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पूरे देश में मिथिलांचल के दरभंगा 'Jhaji' अचार का स्वाद

बिहार के मिथिलांचल में 'झाजी अचार' बड़ा ब्रांड बनकर उभर रहा है. ननद कल्पना झा और भाभी उमा झा ने जून 2021 में ऐसे समय में 'झाजी अचार' के कारोबार को शुरू किया था जब देश में कोरोना का संकट चरम पर था. लोगों के रोजी-रोजगार छूट रहे थे और मजदूरों के सामने भुखमरी जैसी स्थिति थी. ऐसे में दोनों ने अचार बनाने के अपने शौक को व्यवसाय में बदल दिया. दो महिलाओं के जुनून ने मिथिला को एक और पहचान दे दी है.

Darbhanga Jhaji Pickle
दरभंगा का झाजी अचार
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Published : Feb 9, 2022, 2:10 PM IST

Updated : Feb 9, 2022, 4:55 PM IST

दरभंगा: मिथिला की पहचान मछली, पान, मखाना और मधुबनी पेंटिग भले ही रहे हो लेकिन अब इसकी एक नई पहचान दरभंगा का झाजी अचार (Darbhanga Jhaji Pickle) भी बन गया है. दरभंगा शहर की ननद-भाभी की जोड़ी ने बेहद कम समय में अपने अचार के ब्रांड को दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे महानगरों और कई बड़े शहरों तक पहुंचा दिया है. इनके कारखाने में आम, नींबू, इमली, आंवला, मिर्ची और लहसुन जैसे कुल 24 किस्म के अचार बनते हैं. जिनकी पैकिंग 250 ग्राम में होती है और कीमत अधिकतम 299 रुपये तक होती है.

पूरे देश में मिथिलांचल के दरभंगा झाजी अचार का स्वाद

झाजी अचार के ब्रांड बनने की कहानी: आज 'झाजी अचार' एक मशहूर ब्रांड बन चुका है. कल्पना और उमा झा (Kalpana Jha and Uma Jha) की जोड़ी ने पीएम नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' (Narendra Modi Vocal For Local) और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर दिखाया है. ननद कल्पना झा बताती हैं कि वे शुरू से ही अचार बनाने की शौकीन रही हैं. उनके बनाए अचार रिश्तेदार और मेहमान बहुत पसंद करते हैं. पर्व-त्योहार में उनसे मिठाइयों के बदले अचार की डिमांड की जाती थी. उन्होंने बताया कि उनके पति एक आइएएस अधिकारी रहे हैं. इस माध्यम से देश के कई इलाकों में उन्हें घूमने का अवसर मिला है. हर जगह उनके बनाए अचार की तारीफ होती थी. उन्होंने बताया कि पिछले साल पति जब सेवानिवृत्त हुए तो वे बिल्कुल फ्री हो गईं. ऐसे में उन्होंने अपने खाली समय को उपयोगी बनाने की सोची और कोई बिजनेस करने का फैसला किया.

जब शौक को बनाया व्यवसाय: ननद-भाभी ने बताया कि बहुत सोच-समझ कर उन्होंने अपने अचार बनाने के शौक को व्यवसाय बनाने का फैसला किया. उन्होंने बताया कि उनकी अपनी भाभी उमा झा की उनसे बहुत पटती है और दोनों वर्षों से सहेलियां हैं. ऐसे में उन्होंने अचार के व्यवसाय का आइडिया भाभी को बताया. दोनों ने इस पर सहमति बना कर काम को शुरू किया. उन्होंने कहा कि जून 2021 में इसकी शुरूआत की थी. आज कुछ महीने के भीतर ही उनका 'झाजी ब्रांड अचार' भारत के कई इलाकों में पहुंच चुका है. उन्होंने कहा कि उनका अब इसे पूरी दुनिया में भेजने का इरादा है.

24 लोगों को दिया रोजगार: वहीं, भाभी उमा झा ने बताया कि वे पेशे से एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं. उनकी ननद कल्पना झा ने जब अचार का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया तो उन्हें बेहद पसंद आया. उन्होंने कहा कि करीब 20 लाख रुपये की लागत से उन दोनों ने झाजी अचार ब्रांड की शुरूआत की थी. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में जब लोगों के रोजी-रोजगार छूट गए थे तो उन्होंने ये व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने बताया कि इसमें कुल 24 लोगों को रोजगार दिया गया है, जिनमें 12 वो मजदूर महिलाएं हैं जो लोगों के घरों में चौका-बर्तन और झाड़ू-पोंछा का काम करती थीं.

