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NDA vs INDIA : 2024 के लिए बिछती बिसात, एनडीए के बरक्स विपक्षी दलों का 'इंडिया'

सत्ताधारी गठबंधन और विपक्षी गठबंधन की अलग-अलग बैठकें हो रहीं हैं. एक बैठक बेंगलुरु में, तो दूसरी बैठक नई दिल्ली में हो रही है. विपक्षी दलों की बैठक में 26 दल, जबकि एनडीए की बैठक में 38 दल शामिल हो रहे हैं. यदि विपक्षी गठबंधन अंतरविरोधों का शिकार है, तो एनडीए में भी कम सिर-फुटौव्वल नहीं है. लेकिन इतना तय है कि आज की इन बैठकों के बाद 2024 की बिसात जरूर बिछ जाएगी. वैसे, विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा है. इंडिया- इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस. पढ़ें दोनों बैठकों पर अपडेट.

india versus NDA
इंडिया वर्सेस एनडीए
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Published : Jul 18, 2023, 4:44 PM IST

Updated : Jul 18, 2023, 5:12 PM IST

नई दिल्ली/बेंगलुरु : एनडीए की सत्ता को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों की बैठक बेंगलुरु में हो रही है. इससे पहले 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में बैठक हुई थी. आज की बैठक के बाद विपक्षी दलों की 'रणनीति' बहुत हद तक साफ हो जाएगी. विपक्षी पार्टियों के इस गठबंधन का मुकाबला करने के लिए एनडीए भी कमर कस चुका है और आज ही उनकी भी बैठक हो रही है. एनडीए की बैठक नई दिल्ली में है. उनका दावा है कि उनके साथ 38 दल हैं, जबकि यूपीए की बैठक में 26 राजनीतिक दल शामिल हैं.

आज की दोनों ही बड़ी बैठकों से बहुत हद तक यह तय हो जाएगा कि 2024 के आम चुनाव से पहले किस तरह की राजनीतिक बिसात बिछने जा रही है. कुछ लोग तो इस 'मोमेंट' को 'जेपी मूवमेंट' से भी जोड़ रहे हैं. जेपी यानी जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ अभियान चलाया था, और वे उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब भी हुए थे, तो क्या इस बार भी विपक्षी दलों की वैसी ही तैयारी है, या फिर दोनों परिस्थितियों की तुलना करना ही बेकार है.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि निश्चित तौर पर विपक्षी दलों के पास जेपी जैसा कोई नेता नहीं है और न ही कोई ऐसा मास लीडर जिसकी एक अपील पर छात्र सड़कों पर आ जाएं और सरकार एक्शन लेने के लिए बाध्य हो जाए. दूसरी बात यह है कि उस समय इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, लिहाजा लोगों में नाराजगी थी. आज वैसी स्थिति नहीं है. ये अलग बात है कि विपक्षी दलों का मानना है कि आज की परिस्थिति इमरजेंसी जैसी ही है. उनका कहना है कि सरकार के इशारे पर विपक्षी दलों को सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां तंग कर रही हैं.

विपक्ष के इन आरोपों को पीएम मोदी सिरे से खारिज कर चुके हैं. कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी कार्रवाई जारी रहेगी. आज भी उन्होंने विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि 26 दलों की बैठक का आधार भ्रष्टाचार को छिपाना है. पीएम मोदी ने कहा कि वे इतने अधिक घबराए हैं कि उन्हें अपने कार्यकर्ताओं की भी नहीं परवाह है. उन्होंने प.बंगाल स्थानीय चुनाव में नॉन टीएमसी कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर कांग्रेस की चुप्पी को लेकर सवाल उठाए.

विपक्षी दलों और एनडीए की अलग-अलग बैठकों को नजारा - आपको बता दें कि एनडीए की बैठक में 38 दल शामिल हो रहे हैं. लेकिन यहां भी विपक्षी दलों की तरह आपसी खींचतान जारी है. मसलन बिहार का ही उदाहरण ले लीजिए. बैठक में चिराग पासवान हिस्सा ले रहे हैं. उनके चाचा पशुपति पारस भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं. वह मोदी सरकार के मंत्री हैं. पशुपति पारस ने साफ कर दिया है कि वह एनडीए में बने रहेंगे. ऐसे में भाजपा के सामने यह चुनौती है कि वह किस तरह से एलजेपी की आपसी गुटबाजी को खत्म कर पाती है.

  • Indians never lacked capabilities and capacities, but the corrupt Dynastic Parties always meted out injustice to them and made India bear the consequences.

    Democracy means 'of the people, by the people, for the people'.

