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ट्रिब्यूनल में रिक्तियां को सुप्रीम कोर्ट ने बताया 'खेदजनक स्थिति', केंद्र से मांगा जवाब

विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्तियों को नहीं भरने को बहुत ही खेदजनक स्थिति बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है. कहा कि केंद्र सरकार उठाए गए कदमों के बारे में दस दिनों के भीतर उसे अवगत कराए. यह भी कहा कि उसे संदेह है कि कुछ लॉबी इस संबंध में काम कर रहे हैं.

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Published : Aug 6, 2021, 3:23 PM IST

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि हमें ट्रिब्यूनल को जारी रखने या ट्रिब्यूनल को बंद करने पर स्पष्ट रुख पता होना चाहिए. ऐसा प्रतीत होता है कि नौकरशाही इन न्यायाधिकरणों को नहीं चाहती है.

पीठ ने देश भर के विभिन्न न्यायाधिकरणों जैसे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) और एनजीटी में न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों के रिक्त पदों का उल्लेख किया और कहा कि वह शीर्ष अधिकारियों को इन लोगों की नियुक्ति नहीं करने का कारण बताने के लिए तलब कर सकती है.

पीठ ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि एक सप्ताह के भीतर आप फोन करेंगे और हमें अवगत कराएंगे. नहीं तो हम बहुत गंभीर हैं. हम शीर्ष अधिकारियों को पेश होने और कारण बताने के लिए मजबूर करने जा रहे हैं. कृपया ऐसी स्थिति को आमंत्रित न करें.

शीर्ष अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई सुनवाई में वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर भी नोटिस जारी किया. जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जीएसटी न्यायाधिकरण के गठन की मांग की गई थी. हमारी रजिस्ट्री ने जानकारी दी है कि 15 ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं. कोई अध्यक्ष नहीं हैं.

सीजेआई रमना ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की रिक्तियां हैं. CJI ने कहा कि वह और न्यायमूर्ति सूर्यकांत दोनों चयन पैनल के सदस्य हैं और उन्होंने मई 2020 में नामों की सिफारिश की थी. पीठ ने कहा कि एएफटी, एनजीटी और रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में कई पद खाली हैं और इन रिक्तियों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया और बहुत ही खेदजनक स्थिति है.

ट्रिब्यूनल में यही स्थिति है और हमें नहीं पता कि सरकार का रुख क्या है. बेंच ने कहा कि अगर वे इन ट्रिब्यूनल को जारी रखना चाहते हैं तो आपको जवाब देना होगा. पीठ ने कहा कि हमें संदेह है कि कुछ लॉबी इन रिक्तियों को नहीं भरने के लिए काम कर रही हैं. इन न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों को लंबित मुकदमों के अधीन किया जा सकता है लेकिन वादियों को उपचारात्मक नहीं छोड़ा जा सकता है.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर अदालत को अवगत कराने के लिए कुछ समय मांगा और कहा कि कार्यकाल और नियुक्ति के तरीके से संबंधित कुछ मुद्दे हैं. पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण कानूनों की रचना है और वे अपनी संरचना और प्रक्रियाएं प्रदान करते हैं.

इसमें कहा गया है कि चयन पैनल, जिसकी अध्यक्षता ज्यादातर शीर्ष अदालत के न्यायाधीश करते हैं, ने न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के लिए नामों की सिफारिश की है और नियुक्तियों के बाद कई मुद्दों से निपटा जा सकता है.

डीआरटी जबलपुर में पीठासीन अधिकारी की उपलब्धता के अभाव में ऋण वसूली न्यायाधिकरण, जबलपुर के अधिकार क्षेत्र को ऋण वसूली न्यायाधिकरण, लखनऊ में स्थानांतरित करने और संलग्न करने के केंद्र के फैसले से संबंधित याचिकाओं में से एक है. इस पहलू पर विधि अधिकारी ने कहा कि लखनऊ में डीआरटी भी वर्चुअल मोड से काम कर रहा है.

