हरदा (भोपाल) : मध्य प्रदेश की धरती हरदा से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. हरदा जिसे बापू ने हृदय नगरी के नाम से नवाजा था (THE TITLE OF HEART CITY), आज भी यहां के लोगों ने राष्ट्रपिता की यादों को संजो रखा है.
आजादी की लड़ाई में हरदा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी अहम रोल रहा है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंपालाल सोकल की दो बेटियों की उम्र भले ही 92 और 87 वर्ष की हो गई हो, लेकिन दिन की शुरुआत 'रघुपति राघव राजा राम' के स्वर से ही होती है. दोनों बहनें बापू के प्रिय भजन का गायन करती हैं.
इस परिवार ने बीते 88 सालों से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों को जीवन का हिस्सा बना रखा है. गांधीजी के हरदा आगमन के दौरान शहर के नागरिकों ने उन्हें रुपयों से भरी एक थैली भेंट की थी, जिसमें 1,633 रुपए 15 आने एकत्रित किए गए थे. साथ ही चांदी भी भेंट की गई थी, जिसे उसी दौरान नीलाम कर दिया गया था.
ये चांदी और किसी ने नहीं बल्कि हरदा के रहने वाले सोकल परिवार के वरिष्ठ सदस्य और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय चंपालाल शंकर के पिता स्वर्गीय तुलसीराम सोकल ने 101 रुपए में खरीदी थी. गांधीजी की हरदा यात्रा की उन अनमोल यादों को हरदा के इस परिवार की वृद्ध बहनों ने अब तक संजोए रखा है.
सेवानिवृत शिक्षक सरला सोकल ने बताया कि 'पिताजी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, गांधीजी के समय में उन्होंने बहुत काम किया. स्टेज मेरे पिता ही संभालते थे. अनुशासन बनाने का काम भी उन्हीं का था. गांधी जी की 100 से 150 पुस्तकें हमारे पास थीं जिन्हें हमने सेवा आश्रम अहमदाबाद भेज दिया है, एक चरखा था जिससे पिताजी सूत कातते थे उसे भी सेवा आश्रम भेज दिया है. आज भी गांधी जी की यादें हमे रोमांचित कर देती हैं. उस समय गांधी जी हरदा आए थे तब हमारी उम्र कम थी लेकिन हमने उनके किस्से कहानियां अपने पिता और दादा से सुने थे'
गांधी जी ने हरदा को बताया हृदय नगरी
8 दिसंबर 1933 को जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हरदा आए तो यहां के लोगों ने उन पर फूलों की बारिश की, साथ ही एक लाइन में खड़े होकर उनका स्वागत किया. जनता के अनुशासन को देखकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हरदा के लोगों की प्रशंसा करते हुए अपने 20 मिनट के भाषण में हरदा को हृदय नगरी की उपमा से परिभाषित भी किया.
सरला सोकल ने बताया कि उस समय जो रुपया इकट्ठा हुआ था उससे मेरे दादा जी ने नीलामी में चांदी का ट्रे खरीदा था. इस ट्रे को गांधी जी को भेंट किया गया था. ये चांदी की ट्रे आज भी हमारे पास है गांधी जी यादों में है. जो लोग भी आते हैं हम उन्हें ये ट्रे जरूर दिखाते हैं. मेरे पिता रोज चरखा से सूत कातते थे. वो उसी सूत के कपड़े बनाकर पहनते थे. जेल में रहने के दौरान सूत कातकर उन्होंने हम दोनों बहनों के लिए 5 साड़ियां बनाई थीं. आज भी हमारे पास ये साड़ियां याद के रूप में रखी हुई हैं. आज भी हमने गांधी जी की हर याद को सहेजकर रखा है. उन्होंने बताया कि आयोजन के बाद स्थानीय लोगों ने बापू के सम्मान में उन्हें 1633 रुपये 15 आने के साथ मानपत्र भेंट किया, जिसका उल्लेख हरिजन सेवक नामक समाचार पत्र में भी किया गया था.
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सरला सोकल ने बताया कि मेरे ताउजी बाम्बे (अब मुंबई) जाकर माइक लेकर आए थे और साथ में लाउड स्पीकर भी, हमारे परिचित सूरजमल उस समय गाड़ी चला रहे थे जिस गाड़ी में गांधीजी को बैठाकर लाए थे. गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है कि उन्होंने जो अनुशासन हरदा में देखा वो कहीं और नहीं देखने को मिला. गांधी जी ने इसकी खूब प्रशंसा की थी.
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