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गांधी जयंती विशेष : चंपारण का 'राजकुमार'.. जिनकी वजह से गांधी बने 'महात्मा' - अंग्रेजी हुकूमत

किसान नेता राजकुमार शुक्ल के कहने पर महात्मा गांधी पहली बार चंपारण की धरती पर आए थे. उन्होंने यहीं से सत्य व अहिंसा का रास्ता चुना और यहीं से सत्याग्रह की शुरुआत की. राजकुमार शुक्ल (Rajkumar Shukla) का परिवार पश्चिमी चंपारण (West Champaran) जिले के सतवरिया में रहता हैं, जिनसे ईटीवी भारत की टीम ने खास बातचीत की. देखिए रिपोर्ट...

किसान नेता
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Published : Oct 2, 2021, 10:42 PM IST

पश्चिमी चंपारण: 2 अक्टूबर को पूरा देश गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) मना रहा है. बात जब भी महात्मा गांधी की होती है तो चंपारण की धरती को जरूर याद किया जाता है, क्योंकि चंपारण की धरती गांधीजी की पहली प्रयोगशाला थी. गांधीजी ने यहीं से सत्याग्रह की शुरुआत की थी और यहीं से उन्हें महात्मा की उपाधि मिली थी, लेकिन इस सत्याग्रह के जो सूत्रधार पश्चिमी चंपारण जिले के किसान नेता राजकुमार शुक्ल थे, जिन्हें आज के दिन याद करने की जरूरत है.

पश्चिम चंपारण जिले के साठी थाना क्षेत्र के सतवरिया में किसान नेता राजकुमार शुक्ल का घर है. राजकुमार शुक्ल की तीन बेटियां थी. दो बेटियां सतवरिया गांव में रहती थी. आज उस घर में राजकुमार शुक्ल के नाती रहते हैं. राजकुमार शुक्ल के नाती मणि भूषण राय अपने नाना राजकुमार शुक्ल के बारे में बताते हैं कि उन्होंने किस तरह से अंग्रेजी हुकूमत के साथ लड़ाई लड़ी और किस तरह से उनके कहने पर महात्मा गांधी चंपारण की धरती पर आए थे.

देखें रिपोर्ट.

वहीं, राजकुमार शुक्ल के परनाती अरुण कुमार शुक्ला, उनकी मां और राजकुमार शुक्ला की नातिन पोतोहू शिव कुमारी देवी भी अपने परिवार के सदस्य व किसान नेता राजकुमार शुक्ल के बारे में बताते हैं, जिससे उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि हमारे नानाजी की देश की आजादी में अहम भूमिका रही है. जिनके कहने पर महात्मा गांधी चंपारण की धरती पर आए और उन्होंने यहीं से सत्याग्रह के रास्ते सत्य व अहिंसा का अस्त्र आजमाया. महात्मा गांधी का यह प्रयोग चंपारण में सफल रहा.

राजकुमार शुक्ल के परनाती अरुण कुमार शुक्ला ने बताया कि किसान नेता राजकुमार शुक्ला के आग्रह पर 15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए. चंपारण के किसान नील की खेती से तबाह हो गए थे, लेकिन नील की खेती उनकी मजबूरी थी. महात्मा गांधी 22 अप्रैल को 1917 में बेतिया के हजारीमल धर्मशाला पहुंचे. धर्मशाला में उन्होंने पांच दिनों तक किसानों के साथ बैठक की और उन पर हो रहे अत्याचारों के बारे में जाना. उन्होंने किसानों को भरोसा दिलाया कि अब वह नील की खेती नहीं करेंगे. उन्हें अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति मिलेगी.

ये भी पढ़ें - नरसी भगत का 'वैष्णव जन', जिसे महात्मा गांधी ने जन-जन का बना दिया

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन भारतीय इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दी थी. जिसका गौरव चंपारण की इस पवित्र धरती को प्राप्त है. चंपारण महात्मा गांधी का प्रयोगशाला बन गया. गांधीजी ने चंपारण में सत्य व अहिंसा पर पहला प्रयोग किया और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया.

गांधीजी का यह आंदोलन चंपारण सत्याग्रह सफल रहा और अंग्रेज झुकने को मजबूर हुई. चंपारण में ही उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर बसर करेंगे. इसी आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया गया.

पश्चिमी चंपारण: 2 अक्टूबर को पूरा देश गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) मना रहा है. बात जब भी महात्मा गांधी की होती है तो चंपारण की धरती को जरूर याद किया जाता है, क्योंकि चंपारण की धरती गांधीजी की पहली प्रयोगशाला थी. गांधीजी ने यहीं से सत्याग्रह की शुरुआत की थी और यहीं से उन्हें महात्मा की उपाधि मिली थी, लेकिन इस सत्याग्रह के जो सूत्रधार पश्चिमी चंपारण जिले के किसान नेता राजकुमार शुक्ल थे, जिन्हें आज के दिन याद करने की जरूरत है.

पश्चिम चंपारण जिले के साठी थाना क्षेत्र के सतवरिया में किसान नेता राजकुमार शुक्ल का घर है. राजकुमार शुक्ल की तीन बेटियां थी. दो बेटियां सतवरिया गांव में रहती थी. आज उस घर में राजकुमार शुक्ल के नाती रहते हैं. राजकुमार शुक्ल के नाती मणि भूषण राय अपने नाना राजकुमार शुक्ल के बारे में बताते हैं कि उन्होंने किस तरह से अंग्रेजी हुकूमत के साथ लड़ाई लड़ी और किस तरह से उनके कहने पर महात्मा गांधी चंपारण की धरती पर आए थे.

देखें रिपोर्ट.

वहीं, राजकुमार शुक्ल के परनाती अरुण कुमार शुक्ला, उनकी मां और राजकुमार शुक्ला की नातिन पोतोहू शिव कुमारी देवी भी अपने परिवार के सदस्य व किसान नेता राजकुमार शुक्ल के बारे में बताते हैं, जिससे उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि हमारे नानाजी की देश की आजादी में अहम भूमिका रही है. जिनके कहने पर महात्मा गांधी चंपारण की धरती पर आए और उन्होंने यहीं से सत्याग्रह के रास्ते सत्य व अहिंसा का अस्त्र आजमाया. महात्मा गांधी का यह प्रयोग चंपारण में सफल रहा.

राजकुमार शुक्ल के परनाती अरुण कुमार शुक्ला ने बताया कि किसान नेता राजकुमार शुक्ला के आग्रह पर 15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए. चंपारण के किसान नील की खेती से तबाह हो गए थे, लेकिन नील की खेती उनकी मजबूरी थी. महात्मा गांधी 22 अप्रैल को 1917 में बेतिया के हजारीमल धर्मशाला पहुंचे. धर्मशाला में उन्होंने पांच दिनों तक किसानों के साथ बैठक की और उन पर हो रहे अत्याचारों के बारे में जाना. उन्होंने किसानों को भरोसा दिलाया कि अब वह नील की खेती नहीं करेंगे. उन्हें अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति मिलेगी.

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चंपारण सत्याग्रह आंदोलन भारतीय इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दी थी. जिसका गौरव चंपारण की इस पवित्र धरती को प्राप्त है. चंपारण महात्मा गांधी का प्रयोगशाला बन गया. गांधीजी ने चंपारण में सत्य व अहिंसा पर पहला प्रयोग किया और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया.

गांधीजी का यह आंदोलन चंपारण सत्याग्रह सफल रहा और अंग्रेज झुकने को मजबूर हुई. चंपारण में ही उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर बसर करेंगे. इसी आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया गया.

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