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ऐसा रहा है LJP सुप्रीमो रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर

अपने सियासी करियर में एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. रामविलास पासवान ने इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. पहले से ही तय था कि वे राज्यसभा जाएंगे.

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Published : May 31, 2019, 12:07 AM IST

रामविलास पासवान

पटना: अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता से चुनावी परिणाम को समय से पहले भांपकर उसी हिसाब से फैसला लेने की कला में माहिर एलजेपी चीफ रामविलास पासवान एक बार फिर 'विजेता' बनकर उभरे हैं. उन्हें पीएम मोदी ने फिर से अपनी कैबिनेट में जगह दी है. वह कैबिनेट मंत्री बने हैं. रामविलास की पार्टी बिहार की 6 सीटों पर चुनाव लड़ी. परिणाम शत-प्रतिशत उनके पक्ष में आए.

राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक की उपाधि

अपने सियासी करियर में एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. रामविलास पासवान को 'मौसम वैज्ञानिक' का नाम उनके सबसे पुराने विरोधी और दोस्त से दुश्मन बने लालू यादव ने दिया था. पासवान चुनाव के एक साल पहले से यह भांपने का प्रयास करते हैं कि अब अगली बार केंद्र में किसकी सरकार आने वाली है. वे इसमें सफल भी होते रहे हैं.

शपथ ग्रहण लेते रामविलास पासवान.
पासवान का सियासी सफर



रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को खगड़िया जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी सियासत की शुरुआत साल 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी. वह पहला साल था जब उत्तर भारत में कांग्रेस विरोध का बीज फूटा था और सिर्फ 25 साल के पासवान हवा के रुख को भांपकर पहली बार में ही विधानसभा पहुंच गए. इसके बाद जब इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा तो वे जयप्रकाश नारायण और राजनारायण के बेहद करीब आए और 1977 में रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1980, 1989, 1996 1998, 1999, 2004 और 2014 में वे लोकसभा चुनाव जीते.

श्रम एवं कल्याण मंत्री (5 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990)

रेल मंत्री (1 जून 1996 से 19 मार्च 1998)

कम्युनिकेशन एवं इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्री (13 अक्टूबर 1999 से 1 सितंबर 2001)

खनन मंत्री (1 सितंबर 2001 से 29 अप्रैल 2002)

रसायन एवं उर्वरक मंत्री (23 मई 2004 से 22 मई 2009)

उपभोक्ता एवं खाद आपूर्ति मंत्री (26 मई 2014 से 24 मई 2019)

पासवान की अहमियत क्यों?



बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की काफी अहमियत है. बिहार की सियासी जमीन और रामविलास पासवान के महत्व को समझने वाले राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बिहार में पासवान मतदाताओं की संख्या करीब छह फ़ीसदी है. ऐसे में रामविलास, जहां जाएंगे करीब पांच फीसदी वोट उधर ही चल देगा.

दलित वोट बैंक पर अच्छी पकड़



ये भी समझिए कि हाजीपुर, समस्तीपुर, उजियारपुर, बेगूसराय, दरभंगा, सीतामढ़ी, मधेपूरा और मधुबनी में पासवान समुदाय बड़ी संख्या है. राज्य की 40 सीटों में कम से कम 15 सीटें ऐसी है जहां इस समुदाय के लोगों की संख्या 50 हजार से ज्यादा और दो लाख के करीब है. यही वजह है कि हर कोई रामविलास पासवान को अपने साथ जोड़े हुए रखना चाहता है.

एनडीए का सबसे पड़ा दलित चेहरा



राजनीतिक जानकार प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि चूकि एनडीए में कोई भी बड़ा दलित चेहरा रामविलास के अलावा नहीं है. इसलिए भी कैबिनेट में उनकी मौजूदगी जरूरी हो जाती है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं, इसलिए एनडीए और पीएम मोदी उनका महत्व बखूबी समझ रहे हैं. बिहार चुनाव के बाद हो सकता है कि चिराग को पिता की जगह मंत्री पद दे दिया जाए.

रविशंकर की जगह राज्यसभा जाएंगे पासवान!



रामविलास पासवान ने इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. पहले से ही तय था कि वे राज्यसभा जाएंगे. बीजेपी ने घोषणा की थी जहां पहले राज्यसभा की सीट खाली होगी, वहां से पासवान को ही मौका मिलेगा. पहले असम की बात थी, लेकिन अब चूकि रविशंकर प्रसाद पटना साहिब से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में एलजेपी ने बीजेपी से मांग की है कि रविशंकर प्रसाद के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट से पासवान को राज्यसभा भेजा जाए.

मोदी विरोध के नाम पर दिया इस्तीफा


2002 में गोधरा कांड के बाद जब पूरे गुजरात में दंगा हुआ था, तब रामविलास पासवान ने वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर एनडीए से ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया था कि 'हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.' उसके बाद वे कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा बन गए. 2004 में सरकार बनी तो मंत्री भी बने. 2009 में करारी हार के बाद लालू यादव की मदद से राज्यसभा के सांसद बने. 10 साल साथ रहने के बाद 2014 में चुनाव से ठीक पहले उस एनडीए में लौट आए, जिसका लीडर नरेंद्र मोदी थे.

