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जानें, दिल्ली प्रदूषण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की मीडिया की खिंचाई

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (Chief Justice of India NV Ramana) की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दिल्ली वायु प्रदूषण मामले में अदालत को खलनायक के रूप में पेश (Presented as a villain to the Court) करने को लेकर मीडिया की खिंचाई की. (sc slams media for misreporting delhi pollution).

Supreme Court file photo
सुप्रीम कोर्ट फाइल फोटो
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Published : Dec 3, 2021, 3:38 PM IST

Updated : Dec 3, 2021, 4:36 PM IST

नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (Chief Justice of India NV Ramana) ने कहा कि मीडिया के एक वर्ग में यह चलाया गया कि स्कूल बंद करने का फैसला हमारा है, इसलिए हम विलन हैं (sc slams media for misreporting delhi pollution). लेकिन ऐसा नहीं है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि हम छात्रों के कल्याण के लिए नहीं हैं (media presents court as villain says CJI).

दिल्ली की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने अदालत की टिप्पणी पर सहमति जताई और कहा कि 10-20 रचनात्मक बिंदुओं का एक हलफनामा, जिसकी अदालत और केंद्र सराहना करता है, को मीडिया द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है और केवल एक नकारात्मक बिंदु को उठाया जाता है और वही शीर्षक बनाया जाता है. सिंघवी ने कहा कि सभी रचनात्मक कार्य एक शीर्षक में सिमट कर रह गए हैं.

कोर्ट ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता है, जिसमें अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. राजनीतिक दल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं लेकिन न्यायाधीश ऐसा नहीं कर सकते. अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कोर्ट रिपोर्टिंग अलग व राजनीतिक रिपोर्टिंग अलग है. यहां पत्रकारों को अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.

एसजी तुषार मेहता ने मार्क ट्वेन को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था कि यदि आप समाचार पत्र नहीं पढ़ते हैं तो आप अनजान हैं, और यदि आप उन्हें पढ़ते हैं तो आपको गलत सूचित किया जाता है. शीर्ष अदालत ने कल दिल्ली सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि उसने अदालत को बताया कि उसने सभी स्कूलों को बंद कर दिया है, घर से काम करने की अनुमति दी है लेकिन वास्तव में कुछ भी लागू नहीं हुआ.

सॉलीसीटर जनरल और एससीबीए अध्यक्ष के बीच हुआ वाकयुद्ध

उच्चतम न्यायालय में वायु प्रदूषण के विषय पर सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (Supreme Court Bar Association) के अध्यक्ष विकास सिंह के बीच वाकयुद्ध देखने को मिला. केंद्र की ओर से पेश हुए मेहता ने जब दलील दी कि मेरा एकमात्र एजेंडा प्रदूषण घटाना है और निजी व्यक्तियों को पेश नहीं करना . तब उनके बीच तीखी बहस हो गई.

सॉलीसीटर जनरल की दलील में दो याचिकाकर्ताओं पर कथित तौर पर निशाना साधा गया था, जिसका विरोध करते हुए सिंह ने कहा कि (याचिकाकर्ताओं की ओर से) प्रदूषण घटाने के सिवा कोई अन्य एजेंडा नहीं है. पर्यावरण कार्यकर्ता एवं याचिकाकर्ता आदित्य दुबे और अमन बंका की ओर से पेश हुए सिंह ने कहा कि एजेंडा होने के आरोप पर मैं कड़ी आपत्ति जताता हूं.

एजेंडा सिर्फ प्रदूषण है. वह कह रहे हैं कि एक एजेंडा है. यह क्या बकवास (नॉनसेंस) है? क्या ऐसा कहना सॉलीसीटर जनरल के लिए उपयुक्त है? पिछली बार उन्होंने कहा था कि मेरी याचिका सेंट्रल विस्टा के खिलाफ है. हर बार वह इस तरह की टिप्पणी करते हैं. इस पर सॉलीसीटर जनरल ने कहा कि श्रीमान विकास सिंह को अवश्य याद रखना चाहिए कि वह सड़क पर नहीं खड़े हैं.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दी अस्पतालों की निर्माण गतिविधियों को जारी रखने की इजाजत, 10 को अगली सुनवाई

जब बीसीसीआई मामले में इसी तरह के शब्द नॉनसेंस का इस्तेमाल किया गया था तब न्यायाधीश ने आपत्ति जताई थी. नॉनसेंस शब्द का अदालत में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने तब हस्तक्षेप किया और कहा कि दोनों वकील इस तरह से जुबानी जंग ना करें. पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल रहे.

नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (Chief Justice of India NV Ramana) ने कहा कि मीडिया के एक वर्ग में यह चलाया गया कि स्कूल बंद करने का फैसला हमारा है, इसलिए हम विलन हैं (sc slams media for misreporting delhi pollution). लेकिन ऐसा नहीं है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि हम छात्रों के कल्याण के लिए नहीं हैं (media presents court as villain says CJI).

दिल्ली की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने अदालत की टिप्पणी पर सहमति जताई और कहा कि 10-20 रचनात्मक बिंदुओं का एक हलफनामा, जिसकी अदालत और केंद्र सराहना करता है, को मीडिया द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है और केवल एक नकारात्मक बिंदु को उठाया जाता है और वही शीर्षक बनाया जाता है. सिंघवी ने कहा कि सभी रचनात्मक कार्य एक शीर्षक में सिमट कर रह गए हैं.

कोर्ट ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता है, जिसमें अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. राजनीतिक दल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं लेकिन न्यायाधीश ऐसा नहीं कर सकते. अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कोर्ट रिपोर्टिंग अलग व राजनीतिक रिपोर्टिंग अलग है. यहां पत्रकारों को अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.

एसजी तुषार मेहता ने मार्क ट्वेन को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था कि यदि आप समाचार पत्र नहीं पढ़ते हैं तो आप अनजान हैं, और यदि आप उन्हें पढ़ते हैं तो आपको गलत सूचित किया जाता है. शीर्ष अदालत ने कल दिल्ली सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि उसने अदालत को बताया कि उसने सभी स्कूलों को बंद कर दिया है, घर से काम करने की अनुमति दी है लेकिन वास्तव में कुछ भी लागू नहीं हुआ.

सॉलीसीटर जनरल और एससीबीए अध्यक्ष के बीच हुआ वाकयुद्ध

उच्चतम न्यायालय में वायु प्रदूषण के विषय पर सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (Supreme Court Bar Association) के अध्यक्ष विकास सिंह के बीच वाकयुद्ध देखने को मिला. केंद्र की ओर से पेश हुए मेहता ने जब दलील दी कि मेरा एकमात्र एजेंडा प्रदूषण घटाना है और निजी व्यक्तियों को पेश नहीं करना . तब उनके बीच तीखी बहस हो गई.

सॉलीसीटर जनरल की दलील में दो याचिकाकर्ताओं पर कथित तौर पर निशाना साधा गया था, जिसका विरोध करते हुए सिंह ने कहा कि (याचिकाकर्ताओं की ओर से) प्रदूषण घटाने के सिवा कोई अन्य एजेंडा नहीं है. पर्यावरण कार्यकर्ता एवं याचिकाकर्ता आदित्य दुबे और अमन बंका की ओर से पेश हुए सिंह ने कहा कि एजेंडा होने के आरोप पर मैं कड़ी आपत्ति जताता हूं.

एजेंडा सिर्फ प्रदूषण है. वह कह रहे हैं कि एक एजेंडा है. यह क्या बकवास (नॉनसेंस) है? क्या ऐसा कहना सॉलीसीटर जनरल के लिए उपयुक्त है? पिछली बार उन्होंने कहा था कि मेरी याचिका सेंट्रल विस्टा के खिलाफ है. हर बार वह इस तरह की टिप्पणी करते हैं. इस पर सॉलीसीटर जनरल ने कहा कि श्रीमान विकास सिंह को अवश्य याद रखना चाहिए कि वह सड़क पर नहीं खड़े हैं.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दी अस्पतालों की निर्माण गतिविधियों को जारी रखने की इजाजत, 10 को अगली सुनवाई

जब बीसीसीआई मामले में इसी तरह के शब्द नॉनसेंस का इस्तेमाल किया गया था तब न्यायाधीश ने आपत्ति जताई थी. नॉनसेंस शब्द का अदालत में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने तब हस्तक्षेप किया और कहा कि दोनों वकील इस तरह से जुबानी जंग ना करें. पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल रहे.

Last Updated : Dec 3, 2021, 4:36 PM IST
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