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इंडियाबुल्स मामला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरोपों की जांच याचिका पर केन्द्र और आरबीआई से मांगा जवाब

मुख्य न्यायधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरी शंकर की पीठ ने एनजीओ की जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार, रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को इस संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.

इंडियाबुल्स मामला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरोपों की जांच याचिका पर केन्द्र और आरबीआई से मांगा जवाब
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Published : Sep 27, 2019, 10:47 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 7:00 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक गैर- सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर जनहित याचिका में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईबीएचएफएल) के खिलाफ लगाये वित्तीय अनियमितताओं, धन की हेराफेरी और दूसरे नियमों के उल्लंघन के आरोपों की जांच का फैसला किया है और इस संबंध में केन्द्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को नोटिस जारी किये हैं.

मुख्य न्यायधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरी शंकर की पीठ ने एनजीओ की जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार, रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को इस संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.

अदालत ने याचिका पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ), कंपनी रजिस्ट्रार और इंडिया बुल्स समूह के संस्थापक और चेयरमैन समीर गेहलात को भी नोटिस जारी किये गये हैं.

ये भी पढ़ें-सीबीडीटी ने नोटबंदी से जुड़े संदिग्ध मामलों के आकलन की समयसीमा तीन महीने बढ़ाई

उच्च न्यायालय की पीठ ने इन सभी को 13 दिसंबर तक अपने जवाब दाखिल करने को कहा है. इसी दिन मामले की सुनवाई की अगली तारीख है. पीठ ने मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद ही नोटिस जारी करने का फैसला किया. मामले में कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी तथा एनजीओ की तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील पेश की.

रोहतगी ने अदालत से आग्रह कि मामले में नोटिस जारी नहीं किया जाये और वह नोटिस के बिना ही जवाब देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि एक बार नोटिस जारी होने पर, इसके बारे में समाचार चैनलों में बताया जायेगा और इससे कंपनी के शेयर मूल्यों पर बुरा प्रभाव पड़गा.

हालांकि, पीठ ने इससे सहमति नहीं जताई. संक्षिप्त बहस के दौरान गैर- सरकारी संगठन सिटीजंस व्हीसल ब्लोअर फोरम ने अदालत से कहा कि इंडियाबुल्स ने कथित रूप से 4,600 करोड़ रुपये की राशि विभिन्न मुखौटा कंपनियों को कर्ज दिया जिसे इन कंपनियों ने दूसरी कंपनियों के जरिये इंडियाबुल्स प्रवर्तकों के खातों में पहुंचा दिया.

रोहतगी ने इसका कड़ा विरोध करते हुये कहा, "कौन मूर्ख होगा जो कि बिना गारंटी के 4,600 करोड़ रुपये का कर्ज देगा?" उन्होंने कहा कि जो भी कर्ज दिया गया वह पूरी तरह से सुरक्षित था और 3,000 करोड़ रुपये से अधिक इसे वापस भुगतान कर दिया गया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि एनजीओ आरोप बिना उचित छानबीन किये लगा रहा है और वह पूरी तरह से भाजपा सांसद सुब्रमणियम स्वामी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र पर निर्भर लगता है. इस पत्र में सुब्रमणियम स्वामी ने इंडियाबुल्स समूह में धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया है.

स्वामी ने जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र को सार्वजनिक किया जिसमें इंडियाबुल्स समूह पर एनएचबी से एक लाख करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया है. गैर- सरकारी संगठन ने अदालत से कारपोरेट कार्य मंत्रालय को इंडियाबुल्स की कथित अनियमितताओं के मामले में एसएफआईओ से जांच कराने का आदेश देने का आग्रह किया है.

इस एनजीओ के सदस्यों में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायामिर्ति ए पी शाह, पूर्व मुख्य नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण शामिल हैं. एनजीओ की याचिका में इसके अलावा अदालत से रिजर्व बैंक और एनएचबी को भी इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड की वित्तीय अनियमितताओं की जांच कराने और विशेष आडिट कराने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक गैर- सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर जनहित याचिका में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईबीएचएफएल) के खिलाफ लगाये वित्तीय अनियमितताओं, धन की हेराफेरी और दूसरे नियमों के उल्लंघन के आरोपों की जांच का फैसला किया है और इस संबंध में केन्द्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को नोटिस जारी किये हैं.

मुख्य न्यायधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरी शंकर की पीठ ने एनजीओ की जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार, रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को इस संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.

अदालत ने याचिका पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ), कंपनी रजिस्ट्रार और इंडिया बुल्स समूह के संस्थापक और चेयरमैन समीर गेहलात को भी नोटिस जारी किये गये हैं.

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उच्च न्यायालय की पीठ ने इन सभी को 13 दिसंबर तक अपने जवाब दाखिल करने को कहा है. इसी दिन मामले की सुनवाई की अगली तारीख है. पीठ ने मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद ही नोटिस जारी करने का फैसला किया. मामले में कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी तथा एनजीओ की तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील पेश की.

रोहतगी ने अदालत से आग्रह कि मामले में नोटिस जारी नहीं किया जाये और वह नोटिस के बिना ही जवाब देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि एक बार नोटिस जारी होने पर, इसके बारे में समाचार चैनलों में बताया जायेगा और इससे कंपनी के शेयर मूल्यों पर बुरा प्रभाव पड़गा.

