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ग्राउंड रिपोर्ट: 970 स्कूलों की स्थिति बदहाल, अनजान बना है शिक्षा विभाग

पूर्णिया शहर से सटे सिपाही टोला स्थित जगदम्बा स्मारक मध्य विद्यालय का हाल बेहाल है. बुनियादी सुविधाओं से महरूम इस विद्यालय में पंखे, बेंच और शौचालय बिना बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं

स्कूलों की स्थिति बदहाल
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Published : May 28, 2019, 9:20 AM IST

Updated : May 28, 2019, 11:40 AM IST

पूर्णिया: चुनावी सभाओं के दौरान सीएम नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को फर्श से अर्श तक पहुंचाने की बात कहते नजर आए थे. लेकिन ईटीवी भारत की पड़ताल में जिले के सरकारी विद्यालयों की जो जमीनी हकीकत सामने आई है. वह बेहद चौंकाने वाली है. जिले के 970 मध्य विद्यालयों में से अब भी ज्यादातर स्कूल ऐसे हैं जहां जिले के तकरीबन 2 लाख बच्चों को अब तक न बैठने को बेंच मिला है, न बल्ब और न ही पंखे.

शौचालय का व्यवस्था नहीं

यहां छात्राओं के लिए शौचालय का भी व्यवस्था नहीं है. हैरत की बात तो ये है कि बदहाली पर आसूं बहा रहा यह सरकारी विद्यालय कहीं और नहीं बल्कि जिला मुख्यालय में ही स्थित है.

पेश है रिपोर्ट

बच्चे बोरे पर बैठकर पढ़ने को मजबूर

शहर से सटे सिपाही टोला स्थित जगदम्बा स्मारक मध्य विद्यालय में मेज भी नहीं है. बच्चे बोरे पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. एक से आठवीं तक के इस माध्यमिक विद्यालय में बेतहाशा गर्मी के बावजूद न तो यहां पंखे हैं, न ही बेंच. वहीं जिले के 300 से अधिक विद्यालय ऐसे हैं जहां बुनियादी सुविधाओं के भी लाले पड़े है.

फर्श भी हैं टूटे -फूटे
स्टूडेंट्स के मुताबिक बेंच और डेस्क न होने की वजह से इन्हें अपने नाजुक कंधों पर बैग के साथ बोरे भी लाने पड़ते हैं. टूटा -फूटा फर्श भी इनके लिए बड़ी समस्या है.144 छात्राओं के विद्यालय में न तो चाहरदीवारी न ही शौचालय.

विद्यालय में चाहरदीवारी नहीं
शिक्षा अमले से मिले आंकड़ों पर अपनी नजर दौड़ाए तो महज मध्य विद्यालय ही नहीं बल्कि 50 से भी अधिक ऐसे उच्च विद्यालय हैं जहां चाहरदीवारी नहीं हैं. बहरहाल सरकारी अमला क्यों न खुले में शौच से मुक्ती के टारगेट को टच करने के ताल ठोक रहा हो, मगर असल में इन योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है, जगदम्बा मध्य विद्यालय इसका जीता-जागता उदाहरण है.

विद्यालय के खाते में नहीं आई राशि
वर्ष 2015-16 के लिए कुल 19 बेंच, डेस्क लगाए जाने को लेकर 57 हजार रूपये की राशि सरकारी विद्यालयों के लिए आई. मगर हैरत की बात यह है कि लगभग 3 साल गुजरने को हैं लेकिन मध्य विद्यालय के खाते में आने वाली उपकरण की राशि के दर्शन दुर्लभ हैं. लिहाजा अब तक जिले के ज्यादातर मध्य विद्यालयों के बच्चों को बेंच के बजाए बोरे पर ही अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ रही है.

अभी तक सिलेबस की भी शुरुआत नहीं
वहीं स्टूडेंट्स की मानें तो शिक्षक तो यहां पूरी ईमानदारी से पढ़ाते हैं मगर आधा से अधिक माह गुजरने के बावजूद इनके खाते में किताब की राशि नहीं आने से अभीतक सिलेबस की शुरुआती नहीं हो सकी है

'शिक्षा महकमा जल्द ही इस मामले पर लेगा संज्ञान'
इस मामले पर सफाई देते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी श्याम बाबू राम ने कहा कि बेंच,पंखे और बुनियादी सुविधाओं को लेकर विद्यालयों की ओर से जो शिकायतें आई हैं, जिले का शिक्षा महकमा जल्द ही इसपर पहल करेगा. ऐसे बदहाल विद्यालयों को डोनेशन दिए जाने की दिशा में समाज के संपन्न लोगों से अपील किये जाएंगे.