    But these Parivarvaadi Parties have a mantra of 'of the…

    — BJP (@BJP4India) July 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान अपने को पीएम मोदी का 'हनुमान' मानते थे. विश्लेषक मानते हैं कि उनकी वजह से जेडीयू तीसरे स्थान पर पहुंच गई. इस वजह से जेडीयू और भाजपा के बीच खटास बढ़ी और दोनों अलग हो गए. अब चिराग चाहते हैं कि भाजपा उन्हें छह सीटें दे, साथ ही वह हाजीपुर लोकसभा सीट पर भी दावा कर रहे हैं. उनके चाचा पशुपति पारस किसी भी हाल में हाजीपुर सीट देने को तैयार नहीं हैं.

बहुत कुछ ऐसी ही स्थिति राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी को लेकर है. यहां पर उपेंद्र कुशवाहा और नागमणि के बीच रस्साकशी चल रही है. नागमणि और उपेंद्र कुशवाहा एक ही जाति से हैं, लिहाजा दोनों के बीच आपसी खींचतान चल रही है. दोनों ही नेता एनडीए की बैठक में हैं. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2019 में भाजपा को 17, जेडूयी को 16, छह सीटें एलजेपी को मिली थीं. अब जेडीयू का राजद के साथ गठबंधन है. भाजपा जब सीटों को लेकर तस्वीर साफ करेगी, तब हम जैसे दल क्या प्रतिक्रिया देते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी. 'हम/ जीतन राम मांझी की पार्टी है.

विपक्षी दलों की बैठक का नजारा - 26 दल बैठक में शामिल- इन्होंने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखने का फैसला किया है. इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इन्कलूसिव एलायंस. हालांकि बैठक से पहले पोस्टर के लिए जरूर अंतरविरोध दिखा. वैसे सभी नेताओं ने यह माना कि हमारे बीच अंतरविरोध हैं, लेकिन इसके बावजूद हम आगे बढ़ेंगे. आइए इन दलों के अंतरविरोधों पर भी एक नजर डालते हैं.

  • VIDEO | "Kharge Ji gave the details, but in short it means INDIA. NDA, can you challenge INDIA? BJP, can you challenge INDIA? All focus, all publicity, all campaigning, all programmes will be held under the banner of INDIA. If anybody has a challenge, catch us if you can," says… pic.twitter.com/FeGNrC3AZE

    — Press Trust of India (@PTI_News) July 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">
  • VIDEO | "This fight is not between the BJP and opposition. The country's voice is being muzzled, this is the fight for that. That's why we came up with this name - Indian National Developmental Inclusive Alliance - means INDIA," says Congress leader Rahul Gandhi at the joint… pic.twitter.com/AcspxemIJS

    — Press Trust of India (@PTI_News) July 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

नीतीश को बताया अस्थिर पीएम प्रत्याशी - बेंगलुरु में नीतीश का एक पोस्टर लगाया गया है. इसमें उन्हें 'अस्थिर पीएम प्रत्याशी' के तौर पर बताया गया है. पेस्टर के बैकग्राउंड में एक पुल को दिखाया गया है. यह पुल बिहार के सुल्तानपुर का है. हाल ही में यह पुल टूट गया था, जिसको लेकर नीतीश पर तंज कसा गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पोस्टर का लब्बो-लुआब यह है कि जिस तरह से बिहार का यह निर्माणाधीन पुल अस्थिर है, उसी तरह से नीतीश भी अस्थिर हैं. पोस्टर में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल किया गया है. इस पोस्टर को किसने लगाया है, उसका क्या मकसद है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. हां, कुछ विश्लेषक यह जरूर बता रहे हैं कि जिसने भी पोस्टर लगाया है, वह नीतीश को विपक्षी दलों का समन्वयक बनने नहीं देना चाहता है.

अगर आपको याद हो तो पटना में विपक्षी दलों की बैठक से एक दिन पहले आम आदमी पार्टी की ओर से कुछ पोस्टर लगवाए गए थे. इस पोस्टर में भी नीतीश कुमार पर ही निशाना साधा गया था. पोस्टर में नीतीश के प्रति अविश्वास जताया गया है. हालांकि, विपक्षी दलों की उस बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के समन्वयक अरविंद केजरीवाल उपस्थित हुए थे.

