बैंकॉक: भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आरसीईपी शिखर बैठक में अपने संबोधन में यह घोषणा की.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आरसीईपी समझौते को लेकर चल रही वार्ताओं में भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं को दूर नहीं किया जा सका है. इसके मद्देनजर भारत ने यह फैसला किया है. इस बैठक में विभिन्न देशों के नेता भाग ले रहे हैं.
मोदी ने कहा, "आरसीईपी करार का मौजूदा स्वरूप पूरी तरह इसकी मूल भावना और इसके मार्गदर्शी सिद्धान्तों को नहीं दर्शाता है. इसमें भारत द्वारा उठाए गए शेष मुद्दों और चिंताओं को भी संतोषजनक तरीके से दूर नहीं किया जा सका है. ऐसे में भारत के लिए आरसीईपी समझौते में शामिल होना संभव नहीं है."
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आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. हालांकि, भारत ने आरसीईपी से बाहर निकलने का फैसला किया है.
मूल आरसीईपी का मकसद दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है. इसमें शामिल 16 देशों के इस समूह की आबादी 3.6 अरब है. यह दुनिया की करीब आधी आबादी है.
भारत अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच और वस्तुओं की संरक्षित सूची से जुड़े मुद्दों को जोरदार तरीके से उठा रहा था ताकि वह अपने घरेलू बाजार को संरक्षण दे सके. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि भारत द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी.
प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था चाहता है. आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत के साथ ही भारत इसके साथ आगे बढ़कर, रचनात्मक और अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ा हुआ है. भारत ने दो और पाओ की भावना के साथ इसमें संतुलन बैठाने के लिए कार्य किया है."
मोदी ने कहा, "जब हम आसपास देखते हैं तो सात साल की आरसीईपी वार्ताओं के दौरान कई चीजें... वैश्विक आर्थिक और व्यापार परिदृश्य में बदलाव आया है. हम इन बदलावों की अनदेखी नहीं कर सकते."
आसियान नेताओं और छह अन्य देशों ने नवंबर, 2012 में नोम पेह में 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत की थी. आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था.
मोदी ने कहा, "जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता. ऐसे में न तो गांधीजी के सिद्धान्त और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की इजाजत देती है."
सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है. भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी.
सूत्रों ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उससे संबंधित वार्ताओं में कड़ा रुख अख्तियार किया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी को मुश्किल वार्ताकार करार दे चुके हैं. हालांकि, ट्रंप को खुद भी सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है.
सरकारी सूत्रों ने कहा, "अब वे दिन हवा हुए जबकि व्यापार के मुद्दों पर वैश्विक शक्तियों के समक्ष भारतीय वार्ताकार दबाव में आ जाते थे. इस बार भारत फ्रंट फुट’ पर खेला है और उसने व्यापार घाटे को लेकर देश की चिंताओं को उठाया है. साथ ही भारत ने भारतीय सेवाओं और निवेश के लिए अन्य देशों को अपने बाजारों को और खोलने का दबाव भी बनाया है."
सूत्रों ने कहा कि भारत को छोड़कर आरसीईपी के सभी 15 सदस्य देश सोमवार के शिखर सम्मेलन के दौरान करार को अंतिम रूप देने को लेकर एकमत थे.
शनिवार को हुई बैठक में 16 आरसीईपी देशों के व्यापार मंत्री भारत द्वारा उठाए गए लंबित मुद्दों को हल करने में विफल रहे थे. हालांकि, आसियन शिखर बैठक से अलग कुछ लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत जारी थी.