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दक्षिण पैंगोंग में भारत के मास्टर स्ट्रोक के बाद पीएलए ने पीछे खींचे कदम - दक्षिण पंगोंग में मास्टर स्ट्रोक के बाद पीएलए ने पीछे खींचे कदम

29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने चीनी सेना के रवैये को बदलने वाले पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट के पास एक सफल ऑपरेशन किया. इस मास्टर स्ट्रोक ने पैंगोंग त्सो के पास भारतीय सेना को मजबूत बढ़त दी.पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट

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Published : Feb 12, 2021, 7:51 AM IST

नई दिल्ली : भारतीय सेना के उग्र प्रतिरोध, कड़वी सर्दी और रसद आपूर्ति को बनाए रखने के मुद्दे के अलावा कुछ और भी कारण हैं जिसके बाद पूर्वी लद्दाख में चल रहे भारत-चीन गतिरोध के बीच चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने विघटन और डी-एस्कलेशन का विकल्प चुना है. इसकी पारस्परिक रूप से तय की गई प्रक्रिया के तहत बुधवार को दक्षिणी पैंगोंग त्सो क्षेत्र में टैंकों को पीछे खींचते हुए समन्वयित कदमों की पहली चाल देखी गई.

11 नवंबर को ईटीवी भारत ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तावित पारस्परिक वापसी पर रिपोर्ट दी थी, जो भारत को फिंगर 3 और 4 के बीच धन सिंह थापा पोस्ट पर वापस ले जाएगा. जबकि चीनी फिंगर 8 से आगे निकल जाएंगे. लेकिन यह भारतीय सेना द्वारा कुछ ऊंचाइयों पर अचानक कब्जे का मास्टर स्ट्रोक था, जिसमें 29-30 अगस्त को दक्षिण पैंगोंग पर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स- Special Frontier Force (SFF) के सैनिकों को गुप्त रूप से शामिल किया गया था. इसने चीन को आश्चर्यचकित कर दिया था. सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि एक कदम के साथ भारतीय सेना ने पीएलए के कब्जे वाले 'ब्लैक टॉप' और 'हेमलेट' के बीच स्थित 'सैडल' क्षेत्र सहित कुछ बिंदुओं पर कब्जा कर लिया. लद्दाख स्थित 14 कोर की कमान संभालने वाले सैन्य अधिकारी ने पहचान नहीं होने की शर्त पर ईटीवी भारत को यह जानकारी दी.

SFF ने किया उंचाई पर कब्जा

SFF एक भारतीय सेना का गठन है. जिसमें स्थानीय तिब्बती सैनिक शामिल हैं जो मूल रूप से खम्पा क्षेत्र से आते हैं. जो पहाड़ी युद्ध में कुशल और कठोर सेनानियों को प्रशिक्षित करने के लिए जाना जाता है. भौगोलिक विशेषताएं जैसे गुरुंग हिल, कैमल बैक सभी हमारे कब्जे में हैं. वर्षों से वहां सेवा कर रहे क्षेत्र से परिचित पूर्व अधिकारी ने कहा कि सैडल के साथ हमारे पास मोल्दो में स्पांगुर लेक तक पीएलए बेस का बहुत अच्छा कमांडिंग व्यू था. हम उस सड़क को भी देख सकते हैं जो मोल्दो पीएलए बेस पर आती है. स्पांगुर गैप के आगे दक्षिण में हम बहुत मजबूत स्थिति में हैं.

1962 की जंग में रेजांग ला था मुद्दा

पूर्व कमांडर ने कहा कि भारतीय कब्जे के बाद चीनी पक्ष ने महसूस किया कि उन्हें बेवकूफ बनाया गया था और बाद में चीन से प्रकाशित होने वाले ग्लोबल टाइम्स में दावा किया कि हम चीनी क्षेत्र में 4 किमी अंदर थे. चार किमी अंदर का मतलब होता कि चीन ने चुशुल घाटी के लिए क्षेत्रीय दावे किए हैं. यह विशेष दावा पहले कभी नहीं किया था. दावे से चीन को पता चला कि वे काफी घबराए हुए थे. फिंगर क्षेत्रों सहित उत्तरी बैंक क्षेत्र सामरिक परिणाम के नहीं हैं लेकिन दक्षिणी बैंक में ऊंचाइयां हैं. दक्षिणी बैंक की टुकड़ी में रेजांग ला भी शामिल था जिसके लिए 1962 में भयंकर लड़ाई लड़ी गई थी. यह पहली बार था जब भारतीय सेना ने इस स्थान पर कब्जा कर लिया था.

यह भी पढ़ें-बजट सत्र : लोक सभा में बोले राहुल गांधी, पीएम ने दिए 3 विकल्प- भूख, बेरोजगारी और आत्महत्या

कब्जे की पुरानी स्थिति यह थी

रेजांग ला और रिनचेन ला अंतर के दाईं ओर हैं जहां से महत्वपूर्ण रूप से कैलाश रेंज शुरू होती है. 'ला' का अर्थ स्थानीय भाषा में एक पहाड़ी दर्रा (pass) है. झील के उत्तरी तट पर 'फिंगर एरिया' के बारे में बहुत कुछ कहा गया है. लेकिन वहां बहुत ज्यादा सामरिक महत्व नहीं है क्योंकि झील पर मशीन बोट आगे के क्षेत्रों में भी जाती रहती हैं. वहीं दक्षिणी बैंक की ऊंचाइयां मायने रखती हैं. फिंगर 1 से फिंगर 8 ऐसे बिंदु (spurs) हैं जो पहाड़ों से दक्षिण-दिशा में पैंगोंग झील से उत्तर-दक्षिण दिशा में निकलती हैं, जबकि भारत फिंगर 8 के पास एलएसी मानता है. चीन फिंगर 3 तक के क्षेत्र का दावा करता है. अतीत में पीएलए फिंगर 8 से 4 तक गश्त करता था. भारतीय सेना फिंगर 4 से 8 तक गश्त करती थी.