हालांकि, पीठ ने इससे सहमति नहीं जताई. संक्षिप्त बहस के दौरान गैर- सरकारी संगठन सिटीजंस व्हीसल ब्लोअर फोरम ने अदालत से कहा कि इंडियाबुल्स ने कथित रूप से 4,600 करोड़ रुपये की राशि विभिन्न मुखौटा कंपनियों को कर्ज दिया जिसे इन कंपनियों ने दूसरी कंपनियों के जरिये इंडियाबुल्स प्रवर्तकों के खातों में पहुंचा दिया.

रोहतगी ने इसका कड़ा विरोध करते हुये कहा, "कौन मूर्ख होगा जो कि बिना गारंटी के 4,600 करोड़ रुपये का कर्ज देगा?" उन्होंने कहा कि जो भी कर्ज दिया गया वह पूरी तरह से सुरक्षित था और 3,000 करोड़ रुपये से अधिक इसे वापस भुगतान कर दिया गया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि एनजीओ आरोप बिना उचित छानबीन किये लगा रहा है और वह पूरी तरह से भाजपा सांसद सुब्रमणियम स्वामी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र पर निर्भर लगता है. इस पत्र में सुब्रमणियम स्वामी ने इंडियाबुल्स समूह में धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया है.

स्वामी ने जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र को सार्वजनिक किया जिसमें इंडियाबुल्स समूह पर एनएचबी से एक लाख करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया है. गैर- सरकारी संगठन ने अदालत से कारपोरेट कार्य मंत्रालय को इंडियाबुल्स की कथित अनियमितताओं के मामले में एसएफआईओ से जांच कराने का आदेश देने का आग्रह किया है.

इस एनजीओ के सदस्यों में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायामिर्ति ए पी शाह, पूर्व मुख्य नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण शामिल हैं. एनजीओ की याचिका में इसके अलावा अदालत से रिजर्व बैंक और एनएचबी को भी इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड की वित्तीय अनियमितताओं की जांच कराने और विशेष आडिट कराने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.

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इंडियाबुल्स के खिलाफ आरोपों की जांच याचिका पर उच्च न्यायालय ने केन्द्र, आरबीआई से मांगा जवाब

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक गैर- सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर जनहित याचिका में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईबीएचएफएल) के खिलाफ लगाये वित्तीय अनियमितताओं, धन की हेराफेरी और दूसरे नियमों के उल्लंघन के आरोपों की जांच का फैसला किया है और इस संबंध में केन्द्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को नोटिस जारी किये हैं. 

मुख्य न्यायधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरी शंकर की पीठ ने एनजीओ की जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार, रिजर्व बैंक और इंडियाबुल्स को इस संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है. 

अदालत ने याचिका पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ), कंपनी रजिस्ट्रार और इंडिया बुल्स समूह के संस्थापक और चेयरमैन समीर गेहलात को भी नोटिस जारी किये गये हैं. 

उच्च न्यायालय की पीठ ने इन सभी को 13 दिसंबर तक अपने जवाब दाखिल करने को कहा है. इसी दिन मामले की सुनवाई की अगली तारीख है. पीठ ने मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद ही नोटिस जारी करने का फैसला किया. मामले में कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी तथा एनजीओ की तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील पेश की. 

रोहतगी ने अदालत से आग्रह कि मामले में नोटिस जारी नहीं किया जाये और वह नोटिस के बिना ही जवाब देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि एक बार नोटिस जारी होने पर, इसके बारे में समाचार चैनलों में बताया जायेगा और इससे कंपनी के शेयर मूल्यों पर बुरा प्रभाव पड़गा. 

हालांकि, पीठ ने इससे सहमति नहीं जताई. संक्षिप्त बहस के दौरान गैर- सरकारी संगठन सिटीजंस व्हीसल ब्लोअर फोरम ने अदालत से कहा कि इंडियाबुल्स ने कथित रूप से 4,600 करोड़ रुपये की राशि विभिन्न मुखौटा कंपनियों को कर्ज दिया जिसे इन कंपनियों ने दूसरी कंपनियों के जरिये इंडियाबुल्स प्रवर्तकों के खातों में पहुंचा दिया. 

रोहतगी ने इसका कड़ा विरोध करते हुये कहा, "कौन मूर्ख होगा जो कि बिना गारंटी के 4,600 करोड़ रुपये का कर्ज देगा?" उन्होंने कहा कि जो भी कर्ज दिया गया वह पूरी तरह से सुरक्षित था और 3,000 करोड़ रुपये से अधिक इसे वापस भुगतान कर दिया गया है. 

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि एनजीओ आरोप बिना उचित छानबीन किये लगा रहा है और वह पूरी तरह से भाजपा सांसद सुब्रमणियम स्वामी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र पर निर्भर लगता है. इस पत्र में सुब्रमणियम स्वामी ने इंडियाबुल्स समूह में धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया है. 

स्वामी ने जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र को सार्वजनिक किया जिसमें इंडियाबुल्स समूह पर एनएचबी से एक लाख करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया है. गैर- सरकारी संगठन ने अदालत से कारपोरेट कार्य मंत्रालय को इंडियाबुल्स की कथित अनियमितताओं के मामले में एसएफआईओ से जांच कराने का आदेश देने का आग्रह किया है. 

इस एनजीओ के सदस्यों में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायामिर्ति ए पी शाह, पूर्व मुख्य नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण शामिल हैं. एनजीओ की याचिका में इसके अलावा अदालत से रिजर्व बैंक और एनएचबी को भी इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड की वित्तीय अनियमितताओं की जांच कराने और विशेष आडिट कराने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.

 


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Last Updated : Oct 2, 2019, 7:00 AM IST
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