चेन्नई : गणेश चतुर्थी देश के पश्चिमी व उत्तरी राज्यों के साथ दक्षिणी राज्यों में भी धूमधाम से मनाया जाने वाला भव्य उत्सव है. इस त्योहार में भगवान गणेश की भव्य प्रतिमाएं न केवल घरों बल्कि मुख्य मार्गों और प्रमुख स्थानों पर भी स्थापित कर सजाई जाती हैं. लेकिन कोरोना संकट की वजह से इन मूर्तियों को बनाने वाले मूर्तिकारों सहित छोटे-बड़े व्यापारी भी चिंता में डूब गए हैं.
दरअसल, कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए सरकार ने बड़े आयोजनों पर पाबंदी लगा रखी है. ऐसे में मूर्तिकारों को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं सरकार इस उत्सव को भी मनाने से इनकार न कर दे.
बता दें, तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के अय्यनकोविलपट्टु, अरसूर और तिंडीवनम में 10 हजार से भी अधिक श्रमिक रोजगार के लिए मूर्ति बनाने के कार्य पर निर्भर हैं.
यह श्रमिक पिछले वर्ष के अंत से ही भगवान गणेश की प्रतिमाएं बना रहे हैं और इन्हें उम्मीद थी की इस वर्ष अगस्त तक इन मूर्तियों की बिक्री शुरू हो जाएगी. लेकिन देश में पसरे कोरोना संकट को देखते हुए, वह अब इस बात से परेशान हैं कि इस वर्ष गणेश उत्सव मनाया जाएगा या नहीं.
पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने दी पुरी में जगन्नाथ यात्रा की अनुमति, नियमों का करना होगा पालन
विल्लुपुरम, कुड्डलोर और पुदुचेरी में बनी प्रतिमाओं को तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के विभिन्न जिलों में भेजा जाता है. इस बात पर मूर्तिकार हरि कृष्णन कहते हैं, 'हम पूरी साल इन मूर्तियों को बनाते हैं. लेकिन इस बार सुन रहे हैं कि गणेश चतुर्थी का उत्सव टाला जा सकता है. ऐसे में वह लोग जिन्होंने हमें पहले से ही प्रतिमाएं बनाने के लिए कीमत अदा कर दी थी, वह अपना पैसा वापस मांग रहे हैं.'
उन्होंने कहा, 'ऐसे में हम कहां से खरीददारों का पैसा लौटाएं. प्रतिमाओं को बनाने का कार्य पूरा होने वाला है और अब हमें यह भी नहीं पता है कि यह उत्सव मनाया जाएगा या नहीं.' अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार भी हमें कोई आश्वासन नहीं दे रही है और न ही उत्सव को लेकर कोई घोषणा कर रही है.
वहीं एक अन्य मूर्तिकार ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के डर से लोग अब प्रतिमाएं खरीदने भी नहीं आ रहे हैं. ऐसे में हमारी साल भर की मेहनत बर्बाद हो जाएगी. उन्होंने कहा कि हमारे पास तो उन लोगों को लौटाने के लिए पैसा भी नहीं है.
पढ़ें : अहमदाबाद : जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर निकली रथ यात्रा
जानकारी के लिए बता दें, विल्लुपुरम जिले में 200 से अधिक श्रमिक मूर्ति बनाने का कार्य करते हैं. साथ ही इस जिले में 100 से अधिक मूर्ति बनाने वाले प्रतिष्ठान हैं. प्रत्येक प्रतिष्ठानों में कम से कम 30 से 40 लोग कार्यरत हैं.
हर वर्ष प्रत्येक कंपनी यहां 30 से 40 लाख रुपये का निवेश करती है. लेकिन कोरोना के चलते हरेक कंपनी को कई लाख का नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे हालातों में मूर्ति बनाने वालों की मुश्किलों में इजाफा हो गया है और उन्हें अपनी मेहनत की चिंता सताने लगी है.