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दरभंगा: बदलेगी महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह की राज लाइब्रेरी की तस्वीर, डिजिटाइजेशन की हुई शुरुआत

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Published : Aug 23, 2019, 3:10 PM IST

राज लाइब्रेरी की स्थापना महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने वर्ष 1893 में की थी. 1975 में राज परिवार ने इसे ललित नारायण मिथिला विवि को दान में दे दिया था. वहीं, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने विवि में इसका उद्घाटन किया था.

राज लाइब्रेरी

दरभंगा: जिले की 126 साल पुरानी राज लाइब्रेरी के अच्छे दिनों की शुरूआत हो गई है. दरअसल लाइब्रेरी को आधुनिक बनाने के लिए डिजिटाइजेशन किया जा रहा है. यह लाइब्रेरी बिहार में अपने तरह की लाखों अनूठी पुस्तकों, पांडुलिपियों और जर्नल्स का इकलौता संग्रह है. यहां देश-विदेश के शोधार्थी शोध के लिये आते हैं. लाइब्रेरी के डिजिटाइजेशन से छात्रों को भी लाभ होगा.

Darbhanga
उद्घाटन के दौरान लगाया गया शिलापट

राज परिवार ने दान में दी थी लाइब्रेरी
गौरतलब है कि इस लाइब्रेरी की स्थापना महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने वर्ष 1893 में की थी. 1975 में राज परिवार ने इसे ललित नारायण मिथिला विवि को दान में दे दिया था. वहीं, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने विवि में इसका उद्घाटन किया था.

राज लाइब्रेरी

किताबों के शौकीन थे महाराज
लाइब्रेरियन भवेश्वर सिंह ने बताया कि महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह किताबें पढ़ने के बहुत शौकीन थे. महाराजा देश-विदेश से किताबें खरीद कर इकट्ठा किया करते थे. उन्होंने ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों से नीलामी में किताबें खरीदी थीं. इनमे तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली की किताबें भी शामिल हैं. यहां ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेशों पर हुई बहस सीरीज के रूप में 'हंसाड पार्लियामेंट डिबेट' के रूप में संग्रहित है. यह दुनिया की दुर्लभ पुस्तक श्रृंखला है. इसके अध्ययन से तत्कालीन ब्रिटिश संसद का उनके उपनिवेशों के प्रति नीतियों को समझ जा सकता है.

Darbhanga
राज लाइब्रेरी में रखी पुस्तकें

खराब हो रही किताबें
भवेश्वर सिंह ने बताया कि राज लाइब्रेरी का डिजिटाइजेशन अभी प्रारंभिक चरण में है. इससे देश-विदेश के शोधार्थियों को लाभ होगा. उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण लाइब्रेरी की हालत खस्ताहाल है. इसकी छत और दीवारें टूट कर गिर रही हैं. बरसात में पानी टपकता है. इसकी वजह से दुर्लभ किताबें खराब हो रही हैं. इसके संरक्षण की जरूरत है. वहीं, ललित नारायण मिथिला विवि के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि पिछले दो सालों में लाइब्रेरी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. अभी काफी काम किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भवन की मरम्मत के लिये विवि अभियंता को निर्देशित किया गया है. इसके लिये राशि भी आवंटित कर दी गयी है.

Darbhanga
ललित नारायण मिथिला विवि

दरभंगा: जिले की 126 साल पुरानी राज लाइब्रेरी के अच्छे दिनों की शुरूआत हो गई है. दरअसल लाइब्रेरी को आधुनिक बनाने के लिए डिजिटाइजेशन किया जा रहा है. यह लाइब्रेरी बिहार में अपने तरह की लाखों अनूठी पुस्तकों, पांडुलिपियों और जर्नल्स का इकलौता संग्रह है. यहां देश-विदेश के शोधार्थी शोध के लिये आते हैं. लाइब्रेरी के डिजिटाइजेशन से छात्रों को भी लाभ होगा.

Darbhanga
उद्घाटन के दौरान लगाया गया शिलापट

राज परिवार ने दान में दी थी लाइब्रेरी
गौरतलब है कि इस लाइब्रेरी की स्थापना महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने वर्ष 1893 में की थी. 1975 में राज परिवार ने इसे ललित नारायण मिथिला विवि को दान में दे दिया था. वहीं, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने विवि में इसका उद्घाटन किया था.

