नई दिल्ली : विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 18,000 से ज्यादा भारतीय छात्र यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं या इस क्षेत्र में अपना करियर बना रहे हैं. यूक्रेन युद्ध के बाद उनका भविष्य अधर में है. यूक्रेन में पढ़ रहे मेडिकल के तीसरे वर्ष के छात्र अलादीन का कहना है कि ' देश में मेडिकल उम्मीदवारों को समायोजित करने के लिए पर्याप्त मेडिकल कॉलेज नहीं हैं. हम अपने देश को पहली प्राथमिकता देते हैं. हमें एनईईटी में अच्छे अंक भी मिलते हैं लेकिन दाखिला नहीं हो पाता. भारत में डॉक्टरों और जनसंख्या के अनुपात में भी बड़ा अंतर है.'
असम के खारुपेटिया के रहने वाले अलादीन ने कहा कि वह मेडिकल की पढ़ाई करने और डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए विदेश गए थे. अलादीन ने कहा कि 'यूक्रेन एक शांतिपूर्ण देश था और चिकित्सा शिक्षा के लिए फीस के लिहाज से भी किफायती था. मैं यूक्रेन के जिस विश्वविद्यालय में का छात्र था उस पर भी रूसी मिसाइलों से हमला किया गया.' अलादीन ने कहा, 'मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि हमें विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में समायोजित किया जाए. वास्तव में अन्य देशों ने भी यूक्रेन से लौटे अपने नागरिकों को आश्वासन दिया है कि उन्हें चिकित्सा संस्थानों में समायोजित किया जाएगा.'
रूस-यूक्रेन संघर्ष ने असम के भार्गव नारायण (Bhargav Narayan Choudhary) के भाग्य को भी अधर में डाल दिया है. भार्गव ने कहा, 'हमें नहीं पता कि अब क्या करना है. मैं सेकेंड इयर स्टूडेंट था. विश्वविद्यालय प्रबंधन ने हमें आश्वासन दिया कि स्थिति सामान्य होने पर वे कक्षाएं फिर से शुरू करेंगे.' जब ईटीवी भारत ने यूक्रेन में चल रहे रूसी आक्रमण के कारण भारत लौटे ऐसे छात्रों के भाग्य के बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क किया, तो संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि सरकार का संबंधित विभाग आवश्यक सहायता प्रदान करेगा. हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उन छात्रों को सरकार द्वारा क्या सहायता प्रदान की जाएगी जो अपनी शिक्षा छोड़ कर अपने घर वापस आ गए हैं.
यूक्रेन में मेडिकल की चतुर्थ वर्ष की पढ़ाई करने वाले शिवम सिंह ने कहा, 'हम भारत में मेडिकल प्रैक्टिस के लिए खुद को योग्य बनाने के लिए एफएमजीई की परीक्षा देने को भी तैयार हैं.' बिहार के रहने वाले शिवम ने कहा, 'मुझे 2024 तक यूक्रेनी विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की डिग्री पूरी करनी थी, लेकिन वर्तमान स्थिति ने भविष्य को अनिश्चित बना दिया है.
आईएमए महासचिव ने कहा इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे
इस संवाददाता ने जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से संपर्क किया तो उसके महासचिव डॉ. जयेश एम लेले ने कहा कि यह बहुत बड़ा मुद्दा है. डॉ. लेले ने कहा, 'या तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय या राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को इस पर फैसला लेना होगा. बेशक, हम सरकार से संपर्क करने से पहले अपनी आईएमए समिति में इस मामले पर चर्चा करेंगे.'
किफायती शिक्षा के लालच में जाते हैं भारतीय छात्र
एक तथ्य ये भी है कि पूरे भारत के छात्र यूक्रेन और अन्य यूरोपीय देशों में चिकित्सा, इंजीनियरिंग और अन्य पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने जाते हैं क्योंकि भारत की तुलना में उन देशों में फीस कम है. आंकड़ों के अनुसार, यूक्रेन में एक छात्र को चिकित्सा शिक्षा पूरी करने में केवल 30-35 लाख रुपये लगते हैं, जबकि भारत के किसी भी निजी मेडिकल कॉलेज में इसके लिए 1 करोड़ रुपये से अधिक लगते हैं. दूसरी ओर, देश में सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटें भी बहुत सीमित हैं. भारत में मेडिकल क्षेत्र की शीर्ष नियामक संस्था राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) जो चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा पेशेवरों को नियंत्रित करती है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक एनएमसी ने देश में 2014 से सरकारी क्षेत्र में कम से कम 132 मेडिकल कॉलेजों और निजी क्षेत्र में 77 मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी है.
2014 से कई प्रतिशत बढ़ चुकी हैं सीटें
ईटीवी भारत के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक यूजी सीटों की संख्या जो 2014 से पहले 51,348 थीं 72 प्रतिशत बढ़कर 88,120 हो गई हैं. पीजी सीटों की संख्या 2014 से पहले 31,185 से 78 प्रतिशत बढ़कर डीएनबी और सीपीएस सीटों सहित 55,595 पहुंच गई हैं. वर्ष 2021-22 के दौरान पूरे भारत में 596 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस सीटों की कुल संख्या 88120 थी.
गौरतलब है कि एनएमसी की ओर से हाल ही में जारी सर्कुलर में देश के सभी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को अगले शैक्षणिक सत्र से सरकारी कॉलेज की फीस में 50 फीसदी सीट देने को कहा गया है. सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि भारत भर के मेडिकल कॉलेजों में वर्ष 2018-19 और 2019-20 में रिक्त सीटों की संख्या बहुत कम थी. 2018-19 में केवल 274 रिक्त सीटें उपलब्ध थीं और 2019-20 में 273 रिक्त सीटें.
जनसंख्या के हिसाब के कम हैं डॉक्टर
विडंबना यह है कि भारत में हर एलोपैथिक डॉक्टर कम से कम 1,511 लोगों की सेवा करता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हर 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर के मानदंडों से बहुत अधिक है. भारत में मेडिकल सीटों की कमी और महंगी निजी मेडिकल सीटों के कारण, छात्र चीन, यूक्रेन, रूस, फिलीपींस, किर्गिस्तान, जॉर्जिया जैसे अन्य देशों में चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाना पसंद करते हैं. विदेश मंत्रालय के अनुसार वर्तमान में 23,000 भारतीय छात्र चीन में, यूक्रेन में 18000, रूस में 16,500, फिलीपींस में 15,000, किर्गिस्तान में 10,000 और जॉर्जिया में 7,500 छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भारतीयों की संख्या पिछले पांच वर्षों में ज्यादा बढ़ी है. विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) के लिए छात्रों की संख्या रिकॉर्ड तौर पर बढ़ी है. FMGE उन सभी भारतीय छात्रों के लिए एक अनिवार्य परीक्षा है, जिन्होंने विदेश से MBBS की डिग्री प्राप्त की है और भारत में प्रैक्टिस करना चाहते हैं.
पढ़ें- Russia-Ukraine War: बेलारूस सीमा पर रूस-यूक्रेन के बीच दूसरे दौर की वार्ता जारी
पढ़ें- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में यूक्रेन से लौटे विद्यार्थियों से की मुलाकात