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भारत को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर टिड्डी दल से निबटने की जरूरत

कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने पहले से ही किसानों की कमर तोड़ दी है. ऐसे में टिड्डी दल के हमले से उनकी फसलों पर भी खतरा मड़राने लगा है. टिड्डी दल के हमलों और रोकथाम के लिए ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक ने कुछ सुझाव दिये हैं.

locust attack in india
टिड्डी
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Published : Jun 4, 2020, 3:39 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय किसान पहले से ही कोविड 19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन, समवर्ती चक्रवाती हवाओं, बारिश और ओलावृष्टि के कारण परेशान है. ये परेशानियां कम नहीं हुईं कि टिड्डी दल का खतरा आ गया. रेगिस्तानी टिड्डियों का दल अरब प्रायद्वीप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गया.

पिछले 26 वर्षों में टिड्डियों का यह सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है, जो पहले से ही लगभग 50,000 हेक्टेयर की फसल को नष्ट कर चुकी हैं. जुलाई में राजस्थान, बिहार और ओडिशा के पूर्वी भाग में टिड्डी दल के हमले की उम्मीद की जा सकती है. अनुमान लगाया गया है कि अगर यह संकट जून से आगे भी जारी रहता है, तो खरीफ फसलों- जैसे चावल, कपास, गन्ना, अरहर और कई फसलों को बुरी तरह प्रभावित करेगा. इससे हमारे किसानों और उपभोक्ताओं के लिए आजीविका और खाद्य सुरक्षा आपदा हो सकती है.

हिन्द महासागर में चक्रवात आने से रेगिस्‍तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से टिड्डियां के पैदा होने के लिए अनुकूल वातावरण बन गया. भारत में मध्य अप्रैल में टिड्डियों ने राजस्‍थान में एंट्री की थी, तब से वे पंजाब, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश और महाराष्‍ट्र तक फैल चुकी हैं.

पढ़ें-टिड्डी समस्या पर ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक अर्जुन सिंह से विशेष बातचीत की

सोमालिया और पाकिस्तान जैसे कुछ देशों ने टिड्डी प्रकोप को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया है. देश के कृषि परिदृश्य को देखते हुए भारत को भी सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में इससे निबटने की आवश्यकता है.

ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक इश्तियाक अहमद ने कृषि मंत्रालय से अपनी आकस्मिक योजना में मेलाथियान कीटनाशक का उपयोग कर हवाई या ट्रैक्टर द्वारा उसके छिड़काव की सिफारिश की है. उन्होंने यह कहा कि जितना बुरा टिड्डी दल का प्रकोप होता है, उतनी ही अधिक मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, इसलिए इससे जुड़े जोखिम भी अधिक हैं.

इश्तियाक ने कहा कि खतरनाक रासायनिक कीटनाशकों का व्यापक पैमाने पर छिड़काव बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए. यदि इसे अंतिम उपाय के रूप में उपयोग कर रहे हैं तो यह रणनीतिक और अत्यधिक सावधानी के साथ किया जाना चाहिए.

पढ़ें-टिड्डी दल के हमले से किसानों पर दोहरी मार, कितनी तैयार है सरकार?

रासायनिक कीटनाशकों का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. इसके प्रभाव से कीड़े और पक्षी विशेष रूप से कमजोर हो सकते हैं. मनुष्यों में भी ऑर्गनोफॉस्फेट्स एक्यूट टॉक्सिक होते हैं. लंबी अवधि तक केमिकल का प्रयोग करने से तंत्रिका तंत्र को नुकसान हो सकता है.

टिड्डी नियंत्रण के लिए गैर कीटनाशक उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. विशेषज्ञ इसके समाधान के रूप में नीम, लहसुन और मिर्च से तैयार जैविक उत्पादों का उपयोग करने की सलाह देते हैं. अन्य विधियां जैसे कि टिड्डियों को भगाने के लिए पटाखे और तेज आवाज में संगीत का उपयोग. मड स्प्रे किसानों के लिए और पर्यावरण के अनुकूल और कम लागत वाला समाधान हो सकता है.

अहमद ने आगे कहा कि शायद टिड्डी के खतरे के स्थायी समाधान के लिए सरकार को गैर-खतरनाक और रासायनिक मुक्त विकल्पों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिए. यह हमारी उत्पादन प्रणालियों का पारिस्थितिक व आर्थिक लचीलापन बढ़ाएगा और विकास की पर्यावरणीय लागत को कम करेगा. यह वायुमंडलीय और महासागरीय तापमान को नियंत्रित करने और कम करने में भी मदद करेगा.