राज लाइब्रेरी

किताबों के शौकीन थे महाराज
लाइब्रेरियन भवेश्वर सिंह ने बताया कि महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह किताबें पढ़ने के बहुत शौकीन थे. महाराजा देश-विदेश से किताबें खरीद कर इकट्ठा किया करते थे. उन्होंने ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों से नीलामी में किताबें खरीदी थीं. इनमे तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली की किताबें भी शामिल हैं. यहां ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेशों पर हुई बहस सीरीज के रूप में 'हंसाड पार्लियामेंट डिबेट' के रूप में संग्रहित है. यह दुनिया की दुर्लभ पुस्तक श्रृंखला है. इसके अध्ययन से तत्कालीन ब्रिटिश संसद का उनके उपनिवेशों के प्रति नीतियों को समझ जा सकता है.

Darbhanga
राज लाइब्रेरी में रखी पुस्तकें

खराब हो रही किताबें
भवेश्वर सिंह ने बताया कि राज लाइब्रेरी का डिजिटाइजेशन अभी प्रारंभिक चरण में है. इससे देश-विदेश के शोधार्थियों को लाभ होगा. उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण लाइब्रेरी की हालत खस्ताहाल है. इसकी छत और दीवारें टूट कर गिर रही हैं. बरसात में पानी टपकता है. इसकी वजह से दुर्लभ किताबें खराब हो रही हैं. इसके संरक्षण की जरूरत है. वहीं, ललित नारायण मिथिला विवि के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि पिछले दो सालों में लाइब्रेरी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. अभी काफी काम किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भवन की मरम्मत के लिये विवि अभियंता को निर्देशित किया गया है. इसके लिये राशि भी आवंटित कर दी गयी है.

Darbhanga
ललित नारायण मिथिला विवि
Intro:दरभंगा। 126 साल पुरानी दरभंगा राज लाइब्रेरी का डिजिटाइजेशन शुरू हो गया है। यह बिहार में अपने तरह की लाखों अनूठी पुस्तकों, पांडुलिपियों और जर्नल्स का इकलौता संग्रह है। यहां देश-विदेश के शोधार्थी शोध के लिये आते हैं। डिजिटाइजेशन से छात्रों को लाभ होगा। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने इसकी स्थापना वर्ष 1893 में की थी। 1975 में राज परिवार ने इसे ललित नारायण मिथिला विवि को दान में दे दिया था। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने इसका विवि में इसका उद्घाटन किया था।


Body:राज लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन भवेश्वर सिंह बताते हैं कि महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह को देश-विदेश से किताबें खरीद कर उनका संग्रह करने का बड़ा शौक था। उन्होंने ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों से नीलामी में किताबें खरीदी थीं। इनमे तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली की किताबें भी शामिल हैं। यहां ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेशों पर हुई बहस सीरीज के रूप में 'हंसाड पार्लियामेंट डिबेट' के रूप में संग्रहित है। यह दुनिया की दुर्लभ पुस्तक श्रृंखला है। इसके अध्ययन से तत्कालीन ब्रिटिश संसद का उनके उपनिवेशों के प्रति नीतियों को समझ जा सकता है। उन्होंने बताया कि राज लाइब्रेरी का डिजिटाइजेशन शुरू हुआ है। यह अभी प्रारंभिक चरण में है। इससे देश-विदेश के शोधार्थियों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण लाइब्रेरी की हालत खस्ता है। इसकी छत और दीवारें टूट कर गिर रही हैं। बरसात में पानी टपकता है। इसकी वजह से दुर्लभ किताबें खराब हो रही हैं। इसके संरक्षण की जरूरत है।


Conclusion:ललित नारायण मिथिला विवि के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि पिछले दो साल में लाइब्रेरी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। अभी यहां और काम किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भवन की मरम्मत के लिये विवि अभियंता को निर्देश दे दिया गया है। इसके लिये राशि भी आवंटित कर दी गयी है।

बाइट 1- भवेश्वर सिंह, लाइब्रेरियन, राज लाइब्रेरी
बाइट 2- प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह, कुलपति, एलएनएमयू

विजय कुमार श्रीवास्तव
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