पोस्टर के केंद्र बिंदु में राहुल-सोनिया - कुछ विश्लेषकों ने बेंगलुरु में हो रही बैठक का एक और पहलू सामने लाया है. यह भी पोस्टर से ही जुड़ा है. दरअसल, बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक से संबंधित जितने भी पोस्टर लगे हैं, उनके केंद्र बिंदु में नीतीश नहीं हैं. उनकी जगह कांग्रेस के नेताओं को वरीयता दी गई है. इनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे प्रमुख हैं. वैसे, हो सकता है कि क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, लिहाजा, जिन कार्यकर्ताओं को पोस्टर लगवाने की जिम्मेदारी दी गई होगी, उन्होंने अपने नेताओं को प्राथमिकता दी होगी. लेकिन जब भी इस स्तर की बैठक होती है, तो एक-एक पोस्टर में मैसेज छिपा होता है और शीर्ष स्तर से हरी झंडी मिलने के बाद ही इसे तैयार किया जाता है. बिहार में भी बैठक के दौरान जितने पोस्टर लगे थे, उनके केंद्र बिंदु में नीतीश थे, क्योंकि वहां पर उनकी सरकार है.

बेंगलुरु के पोस्टर पर यूनाइटेड वी स्टैंड लिखा हुआ है. फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस किसी भी पद को लेकर अड़ी नहीं है. इस बैठक में सोनिया गांधी और ममता बनर्जी की मुलाकात लंबे समय बाद हुई है. पिछल कई महीनों से टीएमसी नेता ममता बनर्जी को पीएम उम्मीदवार बनाने को लेकर बयान देते रहे हैं. हाल ही में पंचायत चुनाव के दौरान भी कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने टीएमसी को खूब भला-बुरा कहा, फिर भी यहां पर साथ-साथ हैं.

परिस्थितिवश नीतीश और लालू साथ-साथ आ गए. राजद नेता गाहे-बगाहे बयान देते रहते हैं कि नीतीश को केंद्र की राजनीति करनी चाहिए और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव के हाथों सौंप देनी चाहिए. क्या नीतीश ऐसा करेंगे, देखना दिलचस्प होगा.

इसी तरह से अखिलेश यादव और राहुल लंबे समय बाद साथ-साथ दिखे. यूपी विधानसभा चुनाव में दो लड़कों के तौर पर जाने जाते थे, पर उनका वहां पर प्रयोग असफल हो गया. यूपी में क्या दोनों के बीच तालमेल बैठेगा, कहना मुश्किल है. वैसे, बीएसपी इस विपक्षी दल में शामिल नहीं है.

कांग्रेस और आप भी साथ-साथ आ गए हैं. कांग्रेस ने अपने लोकल कार्यकर्ताओं और नेताओं की राय को दरकिनार कर दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल का साथ देने का ऐलान कर दिया. आगे क्या होगा, कहना मुश्किल है. कर्नाटक में विपक्षी दलों के नेताओं के स्वागत पर आईएएस अधिकारियों को भेजे जाने पर एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस की निंदा की है.

ये भी पढ़ें : BJP Brings NDA Into Focus : भाजपा का 'काउंटर प्लान', विपक्षी एकता को देगी चुनौती

नई दिल्ली/बेंगलुरु : एनडीए की सत्ता को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों की बैठक बेंगलुरु में हो रही है. इससे पहले 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में बैठक हुई थी. आज की बैठक के बाद विपक्षी दलों की 'रणनीति' बहुत हद तक साफ हो जाएगी. विपक्षी पार्टियों के इस गठबंधन का मुकाबला करने के लिए एनडीए भी कमर कस चुका है और आज ही उनकी भी बैठक हो रही है. एनडीए की बैठक नई दिल्ली में है. उनका दावा है कि उनके साथ 38 दल हैं, जबकि यूपीए की बैठक में 26 राजनीतिक दल शामिल हैं.

आज की दोनों ही बड़ी बैठकों से बहुत हद तक यह तय हो जाएगा कि 2024 के आम चुनाव से पहले किस तरह की राजनीतिक बिसात बिछने जा रही है. कुछ लोग तो इस 'मोमेंट' को 'जेपी मूवमेंट' से भी जोड़ रहे हैं. जेपी यानी जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ अभियान चलाया था, और वे उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब भी हुए थे, तो क्या इस बार भी विपक्षी दलों की वैसी ही तैयारी है, या फिर दोनों परिस्थितियों की तुलना करना ही बेकार है.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि निश्चित तौर पर विपक्षी दलों के पास जेपी जैसा कोई नेता नहीं है और न ही कोई ऐसा मास लीडर जिसकी एक अपील पर छात्र सड़कों पर आ जाएं और सरकार एक्शन लेने के लिए बाध्य हो जाए. दूसरी बात यह है कि उस समय इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, लिहाजा लोगों में नाराजगी थी. आज वैसी स्थिति नहीं है. ये अलग बात है कि विपक्षी दलों का मानना है कि आज की परिस्थिति इमरजेंसी जैसी ही है. उनका कहना है कि सरकार के इशारे पर विपक्षी दलों को सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां तंग कर रही हैं.

