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पीएम ने मन की बात में कहा- देश में नदियों को मां मानने की परंपरा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार सुबह 11 बजे अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिये देशवासियों को संबोधित कर रहे हैं. पीएम मोदी ने कहा, 'नदी हमारे लिए भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि जीवंत इकाई है. तभी तो हम नदियों को मां कहते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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Published : Sep 26, 2021, 7:27 AM IST

Updated : Sep 26, 2021, 11:24 AM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार सुबह 11 बजे अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिये देशवासियों को संबोधित कर रहे हैं. हर महीने के अंतिम रविवार सुबह 11 बजे आकाशवाणी और डीडी चैनलों पर प्रसारित होने वाले 'मन की बात' कार्यक्रम की यह 81वीं कड़ी है.

आज 'वर्ल्ड रिवर डे' भी है, इसलिए पीएम मोदी ने अपने कार्यक्रम में नदियों के महत्व के बारे में बताया. पीएम मोदी ने कहा, 'नदी हमारे लिए भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि जीवंत इकाई है. तभी तो हम नदियों को मां कहते हैं. हमारे कितने ही पर्व हों, त्योहार हों, उत्सव हो, उमंग हो, ये सभी हमारी इन माताओं की गोद में ही तो होते हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि जैसे गुजरात में बारिश की शुरुआत होती है तो गुजरात में जल-जीलनी एकादशी मनाते हैं. मतलब की आज के युग में हम जिसको कहते है ‘Catch the Rain’ वो वही बात है कि जल के एक-एक बिंदु को अपने में समेटना, जल-जीलनी.

प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे यहाँ कहा गया है - 'पिबन्ति नद्यः, स्वय-मेव नाम्भः' अर्थात नदियां अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिए देती हैं. उन्होंने आगे कहा, 'माघ का महीना आता है तो हमारे देश में बहुत लोग पूरे एक महीने मां गंगा या किसी और नदी के किनारे कल्पवास करते हैं. अब तो ये परंपरा नहीं रही, लेकिन पहले के जमाने में तो परंपरा थी कि घर में स्नान करते हैं तो भी नदियों का स्मरण करने की परंपरा, आज भले लुप्त हो गई हो या कहीं बहुत अल्पमात्रा में बची हो, लेकिन एक बहुत बड़ी परंपरा थी जो प्रातः में ही स्नान करते समय ही विशाल भारत की एक यात्रा करा देती थी, मानसिक यात्रा ! देश के कोने-कोने से जुड़ने की प्रेरणा बन जाती थी.'

प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत में स्नान करते समय एक श्लोक बोलने की परंपरा रही है 'गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति. नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥' पहले हमारे घरों में परिवार के बड़े ये श्लोक बच्चों को याद करवाते थे और इससे हमारे देश में नदियों को लेकर आस्था भी पैदा होती थी. विशाल भारत का एक मानचित्र मन में अंकित हो जाता था. नदियों के प्रति जुड़ाव बनता था. जिस नदी को मां के रूप में हम जानते हैं, देखते हैं, जीते हैं उस नदी के प्रति एक आस्था का भाव पैदा होता था, एक संस्कार प्रक्रिया थी.'

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार सुबह 11 बजे अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिये देशवासियों को संबोधित कर रहे हैं. हर महीने के अंतिम रविवार सुबह 11 बजे आकाशवाणी और डीडी चैनलों पर प्रसारित होने वाले 'मन की बात' कार्यक्रम की यह 81वीं कड़ी है.

आज 'वर्ल्ड रिवर डे' भी है, इसलिए पीएम मोदी ने अपने कार्यक्रम में नदियों के महत्व के बारे में बताया. पीएम मोदी ने कहा, 'नदी हमारे लिए भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि जीवंत इकाई है. तभी तो हम नदियों को मां कहते हैं. हमारे कितने ही पर्व हों, त्योहार हों, उत्सव हो, उमंग हो, ये सभी हमारी इन माताओं की गोद में ही तो होते हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि जैसे गुजरात में बारिश की शुरुआत होती है तो गुजरात में जल-जीलनी एकादशी मनाते हैं. मतलब की आज के युग में हम जिसको कहते है ‘Catch the Rain’ वो वही बात है कि जल के एक-एक बिंदु को अपने में समेटना, जल-जीलनी.

प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे यहाँ कहा गया है - 'पिबन्ति नद्यः, स्वय-मेव नाम्भः' अर्थात नदियां अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिए देती हैं. उन्होंने आगे कहा, 'माघ का महीना आता है तो हमारे देश में बहुत लोग पूरे एक महीने मां गंगा या किसी और नदी के किनारे कल्पवास करते हैं. अब तो ये परंपरा नहीं रही, लेकिन पहले के जमाने में तो परंपरा थी कि घर में स्नान करते हैं तो भी नदियों का स्मरण करने की परंपरा, आज भले लुप्त हो गई हो या कहीं बहुत अल्पमात्रा में बची हो, लेकिन एक बहुत बड़ी परंपरा थी जो प्रातः में ही स्नान करते समय ही विशाल भारत की एक यात्रा करा देती थी, मानसिक यात्रा ! देश के कोने-कोने से जुड़ने की प्रेरणा बन जाती थी.'

प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत में स्नान करते समय एक श्लोक बोलने की परंपरा रही है 'गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति. नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥' पहले हमारे घरों में परिवार के बड़े ये श्लोक बच्चों को याद करवाते थे और इससे हमारे देश में नदियों को लेकर आस्था भी पैदा होती थी. विशाल भारत का एक मानचित्र मन में अंकित हो जाता था. नदियों के प्रति जुड़ाव बनता था. जिस नदी को मां के रूप में हम जानते हैं, देखते हैं, जीते हैं उस नदी के प्रति एक आस्था का भाव पैदा होता था, एक संस्कार प्रक्रिया थी.'

Last Updated : Sep 26, 2021, 11:24 AM IST
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