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बोधगया में तोप के गोले और हथियार के खोखे से बना शांति स्तूप देता है अमन-चैन का संदेश - विश्व शंती स्तूप राजगीर न्यूज़ का हिंदी में

बिहार में गया का शांति स्तूप हथियार के खोखे से बना है. श्रीलंका में 33 साल चले गृहयुद्ध के बाद 2009 में तोप के गोलों और हथियार के खोखे से इसका निर्माण किया गया है. पूरे विश्व में श्रीलंका और गया में इसे स्थापित किया गया है. पढ़ें रिपोर्ट..

Shanti Stupa made of cannon balls and weapon kiosks in Bodh Gaya
बोधगया में है तोप के गोले और हथियार के खोखे से बना शांति स्तूप, अमन-चैन का देता है संदेश
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Published : Apr 30, 2022, 7:43 AM IST

Updated : Apr 30, 2022, 10:42 AM IST

गयाः गया के बोधिवृक्ष के पास एक ऐसा शांति स्तूप स्थापित है, जिसका निर्माण अशांति फैलानेवाले हथियारों के खोखे से हुआ (Gaya Shanti Stupa Made From Cartridge Case) है. श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच 33 साल तक चला गृहयुद्ध जब खत्म हुआ तो इतने खोखे जमा किए जा चुके थे कि उससे दो जगह शांति स्तूप का निर्माण कर दिया गया. तोप के गोलों से लेकर कारतूस के खोखे तक को जमा किया गया. इससे बना एक शांति स्तूप श्रीलंका में और दूसरा गया में स्थापित किया गया. गया का शांति स्तूप पूरे विश्व को शांति का संदेश देता है. बोधगया पहुंचनेवाले पर्यटक इस शांति स्तूप को देखने जरूर पहुंचते हैं.

गया का शांति स्तूप

33 साल तक चला था गृहयुद्धः बता दें कि वर्ष 1976 से लेकर 2009 तक श्रीलंका में सेना और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के बीच लंबा गृहयुद्ध चला था. इस युद्ध में कई तरह के हथियारों के उपयोग हुआ था. इसमें श्रीलंकाई सेना के अफसर-जवान, नागरिक-बच्चे और काफी संख्या में लिट्टे समर्थक मारे गए थे. वर्ष 2009 में ही लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के समक्ष समर्पण कर दिया था, जिसके बाद करीब तीन दशकों तक चला यह युद्ध थमा था. बोधगया में स्थित यह शांति स्तूप अशांति फैलाने वाले तोप के गोले और खोखे से बना है और विश्व को शांति का बड़ा पैगाम दे रहा है. श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच उपयोग हुए हथियारों से निकले खोखे के पीतल से इसे बनाया गया है.

बनाया गया था दो शांति स्तूपः युद्ध खत्म होने के बाद श्रीलंकाई सरकार ने विश्व को शांति का संदेश देने के लिए दो शांति स्तूप बनाए थे. इससे संदेश देने की कोशिश थी कि भविष्य में ऐसा युद्ध न हो. पूरे विश्व में कहीं भी किसी प्रकार का युद्ध या हिंसा न हो. विश्व में इस प्रकार का बना शांति स्तूप एक श्रीलंका में है, तो दूसरा भारत के बोधगया में महाबोधी सोसायटी ऑफ इंडिया (श्रीलंकाई मठ) के परिसर में है.

ये भी पढ़ें- पंजाब में मिले 160 साल पुराने कंकाल 1857 विद्रोह से जुड़े : आनुवंशिक अध्ययन

श्रीलंका सरकार ने इंडिया को दिया दानः बोधगया विश्व भर में बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख स्थली है. यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. महाबोधि मंदिर में उनका अस्थि कलश भी है. इससे पूरे विश्व के बौद्ध धर्मावलंबियों का जुड़ाव भारत से विशेष है और इसी के कारण श्रीलंकाई सरकार ने भारत को यह अनोखा शांति स्तूप दान दिया.