विपक्ष के इन आरोपों को पीएम मोदी सिरे से खारिज कर चुके हैं. कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी कार्रवाई जारी रहेगी. आज भी उन्होंने विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि 26 दलों की बैठक का आधार भ्रष्टाचार को छिपाना है. पीएम मोदी ने कहा कि वे इतने अधिक घबराए हैं कि उन्हें अपने कार्यकर्ताओं की भी नहीं परवाह है. उन्होंने प.बंगाल स्थानीय चुनाव में नॉन टीएमसी कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर कांग्रेस की चुप्पी को लेकर सवाल उठाए.

विपक्षी दलों और एनडीए की अलग-अलग बैठकों को नजारा - आपको बता दें कि एनडीए की बैठक में 38 दल शामिल हो रहे हैं. लेकिन यहां भी विपक्षी दलों की तरह आपसी खींचतान जारी है. मसलन बिहार का ही उदाहरण ले लीजिए. बैठक में चिराग पासवान हिस्सा ले रहे हैं. उनके चाचा पशुपति पारस भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं. वह मोदी सरकार के मंत्री हैं. पशुपति पारस ने साफ कर दिया है कि वह एनडीए में बने रहेंगे. ऐसे में भाजपा के सामने यह चुनौती है कि वह किस तरह से एलजेपी की आपसी गुटबाजी को खत्म कर पाती है.

  • Indians never lacked capabilities and capacities, but the corrupt Dynastic Parties always meted out injustice to them and made India bear the consequences.

    Democracy means 'of the people, by the people, for the people'.

    But these Parivarvaadi Parties have a mantra of 'of the…

    — BJP (@BJP4India) July 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान अपने को पीएम मोदी का 'हनुमान' मानते थे. विश्लेषक मानते हैं कि उनकी वजह से जेडीयू तीसरे स्थान पर पहुंच गई. इस वजह से जेडीयू और भाजपा के बीच खटास बढ़ी और दोनों अलग हो गए. अब चिराग चाहते हैं कि भाजपा उन्हें छह सीटें दे, साथ ही वह हाजीपुर लोकसभा सीट पर भी दावा कर रहे हैं. उनके चाचा पशुपति पारस किसी भी हाल में हाजीपुर सीट देने को तैयार नहीं हैं.

बहुत कुछ ऐसी ही स्थिति राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी को लेकर है. यहां पर उपेंद्र कुशवाहा और नागमणि के बीच रस्साकशी चल रही है. नागमणि और उपेंद्र कुशवाहा एक ही जाति से हैं, लिहाजा दोनों के बीच आपसी खींचतान चल रही है. दोनों ही नेता एनडीए की बैठक में हैं. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2019 में भाजपा को 17, जेडूयी को 16, छह सीटें एलजेपी को मिली थीं. अब जेडीयू का राजद के साथ गठबंधन है. भाजपा जब सीटों को लेकर तस्वीर साफ करेगी, तब हम जैसे दल क्या प्रतिक्रिया देते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी. 'हम/ जीतन राम मांझी की पार्टी है.

विपक्षी दलों की बैठक का नजारा - 26 दल बैठक में शामिल- इन्होंने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखने का फैसला किया है. इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इन्कलूसिव एलायंस. हालांकि बैठक से पहले पोस्टर के लिए जरूर अंतरविरोध दिखा. वैसे सभी नेताओं ने यह माना कि हमारे बीच अंतरविरोध हैं, लेकिन इसके बावजूद हम आगे बढ़ेंगे. आइए इन दलों के अंतरविरोधों पर भी एक नजर डालते हैं.

  • VIDEO | "Kharge Ji gave the details, but in short it means INDIA. NDA, can you challenge INDIA? BJP, can you challenge INDIA? All focus, all publicity, all campaigning, all programmes will be held under the banner of INDIA. If anybody has a challenge, catch us if you can," says… pic.twitter.com/FeGNrC3AZE

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  • VIDEO | "This fight is not between the BJP and opposition. The country's voice is being muzzled, this is the fight for that. That's why we came up with this name - Indian National Developmental Inclusive Alliance - means INDIA," says Congress leader Rahul Gandhi at the joint… pic.twitter.com/AcspxemIJS

    — Press Trust of India (@PTI_News) July 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

