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रूस-यूक्रेन युद्ध: कच्चे तेल की कीमत आसमान पर, क्या बढ़ेंगे पेट्रोल-डीजल के रेट?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. अगर सरकार खुद बढ़े रेट का वहन करेगी उसे 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. अगर सरकार इस कीमत का बोझ जनता पर डालेगी तो पेट्रोल 14 रुपये प्रति लीटर और डीजल 9 रुपये प्रति लीटर महंगा हो जाएगा.

rising crude prices will impact inflation
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Published : Feb 28, 2022, 12:39 PM IST

नई दिल्ली : यूक्रेन पर रूस के हमले का असर भारत में होना तय है. इस युद्ध के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका है. अगर भारत सरकार युद्ध के कारण पेट्रोलियम की बढ़ी कीमतों का वहन खुद करने का फैसला लेती है तो इससे उसके राजस्व में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की गिरावट भी हो सकती है.

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुकी है. कच्चे तेल की यह कीमत सितंबर 2014 के बाद सबसे अधिक है.

क्रूड ऑयल की बढ़ी कीमतों के कारण भारत के करेंट अकाउंट का घाटा बढ़ेगा और दबाब बढ़ने से भारत में मुद्रास्फीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के मूल्य पर भी दबाव डालेगा.

वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) में क्रूड ऑयल और ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत गुरुवार को 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गए. हालांकि शुक्रवार को इसकी कीमत मनोवैज्ञानिक स्तर से थोड़ी कम हुई. इस साल जनवरी में ही भारतीय बास्केट कच्चे तेल (ब्रेंट क्रूड) की औसत कीमत 84.67 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी, जो पिछले साल अप्रैल में 63.4 डॉलर प्रति बैरल थी.
कुछ अनुमानों के अनुसार, यदि कच्चे तेल की कीमत औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ जाती है तो भारत की मुद्रास्फीति में 52-65 बेसिक पॉइंट्स यानी 0.52 से 0.62% की वृद्धि होने की संभावना है. यह भारतीय नीति निर्माताओं के लिए समस्या पैदा कर सकता है क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में है.

क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. आशंका जताई जा रही है कि 7 मार्च को मतदान समाप्त होने के बाद बाजार में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी ऑयल जैसी कंपनियां पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में संशोधन कर सकती हैं.

तेल कंपनियों ने पिछले साल नवंबर से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव नहीं किए हैं, जबकि महंगाई पर शोर-शराबे के कारण केंद्र और राज्य सरकारों ने टैक्स में कटौती की थी. एसबीआई की मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष की गणना के अनुसार, मौजूदा वैट स्ट्रक्चर (VAT structure) के अनुसार, अगर ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहती है, तो पेट्रोल की कीमत में 14 रुपये प्रति लीटर और डीजल के रेट में 9 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है.

तेल की कीमत से मंझधार में सरकार

तेल की बढ़ती कीमत से सरकार दोराहे पर है. अगर सरकार जनता का बोझ को कम करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में और कटौती करती है तो उसे प्रति माह 8,000 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क (excise duty) का नुकसान होगा, जो एक साल के लिए लगभग 1 लाख करोड़ रुपये होगा. अगर सरकार उत्पाद शुल्क (excise duty) में कटौती के बजाय पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर डालने का फैसला करती है तो पेट्रोल की कीमत 14 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 9 रुपये प्रति लीटर बढ़ जाएगी. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से महंगाई भी बढ़ेगी, इससे सरकार के खिलाफ भी जनता का गुस्सा बढ़ जाएगा.

पढ़ें : LIC IPO : पॉलिसीधारकों को मिलेगा डिस्काउंट, मगर जान लें कि खरीदने के लिए जरूरी क्या है

नई दिल्ली : यूक्रेन पर रूस के हमले का असर भारत में होना तय है. इस युद्ध के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका है. अगर भारत सरकार युद्ध के कारण पेट्रोलियम की बढ़ी कीमतों का वहन खुद करने का फैसला लेती है तो इससे उसके राजस्व में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की गिरावट भी हो सकती है.

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुकी है. कच्चे तेल की यह कीमत सितंबर 2014 के बाद सबसे अधिक है.

क्रूड ऑयल की बढ़ी कीमतों के कारण भारत के करेंट अकाउंट का घाटा बढ़ेगा और दबाब बढ़ने से भारत में मुद्रास्फीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के मूल्य पर भी दबाव डालेगा.

वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) में क्रूड ऑयल और ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत गुरुवार को 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गए. हालांकि शुक्रवार को इसकी कीमत मनोवैज्ञानिक स्तर से थोड़ी कम हुई. इस साल जनवरी में ही भारतीय बास्केट कच्चे तेल (ब्रेंट क्रूड) की औसत कीमत 84.67 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी, जो पिछले साल अप्रैल में 63.4 डॉलर प्रति बैरल थी.
कुछ अनुमानों के अनुसार, यदि कच्चे तेल की कीमत औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ जाती है तो भारत की मुद्रास्फीति में 52-65 बेसिक पॉइंट्स यानी 0.52 से 0.62% की वृद्धि होने की संभावना है. यह भारतीय नीति निर्माताओं के लिए समस्या पैदा कर सकता है क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में है.

क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. आशंका जताई जा रही है कि 7 मार्च को मतदान समाप्त होने के बाद बाजार में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी ऑयल जैसी कंपनियां पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में संशोधन कर सकती हैं.

तेल कंपनियों ने पिछले साल नवंबर से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव नहीं किए हैं, जबकि महंगाई पर शोर-शराबे के कारण केंद्र और राज्य सरकारों ने टैक्स में कटौती की थी. एसबीआई की मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष की गणना के अनुसार, मौजूदा वैट स्ट्रक्चर (VAT structure) के अनुसार, अगर ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहती है, तो पेट्रोल की कीमत में 14 रुपये प्रति लीटर और डीजल के रेट में 9 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है.

तेल की कीमत से मंझधार में सरकार

तेल की बढ़ती कीमत से सरकार दोराहे पर है. अगर सरकार जनता का बोझ को कम करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में और कटौती करती है तो उसे प्रति माह 8,000 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क (excise duty) का नुकसान होगा, जो एक साल के लिए लगभग 1 लाख करोड़ रुपये होगा. अगर सरकार उत्पाद शुल्क (excise duty) में कटौती के बजाय पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर डालने का फैसला करती है तो पेट्रोल की कीमत 14 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 9 रुपये प्रति लीटर बढ़ जाएगी. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से महंगाई भी बढ़ेगी, इससे सरकार के खिलाफ भी जनता का गुस्सा बढ़ जाएगा.

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