नई दिल्ली : भारतीय सेना के उग्र प्रतिरोध, कड़वी सर्दी और रसद आपूर्ति को बनाए रखने के मुद्दे के अलावा कुछ और भी कारण हैं जिसके बाद पूर्वी लद्दाख में चल रहे भारत-चीन गतिरोध के बीच चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने विघटन और डी-एस्कलेशन का विकल्प चुना है. इसकी पारस्परिक रूप से तय की गई प्रक्रिया के तहत बुधवार को दक्षिणी पैंगोंग त्सो क्षेत्र में टैंकों को पीछे खींचते हुए समन्वयित कदमों की पहली चाल देखी गई.

11 नवंबर को ईटीवी भारत ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तावित पारस्परिक वापसी पर रिपोर्ट दी थी, जो भारत को फिंगर 3 और 4 के बीच धन सिंह थापा पोस्ट पर वापस ले जाएगा. जबकि चीनी फिंगर 8 से आगे निकल जाएंगे. लेकिन यह भारतीय सेना द्वारा कुछ ऊंचाइयों पर अचानक कब्जे का मास्टर स्ट्रोक था, जिसमें 29-30 अगस्त को दक्षिण पैंगोंग पर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स- Special Frontier Force (SFF) के सैनिकों को गुप्त रूप से शामिल किया गया था. इसने चीन को आश्चर्यचकित कर दिया था. सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि एक कदम के साथ भारतीय सेना ने पीएलए के कब्जे वाले 'ब्लैक टॉप' और 'हेमलेट' के बीच स्थित 'सैडल' क्षेत्र सहित कुछ बिंदुओं पर कब्जा कर लिया. लद्दाख स्थित 14 कोर की कमान संभालने वाले सैन्य अधिकारी ने पहचान नहीं होने की शर्त पर ईटीवी भारत को यह जानकारी दी.

SFF ने किया उंचाई पर कब्जा

SFF एक भारतीय सेना का गठन है. जिसमें स्थानीय तिब्बती सैनिक शामिल हैं जो मूल रूप से खम्पा क्षेत्र से आते हैं. जो पहाड़ी युद्ध में कुशल और कठोर सेनानियों को प्रशिक्षित करने के लिए जाना जाता है. भौगोलिक विशेषताएं जैसे गुरुंग हिल, कैमल बैक सभी हमारे कब्जे में हैं. वर्षों से वहां सेवा कर रहे क्षेत्र से परिचित पूर्व अधिकारी ने कहा कि सैडल के साथ हमारे पास मोल्दो में स्पांगुर लेक तक पीएलए बेस का बहुत अच्छा कमांडिंग व्यू था. हम उस सड़क को भी देख सकते हैं जो मोल्दो पीएलए बेस पर आती है. स्पांगुर गैप के आगे दक्षिण में हम बहुत मजबूत स्थिति में हैं.

1962 की जंग में रेजांग ला था मुद्दा

पूर्व कमांडर ने कहा कि भारतीय कब्जे के बाद चीनी पक्ष ने महसूस किया कि उन्हें बेवकूफ बनाया गया था और बाद में चीन से प्रकाशित होने वाले ग्लोबल टाइम्स में दावा किया कि हम चीनी क्षेत्र में 4 किमी अंदर थे. चार किमी अंदर का मतलब होता कि चीन ने चुशुल घाटी के लिए क्षेत्रीय दावे किए हैं. यह विशेष दावा पहले कभी नहीं किया था. दावे से चीन को पता चला कि वे काफी घबराए हुए थे. फिंगर क्षेत्रों सहित उत्तरी बैंक क्षेत्र सामरिक परिणाम के नहीं हैं लेकिन दक्षिणी बैंक में ऊंचाइयां हैं. दक्षिणी बैंक की टुकड़ी में रेजांग ला भी शामिल था जिसके लिए 1962 में भयंकर लड़ाई लड़ी गई थी. यह पहली बार था जब भारतीय सेना ने इस स्थान पर कब्जा कर लिया था.

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कब्जे की पुरानी स्थिति यह थी

रेजांग ला और रिनचेन ला अंतर के दाईं ओर हैं जहां से महत्वपूर्ण रूप से कैलाश रेंज शुरू होती है. 'ला' का अर्थ स्थानीय भाषा में एक पहाड़ी दर्रा (pass) है. झील के उत्तरी तट पर 'फिंगर एरिया' के बारे में बहुत कुछ कहा गया है. लेकिन वहां बहुत ज्यादा सामरिक महत्व नहीं है क्योंकि झील पर मशीन बोट आगे के क्षेत्रों में भी जाती रहती हैं. वहीं दक्षिणी बैंक की ऊंचाइयां मायने रखती हैं. फिंगर 1 से फिंगर 8 ऐसे बिंदु (spurs) हैं जो पहाड़ों से दक्षिण-दिशा में पैंगोंग झील से उत्तर-दक्षिण दिशा में निकलती हैं, जबकि भारत फिंगर 8 के पास एलएसी मानता है. चीन फिंगर 3 तक के क्षेत्र का दावा करता है. अतीत में पीएलए फिंगर 8 से 4 तक गश्त करता था. भारतीय सेना फिंगर 4 से 8 तक गश्त करती थी.

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