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बंद होने की कगार पर है अररिया का जूट व्यवसाय, केंद्रीय बजट पर टिकी हैं व्यवसाईयों की नजर

एक समय था जब अररिया को जूट का कटोरा कहा जाता था. अब किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती करने लगे हैं. क्योंकि किसानों को उन्नत रेशेदार जूट का सही मूल्य नहीं मिल रहा था.

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Published : Jul 4, 2019, 11:46 AM IST

जूट व्यवसाय

अररियाः नेपाल की तराई में बसा सीमांचल का सबसे पिछड़ा जिला अररिया एक समय जूट की खेती के लिए जाना जाता था. यहां बड़े-बड़े मिल थे, जो अब बंद होने की कगार पर हैं. सरकार के उदासीनता रवैए की वजह से जूट व्यवसाय यहां से खत्म हो रहा है. लेकिन आगामी पांच जुलाई को केंद्र सरकार के पेश होने वाले बजट से यहां के जूट व्यवसायियों को काफी उम्मीदें है.

मक्के की खेती में जुट गए किसान

एक समय था जब अररिया को जूट का कटोरा कहा जाता था. अब किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती करने लगे हैं. क्योंकि किसानों को उन्नत रेशेदार जूट का सही मूल्य नहीं मिल रहा था. सहारा जूट मिल के बंद हो जाने के कारण भी किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती में जुट गए. मक्के की खेती में कम मेहनत और तय समय पर उचित मूल्य से दोगुना फायदा होने लगा. मक्के की खेती के सीजन में किसान अपने घर पर होते हैं. इसके बाद सीजन खत्म होते ही दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं. जहां काम कर वह परिवार की जिन्दगी चलाते हैं.

jute
मिल में पड़ा जूट

क्या है जूट व्यापारी का कहना

अररिया के जूट व्यापारी राजू केडिया बताते हैं कि सरकार इस व्यवसाय पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. जिस वजह से ये व्यापार धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर है. जूट की खेती में किसान को भी मेहनत ज़्यादा करनी पड़ती है और उससे मुनाफ़ा कम होता है. जूट की सबसे ज़्यादा सप्लाई बिहार से कोलकाता में की जाती है. जहां जूट का 70 मिल हुआ करता था अब वो 40 हो गया है. अगर सरकार कोई सही फैसला नहीं लेती है तो यह पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.

jute
जूट की खेती

इस बार के बजट से है पूरी उम्मीद

जूट व्यवसायियों का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अपनी हैं, इस बार जो केन्द्र सरकार बजट पेश करने जा रही है, उससे पूरी उम्मीद है इस पर ध्यान जरूर होगा. पॉलीथिन बैन पर सरकार का घोलमोल रवैया जूट व्यवसाय के लिए ज़्यादा नुकसान दे रहा है. सरकार यह जान रही है कि पर्यावरण के लिए प्लस्टिक की थैली नुकसान है. इसके बावजूद पॉलीथिन बैन होने पर भी धड़ल्ले से उसका इस्तेमाल किया जा रहा है. पॉलीथिन बैन अगर सही से लागू हो तो जूट के बने थैलों का ज्यादा इस्तेमाल होगा.

स्पेशल रिपोर्ट

मजदूरों का रुकेगा पलायन

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यहां जूट व्यवसाय फिर से फलने-फूलने लगे तो, इससे जिले के मजदूरों का पलायन भी रुकेगा, साथ ही लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होगा. जिससे जिले के विकास को भी गति मिलेगी. बहरहाल, अब देखना ये है कि सरकार के इस बजट में जूट व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए बिहार को क्या सौगात मिलती है.

अररियाः नेपाल की तराई में बसा सीमांचल का सबसे पिछड़ा जिला अररिया एक समय जूट की खेती के लिए जाना जाता था. यहां बड़े-बड़े मिल थे, जो अब बंद होने की कगार पर हैं. सरकार के उदासीनता रवैए की वजह से जूट व्यवसाय यहां से खत्म हो रहा है. लेकिन आगामी पांच जुलाई को केंद्र सरकार के पेश होने वाले बजट से यहां के जूट व्यवसायियों को काफी उम्मीदें है.

मक्के की खेती में जुट गए किसान

एक समय था जब अररिया को जूट का कटोरा कहा जाता था. अब किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती करने लगे हैं. क्योंकि किसानों को उन्नत रेशेदार जूट का सही मूल्य नहीं मिल रहा था. सहारा जूट मिल के बंद हो जाने के कारण भी किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती में जुट गए. मक्के की खेती में कम मेहनत और तय समय पर उचित मूल्य से दोगुना फायदा होने लगा. मक्के की खेती के सीजन में किसान अपने घर पर होते हैं. इसके बाद सीजन खत्म होते ही दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं. जहां काम कर वह परिवार की जिन्दगी चलाते हैं.