नीतीश को बताया अस्थिर पीएम प्रत्याशी - बेंगलुरु में नीतीश का एक पोस्टर लगाया गया है. इसमें उन्हें 'अस्थिर पीएम प्रत्याशी' के तौर पर बताया गया है. पेस्टर के बैकग्राउंड में एक पुल को दिखाया गया है. यह पुल बिहार के सुल्तानपुर का है. हाल ही में यह पुल टूट गया था, जिसको लेकर नीतीश पर तंज कसा गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पोस्टर का लब्बो-लुआब यह है कि जिस तरह से बिहार का यह निर्माणाधीन पुल अस्थिर है, उसी तरह से नीतीश भी अस्थिर हैं. पोस्टर में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल किया गया है. इस पोस्टर को किसने लगाया है, उसका क्या मकसद है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. हां, कुछ विश्लेषक यह जरूर बता रहे हैं कि जिसने भी पोस्टर लगाया है, वह नीतीश को विपक्षी दलों का समन्वयक बनने नहीं देना चाहता है.

अगर आपको याद हो तो पटना में विपक्षी दलों की बैठक से एक दिन पहले आम आदमी पार्टी की ओर से कुछ पोस्टर लगवाए गए थे. इस पोस्टर में भी नीतीश कुमार पर ही निशाना साधा गया था. पोस्टर में नीतीश के प्रति अविश्वास जताया गया है. हालांकि, विपक्षी दलों की उस बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के समन्वयक अरविंद केजरीवाल उपस्थित हुए थे.

पोस्टर के केंद्र बिंदु में राहुल-सोनिया - कुछ विश्लेषकों ने बेंगलुरु में हो रही बैठक का एक और पहलू सामने लाया है. यह भी पोस्टर से ही जुड़ा है. दरअसल, बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक से संबंधित जितने भी पोस्टर लगे हैं, उनके केंद्र बिंदु में नीतीश नहीं हैं. उनकी जगह कांग्रेस के नेताओं को वरीयता दी गई है. इनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे प्रमुख हैं. वैसे, हो सकता है कि क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, लिहाजा, जिन कार्यकर्ताओं को पोस्टर लगवाने की जिम्मेदारी दी गई होगी, उन्होंने अपने नेताओं को प्राथमिकता दी होगी. लेकिन जब भी इस स्तर की बैठक होती है, तो एक-एक पोस्टर में मैसेज छिपा होता है और शीर्ष स्तर से हरी झंडी मिलने के बाद ही इसे तैयार किया जाता है. बिहार में भी बैठक के दौरान जितने पोस्टर लगे थे, उनके केंद्र बिंदु में नीतीश थे, क्योंकि वहां पर उनकी सरकार है.

बेंगलुरु के पोस्टर पर यूनाइटेड वी स्टैंड लिखा हुआ है. फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस किसी भी पद को लेकर अड़ी नहीं है. इस बैठक में सोनिया गांधी और ममता बनर्जी की मुलाकात लंबे समय बाद हुई है. पिछल कई महीनों से टीएमसी नेता ममता बनर्जी को पीएम उम्मीदवार बनाने को लेकर बयान देते रहे हैं. हाल ही में पंचायत चुनाव के दौरान भी कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने टीएमसी को खूब भला-बुरा कहा, फिर भी यहां पर साथ-साथ हैं.

परिस्थितिवश नीतीश और लालू साथ-साथ आ गए. राजद नेता गाहे-बगाहे बयान देते रहते हैं कि नीतीश को केंद्र की राजनीति करनी चाहिए और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव के हाथों सौंप देनी चाहिए. क्या नीतीश ऐसा करेंगे, देखना दिलचस्प होगा.

इसी तरह से अखिलेश यादव और राहुल लंबे समय बाद साथ-साथ दिखे. यूपी विधानसभा चुनाव में दो लड़कों के तौर पर जाने जाते थे, पर उनका वहां पर प्रयोग असफल हो गया. यूपी में क्या दोनों के बीच तालमेल बैठेगा, कहना मुश्किल है. वैसे, बीएसपी इस विपक्षी दल में शामिल नहीं है.

कांग्रेस और आप भी साथ-साथ आ गए हैं. कांग्रेस ने अपने लोकल कार्यकर्ताओं और नेताओं की राय को दरकिनार कर दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल का साथ देने का ऐलान कर दिया. आगे क्या होगा, कहना मुश्किल है. कर्नाटक में विपक्षी दलों के नेताओं के स्वागत पर आईएएस अधिकारियों को भेजे जाने पर एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस की निंदा की है.

ये भी पढ़ें : BJP Brings NDA Into Focus : भाजपा का 'काउंटर प्लान', विपक्षी एकता को देगी चुनौती

Last Updated : Jul 18, 2023, 5:12 PM IST
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