नई दिल्ली : कोविड-19 महामारी के कारण पलायन कर रहे प्रवसी मजदूरों की दुर्दशा का स्वत: संज्ञान लिए गए मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि इन श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने के लिए उनसे ट्रेन या बसों का किराया नहीं लिया जाए और इसका खर्च राज्य वहन करे.
यात्रा के दौरान इन प्रवासी कामगारों को स्टेशनों पर राज्य और रास्ते में रेलवे को भोजन उपलब्ध कराना होगा.
शीर्ष अदालत ने अपने अंतरिम निर्देश में कहा कि ट्रेन या बसों में चढ़ने से लेकर घर पहुंचने तक इन सभी प्रवासी कामगारों को खाना संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सरकारें उपलब्ध करायें. न्यायालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा कि वह अपने यहां फंसे प्रवासी मजदूरों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए स्थान और अवधि को प्रचारित करें.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि जिस राज्य से मजदूर चलेंगे वहां स्टेशन पर उन्हें खाना और पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी संबंधित प्रदेश सरकार की होगी जबकि ट्रेन में सफर के दौरान इसे रेलवे को उपलब्ध कराना होगा.
पीठ ने यह भी कहा कि बसों में यात्रा के दौरान भी इन मजदूरों को भोजन और पानी उपलब्ध कराना होगा.
पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वह प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण को देखें और यह सुनिश्चित करें कि यथाशीघ्र ट्रेन या बसों में उन्हें उनके गृह राज्य भेजा जाए. पीठ ने कहा कि इस संबंध में सारी सूचना सभी संबंधित लोगों तक प्रचारित की जाए.
न्यायालय ने कहा कि फिलहाल उसका सरोकार प्रवासी मजदूरों की परेशानियों से है, जो अपने पैतृक स्थल पर जाना चाह रहे हैं.
पीठ ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारें कदम उठा रही हैं, लेकिन पंजीकरण, उनकी यात्रा और उन्हें भोजन-पानी उपलब्ध कराने में कई कमियां पाई गई हैं.
इससे पहले न्यायालय ने इन प्रवासी श्रमिकों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र से अनेक तीखे सवाल पूछे. न्यायालय ने जानना चाहा कि आखिर इन कामगारों को अपने पैतृक शहर पहुंचने में कितना समय लगेगा.
तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि आखिर इन श्रमिकों की यात्रा के भाड़े के भुगतान को लेकर किस तरह का भ्रम है.
पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इन कामगारों को अपनी घर वापस की यात्रा के भाड़े का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जाए.
पीठ ने कामगारों की दुर्दशा पर चिंता वयक्त करते हुए मेहता से सवाल किया, 'सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जाऐगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है.'
पीठ ने इन कामगारों की यात्रा के भाड़े के बारे में सवाल किये और कहा, 'हमारे देश में बिचौलिया हमेशा ही रहता है. लेकिन हम नहीं चाहते कि जब भाड़े के भुगतान का सवाल हो तो इसमें बिचौलिया हो. इस बारे में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि उनकी यात्रा का खर्च कौन वहन करेगा.'
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने केंद्र की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की और कहा कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिए कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलाई गई और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया. उन्होंने कहा कि बुधवार तक करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है.
कोविड-19 महामारी की वजह से चार घंटे की नोटिस पर 25 मार्च से देश में लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों भूखे प्यासे श्रमिक विभिन्न जगहों पर फंस गए. उनके पास ठहरने की भी सुविधा नहीं थी. इन श्रमिकों ने आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पैदल ही अपने-अपने घर की ओर कूच कर दिया था.
पीठ ने मेहता से जानना चाहा कि भारतीय खाद्य निगम के पास जो अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध है, क्या उसे इन फंसे हुए श्रमिकों में वितरित किया जा रहा है.
पीठ ने सवाल किया कि प्रवासी कामगारों के लिए खाने और ठहरने की सुविधा की कोई कमी क्यों होनी चाहिए. इन कामगारों को अपनी यात्रा के लिए परिवहन सुविधा मिलने तक यह उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
कामगारों को भेजने में विलंब के सवाल पर पीठ ने कहा कि यह बहुत बड़ी समस्या है और अनेक कामगार यात्रा के लिए पंजीकरण कराने के बाद कई सप्ताह से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य या केन्द्र को इन कामगारों की यात्रा शुरू होने वाले स्थान से भोजन उपलब्ध कराना होगा क्योंकि इन श्रमिकों को उनके राज्य में पहुंचने पर भोजन उपलब्ध कराने का सवाल तो बाद में आऐगा.
पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इन कामगारों को उनके पैतृक घर भेजे जाने तक उनके भोजन, आवास और दूसरी आवश्यक सुविधाओं का ध्यान रखा जाए.
साथ ही न्यायलय ने केंद्र से जानना चाहा कि सारे कामगारों को उनके स्थानों तक पहुंचाने के लिए कितना समय लगेगा और इस दौरान उनके भोजन और दूसरी सुविधाओं के लिए क्या व्यवस्था होगी.
मेहता ने कहा कि समय सीमा के बारे में तो सिर्फ राज्य सरकारें ही जानकारी दे सकती हैं.
इस पर पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ नहीं कर रही है लेकिन रास्तों में फंसे हुए श्रमिकों की संख्या को देखते हुए लगता है कि कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
न्यायालय ने उन कामगारों के बारे में भी केंद्र से जानकारी मांगी है, जो आवास शिविरों में नहीं रह रहे हैं और अभी भी किराये के मकान में ही हैं.
शीर्ष अदालत ने इन श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने और इसके लिए की जा रही व्यवस्था में लगने वाले अनुमानित समय के बारे में भी जानकारी मांगी है. न्यायालय ने कहा कि वह यह भी जानना चाहता है कि क्या इन कामगारों को इस बात की जानकारी है कि उन्हें पांचवें, सातवें या फिर दसवें दिन ले जाया जाऐगा.
शीर्ष अदालत ने 26 मई को इन कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया था अैर उसने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा था. न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि केंद्र और राज्यों ने राहत के लिए कदम उठाए हैं लेकिन वह अपर्याप्त हैं और इनमें कमियां हैं.
साथ ही उसने केंद्र और राज्यों से कहा था कि वह श्रमिकों को तत्काल नि:शुल्क भोजन, ठहरने की सुविधा उपलब्ध कराएं तथा उनके अपने-अपने घर जाने के लिए परिवहन सुविधा की व्यवस्था करें.