हैदराबाद: दिल्ली से जयपुर की दूरी करीब 250 किलोमीटर है. अगर सरकार की मानें तो जल्द ही दिल्ली से जयपुर की ये दूरी महज 2 घंटे की रह जाएगी. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ऐलान किया है कि भारत का पहला इलेक्ट्रिक हाइवे दिल्ली और जयपुर के बीच जल्द बनाने का प्रयास किया जाएगा. आखिर क्या है कि इलेक्ट्रिक हाइवे ? इस हाइवे से कैसे दो शहरों की दूरी होगी कम ? क्या दुनिया में इस जैसी कोई मिसाल है ? भारत में इस तरह के हाइवे बनाने में क्या समस्या है ?. ऐसे हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer)
क्या होता है इलेक्ट्रिक हाइवे ? (electric highway)
इलेक्ट्रिक हाइवे या ई-हाइवे, ऐसा हाइवे जिसपर इलेक्ट्रिक वाहन चलते हैं. हाइवे पर इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए कुछ दूरी पर चार्जिंग प्वाइंट बनाए जाएंगे. जहां इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने की सुविधा होगी. ठीक वैसे ही जैसे कि पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों के लिए हाइवे पर पेट्रोल पंप होते हैं, जहां से वाहनों में ईंधन भरवाया जा सकता है. देश का पहला ई-हाइवे दिल्ली से जयपुर के बीच बनाया जाएगा. जिसकी लंबाई करीब 200 किमी. होगी. हाइवे निर्माण के लिए स्वीडन की कंपनियों से बात चल रही है.
इलेक्ट्रिक ट्रेन की तर्ज पर बनेगा ई-हाइवे
क्या आप जानते हैं कि ट्रेन कैसे चलती है ? आपने ट्रेन के ऊपर एक इलेक्ट्रिक वायर देखी होगी. ट्रेन का इंजन एक आर्म के जरिये इस तार से जुड़ता है, जिससे बिजली मिलने पर ट्रेन चलती है. इसी तरह हाइवे पर भी इलेक्ट्रिक वायर लगाए जाएंगे और इस हाइवे पर चलने वाले वाहनों को इस वायर से बिजली मिलेगी. जिससे वाहन इस हाइवे पर रफ्तार भरेंगे. इस ई-हाइवे को दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के साथ ही एक नई लेन पर बनाया जाएगा. ये लेन पूरी तरह से इलेक्ट्रिक होगी और सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए होगी.
किस तकनीक से बनेगा भारत का ई-हाइवे ?
दुनिया में ई-हाइवे के निर्माण में तीन अलग-अलग तरह की तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत सरकार स्वीडन की कंपनियों से बात कर रही है, क्योंकि स्वीडन में जिस पेंटोग्राफ मॉडल को अपनाया है, वो भारत की ट्रेनों में इस्तेमाल हो रहा है और ये तकनीक भारत के हिसाब से मुफीद भी है.
पेंटोग्राफ मॉडल- इस तकनीक में हाइवे के ऊपर एक बिजली की तार लगाई जाती है. जैसा कि हमारे देश में ट्रेनों में इस्तेमाल होती है. एक पेटोग्राफ के जरिये इस तार से वाहन में बिजली की सप्लाई होगी. इससे सीधे इंजन को पावर मिलेगी या वाहन में लगी बैटरी चार्ज हो जाएगी. स्वीडन और जर्मनी में जो इलेक्ट्रिक वाहन इस्तेमाल होते हैं, उनमें हाइब्रिड इंजन होता है, यानी वे इलेक्ट्रिसिटी के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल से भी चल सकते हैं। ये तकनीक इसलिए भी भारत में कारगर हो सकती है.
इसके अलावा कंडक्शन मॉडल या इंडक्शन मॉडल से भी ई-हाइवे का निर्माण होता है. कंडक्शन मॉडल की तकनीक में सड़क के भीतर ही वायर लगा दी जाती है. यहां पेंटाग्राफ वाहन के ऊपर यानि छत पर नहीं बल्कि निचले हिस्से में लगा होता है और सड़क पर बिछे इलेक्ट्रिक वायर से जुड़ता है. वाहन को पेंटाग्राफ से बिजली मिलने पर वह रफ्तार पकड़ता है. वहीं इंडक्शन मॉडल में बिजली की तार का इस्तेमाल नहीं होता है. इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक करंट के जरिये वाहन तक बिजली सप्लाई पहुंचाई जाती है.
क्या ई-हाइवे पर आपकी कार भी चल पाएगी ?