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मिल में पड़ा जूट

क्या है जूट व्यापारी का कहना

अररिया के जूट व्यापारी राजू केडिया बताते हैं कि सरकार इस व्यवसाय पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. जिस वजह से ये व्यापार धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर है. जूट की खेती में किसान को भी मेहनत ज़्यादा करनी पड़ती है और उससे मुनाफ़ा कम होता है. जूट की सबसे ज़्यादा सप्लाई बिहार से कोलकाता में की जाती है. जहां जूट का 70 मिल हुआ करता था अब वो 40 हो गया है. अगर सरकार कोई सही फैसला नहीं लेती है तो यह पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.

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जूट की खेती

इस बार के बजट से है पूरी उम्मीद

जूट व्यवसायियों का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अपनी हैं, इस बार जो केन्द्र सरकार बजट पेश करने जा रही है, उससे पूरी उम्मीद है इस पर ध्यान जरूर होगा. पॉलीथिन बैन पर सरकार का घोलमोल रवैया जूट व्यवसाय के लिए ज़्यादा नुकसान दे रहा है. सरकार यह जान रही है कि पर्यावरण के लिए प्लस्टिक की थैली नुकसान है. इसके बावजूद पॉलीथिन बैन होने पर भी धड़ल्ले से उसका इस्तेमाल किया जा रहा है. पॉलीथिन बैन अगर सही से लागू हो तो जूट के बने थैलों का ज्यादा इस्तेमाल होगा.

स्पेशल रिपोर्ट

मजदूरों का रुकेगा पलायन

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यहां जूट व्यवसाय फिर से फलने-फूलने लगे तो, इससे जिले के मजदूरों का पलायन भी रुकेगा, साथ ही लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होगा. जिससे जिले के विकास को भी गति मिलेगी. बहरहाल, अब देखना ये है कि सरकार के इस बजट में जूट व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए बिहार को क्या सौगात मिलती है.

Intro:सरकार के उदासीन रवैए की वजह से जूट व्यवसाय ख़त्म होने के कगार पर है, आगामी पांच जुलाई को केंद्र सरकार के दुवारा पेश होने वाले बजट से जूट व्यवसाय को काफ़ी उम्मीद है। केंद्र और राज्य दोनों सरकार अपना है, इससे ज़िले के मजदूरों का पलायन भी रुकेगा, साथ ही लोगों को रोज़गार का अवसर प्राप्त होगा। जिससे ज़िले के विकास को भी गति मिलेगा। जूट की खेती में किसान को मेहनत ज़्यादा करना पड़ता था और उससे मुनाफ़ा कम होता है।


Body:नेपाल की तराई में बसा बिहार के सीमांचल का सबसे पिछड़ा ज़िला अररिया जहां एक समय जूट की खेती बहुत ज़्यादा हुआ करता था। यहां बड़े बड़े मिल थे जो अब बंद पड़ा है या जो खुला है वो बंद होने के कगार पर है। एक वक़्त था जब बिहार को जूट का कटोरा कहा जाता था। उन्नत रेशेदार जूट का सही मूल्य नहीं मिलने तथा सहारा जूट मिल के बंद हो जाने से किसान जूट की खेती छोड़ मक्के की खेती करने लगा कम मेहनत और तय समय पर उचित मूल्य से दोगुना फ़ायदा होने लगा साथ ही मक्के की खेती के सीजन में किसान अपने घर पर होते हैं और सीजन ख़त्म होने के बाद दूसरे राज्य में पलायन कर काम कर परिवार का ज़िन्दगी चलाते हैं। अररिया के जूट व्यापारी राजू केडिया बताते हैं कि सरकार इस व्यवसाय पर कोई ध्यान नहीं दे रही है जिस वजह से ये व्यापार धीरे धीरे ख़त्म होने के कगार पर है। जूट का सबसे ज़्यादा सप्लाई बिहार से कोलकाता किया जाता है जहां जूट की 70 मिल हुआ करती है पर अब वो 40 पर जा अटका है। अगर सरकार इसी तरह से सरकार तय वक़त पर कोई सही फैसला नहीं लेती है तो यह पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। इस बार जो केन्द्र सरकार बजट पेश करने जा रही है उससे पूरी उम्मीद है हम व्यवसायियों को की इस पर ध्यान जरूर होगा। पॉलीथिन बैन पर सरकार का घोलमोल रवैया जूट व्यवसाय के लिए ज़्यादा नुकसान दे रहा है एक ओर सरकार यह जान रही है कि पर्यावरण के लिए प्लस्टिक की थैली नुकसान है उसके बावजूद पॉलीथिन बैन होने पर भी धड़ल्ले से उसका इस्तेमाल किया जा रहा है।


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