पटना : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गुरुवार को बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी समारोह में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने बिहार के इतिहास का विस्तार से जिक्र किया और उस पर गर्व होने की बात कही. उन्होंने कहा कि बिहार हमेशा इतिहास रचता है. यह संयोग नहीं था कि संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा और स्थाई अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बिहार के थे. बिहार से ही जयप्रकाश नारायण ने लोकतंत्र को दिशा दी. बिहार की धरती ने समतामूलक समाज की परंपरा स्थापित की है.
'...मैं बिहार बोल रहा हूं, मैं बिहार हूं, मेरे दामन में फूल हैं, तो शूल भी हैं. ऐतिहासिक संस्कारों की थाती हूं, पौराणिक कथाओं का सोपान. परंपराओं के धरोहर का ऐसा दरख्त हूं, जो सदियों से चली आ रही परंपरा का गवाह और परंपराओं के निर्वहन का अग्रदूत भी है. सीता की जन्म स्थली हूं, बुद्ध, महावीर और गुरु गोविंद सिंह की कर्मभूमि, मैं बिहार हूं.'
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हमारी ऐतिहासिक धरोहर हमारे विकास और सभ्यता की वह कहानी कहते हैं, जिस कालखंड से उस व्यवस्था का उद्भव होता है. बिहार एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की धरती है. यहां से पूरे देश को दिशा मिली है. जिन तिथियों पर किसी चीजों की स्थापना हुई जब वह दूरी तय कर लेती हैं. व्यवस्था की इतिहास में एक ऐसा स्तंभ बन जाती हैं, जिससे नए जीवन सीख लेने लगते हैं. कुछ इसी राह पर बिहार इस समय चल रहा है. अपने ऐतिहासिक विरासत के तमाम कालखंड को जिन तिथियों पर बिहार ने जिया था, सजाया था, बिहार की धरती को दिया था, आज वह सब तारीखों के इतिहास में शतक बना रहे हैं. शताब्दी समारोह हर बिहारी के लिए गौरव का विषय भी है और इतराने का भी कि हमारे बिहार ने अपने 100 सालों के इतिहास से विकास की बहुत सारी बानगी लिख दी है.
शताब्दी समारोह मना रहा बिहार
बिहार ने जिन चीजों को स्थापित किया है उनमें से कई ऐसे निर्माण हैं जो 100 साल पूरा कर रहे हैं. बिहार शताब्दी समारोह मना रहा है. बात पटना हाईकोर्ट की करें या बिहार विधानसभा की, पटना विश्वविद्यालय की करें या फिर चंपारण सत्याग्रह की, बिहार ने देश के लिए आजादी की तारीखों पर जो कुछ लिखा था, बिहार को बनाने के लिए जो बनाया था, आज उनका इतिहास इतना बड़ा हो गया है कुछ लिखने, देखने और सजाने के लिए जो कार्यक्रम बन रहे हैं उसकी दिव्यता और भव्यता पूरा विश्व देख रहा है. 100 सालों में बिहार जहां पहुंचा है और जिन चीजों ने बिहार को यह दिशा दी है निश्चित तौर पर उनकी बात होनी लाजमी है.
देश के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद बिहार दौरे पर हैं और बिहार विधानसभा के भवन के 100 साल पूरा होने पर शताब्दी समारोह में शिरकत कर रहे हैं. अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि, हमारे सचिवालय के लोग कहते हैं कि बिहार से आमंत्रण आये तो आप टालमटोल नहीं करते हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि मेरा बिहार से राज्यपाल से ही नाता नहीं है बल्कि और कुछ है जिसे मैं ढूंढता रहता हूं.
दरअसल सीएम नीतीश ने राष्ट्रपति को बिहारी कहा था, उसके जवाब में रामनाथ कोविंद ने कहा कि बिहारी कहा सुनकर खुशी होती है. विपश्यना पद्धति को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगे बढ़ाया है, इसके लिए खासतौर पर सीएम नीतीश कुमार को आभार. बिहार हमेशा इतिहास रचता है. आज बिहार ने इतिहास रचा है. बिहार विधानसभा ने 100 साल पूरे किये हैं. देश ने भी आज इतिहास रचा है. 100 करोड़ कोरोना वैक्सीनेशन का इतिहास, अबसे कुछ देर पहले रचा गया है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि 'बिहार आता हूं तो अच्छा लगता है. बिहार से अलग नाता लगता है. ऐसा लगता है घर आया हूं. बिहार लोकतंत्र की धरती है. यहां वैशाली में लोकतंत्र फला-फूला. इस धरती पर नालंदा, विक्रमशिला जैसे शिक्षण संस्थान थे तो यहां आर्यभट्ट और चाणक्य हुए. इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब बिहार के लोगों की है.'
राष्ट्रपति ने कहा कि, यह संयोग नहीं था कि संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा और स्थाई अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बिहार के थे. बिहार से ही जयप्रकाश नारायण ने लोकतंत्र को दिशा दी. बिहार की धरती ने समतामूलक समाज की परंपरा स्थापित की है. बिहार में नीतीश कुमार ने सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान स्थापित किया है.
