दरभंगा: राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली की ओर से ललित नारायण मिथिला विवि में स्थापित मैनुस्क्रिप्ट रिसोर्स सेंटर और मैनुस्क्रिप्ट कंजर्वेशन सेंटर में कामकाज बंद हो गया है. इसकी वजह संरक्षण-संवर्द्धन के लिए पांडुलिपियों का न मिलना बताई जा रही है. इन दोनों केंद्रों का उद्घाटन बिहार के तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने इसी साल 12 मार्च को किया था. निदेशक ने जल्द ही दोबारा काम शुरू होने की उम्मीद जताई है.
'पांडुलिपि का संरक्षण-संवर्द्धन होना चाहिए'
केंद्र के परियोजना सहायक संतोष कुमार झा ने बताया कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली हर क्वार्टर अवधि के लिए फंड जारी करता है. दोनों केंद्रों को मिलाकर कम से कम 132 पृष्ठ की पांडुलिपि का संरक्षण-संवर्द्धन होना चाहिए. तभी लक्ष्य पूरा होगा और आगे फंड मिलेगा. मिथिला में पांडुलिपियां बहुत हैं, लेकिन यहां के लोग उनके संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हैं. इस वजह से पांडुलिपियां नहीं मिल पा रही हैं. पहले और दूसरे क्वार्टर में कुछ पांडुलिपियां मिली थीं जिनका जीर्णोद्धार किया जा चुका है. उसके बाद पांडुलिपि नहीं मिली. इसलिए फिलहाल काम बंद है.
सात मई से शुरू हुआ था काम
मैनुस्क्रिप्ट रिसोर्स और कंजर्वेशन सेंटर के निदेशक डॉ. भवेश्वर सिंह ने कहा कि केन्द्र पर इस साल सात मई से काम शुरू हुआ था. फिलहाल काम स्थगित है. हाल में संस्कृत विवि से कुछ पांडुलिपियों के जीर्णोद्धार की बात हुई है. उम्मीद है कि अनुमति मिलने पर केंद्र पर जल्द ही दोबारा पांडुलिपियों के संरक्षण और संवर्द्धन का काम शुरू हो जाएगा. बता दें कि मिथिला में भोजपत्र और ताड़पत्र पर ग्रंथ लेखन की परंपरा सातवीं सदी में शुरू हुई थी. यहां आदि कवि विद्यापति, वाचस्पति मिश्र और भरत मुनि जैसे विद्वानों के कई हस्तलिखित ग्रंथों की पांडुलिपियां गांव-गांव में मिलती हैं. लेकिन संरक्षण के अभाव में ये खराब होकर नष्ट हो रही हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने इन दो केंद्रों की स्थापना यहां की थी.
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