नई दिल्ली: वित्त विधेयक 2017 के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ बुधवार को सुनवाई की.
सुप्रीम कोर्ट ने वित्त विधेयक 2017 को मनी बिल की तरह संसद में पारित किए जाने को सही माना. याचिका में कहा गया था कि ट्रिब्यूनलों में सदस्य की नियुक्ति समेत व्यवस्था तय करने वाले नियम वित्त विधेयक की तरह पेश नहीं हो सकते थे. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल से जुड़े नियमों में बदलाव वाले सेक्शन को निरस्त कर दिया. सरकार से दोबारा नियम बनाने को कहा. वित्त विधेयक 2017 के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मनी बिल मामले को बड़ी पीठ को भेजा.
न्यायालय ने वित्त विधेयक 2017 की धारा 184 को बहाल रखा जिसके तहत केंद्र सरकार के पास न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों, बर्खास्तगी, और सेवा की शर्तों आदि तय करने का अधिकार है. हालांकि उसने न्यायाधिकरणों, अपीलीय न्यायाधिकरण (योग्यता, अनुभव, सदस्यों की सेवा शर्तें ) संबंधी नियम 2017 को निरस्त कर दिया.
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इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने वित्त अधिनियम 2017 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था.
वहीं, पिछली सुनवाई के दौरान दो अप्रैल को केन्द्र ने वित्त विधेयक, 2017 के धन विधेयक के रूप में प्रमाणीकरण को सुप्रीम कोर्ट में न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि इसके प्रावधानों में न्यायाधिकरणों के सदस्यों को भुगतान किये जाने वाले वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से आते हैं.
इस कानून को चुनौती देते हुए कहा गया था कि संसद ने इसे धन विधेयक के रूप में पारित किया है.पीठ ने कहा था कि इस मामले में फैसला बाद में सुनाया जायेगा.संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल थे.
क्या है मामला
बता दें कि 22 मार्च 2017 में मोदी सरकार ने लोक सभा में वित्त विधेयक 2017 पारित किया था. जिसके बाद से इस विपक्ष ने इस विधेयक से जुड़े प्रावधानों विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया था.
क्या है धन विधेयक
संविधान के अनुच्छेद 110 (1) के तहत मनी बिल वो विधेयक होता है जिसमें केवल धन से जुड़े हुए प्रस्ताव हों. इसके तहत राजस्व और खर्च से जुड़े हुए मामले आते हैं. ऐसे विधेयकों पर राज्य सभा में चर्चा तो हो सकती है लेकिन उस पर कोई वोटिंग नहीं हो सकती.