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इनकी प्रतिभा के अमिताभ भी हुए कायल, लोग इन्हें कहते हैं 'फुनसुक वांगडू'

आइए मिलते हैं झारखंड के 'फुनसुक वांगडू' से. जी हां, वही वांगडू जिसे आपलोग 'थ्री इडियट' मूवी में देख चुके हैं. इनका नाम है ज्ञान राज. इनकी प्रतिभा देखकर मेगा स्टार अमिताभ बच्चन भी चकित रह गए. आप इसे इसी सप्ताह 'केबीसी' प्रोग्राम में देखेंगे.

ज्ञान राज
ज्ञान राज
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Published : Aug 20, 2021, 3:46 PM IST

Updated : Aug 20, 2021, 4:23 PM IST

रांची : हम हमेशा सुनते हैं कि ज्ञान व्यक्ति को आगे ले जाता है, बुद्धि से किसी इंसान की पहचान होती है. कोई भी इंसान विवके से कहीं पर भी अपने नाम की पहचान करा सकता है. आज हम आपको एक युवक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके कायल न अमिताभ बच्चन भी हैं. रांची से करीब 15 किलोमीटर दूर पिस्का नगड़ी गांव के रहने वाले ज्ञान राज की प्रतिभा को अब तक सिर्फ उसी इलाके के लोग जानते थे.

लेकिन 'कौन बनेगा करोड़पति' के हॉट सीट पर बैठने के बाद उन्हें पूरा देश जानने लगा है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने ज्ञान राज की तुलना 'थ्री इडियट' मूवी के रेंचो उर्फ फुनसुक वांगड़ू के किरदार से की है. यह फिल्म सुपर हिट हुई थी. इस फिल्म का एक डायलॉग आज भी खूब लोकप्रिया है ...'कामयाब होने के लिए नहीं, काबिल होने के लिए पढ़ो.' लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इसके मायने समझ पाते हैं.

उन चंद लोगों में रांची के ज्ञान राज भी हैं. इसी वजह से उन्हें समाज में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाबी हासिल हुई है. ज्ञान अपने ही पिता के स्कूल के बच्चों में छिपे भावी वैज्ञानिक को तराश रहे हैं. अपनी गांव की मिट्टी में इसरो तक जाने के सपने सजा रहे हैं.

ईटीवी भारत से बात करते ज्ञान राज

PSA ग्रुप के मेंबर हैं ज्ञान राज

भारत के PSA यानी प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर हैं के विजयन राघवन. उन्होंने 1999 में एक ग्रुप बनाया था. यह ग्रुप प्रधानमंत्री को साइंस एंड टेक्नोलॉजी की जरूरतों से जुड़ा सुझाव देता है. इस ग्रुप में देश भर से 100 यंग साइंटिस्ट जोड़े गए हैं. इनमें रांची के ज्ञान राज भी शामिल हैं.

अटल का मिला सहयोग

नीति आयोग ने अटल मिशन लैब के तहत 'अटल टिंकरिंग लैब' को शुरू किया था. इसका मकसद है बच्चों और युवाओं में वैज्ञानिक सोच विकसित करना. ज्ञान राज ने इस लैब का लाभ लेने के लिए पोर्टल पर प्रोजेक्ट बनाकर अप्लाई किया था.

बता दें कि झारखंड में सिर्फ तीन जगह यह लैब है.अटल लैब की तरफ से समय-समय पर बच्चों के लिए वर्कशॉप का आयोजन होता है ताकि उनकी वैज्ञानिक क्षमता में निखार आए. इन लैब में बच्चों को रोबोटिक, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस, ड्रोन मेकिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और वर्चुअल रिएलिटी की जानकारी दी जाती है. साथ ही नए नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है. यहां के बच्चे बाजार से ड्रोन खरीदने के बजाए खुद ड्रोन बनाकर उड़ाते हैं. इस स्कूल के ज्यादातर बच्चे इंजीनियर बनना चाहते हैं.

ज्ञान राज ने अपने पिता दुबराज साहू द्वारा स्थापित राज इंटरनेशनल स्कूल से 10वीं की पढ़ाई पूरी की. फिर रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से साइंस में स्टेट टॉपर बने. रांची के ही बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में बी-टेक किया. इसके बाद इन्हें कई बड़ी कंपनियों से ऑफर मिले. लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया.

ज्ञान राज के स्कूल के बच्चों को साइंस एंड टेक्नोलॉजी से जुड़े कई कॉम्पटीशन में अवॉर्ड मिल चुका है. उन्होंने अपने स्कूल के बच्चों द्वारा तैयार एक मॉडल को भी दिखाया जो सोलर से चलता है. इस छोटी सी मशीन की बदौलत न सिर्फ अपने खेत से घास काटे सकते हैं बल्कि खर-पतवार हटाने से लेकर घर में बच्चों को पढ़ाई के वक्त रौशनी भी पैदा कर सकते हैं.

ज्ञान राज कहते हैं कि गांव के बच्चों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है उन्हें तो बस रास्ता दिखाने वाला चाहिए. मैं वही काम कर रहा हूं और अब वक्त है कि हमारे बच्चे कामयाबी वाली नहीं बल्कि काबिल बनने वाली पढ़ाई पढ़ें.

