा सका है.

संस्थान में संस्कृत और और पाली भाषाओं में धर्म और न्यायशास्त्र समेत कई विषयों की भोजपत्र और ताड़ पत्र समेत कई दुर्लभ किस्म की पांडुलिपियां हैं. पिछले सालों में इस संस्थान में भारत के विभिन्न इलाकों के साथ-साथ जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन समेत दुनिया के कई देशों के शोधार्थी शोध के लिए आते रहे हैं.

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पिछले कुछ सालों से संस्थान की हालत ज्यादा खराब हो गई है. सही संरक्षण नहीं होने की वजह से यहां की पांडुलिपियां खराब हो रही हैं. इसको लेकर समय-समय पर कई संस्थाओं और लोगों ने इसके संरक्षण की मांग उठाई थी. इसी के बाद बिहार सरकार ने सक्रियता दिखाई है.

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