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bihar liquor prohibition review : क्या सीएम नीतीश शराबबंदी कानून की समीक्षा के लिए भारी राजनीतिक दवाब में हैं ?

बिहार में शराबबंदी कानून (bihar sharabbandi kanoon) को लेकर राजनीतिक घमासान छिड़ा हुआ है. (Bihar Prohibition Law Politics) सरकार में शामिल सहयोगी पार्टियां ही शराबबंदी कानून को आड़े हाथों ले रही हैं. वहीं, उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Deputy CM Tarkishore Prasad) ने शराबबंदी को लेकर कहा है कि शराबबंदी कानून जारी रहेगा. इसको लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा.

nitish kumar
नीतीश कुमार
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Published : Jan 18, 2022, 8:22 PM IST

पटना : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कुछ दिनों पहले बिहार के शराबबंदी कानून का उदाहरण देते हुए कहा था कि ऐसे कानून बनाने के दौरान दूरदर्शिता का अभाव दिखता है. बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Ban in Bihar) का जिक्र करते हुए सीजेआई रमना ने कहा था कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से होने वाली समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए. उन्होंने बिहार मद्य निषेध कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), और कहा कि इस कानून की वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ सी आ गई. ताजा घटनाक्रम में बिहार में मद्य निषेध कानून संशोधित किए जाने की मांग की जा रही है. हालांकि, डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने शराबबंदी कानून में संशोधन से इनकार किया है.

उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद का बयान

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में शराब पीने से हुई 12 लोगों की मौत के बाद शराबबंदी कानून के वापस लिए जाने या इसमें संशोधन के तमाम कयास लगाए जा रहे हैं. शराबबंदी कानून पर डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने कहा है कि बिहार में शराबबंदी है, और आगे भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक करने के लिए प्रदेश में अभियान चलाया जाएगा.

'लोग शराबबंदी को लेकर जागरूक हों इसको लेकर जनजागरण अभियान चलाना होगा. वो सरकार करेगी. इस कानून को लेकर जदयू और बीजेपी में कोइ मतभेद नहीं है. बिहार में सब कुछ ठीक है और नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार का विकास लगातार हो रहा है.'

-तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री, बिहार

बता दें कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शराबबंदी कानून में संशोधन या मद्य निषेध कानून (bihar liquor prohibition review) की समीक्षा की मांग की है. इस संबंध में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि मांझी हमारे अभिभावक हैं और एनडीए के महत्वपूर्ण घटक दल के प्रमुख हैं. उन्होंने अपने विचार और सलाह दिए हैं लेकिन एनडीए अभी तक शराबबंदी कानून पर कायम है.

दरअसल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शराबबंदी कानून की समीक्षा पर नीतीश कुमार की सरकार से सकारात्मक संकेत मिले हैं. खबरों के मुताबिक बिहार विधानसभा के आगामी बजट सत्र में मद्य निषेध कानून की समीक्षा को लेकर प्रस्ताव पेश किए जाने की संभावना है. प्रस्ताव के अनुसार शराब के नशे में पकड़े जाने वालों को मौके पर ही जुर्माना भरवाकर छोड़ा जा सकता है. हालांकि, यह प्रावधान कानून का दोबारा उल्लंघन करने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा.

बिहार सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक शराबबंदी कानून के मानदंडों का बार-बार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह की छूट से घर पर शराब की खपत हो सकेगी और होम डिलीवरी की अवधारणा को भी बढ़ावा मिलेगा, जो बिहार में आदतन शराब पीने वालों के बीच पहले से ही लोकप्रिय है.

बता दें कि बिहार के नालंदा जिले में जहरीली शराब से 12 लोगों की हुई मौत के बाद से ही राज्य में शराबबंदी कानून को लेकर विपक्ष से लेकर सत्ताधारी गठबंधन के घटक दल के नेता सरकार पर निशाना साध रहे हैं. इससे पहले शराब की त्रासदी मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, बेतिया, समस्तीपुर, वैशाली, नवादा में हुई.

यह भी पढ़ें- शराबबंदी पर बिहार सरकार को 'सुप्रीम' फटकार, कहा- 'कोर्ट सिर्फ इसलिए जमानत ना दे क्योंकि आपने कानून बना दिया'

दरअसल, यह मुद्दा नीतीश कुमार सरकार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, खासकर उसके गठबंधन सहयोगी भाजपा और 'हम' के बेहद मुखर होने के बाद नीतीश दबाव में बताए जा रहे हैं. वे शराबबंदी कानून की समीक्षा चाहते हैं. बिहार में अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू कर दी गई थी. हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने भी सरकार की आलोचना की थी. अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में शराब से जुड़े मामले लंबित हैं, जिससे न्यायिक व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा है. पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि न्यायालय में लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार सरकार को चाहिए कि सभी 38 जिलों में शराब से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए और अदालतें स्थापित करें.

यह भी पढ़ें- CJI बोले- कानून बनाने में दूरदर्शिता का अभाव, बिहार का उदाहरण देकर बताई बात

बता दें कि अगर नीतीश सरकार शराबबंदी कानून में संशोधन की पहल करेगी, तो यह पहला मामला नहीं होगा. 2018 में राज्य सरकार ने मद्य निषेध कानून के तहत दोषी पाए गए सामान्य अपराधियों को थाना स्तर पर ही जमानत देने का प्रावधान किया गया था. शराबबंदी कानून के तहत अधिकतम सजा 10 साल की जेल है.