स्कूलों का होना चाहिये औचक निरीक्षण
बहरहाल एक ओर जहां सूबे के सीएम नीतीश कुमार सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की खूबियां गिनाकर विपक्ष पर बिफरते दिखते हैं, जमीनी तौर पर बच्चों के भविष्य की खातिर उन्हें दो वक्त निकालकर जगदम्बा मध्य विद्यालय जैसे स्कूलों की औचक निरीक्षण करना चाहिये ताकि सरकारी स्कूली की सूरत और सीरत बदली जा सके.

पूर्णिया: चुनावी सभाओं के दौरान सीएम नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को फर्श से अर्श तक पहुंचाने की बात कहते नजर आए थे. लेकिन ईटीवी भारत की पड़ताल में जिले के सरकारी विद्यालयों की जो जमीनी हकीकत सामने आई है. वह बेहद चौंकाने वाली है. जिले के 970 मध्य विद्यालयों में से अब भी ज्यादातर स्कूल ऐसे हैं जहां जिले के तकरीबन 2 लाख बच्चों को अब तक न बैठने को बेंच मिला है, न बल्ब और न ही पंखे.

शौचालय का व्यवस्था नहीं

यहां छात्राओं के लिए शौचालय का भी व्यवस्था नहीं है. हैरत की बात तो ये है कि बदहाली पर आसूं बहा रहा यह सरकारी विद्यालय कहीं और नहीं बल्कि जिला मुख्यालय में ही स्थित है.

पेश है रिपोर्ट

बच्चे बोरे पर बैठकर पढ़ने को मजबूर

शहर से सटे सिपाही टोला स्थित जगदम्बा स्मारक मध्य विद्यालय में मेज भी नहीं है. बच्चे बोरे पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. एक से आठवीं तक के इस माध्यमिक विद्यालय में बेतहाशा गर्मी के बावजूद न तो यहां पंखे हैं, न ही बेंच. वहीं जिले के 300 से अधिक विद्यालय ऐसे हैं जहां बुनियादी सुविधाओं के भी लाले पड़े है.

फर्श भी हैं टूटे -फूटे
स्टूडेंट्स के मुताबिक बेंच और डेस्क न होने की वजह से इन्हें अपने नाजुक कंधों पर बैग के साथ बोरे भी लाने पड़ते हैं. टूटा -फूटा फर्श भी इनके लिए बड़ी समस्या है.144 छात्राओं के विद्यालय में न तो चाहरदीवारी न ही शौचालय.

विद्यालय में चाहरदीवारी नहीं
शिक्षा अमले से मिले आंकड़ों पर अपनी नजर दौड़ाए तो महज मध्य विद्यालय ही नहीं बल्कि 50 से भी अधिक ऐसे उच्च विद्यालय हैं जहां चाहरदीवारी नहीं हैं. बहरहाल सरकारी अमला क्यों न खुले में शौच से मुक्ती के टारगेट को टच करने के ताल ठोक रहा हो, मगर असल में इन योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है, जगदम्बा मध्य विद्यालय इसका जीता-जागता उदाहरण है.

विद्यालय के खाते में नहीं आई राशि
वर्ष 2015-16 के लिए कुल 19 बेंच, डेस्क लगाए जाने को लेकर 57 हजार रूपये की राशि सरकारी विद्यालयों के लिए आई. मगर हैरत की बात यह है कि लगभग 3 साल गुजरने को हैं लेकिन मध्य विद्यालय के खाते में आने वाली उपकरण की राशि के दर्शन दुर्लभ हैं. लिहाजा अब तक जिले के ज्यादातर मध्य विद्यालयों के बच्चों को बेंच के बजाए बोरे पर ही अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ रही है.