यही नहीं उन महिलाओं के पति भी बेरोजगार हो गए थे. ऐसे में उन लोगों ने इन सभी को अपने कारखाने से जोड़ा. इन्हें 10-12 हजार रुपये हर महीने सैलेरी दी जाती है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है. उन्होंने कहा कि वे लोग ऑनलाइन ऑर्डर लेकर पूरे भारत में कुरियर के माध्यम से अचार पहुंचाती हैं. अब उनका सपना 'झाजी अचार' को विदेशों तक पहुंचाने का है.

गांव पर ही मिला रोजगार: 'झाजी अचार' कारखाने में काम करनेवाली थलवारा गांव की एक महिला कामगार चुकिया देवी ने बताया कि वह पहले लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम करती थीं. हजार-पांच सौ रुपये कमाती थीं जिससे मुश्किल से काम चलता था. कोरोना के समय वह काम भी छूट गया तो घर की हालत बेहद खराब हो गई. उसके पति और बेटे का रोजगार भी छूट गया. ऐसे में कल्पना और उमा जी के कारखाने में उन्हें रोजगार मिला. यहां से वह 10 हजार रुपये हर महीने कमाती हैं. पति और बेटे को भी इसमें रोजगार मिल गया है. उसने बताया कि अब घर की हालत सुधर गई है. वह अपने साथ 10 अन्य महिलाओं को भी यहां लाकर रोजगार दिलवा चुकी हैं.

वहीं, झाजी अचार कारखाने के एक अन्य कामगार मनीष कुमार ने कहा कि ये उसकी पहली नौकरी है. यहां से उसे 10 हजार रुपये हर महीने मिलते हैं. उसने बताया कि दूसरे राज्यों में जाकर 10-15 हजार रुपये कमाने से अच्छा है कि अपने गांव-घर में रोजगार मिले. उसने बताया कि कल्पना और उमा झा के कारखाने में उसे परिवार जैसा माहौल मिलता है. उसने कहा कि अगर बिहार के गांवों और छोटे शहरों में रोजगार मिले तो लोग परदेस कमाने क्यों जाएं? कल्पना जी और उमा जी जैसे छोटे कारखाने खोल कर लोगों को रोजगार देना चाहिए.

इस बारे में कल्पना कहती हैं कि, 'प्रारंभ से ही अन्य महिलाओं की तरह घर में अचार में बनाती थी. पति भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. उनके रिटायर करने के बाद घर में अपने लिए समय निकालने को सोची और दिमाग में व्यवसाय करने का विचार में आया तो अचार के विषय में सोची. इसके बाद इसकी तैयारी शुरू कर दी. उन्होंने बताया कि पहले 10 तरह के अचार के साथ काम की शुरूआत की थी और आज उनके पास 15 तरह के अचार हैं. जिनमें पांच तरह के आम के अचार, लहसुन, हरी मिर्च, गोभी और इमली की चटनी शामिल है.

उन्होंने बताया शुरू में तो कई परेशानियां आईं लेकिन बाद में कम होती चली गईं. इस काम में भाभी उमा झा ने भी साथ दिया. इसके बाद अक्टूबर 2020 में बिजनेस के लिए आवेदन दिया था. जिसके बाद कई औपचारिकता को पूरा करने के बाद जून, 2021 में 'झा जी' स्टोर की ऑनलाइन शुरूआत हो गई. कल्पना के बेटे मयंक ने ऑनलाइन मार्केटिंग आदि का काम संभाला. इसके बाद तो काम निकल पड़ा. दिन प्रतिदिन ऑनलाइन आर्डर की संख्या लगातार बढ़ती गई.

प्रारंभ में 250 किलोग्राम के जार में अचार की पैकिंग कर आपूर्ति की जाती थी, लेकिन अब 250 और 500 ग्राम जार में अचार की आपूर्ति की जा रही है. उन्होंने बताया कि इसमें शुद्ध चीजों को मिलाया जाता है. उमा बताती हैं, 'झा जी अचार की खूबी इसका पारंपरिक तरीके से तैयार किया जाना है. इसमें क्षेत्रीयता की खुशबू होती है. पारम्परिक बिहारी तरीके से तैयार अचार की मांग आज सभी राज्य में है.'