'श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच चले युद्ध में उपयोग हुए गोले और खोखे के अवशेषों से यह शांति स्तूप बनाया गया है. विश्व में यह श्रीलंका के बाद बोधगया में है. बौद्ध श्रद्धालुओं के मुख्य स्थली बोधगया में होने के कारण इसे श्रीलंका सरकार द्वारा दान में दिया गया है. यह शांति स्तूप संदेश देता है कि विश्व में कहीं भी युद्ध या हिंसा न हो. विश्वभर से आने वाले बौद्ध श्रद्धालु या पर्यटक इस शांति स्तूप को जरूर देखने आते हैं. यह शांति स्तूप 2009 में श्रीलंका में युद्ध थमने के बाद बना था और उसके बाद से भारत के बोधगया में यह स्थापित है.' - राहुल भंते, बीकू इंचार्ज, महाबोधि सोसाइटी सेंटर (श्रीलंकाई मठ)

गयाः गया के बोधिवृक्ष के पास एक ऐसा शांति स्तूप स्थापित है, जिसका निर्माण अशांति फैलानेवाले हथियारों के खोखे से हुआ (Gaya Shanti Stupa Made From Cartridge Case) है. श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच 33 साल तक चला गृहयुद्ध जब खत्म हुआ तो इतने खोखे जमा किए जा चुके थे कि उससे दो जगह शांति स्तूप का निर्माण कर दिया गया. तोप के गोलों से लेकर कारतूस के खोखे तक को जमा किया गया. इससे बना एक शांति स्तूप श्रीलंका में और दूसरा गया में स्थापित किया गया. गया का शांति स्तूप पूरे विश्व को शांति का संदेश देता है. बोधगया पहुंचनेवाले पर्यटक इस शांति स्तूप को देखने जरूर पहुंचते हैं.

गया का शांति स्तूप

33 साल तक चला था गृहयुद्धः बता दें कि वर्ष 1976 से लेकर 2009 तक श्रीलंका में सेना और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के बीच लंबा गृहयुद्ध चला था. इस युद्ध में कई तरह के हथियारों के उपयोग हुआ था. इसमें श्रीलंकाई सेना के अफसर-जवान, नागरिक-बच्चे और काफी संख्या में लिट्टे समर्थक मारे गए थे. वर्ष 2009 में ही लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के समक्ष समर्पण कर दिया था, जिसके बाद करीब तीन दशकों तक चला यह युद्ध थमा था. बोधगया में स्थित यह शांति स्तूप अशांति फैलाने वाले तोप के गोले और खोखे से बना है और विश्व को शांति का बड़ा पैगाम दे रहा है. श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच उपयोग हुए हथियारों से निकले खोखे के पीतल से इसे बनाया गया है.

बनाया गया था दो शांति स्तूपः युद्ध खत्म होने के बाद श्रीलंकाई सरकार ने विश्व को शांति का संदेश देने के लिए दो शांति स्तूप बनाए थे. इससे संदेश देने की कोशिश थी कि भविष्य में ऐसा युद्ध न हो. पूरे विश्व में कहीं भी किसी प्रकार का युद्ध या हिंसा न हो. विश्व में इस प्रकार का बना शांति स्तूप एक श्रीलंका में है, तो दूसरा भारत के बोधगया में महाबोधी सोसायटी ऑफ इंडिया (श्रीलंकाई मठ) के परिसर में है.

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श्रीलंका सरकार ने इंडिया को दिया दानः बोधगया विश्व भर में बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख स्थली है. यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. महाबोधि मंदिर में उनका अस्थि कलश भी है. इससे पूरे विश्व के बौद्ध धर्मावलंबियों का जुड़ाव भारत से विशेष है और इसी के कारण श्रीलंकाई सरकार ने भारत को यह अनोखा शांति स्तूप दान दिया.

'श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच चले युद्ध में उपयोग हुए गोले और खोखे के अवशेषों से यह शांति स्तूप बनाया गया है. विश्व में यह श्रीलंका के बाद बोधगया में है. बौद्ध श्रद्धालुओं के मुख्य स्थली बोधगया में होने के कारण इसे श्रीलंका सरकार द्वारा दान में दिया गया है. यह शांति स्तूप संदेश देता है कि विश्व में कहीं भी युद्ध या हिंसा न हो. विश्वभर से आने वाले बौद्ध श्रद्धालु या पर्यटक इस शांति स्तूप को जरूर देखने आते हैं. यह शांति स्तूप 2009 में श्रीलंका में युद्ध थमने के बाद बना था और उसके बाद से भारत के बोधगया में यह स्थापित है.' - राहुल भंते, बीकू इंचार्ज, महाबोधि सोसाइटी सेंटर (श्रीलंकाई मठ)

Last Updated : Apr 30, 2022, 10:42 AM IST
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