यह भी पढ़ें-सीबीआई, आईबी को SC ने लगाई फटकार, कहा- जजों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह

वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने संसद में ट्रिब्यूनल पर चर्चा किए जा रहे विधेयकों का हवाला दिया और आरोप लगाया कि यह शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ है. पीठ ने कहा कि हम सरकार को कानून पारित करने से नहीं रोक सकते और सरकार हमें आदेश पारित करने से नहीं रोक सकती. यह दोनों संस्थानों का कर्तव्य है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि हमें ट्रिब्यूनल को जारी रखने या ट्रिब्यूनल को बंद करने पर स्पष्ट रुख पता होना चाहिए. ऐसा प्रतीत होता है कि नौकरशाही इन न्यायाधिकरणों को नहीं चाहती है.

पीठ ने देश भर के विभिन्न न्यायाधिकरणों जैसे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) और एनजीटी में न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों के रिक्त पदों का उल्लेख किया और कहा कि वह शीर्ष अधिकारियों को इन लोगों की नियुक्ति नहीं करने का कारण बताने के लिए तलब कर सकती है.

पीठ ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि एक सप्ताह के भीतर आप फोन करेंगे और हमें अवगत कराएंगे. नहीं तो हम बहुत गंभीर हैं. हम शीर्ष अधिकारियों को पेश होने और कारण बताने के लिए मजबूर करने जा रहे हैं. कृपया ऐसी स्थिति को आमंत्रित न करें.

शीर्ष अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई सुनवाई में वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर भी नोटिस जारी किया. जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जीएसटी न्यायाधिकरण के गठन की मांग की गई थी. हमारी रजिस्ट्री ने जानकारी दी है कि 15 ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं. कोई अध्यक्ष नहीं हैं.

सीजेआई रमना ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की रिक्तियां हैं. CJI ने कहा कि वह और न्यायमूर्ति सूर्यकांत दोनों चयन पैनल के सदस्य हैं और उन्होंने मई 2020 में नामों की सिफारिश की थी. पीठ ने कहा कि एएफटी, एनजीटी और रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में कई पद खाली हैं और इन रिक्तियों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया और बहुत ही खेदजनक स्थिति है.

ट्रिब्यूनल में यही स्थिति है और हमें नहीं पता कि सरकार का रुख क्या है. बेंच ने कहा कि अगर वे इन ट्रिब्यूनल को जारी रखना चाहते हैं तो आपको जवाब देना होगा. पीठ ने कहा कि हमें संदेह है कि कुछ लॉबी इन रिक्तियों को नहीं भरने के लिए काम कर रही हैं. इन न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों को लंबित मुकदमों के अधीन किया जा सकता है लेकिन वादियों को उपचारात्मक नहीं छोड़ा जा सकता है.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर अदालत को अवगत कराने के लिए कुछ समय मांगा और कहा कि कार्यकाल और नियुक्ति के तरीके से संबंधित कुछ मुद्दे हैं. पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण कानूनों की रचना है और वे अपनी संरचना और प्रक्रियाएं प्रदान करते हैं.

इसमें कहा गया है कि चयन पैनल, जिसकी अध्यक्षता ज्यादातर शीर्ष अदालत के न्यायाधीश करते हैं, ने न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के लिए नामों की सिफारिश की है और नियुक्तियों के बाद कई मुद्दों से निपटा जा सकता है.

डीआरटी जबलपुर में पीठासीन अधिकारी की उपलब्धता के अभाव में ऋण वसूली न्यायाधिकरण, जबलपुर के अधिकार क्षेत्र को ऋण वसूली न्यायाधिकरण, लखनऊ में स्थानांतरित करने और संलग्न करने के केंद्र के फैसले से संबंधित याचिकाओं में से एक है. इस पहलू पर विधि अधिकारी ने कहा कि लखनऊ में डीआरटी भी वर्चुअल मोड से काम कर रहा है.

यह भी पढ़ें-सीबीआई, आईबी को SC ने लगाई फटकार, कहा- जजों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह

वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने संसद में ट्रिब्यूनल पर चर्चा किए जा रहे विधेयकों का हवाला दिया और आरोप लगाया कि यह शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ है. पीठ ने कहा कि हम सरकार को कानून पारित करने से नहीं रोक सकते और सरकार हमें आदेश पारित करने से नहीं रोक सकती. यह दोनों संस्थानों का कर्तव्य है.

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