नई दिल्ली : भारतीय किसान पहले से ही कोविड 19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन, समवर्ती चक्रवाती हवाओं, बारिश और ओलावृष्टि के कारण परेशान है. ये परेशानियां कम नहीं हुईं कि टिड्डी दल का खतरा आ गया. रेगिस्तानी टिड्डियों का दल अरब प्रायद्वीप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गया.

पिछले 26 वर्षों में टिड्डियों का यह सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है, जो पहले से ही लगभग 50,000 हेक्टेयर की फसल को नष्ट कर चुकी हैं. जुलाई में राजस्थान, बिहार और ओडिशा के पूर्वी भाग में टिड्डी दल के हमले की उम्मीद की जा सकती है. अनुमान लगाया गया है कि अगर यह संकट जून से आगे भी जारी रहता है, तो खरीफ फसलों- जैसे चावल, कपास, गन्ना, अरहर और कई फसलों को बुरी तरह प्रभावित करेगा. इससे हमारे किसानों और उपभोक्ताओं के लिए आजीविका और खाद्य सुरक्षा आपदा हो सकती है.

हिन्द महासागर में चक्रवात आने से रेगिस्‍तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से टिड्डियां के पैदा होने के लिए अनुकूल वातावरण बन गया. भारत में मध्य अप्रैल में टिड्डियों ने राजस्‍थान में एंट्री की थी, तब से वे पंजाब, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश और महाराष्‍ट्र तक फैल चुकी हैं.

पढ़ें-टिड्डी समस्या पर ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक अर्जुन सिंह से विशेष बातचीत की

सोमालिया और पाकिस्तान जैसे कुछ देशों ने टिड्डी प्रकोप को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया है. देश के कृषि परिदृश्य को देखते हुए भारत को भी सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में इससे निबटने की आवश्यकता है.

ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक इश्तियाक अहमद ने कृषि मंत्रालय से अपनी आकस्मिक योजना में मेलाथियान कीटनाशक का उपयोग कर हवाई या ट्रैक्टर द्वारा उसके छिड़काव की सिफारिश की है. उन्होंने यह कहा कि जितना बुरा टिड्डी दल का प्रकोप होता है, उतनी ही अधिक मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, इसलिए इससे जुड़े जोखिम भी अधिक हैं.

इश्तियाक ने कहा कि खतरनाक रासायनिक कीटनाशकों का व्यापक पैमाने पर छिड़काव बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए. यदि इसे अंतिम उपाय के रूप में उपयोग कर रहे हैं तो यह रणनीतिक और अत्यधिक सावधानी के साथ किया जाना चाहिए.

पढ़ें-टिड्डी दल के हमले से किसानों पर दोहरी मार, कितनी तैयार है सरकार?

रासायनिक कीटनाशकों का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. इसके प्रभाव से कीड़े और पक्षी विशेष रूप से कमजोर हो सकते हैं. मनुष्यों में भी ऑर्गनोफॉस्फेट्स एक्यूट टॉक्सिक होते हैं. लंबी अवधि तक केमिकल का प्रयोग करने से तंत्रिका तंत्र को नुकसान हो सकता है.

टिड्डी नियंत्रण के लिए गैर कीटनाशक उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. विशेषज्ञ इसके समाधान के रूप में नीम, लहसुन और मिर्च से तैयार जैविक उत्पादों का उपयोग करने की सलाह देते हैं. अन्य विधियां जैसे कि टिड्डियों को भगाने के लिए पटाखे और तेज आवाज में संगीत का उपयोग. मड स्प्रे किसानों के लिए और पर्यावरण के अनुकूल और कम लागत वाला समाधान हो सकता है.

अहमद ने आगे कहा कि शायद टिड्डी के खतरे के स्थायी समाधान के लिए सरकार को गैर-खतरनाक और रासायनिक मुक्त विकल्पों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिए. यह हमारी उत्पादन प्रणालियों का पारिस्थितिक व आर्थिक लचीलापन बढ़ाएगा और विकास की पर्यावरणीय लागत को कम करेगा. यह वायुमंडलीय और महासागरीय तापमान को नियंत्रित करने और कम करने में भी मदद करेगा.

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