अभी तक सिलेबस की भी शुरुआत नहीं
वहीं स्टूडेंट्स की मानें तो शिक्षक तो यहां पूरी ईमानदारी से पढ़ाते हैं मगर आधा से अधिक माह गुजरने के बावजूद इनके खाते में किताब की राशि नहीं आने से अभीतक सिलेबस की शुरुआती नहीं हो सकी है

'शिक्षा महकमा जल्द ही इस मामले पर लेगा संज्ञान'
इस मामले पर सफाई देते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी श्याम बाबू राम ने कहा कि बेंच,पंखे और बुनियादी सुविधाओं को लेकर विद्यालयों की ओर से जो शिकायतें आई हैं, जिले का शिक्षा महकमा जल्द ही इसपर पहल करेगा. ऐसे बदहाल विद्यालयों को डोनेशन दिए जाने की दिशा में समाज के संपन्न लोगों से अपील किये जाएंगे.

स्कूलों का होना चाहिये औचक निरीक्षण
बहरहाल एक ओर जहां सूबे के सीएम नीतीश कुमार सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की खूबियां गिनाकर विपक्ष पर बिफरते दिखते हैं, जमीनी तौर पर बच्चों के भविष्य की खातिर उन्हें दो वक्त निकालकर जगदम्बा मध्य विद्यालय जैसे स्कूलों की औचक निरीक्षण करना चाहिये ताकि सरकारी स्कूली की सूरत और सीरत बदली जा सके.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया) चुनावी सभाओं के दौरान सीएम नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को फर्श से अर्श तक पहुंचाने की बात कहते नजर आए थे। मगर ईटीवी भारत के पड़ताल में जिले के सरकारी विद्यालयों की जो जमीनी हकीकत सामने आई है। वह बेहद चौकाने वाली है। जिले के 970 मध्य विद्यालयों में से अब भी ज्यादातर स्कूल ऐसे हैं। जहां जिले के तकरीबन 2 लाख बच्चों को सुशासन के इन 14 सालों बाद भी अब तक न बैठने को बेंच मिल सका। न बल्ब या बिजली के पंखे। और ना ही बन सका लड़कियों के लिए सुरक्षित शौचालय। हैरत की बात यह है। कि बदहाली पर आसूं बहा रहा यह सरकारी विद्यालय कहीं और नहीं बल्कि जिला मुख्यालय में ही स्थित है। पेश है पूर्णिया से ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव पड़ताल ।