पटना: अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता से चुनावी परिणाम को समय से पहले भांपकर उसी हिसाब से फैसला लेने की कला में माहिर एलजेपी चीफ रामविलास पासवान एक बार फिर 'विजेता' बनकर उभरे हैं. उन्हें पीएम मोदी ने फिर से अपनी कैबिनेट में जगह दी है. वह कैबिनेट मंत्री बने हैं. रामविलास की पार्टी बिहार की 6 सीटों पर चुनाव लड़ी. परिणाम शत-प्रतिशत उनके पक्ष में आए.

राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक की उपाधि

अपने सियासी करियर में एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. रामविलास पासवान को 'मौसम वैज्ञानिक' का नाम उनके सबसे पुराने विरोधी और दोस्त से दुश्मन बने लालू यादव ने दिया था. पासवान चुनाव के एक साल पहले से यह भांपने का प्रयास करते हैं कि अब अगली बार केंद्र में किसकी सरकार आने वाली है. वे इसमें सफल भी होते रहे हैं.

शपथ ग्रहण लेते रामविलास पासवान.
पासवान का सियासी सफर



रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को खगड़िया जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी सियासत की शुरुआत साल 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी. वह पहला साल था जब उत्तर भारत में कांग्रेस विरोध का बीज फूटा था और सिर्फ 25 साल के पासवान हवा के रुख को भांपकर पहली बार में ही विधानसभा पहुंच गए. इसके बाद जब इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा तो वे जयप्रकाश नारायण और राजनारायण के बेहद करीब आए और 1977 में रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1980, 1989, 1996 1998, 1999, 2004 और 2014 में वे लोकसभा चुनाव जीते.

श्रम एवं कल्याण मंत्री (5 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990)

रेल मंत्री (1 जून 1996 से 19 मार्च 1998)

कम्युनिकेशन एवं इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्री (13 अक्टूबर 1999 से 1 सितंबर 2001)

खनन मंत्री (1 सितंबर 2001 से 29 अप्रैल 2002)

रसायन एवं उर्वरक मंत्री (23 मई 2004 से 22 मई 2009)

उपभोक्ता एवं खाद आपूर्ति मंत्री (26 मई 2014 से 24 मई 2019)

पासवान की अहमियत क्यों?



बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की काफी अहमियत है. बिहार की सियासी जमीन और रामविलास पासवान के महत्व को समझने वाले राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बिहार में पासवान मतदाताओं की संख्या करीब छह फ़ीसदी है. ऐसे में रामविलास, जहां जाएंगे करीब पांच फीसदी वोट उधर ही चल देगा.

दलित वोट बैंक पर अच्छी पकड़



ये भी समझिए कि हाजीपुर, समस्तीपुर, उजियारपुर, बेगूसराय, दरभंगा, सीतामढ़ी, मधेपूरा और मधुबनी में पासवान समुदाय बड़ी संख्या है. राज्य की 40 सीटों में कम से कम 15 सीटें ऐसी है जहां इस समुदाय के लोगों की संख्या 50 हजार से ज्यादा और दो लाख के करीब है. यही वजह है कि हर कोई रामविलास पासवान को अपने साथ जोड़े हुए रखना चाहता है.

एनडीए का सबसे पड़ा दलित चेहरा



राजनीतिक जानकार प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि चूकि एनडीए में कोई भी बड़ा दलित चेहरा रामविलास के अलावा नहीं है. इसलिए भी कैबिनेट में उनकी मौजूदगी जरूरी हो जाती है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं, इसलिए एनडीए और पीएम मोदी उनका महत्व बखूबी समझ रहे हैं. बिहार चुनाव के बाद हो सकता है कि चिराग को पिता की जगह मंत्री पद दे दिया जाए.

रविशंकर की जगह राज्यसभा जाएंगे पासवान!



रामविलास पासवान ने इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. पहले से ही तय था कि वे राज्यसभा जाएंगे. बीजेपी ने घोषणा की थी जहां पहले राज्यसभा की सीट खाली होगी, वहां से पासवान को ही मौका मिलेगा. पहले असम की बात थी, लेकिन अब चूकि रविशंकर प्रसाद पटना साहिब से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में एलजेपी ने बीजेपी से मांग की है कि रविशंकर प्रसाद के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट से पासवान को राज्यसभा भेजा जाए.

मोदी विरोध के नाम पर दिया इस्तीफा


2002 में गोधरा कांड के बाद जब पूरे गुजरात में दंगा हुआ था, तब रामविलास पासवान ने वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर एनडीए से ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया था कि 'हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.' उसके बाद वे कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा बन गए. 2004 में सरकार बनी तो मंत्री भी बने. 2009 में करारी हार के बाद लालू यादव की मदद से राज्यसभा के सांसद बने. 10 साल साथ रहने के बाद 2014 में चुनाव से ठीक पहले उस एनडीए में लौट आए, जिसका लीडर नरेंद्र मोदी थे.