गौरतलब है कि सरकार में शामिल सहयोगी पार्टी बीजेपी से ही शराबबंदी कानून को लेकर अब अलग-अलग तरह के बयान सुनने को मिल रहे हैं. हाल ही में जहरीली शराब से हुई मौत के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़ा किया था और इस पर खूब विवाद भी हुआ.

पटना : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कुछ दिनों पहले बिहार के शराबबंदी कानून का उदाहरण देते हुए कहा था कि ऐसे कानून बनाने के दौरान दूरदर्शिता का अभाव दिखता है. बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Ban in Bihar) का जिक्र करते हुए सीजेआई रमना ने कहा था कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से होने वाली समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए. उन्होंने बिहार मद्य निषेध कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), और कहा कि इस कानून की वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ सी आ गई. ताजा घटनाक्रम में बिहार में मद्य निषेध कानून संशोधित किए जाने की मांग की जा रही है. हालांकि, डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने शराबबंदी कानून में संशोधन से इनकार किया है.

उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद का बयान

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में शराब पीने से हुई 12 लोगों की मौत के बाद शराबबंदी कानून के वापस लिए जाने या इसमें संशोधन के तमाम कयास लगाए जा रहे हैं. शराबबंदी कानून पर डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने कहा है कि बिहार में शराबबंदी है, और आगे भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक करने के लिए प्रदेश में अभियान चलाया जाएगा.

'लोग शराबबंदी को लेकर जागरूक हों इसको लेकर जनजागरण अभियान चलाना होगा. वो सरकार करेगी. इस कानून को लेकर जदयू और बीजेपी में कोइ मतभेद नहीं है. बिहार में सब कुछ ठीक है और नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार का विकास लगातार हो रहा है.'

-तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री, बिहार

बता दें कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शराबबंदी कानून में संशोधन या मद्य निषेध कानून (bihar liquor prohibition review) की समीक्षा की मांग की है. इस संबंध में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि मांझी हमारे अभिभावक हैं और एनडीए के महत्वपूर्ण घटक दल के प्रमुख हैं. उन्होंने अपने विचार और सलाह दिए हैं लेकिन एनडीए अभी तक शराबबंदी कानून पर कायम है.

दरअसल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शराबबंदी कानून की समीक्षा पर नीतीश कुमार की सरकार से सकारात्मक संकेत मिले हैं. खबरों के मुताबिक बिहार विधानसभा के आगामी बजट सत्र में मद्य निषेध कानून की समीक्षा को लेकर प्रस्ताव पेश किए जाने की संभावना है. प्रस्ताव के अनुसार शराब के नशे में पकड़े जाने वालों को मौके पर ही जुर्माना भरवाकर छोड़ा जा सकता है. हालांकि, यह प्रावधान कानून का दोबारा उल्लंघन करने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा.

बिहार सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक शराबबंदी कानून के मानदंडों का बार-बार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह की छूट से घर पर शराब की खपत हो सकेगी और होम डिलीवरी की अवधारणा को भी बढ़ावा मिलेगा, जो बिहार में आदतन शराब पीने वालों के बीच पहले से ही लोकप्रिय है.

बता दें कि बिहार के नालंदा जिले में जहरीली शराब से 12 लोगों की हुई मौत के बाद से ही राज्य में शराबबंदी कानून को लेकर विपक्ष से लेकर सत्ताधारी गठबंधन के घटक दल के नेता सरकार पर निशाना साध रहे हैं. इससे पहले शराब की त्रासदी मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, बेतिया, समस्तीपुर, वैशाली, नवादा में हुई.

यह भी पढ़ें- शराबबंदी पर बिहार सरकार को 'सुप्रीम' फटकार, कहा- 'कोर्ट सिर्फ इसलिए जमानत ना दे क्योंकि आपने कानून बना दिया'

दरअसल, यह मुद्दा नीतीश कुमार सरकार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, खासकर उसके गठबंधन सहयोगी भाजपा और 'हम' के बेहद मुखर होने के बाद नीतीश दबाव में बताए जा रहे हैं. वे शराबबंदी कानून की समीक्षा चाहते हैं. बिहार में अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू कर दी गई थी. हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने भी सरकार की आलोचना की थी. अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में शराब से जुड़े मामले लंबित हैं, जिससे न्यायिक व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा है. पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि न्यायालय में लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार सरकार को चाहिए कि सभी 38 जिलों में शराब से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए और अदालतें स्थापित करें.

यह भी पढ़ें- CJI बोले- कानून बनाने में दूरदर्शिता का अभाव, बिहार का उदाहरण देकर बताई बात

बता दें कि अगर नीतीश सरकार शराबबंदी कानून में संशोधन की पहल करेगी, तो यह पहला मामला नहीं होगा. 2018 में राज्य सरकार ने मद्य निषेध कानून के तहत दोषी पाए गए सामान्य अपराधियों को थाना स्तर पर ही जमानत देने का प्रावधान किया गया था. शराबबंदी कानून के तहत अधिकतम सजा 10 साल की जेल है.

गौरतलब है कि सरकार में शामिल सहयोगी पार्टी बीजेपी से ही शराबबंदी कानून को लेकर अब अलग-अलग तरह के बयान सुनने को मिल रहे हैं. हाल ही में जहरीली शराब से हुई मौत के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़ा किया था और इस पर खूब विवाद भी हुआ.

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