Body:दरअसल अस्पताल के बाद बारी थी सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाओं के पड़ताल की। लिहाजा सरकारी स्कूलों की इंफ्रास्ट्रक्चर की हकीकत तलाशने ईटीवी भारत आज जैसे ही शहर से लगे सिपाही टोला स्थित जगदम्ब स्मारक मध्य विद्यालय पहुंचा। बदहाली पर आंसू बहा रहे इस विद्यालय की जो तस्वीर सामने आई। वह चौकाने वाली है। स्कूल में मेज नहीं सो बैग संग कंधे पर लाद लाते हैं बोरे..... 244 स्टूडेंट्स के वर्ग एक से आठवीं तक के इस माध्यमिक विद्यालय में बेतहाशा गर्मी के बावजूद न तो यहां पंखे हैं। न ही बेंच। वहीं जिले के 300 से अधिक विद्यालय ऐसे हैं जहां बुनियादी सुविधाओं के भी लाले पड़े है। स्कूली स्टूडेंट्स के मुताबिक बेंच और डेस्क न होना ही एक बड़ी वजह है कि इन्हें अपने नाजुक कंधों पर बैग के साथ ही बोरे भी लादना पड़ता है। ईटीवी भारत यहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के तकलीफों के तह तक गई। तो बेंच व डेस्क न होना इनकी एक बड़ी परेशानी नहीं। बल्कि टूटे -फूटे फर्श उससे भी कहीं बड़ी समस्या है। यही कारण है बोरे बिछाने के बावजूद अधिक ऊबड़खाबड़ सतह के चलते कॉपी अंदर तक चली जाती है। नतीजतन कई दफे पेन या पेंसिल का लिखने वाला नाजुक हिस्सा टूट जाता है। 144 छात्राओं के विद्यालय में न चाहरदीवारी न शौचालय... शिक्षा अमले से मिले आंकड़ों पर अपनी नजर दौड़ाए तो महज मध्य विद्यालय ही नहीं बल्कि 50 से भी अधिक ऐसे उच्च विद्यालय हैं जहां चाहरदीवारी नहीं। वहीं जगदम्बा मध्य विद्यालय में कुल 135 छात्राएं हैं। ताज्जुब करती छात्राओं के बयानों पर गौर करें। तो चाहरदीवारी न होने की वजह से ही वे कक्षा से बाहर नहीं जाती। वहीं सेपरेट शौचालय न होना भी रोजाना विद्यालय न आना। जिले के बालिकाओं की एक बड़ी समस्या है। बहरहाल सरकारी अमला क्यों न खुले में शौच से मुक्ती के टारगेट को टच करने के ताल ठोक रहा हो। मगर असल में इन योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है। जगदम्बा मध्य विद्यालय इसका जीता-जागता उदाहरण है। मेज के लिए तय है 57 हजार की राशि, 16 के बाद अब तक दर्शन दुर्लभ जिले के शिक्षा महकमे से हासिल हुए बदहाल विद्यालयों की एक फेहरिश्त पर एक नजर दौड़ाए। तो जिले में ऐसे 970 मध्य विद्यालय हैं। जिनमें से गिनती भर विद्यालयों के लिए तो वर्ष 2015-16 के लिए कुल 19 बेंच डेस्क लगाए जाने को लेकर 57 हजार रूपये की राशि सरकारी विद्यालयों के लिए आई। मगर हैरत की बात यह है कि 3 साल गुजरने को हैं। मध्य विद्यालय के खाते में आने वाली उपस्कर व उपकरण की राशि के दर्शन दुर्लभ हैं। लिहाजा अब तक जिले के ज्यादातर मध्य विद्यालयों के बच्चों को बेंच के बजाए बोरे पर ही अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ रही है। वहीं बेतहासा गर्मी से जहां समूचा देश जल रहा है। पंखा न होने से जिले के ज्यादातर मध्य विद्यालयों में पसीने से लथपथ इन बच्चों का गर्मी से हाल बेहाल है। आधे महीने गुरजें न खाते में आई राशि, न शुरू हो सका सिलेबस... वहीं विद्यालय में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की मानें तो शिक्षक तो यहां पूरी ईमानदारी से पढ़ाते हैं। मगर आधा से अधिक माह गुजरने के बावजूद इनके खाते में किताब की राशि नहीं आने से अब तक न तो सिलेबस के शुरुआती हो सकी है न चैप्टर के शुरुआती पन्ने पलटे जा सके हैं। बाजारों से किताबों का गायब होने भी इसकी एक बड़ी वजह है। क्या कहते हैं डीईओ.... वहीं इस समूचे मामले पर सफाई देते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी श्याम बाबू राम ने कहा कि बेंच, डेस्क ,पंखे व बुनियादी सुविधाओं को लेकर ऐसे विद्यालयों की ओर से जो शिकायतें आई हैं। जिले का शिक्षा महकमा जल्द ही इनका समाधान करेगा। वहीं श्याम बाबू राम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए। बेहद जल्द इस दिशा में व्यक्तिगत प्रयास करेंगे। वे इसके लिए ऐसे बदहाल विद्यालयों को डोनेशन दिए जाने की दिशा में समाज के संपन्न लोगों से अपील करेंगे। वहीं बच्चों व विद्यालय स्टाफ व शिक्षा महेकमें के स्टाफ के सहयोग से इसका निदान निकालने को ले जल्द ही मीटिंग करेंगे।


Conclusion:बहरहाल एक ओर जहां सूबे के सीएम नीतीश कुमार सरकारी स्कूली के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की खूबियां गिनाकर विपक्ष पर बिफरते दिख जाते हैं। बच्चों के भविष्य की खातिर दो वक्त निकालकर सीएम को जगदम्बा मध्य विद्यालय जैसे स्कूलों की औचक निरीक्षण की जरूरत है। ताकि सियासत के बजाए सरकारी स्कूली की सूरत और सीरत बदली जा सके। वरना जो जनता सियासतदानों को सत्ता के शीर्ष और सराखों पर बिठाना जानती है। पलक झपकते उसे सत्ता से बेदखल करते देर नहीं लगती।
Last Updated : May 28, 2019, 11:40 AM IST
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