उमा ने बताया कि जब कल्पना ने इस व्यवसाय में जुड़ने की बात कही तो मैं तुरंत तैयार हो गई जिसके हम दोनों ननद और भाभी ने व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रख दिया. उन्होंने बताया कि प्रतिदिन 400 से 500 किलोग्राम अचार तैयार किया जा रहा है. आज इस स्टोर के कई ऐसे ग्राहक हैं जो लगातार ऑनलाइन आर्डर देते हैं.

ये भी पढ़ें-बड़े भाई फौजी.. पिता रहे सेना में अफसर.. बिहार में मचे बवाल के बीच चर्चा में आए 'Khan Sir' कौन हैं?

दरभंगा: मिथिला की पहचान मछली, पान, मखाना और मधुबनी पेंटिग भले ही रहे हो लेकिन अब इसकी एक नई पहचान दरभंगा का झाजी अचार (Darbhanga Jhaji Pickle) भी बन गया है. दरभंगा शहर की ननद-भाभी की जोड़ी ने बेहद कम समय में अपने अचार के ब्रांड को दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे महानगरों और कई बड़े शहरों तक पहुंचा दिया है. इनके कारखाने में आम, नींबू, इमली, आंवला, मिर्ची और लहसुन जैसे कुल 24 किस्म के अचार बनते हैं. जिनकी पैकिंग 250 ग्राम में होती है और कीमत अधिकतम 299 रुपये तक होती है.

पूरे देश में मिथिलांचल के दरभंगा झाजी अचार का स्वाद

झाजी अचार के ब्रांड बनने की कहानी: आज 'झाजी अचार' एक मशहूर ब्रांड बन चुका है. कल्पना और उमा झा (Kalpana Jha and Uma Jha) की जोड़ी ने पीएम नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' (Narendra Modi Vocal For Local) और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर दिखाया है. ननद कल्पना झा बताती हैं कि वे शुरू से ही अचार बनाने की शौकीन रही हैं. उनके बनाए अचार रिश्तेदार और मेहमान बहुत पसंद करते हैं. पर्व-त्योहार में उनसे मिठाइयों के बदले अचार की डिमांड की जाती थी. उन्होंने बताया कि उनके पति एक आइएएस अधिकारी रहे हैं. इस माध्यम से देश के कई इलाकों में उन्हें घूमने का अवसर मिला है. हर जगह उनके बनाए अचार की तारीफ होती थी. उन्होंने बताया कि पिछले साल पति जब सेवानिवृत्त हुए तो वे बिल्कुल फ्री हो गईं. ऐसे में उन्होंने अपने खाली समय को उपयोगी बनाने की सोची और कोई बिजनेस करने का फैसला किया.

जब शौक को बनाया व्यवसाय: ननद-भाभी ने बताया कि बहुत सोच-समझ कर उन्होंने अपने अचार बनाने के शौक को व्यवसाय बनाने का फैसला किया. उन्होंने बताया कि उनकी अपनी भाभी उमा झा की उनसे बहुत पटती है और दोनों वर्षों से सहेलियां हैं. ऐसे में उन्होंने अचार के व्यवसाय का आइडिया भाभी को बताया. दोनों ने इस पर सहमति बना कर काम को शुरू किया. उन्होंने कहा कि जून 2021 में इसकी शुरूआत की थी. आज कुछ महीने के भीतर ही उनका 'झाजी ब्रांड अचार' भारत के कई इलाकों में पहुंच चुका है. उन्होंने कहा कि उनका अब इसे पूरी दुनिया में भेजने का इरादा है.

24 लोगों को दिया रोजगार: वहीं, भाभी उमा झा ने बताया कि वे पेशे से एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं. उनकी ननद कल्पना झा ने जब अचार का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया तो उन्हें बेहद पसंद आया. उन्होंने कहा कि करीब 20 लाख रुपये की लागत से उन दोनों ने झाजी अचार ब्रांड की शुरूआत की थी. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में जब लोगों के रोजी-रोजगार छूट गए थे तो उन्होंने ये व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने बताया कि इसमें कुल 24 लोगों को रोजगार दिया गया है, जिनमें 12 वो मजदूर महिलाएं हैं जो लोगों के घरों में चौका-बर्तन और झाड़ू-पोंछा का काम करती थीं.

यही नहीं उन महिलाओं के पति भी बेरोजगार हो गए थे. ऐसे में उन लोगों ने इन सभी को अपने कारखाने से जोड़ा. इन्हें 10-12 हजार रुपये हर महीने सैलेरी दी जाती है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है. उन्होंने कहा कि वे लोग ऑनलाइन ऑर्डर लेकर पूरे भारत में कुरियर के माध्यम से अचार पहुंचाती हैं. अब उनका सपना 'झाजी अचार' को विदेशों तक पहुंचाने का है.