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पटना: अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता से चुनावी परिणाम को समय से पहले भांपकर उसी हिसाब से फैसला लेने की कला में माहिर एलजेपी चीफ रामविलास पासवान एक बार फिर 'विजेता' बनकर उभरे हैं. उन्हें पीएम मोदी ने फिर से अपनी कैबिनेट में जगह दी है. वह कैबिनेट मंत्री बने हैं. रामविलास की पार्टी बिहार की 6 सीटों पर चुनाव लड़ी. परिणाम शत-प्रतिशत उनके पक्ष में आए. 

राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक की उपाधि

अपने सियासी करियर में एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. रामविलास पासवान को 'मौसम वैज्ञानिक' का नाम उनके सबसे पुराने विरोधी और दोस्त से दुश्मन बने लालू यादव ने दिया था. पासवान चुनाव के एक साल पहले से यह भांपने का प्रयास करते हैं कि अब अगली बार केंद्र में किसकी सरकार आने वाली है. वे इसमें सफल भी होते रहे हैं.

पासवान का सियासी सफर

रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को खगड़िया जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी सियासत की शुरुआत साल 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी. वह पहला साल था जब उत्तर भारत में कांग्रेस विरोध का बीज फूटा था और सिर्फ 25 साल के पासवान हवा के रुख को भांपकर पहली बार में ही विधानसभा पहुंच गए. इसके बाद जब इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा तो वे जयप्रकाश नारायण और राजनारायण के बेहद करीब आए और 1977 में रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1980, 1989, 1996 1998, 1999, 2004 और 2014 में वे लोकसभा चुनाव जीते.

श्रम एवं कल्याण मंत्री (5 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990)

रेल मंत्री (1 जून 1996 से 19 मार्च 1998)

कम्युनिकेशन एवं इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्री (13 अक्टूबर 1999 से 1 सितंबर 2001)

खनन मंत्री (1 सितंबर 2001 से 29 अप्रैल 2002)

रसायन एवं उर्वरक मंत्री (23 मई 2004 से 22 मई 2009)

उपभोक्ता एवं खाद आपूर्ति मंत्री (26 मई 2014 से 24 मई 2019)

पासवान की अहमियत क्यों? 

बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की काफी अहमियत है. बिहार की सियासी जमीन और रामविलास पासवान के महत्व को समझने वाले राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बिहार में पासवान मतदाताओं की संख्या करीब छह फ़ीसदी है. ऐसे में रामविलास, जहां जाएंगे करीब पांच फीसदी वोट उधर ही चल देगा. 

दलित वोट बैंक पर अच्छी पकड़ 

ये भी समझिए कि हाजीपुर, समस्तीपुर, उजियारपुर, बेगूसराय, दरभंगा, सीतामढ़ी, मधेपूरा और मधुबनी में पासवान समुदाय बड़ी संख्या है. राज्य की 40 सीटों में कम से कम 15 सीटें ऐसी है जहां इस समुदाय के लोगों की संख्या 50 हजार से ज्यादा और दो लाख के करीब है. यही वजह है कि हर कोई रामविलास पासवान को अपने साथ जोड़े हुए रखना चाहता है. 

एनडीए का सबसे पड़ा दलित चेहरा

राजनीतिक जानकार प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि चूकि एनडीए में कोई भी बड़ा दलित चेहरा रामविलास के अलावा नहीं है. इसलिए भी कैबिनेट में उनकी मौजूदगी जरूरी हो जाती है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं, इसलिए एनडीए और पीएम मोदी उनका महत्व बखूबी समझ रहे हैं. बिहार चुनाव के बाद हो सकता है कि चिराग को पिता की जगह मंत्री पद दे दिया जाए.

रविशंकर की जगह राज्यसभा जाएंगे पासवान!

रामविलास पासवान ने इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. पहले से ही तय था कि वे राज्यसभा जाएंगे. बीजेपी ने घोषणा की थी जहां पहले राज्यसभा की सीट खाली होगी, वहां से पासवान को ही मौका मिलेगा. पहले असम की बात थी, लेकिन अब चूकि रविशंकर प्रसाद पटना साहिब से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में एलजेपी ने बीजेपी से मांग की है कि रविशंकर प्रसाद के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट से पासवान को राज्यसभा भेजा जाए.

मोदी विरोध के नाम पर दिया इस्तीफा

2002 में गोधरा कांड के बाद जब पूरे गुजरात में दंगा हुआ था, तब रामविलास पासवान ने वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर एनडीए से ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया था कि 'हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.' उसके बाद वे कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा बन गए. 2004 में सरकार बनी तो मंत्री भी बने. 2009 में करारी हार के बाद लालू यादव की मदद से राज्यसभा के सांसद बने. 10 साल साथ रहने के बाद 2014 में चुनाव से ठीक पहले उस एनडीए में लौट आए, जिसका लीडर नरेंद्र मोदी थे.


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