इतिहास का गवाह है विधानसभा भवन
बता दें कि देश की आजादी से पहले इस भवन का निर्माण हुआ था. यह देश के आजाद होने से लेकर उसके आगे बढ़ने तक के इतिहास का गवाह भी है. देश की आजादी के लिए बिहार के सपूतों को बलिदान देते इस भवन ने देखा है. आजाद भारत में 'जय हिंद' का नारा लगाकर अपनी मातृभूमि के लिए मर मिटने की कसम खाने वाले वीर सपूतों का भी गवाह है. आजादी के बाद बिहार को विकास की दिशा देने के लिए नीतियां बनाकर उसे बिहार के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए भी यही सदन जिम्मेदार है. यह 100 सालों के अपने मजबूत इतिहास का दरख्त लिए खड़ा है. यह बिहार का स्वाभिमान भी है, अभिमान भी और गौरव भी. आज पूरा बिहार शताब्दी समारोह के रूप में उसी स्वाभिमान, अभिमान और गौरव की गौरव गाथा लिख रहा है. जिसमें शामिल होने माननीय महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बिहार की धरती पर हैं.
1917 में महात्मा गांधी ने रखी थी चंपारण सत्याग्रह की बुनियाद
बिहार के 100 साल के इतिहास के तारीखों पर अगर नजर डालें तो 10 अप्रैल 1917 को बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी बिहार आए थे और चंपारण गए थे. 1917 में ही चंपारण सत्याग्रह ने देश के लिए आजादी की ऐसी बुनियाद रखी, जिससे अंग्रेजी हुकूमत को देश छोड़कर जाना पड़ा. बिहार ने 2017 में चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पर बापू को नमन किया और 100 सालों के इतिहास को लेकर बापू के पद चिन्हों पर चलने की कसम भी खाई. पटना विश्वविद्यालय की बात करें तो इसकी स्थापना 1970 में की गई थी. 2017 में पटना विश्वविद्यालय ने अपनी ऐतिहासिक विरासत के 100 साल पूरे किए. इस अवसर पर भी महामहिम राष्ट्रपति आए थे. इसी कड़ी में बात पटना हाईकोर्ट की कर लें तो पटना हाईकोर्ट 1916 में बनाया गया था. 2016 में पटना हाईकोर्ट के 100 साल पूरे हुए. बिहार ने पटना हाईकोर्ट के शताब्दी समारोह को भी धूमधाम से मनाया था, जिसमें देश की कई बड़ी हस्तियां शामिल हुईं थीं.
2025 में 100 साल का हो जाएगा PMCH
बात बिहार के गौरव की करें तो चाहे बात मुंगेर के किले की हो, सासाराम के मकबरे की, विश्व शांति स्तूप की, बिहार में बुध के महानिर्वाण पर जाने के बाद मौर्य साम्राज्य द्वारा बनाए गए स्तूप की, गौतम बुद्ध, गुरु गोविंद सिंह, तीर्थंकर महावीर या फिर दया से मोक्ष देने वाले पिंडदान की कहानी या माता सीता की जन्म स्थली की. बिहार के कण-कण में ऐतिहासिकता की ऐसी बानगी सजी हुई है जो देश के जीवन से लेकर समाज के मूल तत्व स्थापित करने का काम करता है.
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बिहार विधानसभा भवन के 100 साल पूरे हुए. आज शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है. बिहार एक और बड़ी कहानी 1925 में स्थापित किए गए पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल को 2025 में मनाएगा. पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल बिहार की धड़कन कहीं जाती है. 2025 में पटना मेडिकल कॉलेज 100 साल का हो जाएगा. सौगात के रूप में भारत के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में एक निर्माण भी चल रहा है जो 100 साल की कहानी भी बताएगा.
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ये हमारे विरासत की धरोहर हैं, जिनपर इतराना हर बिहारी का धर्म भी है और उसका हक भी. बिहार के तमाम पौराणिक धरोहर के 100 साल पूरा होने पर जिस तरीके के शताब्दी समारोह कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है उससे एक सीख तो लेना है कि बिहार के दामन में सिद्धांतों और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की इतनी बड़ी थाती है जो बिहार को विकास की दिशा देती है. लेकिन बिहार ने 100 सालों में जो जिया है उसे भी एक बार समाज के तराजू में तौलने की जरूरत है. नक्सली वारदातों से कराहते बिहार ने कई नरसंहारों को दिल के दर्द में छिपा लिया.
100 साल पर कसम लेना जरूरी
नौकरी के लिए पलायन करने वाला बिहार, बाढ़ में अपना सब कुछ गंवा देने वाला बिहार, 100 सालों की वह कहानी लिख चुका है, जिसके दामन में इतिहास का बड़ा स्वरूप है, लेकिन दर्द भी दिल में कुछ कम नहीं. जिस भवन का शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है वहीं से बिहार की नीतियां बनती हैं और नीति नियोक्ता भी वहीं बैठते हैं. तो 100 साल पर एक कसम लेने की जरूरत है कि बिहार को कुछ इस कदर बना दिया जाए कि अगले 100 साल बाद जब इस परिसर को फिर सजाया जाए तो बदलते बिहार की वह चमक दिखे, जिसमें न भय हो ना भूख हो ना भष्टाचार हो और ना ही पेट भरने की विवशता का पलायन हो. इस नीति को भी इसी भवन से बनना है और बनाने की जिम्मेदारी लिए लोग शताब्दी समारोह की खुशियां मना रहे हैं. बिहार के हर घर में खुशियां इसी तरह से उजाला करें इसके लिए नीतियों को जरूर मजबूत करना है और यह संकल्प इस सदन में बैठकर शताब्दी समारोह में लेने की जरूरत है, तभी तो पूरा भारत यह कहेगा और बिहार गाएगा भी कि मेरे भारत के कंठ हार तुझको शत-शत वंदन बिहार.
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