इसे भी पढे़ं-कोविड 19 ने आयुष प्रणाली को वैकल्पिक रूप में उभरने का सुनहरा अवसर दिया : संसदीय पैनल

रांची : हम हमेशा सुनते हैं कि ज्ञान व्यक्ति को आगे ले जाता है, बुद्धि से किसी इंसान की पहचान होती है. कोई भी इंसान विवके से कहीं पर भी अपने नाम की पहचान करा सकता है. आज हम आपको एक युवक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके कायल न अमिताभ बच्चन भी हैं. रांची से करीब 15 किलोमीटर दूर पिस्का नगड़ी गांव के रहने वाले ज्ञान राज की प्रतिभा को अब तक सिर्फ उसी इलाके के लोग जानते थे.

लेकिन 'कौन बनेगा करोड़पति' के हॉट सीट पर बैठने के बाद उन्हें पूरा देश जानने लगा है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने ज्ञान राज की तुलना 'थ्री इडियट' मूवी के रेंचो उर्फ फुनसुक वांगड़ू के किरदार से की है. यह फिल्म सुपर हिट हुई थी. इस फिल्म का एक डायलॉग आज भी खूब लोकप्रिया है ...'कामयाब होने के लिए नहीं, काबिल होने के लिए पढ़ो.' लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इसके मायने समझ पाते हैं.

उन चंद लोगों में रांची के ज्ञान राज भी हैं. इसी वजह से उन्हें समाज में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाबी हासिल हुई है. ज्ञान अपने ही पिता के स्कूल के बच्चों में छिपे भावी वैज्ञानिक को तराश रहे हैं. अपनी गांव की मिट्टी में इसरो तक जाने के सपने सजा रहे हैं.

ईटीवी भारत से बात करते ज्ञान राज

PSA ग्रुप के मेंबर हैं ज्ञान राज

भारत के PSA यानी प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर हैं के विजयन राघवन. उन्होंने 1999 में एक ग्रुप बनाया था. यह ग्रुप प्रधानमंत्री को साइंस एंड टेक्नोलॉजी की जरूरतों से जुड़ा सुझाव देता है. इस ग्रुप में देश भर से 100 यंग साइंटिस्ट जोड़े गए हैं. इनमें रांची के ज्ञान राज भी शामिल हैं.

अटल का मिला सहयोग

नीति आयोग ने अटल मिशन लैब के तहत 'अटल टिंकरिंग लैब' को शुरू किया था. इसका मकसद है बच्चों और युवाओं में वैज्ञानिक सोच विकसित करना. ज्ञान राज ने इस लैब का लाभ लेने के लिए पोर्टल पर प्रोजेक्ट बनाकर अप्लाई किया था.

बता दें कि झारखंड में सिर्फ तीन जगह यह लैब है.अटल लैब की तरफ से समय-समय पर बच्चों के लिए वर्कशॉप का आयोजन होता है ताकि उनकी वैज्ञानिक क्षमता में निखार आए. इन लैब में बच्चों को रोबोटिक, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस, ड्रोन मेकिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और वर्चुअल रिएलिटी की जानकारी दी जाती है. साथ ही नए नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है. यहां के बच्चे बाजार से ड्रोन खरीदने के बजाए खुद ड्रोन बनाकर उड़ाते हैं. इस स्कूल के ज्यादातर बच्चे इंजीनियर बनना चाहते हैं.

ज्ञान राज ने अपने पिता दुबराज साहू द्वारा स्थापित राज इंटरनेशनल स्कूल से 10वीं की पढ़ाई पूरी की. फिर रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से साइंस में स्टेट टॉपर बने. रांची के ही बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में बी-टेक किया. इसके बाद इन्हें कई बड़ी कंपनियों से ऑफर मिले. लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया.

ज्ञान राज के स्कूल के बच्चों को साइंस एंड टेक्नोलॉजी से जुड़े कई कॉम्पटीशन में अवॉर्ड मिल चुका है. उन्होंने अपने स्कूल के बच्चों द्वारा तैयार एक मॉडल को भी दिखाया जो सोलर से चलता है. इस छोटी सी मशीन की बदौलत न सिर्फ अपने खेत से घास काटे सकते हैं बल्कि खर-पतवार हटाने से लेकर घर में बच्चों को पढ़ाई के वक्त रौशनी भी पैदा कर सकते हैं.

ज्ञान राज कहते हैं कि गांव के बच्चों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है उन्हें तो बस रास्ता दिखाने वाला चाहिए. मैं वही काम कर रहा हूं और अब वक्त है कि हमारे बच्चे कामयाबी वाली नहीं बल्कि काबिल बनने वाली पढ़ाई पढ़ें.

इसे भी पढे़ं-कोविड 19 ने आयुष प्रणाली को वैकल्पिक रूप में उभरने का सुनहरा अवसर दिया : संसदीय पैनल

Last Updated : Aug 20, 2021, 4:23 PM IST
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