देवघर/भागलपुर: हर साल की तरह इस भी बार फिर कृष्णा बम देवघर पहुंची और सुल्तानगंज में गंगा में डुबकी लगाकर गंगाजल उठाकर बाबा का जलाभिषेक किया. वैसे तो कृष्णा बम हर सावन की रविवार को डाक बम के रूप में सुल्तानगंज से जल लेकर आती थी और सोमवार को भोलेनाथ का जलाभिषेक करती थी लेकिन, इस साल 70 वर्षीय डाक बम सोमवार को जल उठाकर मंगलवार को बाबाधाम पहुंची. इस पर उनका कहना है कि शिव की पूजा के लिए दिन निश्चित नहीं है, हम हर दिन भोलेनाथ की पूजा कर सकते हैं.
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38 सालों से कर रही हैं भोलेनाथ पर जलाभिषेक: 70 वर्षीय महिला कृष्णा बम वह हैं जो लगातार 38 सालों से सुल्तानगंज से जल भरकर बाबाधाम दौड़कर जाती रही हैं. हालांकि कोरोना कारण यह यात्रा रुक गयी थी, जो फिर से शुरू हो गयी है. श्रावणी मेले में कई श्रद्धालु की भक्ति देखने को मिलती है लेकिन, सुल्तानगंज से सोमवार पहुंची एक 70 वर्षिय महिला को सुरक्षा घेरे में देख उन्हें ना जानने वाले ये सवाल खड़ा करते हैं कि ये महिला कौन हैं, कोई अधिकारी? तो जवाब मिलता है नहीं, ये शिव भक्त हैं.
कृष्णा बम को क्यों मुहैया कराई जाती है सुरक्षा: दरअसल, कोरोना काल के पहले तक यह महिला 38 बार डाक बम बनी और दौड़ लगाकर सुल्तानगंज से बाबा धाम पहुंची. ऐसी बाबा भक्त की भक्ति भाव में विघ्न ना पड़े इसलिये उन्हें सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई जाती है. श्रावणी मेला शुरू होते ही देवघर के लोगों को कृष्णा बम का बेसब्री से इंतजार रहता है, लोग इन्हें माता बम भी कहते हैं और इनका आशीर्वाद लेने को आतुर रहते हैं.
पाकिस्तान जाकर किया जलाभिषेक: कृष्णा बम और भगवान शिव के प्रति उनका प्रेम ऐसा है कि वे पाकिस्तान तक चली गयीं. उनकी धार्मिक यात्रा की लिस्ट बहुत लंबी है. हर साल सुल्तानगंज से जल उठाकर 105 किलोमीटर की दौड़ लगाकर वो बाबाधाम पहुंचती हैं. दिसंबर 2018 में पाकिस्तान के कटास राज धाम जाकर उन्होंने भगवान शिव पर जलाभिषेक किया. 1989 में उन्होंने गंगोत्री से रामेश्वरम 4500 किलोमीटर पैदल यात्रा भी तय की है. 2014 में कैलाश मानसरोवर गयी है. पहली बार उन्होंने 1975 में पहलेजा से गरीबनाथ तक पैदल यात्रा कर वहां जलाभिषेक किया.
डाक बम कौन होते हैं: कोरोना के बाद एक बार फिर कृष्णा बम ने यात्रा का संकल्प लिया. वह सुल्तानगंज से बिना रुके 105 किलोमीटर का यात्रा कर बाबाधाम पहुंची हैं. बता दें कि डाक बम वो होते हैं, जो एक बार जल उठाते हैं और बिना रुके अपने गंतव्य तक जाते हैं. कांवड़ियों के जत्थे में एक डाक बम की भक्ति देखते ही बनती है. उन्हीं में एक दांडी बम भी होते है जो दंडवत प्रणाम करते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं.
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