नई दिल्ली: द कश्मीर फाइल्स (The kashmir files) नाम की फिल्म इन दिनों सुर्खियों में है. बीजेपी पर एक आरोप ये लग रहा है कि उस समय की केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी. केएन गोविंदाचार्य उस समय बीजेपी के महासचिव थे और प्रमुख रणनीतिकारों में से एक थे. जब उनसे यह पूछा गया कि तब वीपी सिंह सरकार से बीजेपी ने समर्थन क्यों नहीं वापस लिया?
इस पर गोविंदाचार्य ने कहा कि लोग वहां से भाग रहे थे. दिल्ली आ रहे थे तो उनको रिसीव करना, उनको शेल्टर देना, उनके योगक्षेम की व्यवस्था करना भी तो जरूरी था. गोविंदाचार्य ने कहा कि आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बीजेपी के एक और महासचिव केदार नाथ साहनी को इस पूरे काम का प्रमुख बनाया गया था. उन्होंने दिन-रात दो साल इस काम में मेहनत की. बिना एक शब्द कहे और एक बारे में अपने कामों का मीडिया में भी जिक्र नहीं किया. वे अनथक कश्मीरियों की मदद करने में जुटे रहे.
जब उनसे यह पूछा गया कि कश्मीरी पंडितों की मदद की बात तो ठीक है लेकिन उस समय की सरकार से इसका विरोध जताते हुए समर्थन वापस भी तो लिया जा सकता था? इस पर केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि उस समय की राजनैतिक परिस्थितियां दूसरी तरह की थीं. हम तो बाहर से समर्थन कर रहे थे. हमारे समर्थन करने या न करने का सरकार पर कोई विशेष प्रभाव नही पड़ना था. हम जो कर सकते थे, वो ये था कि सदन में चर्चा में भाग लेना, अपनी राय रखना, वो तो हमने किया. इसके अलावा बाहर हम क्या कर सकते थे. केवल समर्थन वापस ले लेना ही तो विकल्प था. उसके पोलिटिकल कैलकुलेशन भी होने थे. आप समर्थन वापस ले लीजिए, उसका फायदा उठाने के लिए विपक्ष के लोग तैयार थे.
कौन चाहता था वीपी सिंह को पीएम बनाए रखना? यहां तक कि देवीलाल और चंद्रशेखर भी तो अपने रिजर्वेशन्स रखते थे. वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर भी तो थे. ऐसी स्थिति में हमारे समर्थन वापसी का मतलब तख्तापलट ही तो होता. ये कोई विवेकपूर्ण और बुद्धिमानी भरा कदम नहीं होता और समर्थन हटा लेते तो उस से क्या हो जाता. राष्ट्रपति शासन लागू होता. राष्ट्रपति कौन थे? इसलिए पोलिटिकली प्रूडेन्ट इन पॉलिटिक्स तो आर्ट ऑफ द बेस्ट पॉसिबल है.
उस समय की जटिल परिस्थितियों में सही तरीका यही था कि कश्मीरी पंडितों को उनके पुनर्वास में हर संभव मदद की जाती. आप इस पर भी तो चर्चा करें कि उनके पुनर्वास पर किसने सबसे ज्यादा काम किया. कश्मीरी पंडितों को पलायन के बाद किसने उनको यहां मदद की, उन्हीं से पूछा जाय.
यह सवाल कि उस वक्त जो बड़े नेता थे, लाल कृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, इन लोगों ने क्या उस समय के प्रधानमंत्री से बात की या गृह मंत्री से कश्मीरी पंडितों की इस समस्या के बारे में बात की? इस पर केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि ये नहीं कह सकता. लेकिन यह मालूम है कि संसद में इस बारे में बीजेपी के नेताओं ने कई बार कश्मीरी पंडितों की समस्या रखी थी.
यह सवाल कि आपने कश्मीरी पंडितों के पलायन के समय समर्थन वापस नहीं लिया लेकिन बाद में आपने मंडल-कमंडल के मुद्दे पर रथ यात्रा के मामले में समर्थन वापस ले लिया और बाहर हो गए? तो केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि राम मंदिर का मसला पूरे देश की आडेंटिटी का विषय था और उसमें जम्मू कश्मीर भी शामिल था.
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यह सवाल कि तो क्या बीजेपी अपना नफा-नुकसान तौल रही थी? इस पर केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि नहीं. नफा-नुकसान की बात ही नहीं है. उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों में कश्मीरी पंडितों को राहत देना पहला काम था. राजनीति बाद की बात थी. राम का विषय देश की पहचान का विषय है, वो पार्टीबाजी का मुद्दा था ही नहीं.