स्वीडन या जर्मनी जैसे देशों में बने इलेक्ट्रिक या ई-हाइवे का इस्तेमाल लॉजिस्टिक ट्रांसपोर्ट के लिए होता है यानि सिर्फ ट्रक, सार्वजनिक परिवहन या अन्य बड़े वाहन ही ई-हाइवे पर लगी तारों से जुड़कर चलते हैं. कार या जीप जैसी इलेक्ट्रिक गाड़ियां भी हाइवे पर दौड़ती हैं लेकिन बिजली की डायरेक्ट सप्लाई सिर्फ बड़े वाहनों को मिलती है. यानि आप भी अपना निजी वाहन इस हाइवे पर दौड़ा सकते हैं लेकिन आपके पास इलेक्ट्रिक वाहन होना चाहिए. दिल्ली से जयपुर के बीच बनने वाले ई-हाइवे में भी ऐसा ही होगा.
दुनिया के इन देशों में है ई-हाईवे
स्वीडन दुनिया का पहला ऐसा देश बना जहां ई-हाइवे की शुरुआत हुई. स्वीडन ने साल 2016 में ई-हाइवे का परीक्षण शुरु किया और 2018 में ई-हाइवे शुरू कर दिया. करीब एक साल बाद साल 2019 में जर्मनी में भी इलेक्ट्रिक हाइवे की शुरुआत हुई. जर्मनी में 6 मील के ई-हाइवे के अलावा बसों के लिए वायरलेस इलेक्ट्रिक रोड बनाया गया है. जिनपर इलेक्ट्रिक वाहन दौड़ते हैं. स्वीडन में साल 2020 के अंत में पहले वायरलेस इलेक्ट्रिक रोड की शुरुआत हुई थी. स्वीडन और जर्मनी में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कई परियोजनाएं चल रही हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में भी ई-हाइवे का काम चल रहा है.
भारत में ई-हाइवे की राह में रोड़े
देश में फिलहाल पहला ई-हाइवे बनाने का ऐलान हुआ है लेकिन देश में इस तरह के हाइवे बनाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
- देश में ई-हाइवे के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती है. एक आम हाइवे के मुकाबले ई-हाइवे में ज्यादा खर्च आता है. खर्च से साथ इसमें वक्त भी लगता है. पूरे देश में इस तरह का नेटवर्क खड़ा करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी.
- इलेक्ट्रिक हाइवे पर चलने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का होना भी जरूरी है. देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के चाहने वाले बीते दो सालों में बढ़े तो हैं लेकिन इलेक्ट्रिक वाहन खरीदना महंगा सौदा है ऐसे में अभी ये ज्यादातर लोगों की पहुंच से दूर है. ऐसे में सरकारों को इसके लिए ऐसी नीति तैयार करनी होगी जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर लोगों का झुकाव बढ़े. क्योंकि पेट्रोल-डीजल वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों को लेने में बहुत वक्त लगेगा खासकर भारत जैसे देश में.
- डीजल-पेट्रोल के वाहनों को इलेक्ट्रिक में कन्वर्ट तो किया जा सकता है और नए वाहनों को लेकर भी नीतियां बनाई जा सकती हैं लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें कई तरह केमिकल का यूज होगा जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं.
ई-हाइवे से आपको क्या फायदा है ?
- ई-हाइवे बनने से दो शहरों के बीच दूरी कम होगी. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक दिल्ली से जयपुर की करीब 250 किमी. की दूरी सिर्फ 2 घंटे में तय होगी.
- ई-हाइवे बनने से इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा मिलेगा. जिससे पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों का बोझ आपकी जेब पर नहीं पड़ेगा.
- ई-हाइवे बनने से महंगाई भी कम होगी. ई-हाइवे पर रोजमर्रा की चीजों (दाल, चावल, आटा, सब्जियां, फल आदि) की ढुलाई पर कम खर्च आएगा. क्योंकि ये ट्रक पेट्रोल-डीजल से नहीं बल्कि इलेक्ट्रिसिटी से चलेंगे.
- सार्वजनिक परिवहन यानि बसें भी इन हाइवे पर चलेंगी तो आपको डीजल से चलने वाली बसों के मुकाबले टिकट पर कम पैसे खर्चने होंगे.
- इलेक्ट्रिक वाहनों और ई-हाइवे के विस्तार से पर्यावरण को भी फायदा होगा. पेट्रोल-डीजल के वाहनों से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण को हानि होती है.
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