गांव पर ही मिला रोजगार: 'झाजी अचार' कारखाने में काम करनेवाली थलवारा गांव की एक महिला कामगार चुकिया देवी ने बताया कि वह पहले लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम करती थीं. हजार-पांच सौ रुपये कमाती थीं जिससे मुश्किल से काम चलता था. कोरोना के समय वह काम भी छूट गया तो घर की हालत बेहद खराब हो गई. उसके पति और बेटे का रोजगार भी छूट गया. ऐसे में कल्पना और उमा जी के कारखाने में उन्हें रोजगार मिला. यहां से वह 10 हजार रुपये हर महीने कमाती हैं. पति और बेटे को भी इसमें रोजगार मिल गया है. उसने बताया कि अब घर की हालत सुधर गई है. वह अपने साथ 10 अन्य महिलाओं को भी यहां लाकर रोजगार दिलवा चुकी हैं.

वहीं, झाजी अचार कारखाने के एक अन्य कामगार मनीष कुमार ने कहा कि ये उसकी पहली नौकरी है. यहां से उसे 10 हजार रुपये हर महीने मिलते हैं. उसने बताया कि दूसरे राज्यों में जाकर 10-15 हजार रुपये कमाने से अच्छा है कि अपने गांव-घर में रोजगार मिले. उसने बताया कि कल्पना और उमा झा के कारखाने में उसे परिवार जैसा माहौल मिलता है. उसने कहा कि अगर बिहार के गांवों और छोटे शहरों में रोजगार मिले तो लोग परदेस कमाने क्यों जाएं? कल्पना जी और उमा जी जैसे छोटे कारखाने खोल कर लोगों को रोजगार देना चाहिए.

इस बारे में कल्पना कहती हैं कि, 'प्रारंभ से ही अन्य महिलाओं की तरह घर में अचार में बनाती थी. पति भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. उनके रिटायर करने के बाद घर में अपने लिए समय निकालने को सोची और दिमाग में व्यवसाय करने का विचार में आया तो अचार के विषय में सोची. इसके बाद इसकी तैयारी शुरू कर दी. उन्होंने बताया कि पहले 10 तरह के अचार के साथ काम की शुरूआत की थी और आज उनके पास 15 तरह के अचार हैं. जिनमें पांच तरह के आम के अचार, लहसुन, हरी मिर्च, गोभी और इमली की चटनी शामिल है.

उन्होंने बताया शुरू में तो कई परेशानियां आईं लेकिन बाद में कम होती चली गईं. इस काम में भाभी उमा झा ने भी साथ दिया. इसके बाद अक्टूबर 2020 में बिजनेस के लिए आवेदन दिया था. जिसके बाद कई औपचारिकता को पूरा करने के बाद जून, 2021 में 'झा जी' स्टोर की ऑनलाइन शुरूआत हो गई. कल्पना के बेटे मयंक ने ऑनलाइन मार्केटिंग आदि का काम संभाला. इसके बाद तो काम निकल पड़ा. दिन प्रतिदिन ऑनलाइन आर्डर की संख्या लगातार बढ़ती गई.

प्रारंभ में 250 किलोग्राम के जार में अचार की पैकिंग कर आपूर्ति की जाती थी, लेकिन अब 250 और 500 ग्राम जार में अचार की आपूर्ति की जा रही है. उन्होंने बताया कि इसमें शुद्ध चीजों को मिलाया जाता है. उमा बताती हैं, 'झा जी अचार की खूबी इसका पारंपरिक तरीके से तैयार किया जाना है. इसमें क्षेत्रीयता की खुशबू होती है. पारम्परिक बिहारी तरीके से तैयार अचार की मांग आज सभी राज्य में है.'

उमा ने बताया कि जब कल्पना ने इस व्यवसाय में जुड़ने की बात कही तो मैं तुरंत तैयार हो गई जिसके हम दोनों ननद और भाभी ने व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रख दिया. उन्होंने बताया कि प्रतिदिन 400 से 500 किलोग्राम अचार तैयार किया जा रहा है. आज इस स्टोर के कई ऐसे ग्राहक हैं जो लगातार ऑनलाइन आर्डर देते हैं.

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Last Updated : Feb 9, 2022, 4:55 PM IST
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