श्रीनगर : इक्कीसवीं सदी का भारत बहुत आगे निकल चुका है, हालांकि महिलाएं कई मायनों में पीछे हैं. जैसे आज के समय में भी महिलाएं मासिक धर्म और सैनिटरी नैपकिन से जुड़ी बातें खुलकर नहीं बोल पाती हैं, जिसकी वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जम्मू-कश्मीर की महिलाओं को कुछ इसी तरह की समस्याओं से राहत देने के लिए 34 साल की इरफाना जरगर ने 'ईवा सेफ्टी डोर' नाम से एक अभियान की शुरुआत की है. यह अभियान महिलाओं के साथ साथ शिशुओं के लिए भी है.
गौरतलब है कि लॉकडाउन के इस दौर में कोई भी घर से निकलने को राजी नहीं है. सिर्फ जरूरत का सामान लेने ही लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं. ऐसे में कई महिलाएं किन्हीं कारणों के चलते घर से बाहर नहीं निकल पातीं और न ही अपनी जरूरतों के बारे में खुलकर किसी से बोल पाती हैं.
ऐसे में महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है 'ईवा सेफ्टी डोर'. इस अभियान के तहत जरूरतमंद महिलाओं की मदद के लिए श्रीनगर के आसपास सार्वजनिक शौचालयों में सैनिटरी पैड रखे जाते हैं. जरूरत पड़ने पर महिलाएं इनका इस्तेमाल कर सकती हैं.
अभियान की शुरुआत करने वाली इरफाना ने कहा कि मुश्किल यह थी कि इन जरूरतमंद महिलाओं तक कैसे पहुंचा जाए. इस पर मैंने अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट अपलोड किया, जिसमें जरूरतमंद महिलाओं को मुझसे संपर्क करने को कहा. फिर सैकड़ों महिलाओं के मैसेज मुझे मिलने लगे. मैंने उनसे पता हासिल किया और एक-एक करके उनके घर जाकर जरूरत का सामान पहुंचा दिया.
इरफाना कहती हैं कि यह सिलसिला जारी है. किट सौंपते समय मैं खुद भी मास्क, दस्ताने व सैनिटाइजर का इस्तेमाल करती हूं.
खास बात यह है कि इरफाना न सिर्फ महिलाओं, बल्कि उनके शिशुओं के लिए भी सुविधाएं मुहैया करवा रही हैं. इरफाना की किट में महिलाओं से जुड़ा सामान होने के साथ साथ बच्चों के लिए बेबी फूड भी होता है.
इरफाना ने कहा कि अब तक मैं श्रीनगर के विभिन्न इलाकों में रहने वाली 400 जरूरतमंद महिलाओं तक सेनेटरी किट पहुंचा चुकी हूं. मुझे श्रीनगर के अलावा बारामुला, कुपवाड़ा व बड़गाम जिलों से भी महिलाओं के मैसेज आ रहे हैंं लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन तक नहीं पहुंच पाई हूं. कुछ स्थानीय स्वयं सेवकों की मदद से प्रयास किया है और सामान पहुंचा रही हूं.'
बता दें कि अभियान के तहत घर-घर जाकर महिलाओं को सैनिटरी पैड्स मुहैया भी कराए जाते हैं.
किट में सेनेटरी पैड, पैंटी, पेन किलर, एंटीस्पास्मोडिक्स, बेबी फूड, बच्चों के लिए डायपर सहित जरूरत का वह सामान होता है, जो महिलाओं-शिशुओं की हाइजीन के लिए उपयोगी है. इरफाना ने उन्हें अपने नोहशेरा शहर के सार्वजनिक शौचालयों में स्थापित किया है.
अब तक इन किटों की उपलब्धता पांच सार्वजनिक शौचालयों में हैं. निजी क्षेत्र में काम करने वाली इरफाना ने यह पहल अपने दिवंगत पिता गुलाम हसन जरगर को समर्पित की है.
अभियान की शुरुआत करने वाली जरगर कहती हैं कि अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर कोई महिला अचानक संबंधित समस्या का सामना करती है, तो उन्हें इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा. अचानक सड़क पर या किसी ऐसी जगह जहां दुकान न हो, जरूरत पड़ने पर महिलाओं को सुविधा मुहैया कराई जाएगी.
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वह आगे कहती हैं कि इस बारे में सोचकर मैंने अपने हाथों से यह किट बनाई है. इस किट में मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता के सभी उत्पादों को रखा गया है और इसे श्रीनगर के ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक शौचालयों में रखने के लिए अभियान शुरू किया गया है.
जरगर कहती हैं कि फिलहाल मैं अपने खर्च पर यह अभियान चला रही हूं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि लोग खासकर महिलाएं मदद के लिए हाथ जरूर बटाएंगी.
इरफाना कहती हैं कि मैं अपने तौर पर कोशिश कर रही हूं, लेकिन मेरे लिए हर तरफ पहुंच पाना संभव नहीं. उन्होंने प्रशासन और स्वयं सेवक संंघ से गुजारिश की है कि वह महिलाओं और बच्चों पर भी ध्यान दें और राशन पानी बांटते समय सेनेटरी किट भी जरूर रखें, ताकि जरूरतमंद महिलाओं को इनके लिए तरसना न पड़े.
बता दें कि जरगर को अपने इस अभियान के लिए विभिन्न क्षेत्र की महिलाओं से खूब सराहना मिल रही है.
एक महिला ने कहा कि यह बहुत अहम अभियान है. इसकी चाहे जितनी तारीफ की जाए, कम है. इस अभियान को हर कीमत पर सफल बनाने के लिए हमें आगे आना चाहिए.
महिला ने आगे कहा कि घाटी में महिलाओं को मासिक धर्म के बारे में बात करने में शर्म आती है, लेकिन इस तरह का अभियान शुरू करना वाकई में उत्साहजनक है.