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रूस की शीर्ष-गुप्त रक्षा योजना का अहम हिस्सा है भारत

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Published : Dec 3, 2020, 9:02 PM IST

चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की बढ़ती समस्याओं ने रूस का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि रूस अब मध्यस्थता के लिए एक अहम रोल निभाना चाहता है, जिससे विश्व स्तर पर इसकी प्रतिष्ठा बढ़े. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

डिजाइन फोटो
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नई दिल्ली : भारत एक शीर्ष-गुप्त रूसी योजना में प्रमुखता से शामिल हो गया है, जिसे 13 नवंबर को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा अनुमोदित किया गया था. इसमें योजना में विचार किया गया है कि 2015 - 2021 की अवधि में रूस बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का सामना कैसे करेगा. योजना 1 जनवरी, 2021 से सक्रिय होगी.

रूसी रक्षा मंत्रालय के तहत सार्वजनिक परिषद के एक सदस्य ने रूसी दैनिक 'कोम्सोमोल्स्काया प्रावदा' में लिखा है कि इससे के चीन के साथ भारत की बढ़ती समस्याओं को हल करने और रूस को मध्यस्थता का अवसर मिल सकता है, जो उसके पांच प्रमुख उद्देश्यों में से एक है. रूस 2021-25 के लिए खुद को तैयार कर चुका है.

रूसी सैन्य पर्यवेक्षक, विक्टर बैरनेट्स के लेख में कहा गया है कि रूस की योजना है कि देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को बढ़ावा देने के लिए यूरेशिया (चीनी-भारतीय और भारतीय-पाकिस्तानी संघर्ष) में एक पीस ब्रोकर के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाएगा, ताकि देश की छवि और प्रतिष्ठा बढ़ सके.

इसी तरह से रूसी सरकार ने द्वारा 24 अप्रैल 1996 में ड्यूमा में फेडरल लॉ ऑन डिफेंस पारित किया गया था. ऐसी योजनाओं में कंटेट का वर्गीकरण उच्चतम स्तर होता है और राज्य रहस्य बने रहते हैं.

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैन्य गतिरोध के बीच यह योजना स्पष्ट रूप से रूस की एक चाल है. हालांकि भारत-चीन सीमा सैन्य संकट अप्रैल-मई में शुरू हुआ और रूसी चालें 24 जून से उस समय शुरू हुईं जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को विक्ट्री परेड के दौरान मॉस्को में प्रतिष्ठित रेड स्क्वायर में चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंगहे से दूर नहीं बैठाया गया था और रूसी रक्षा मंत्री, सर्गेई शोइगू पास बैठे हुए थे.

वह पहले से ही फुसफुसा रहे थे कि कैसे रूस दो एशियाई दिग्गजों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने में विफल हो रहा है .

इसके दो दिन बाद ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के वांग यी रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय के एक आभासी सम्मेलन में मिले, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत थी. तीन देशों के शीर्ष नेताओं ने इन बैठकों का प्रतिनिधितिव किया.

इसके बाद आरआईसी के अलावा तीन देश ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई संगठन सहयोग (एससीओ) जैसे प्रमुख बहुपक्षीय प्लेटफार्मों में सक्रिय भागीदार हैं.

पढ़ें - मौत का दूसरा नाम है खुफिया एजेंसी मोसाद, जानें क्यों है सुर्खियों में

कई मायनों में अगर इस तरह की भूमिका होती है, तो रूस स्वाभाविक मध्यस्थ होगा. यह भारत और चीन के विश्वास को बनाए रखना चाहता है और दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है. मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के अलावा, रूस दोनों देशों को S-400 वायु रक्षा प्रणाली जैसे उन्नत हथियार की आपूर्ति करता है.

भारत और चीन द्वारा रूसी मध्यस्थता की एक स्वीकृति विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगी क्योंकि दोनों जुझारू पड़ोसियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निवर्तमान एक अवांछित मध्यस्थता प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

नई दिल्ली : भारत एक शीर्ष-गुप्त रूसी योजना में प्रमुखता से शामिल हो गया है, जिसे 13 नवंबर को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा अनुमोदित किया गया था. इसमें योजना में विचार किया गया है कि 2015 - 2021 की अवधि में रूस बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का सामना कैसे करेगा. योजना 1 जनवरी, 2021 से सक्रिय होगी.

रूसी रक्षा मंत्रालय के तहत सार्वजनिक परिषद के एक सदस्य ने रूसी दैनिक 'कोम्सोमोल्स्काया प्रावदा' में लिखा है कि इससे के चीन के साथ भारत की बढ़ती समस्याओं को हल करने और रूस को मध्यस्थता का अवसर मिल सकता है, जो उसके पांच प्रमुख उद्देश्यों में से एक है. रूस 2021-25 के लिए खुद को तैयार कर चुका है.

रूसी सैन्य पर्यवेक्षक, विक्टर बैरनेट्स के लेख में कहा गया है कि रूस की योजना है कि देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को बढ़ावा देने के लिए यूरेशिया (चीनी-भारतीय और भारतीय-पाकिस्तानी संघर्ष) में एक पीस ब्रोकर के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाएगा, ताकि देश की छवि और प्रतिष्ठा बढ़ सके.

इसी तरह से रूसी सरकार ने द्वारा 24 अप्रैल 1996 में ड्यूमा में फेडरल लॉ ऑन डिफेंस पारित किया गया था. ऐसी योजनाओं में कंटेट का वर्गीकरण उच्चतम स्तर होता है और राज्य रहस्य बने रहते हैं.

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैन्य गतिरोध के बीच यह योजना स्पष्ट रूप से रूस की एक चाल है. हालांकि भारत-चीन सीमा सैन्य संकट अप्रैल-मई में शुरू हुआ और रूसी चालें 24 जून से उस समय शुरू हुईं जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को विक्ट्री परेड के दौरान मॉस्को में प्रतिष्ठित रेड स्क्वायर में चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंगहे से दूर नहीं बैठाया गया था और रूसी रक्षा मंत्री, सर्गेई शोइगू पास बैठे हुए थे.

वह पहले से ही फुसफुसा रहे थे कि कैसे रूस दो एशियाई दिग्गजों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने में विफल हो रहा है .

इसके दो दिन बाद ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के वांग यी रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय के एक आभासी सम्मेलन में मिले, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत थी. तीन देशों के शीर्ष नेताओं ने इन बैठकों का प्रतिनिधितिव किया.

इसके बाद आरआईसी के अलावा तीन देश ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई संगठन सहयोग (एससीओ) जैसे प्रमुख बहुपक्षीय प्लेटफार्मों में सक्रिय भागीदार हैं.

पढ़ें - मौत का दूसरा नाम है खुफिया एजेंसी मोसाद, जानें क्यों है सुर्खियों में

कई मायनों में अगर इस तरह की भूमिका होती है, तो रूस स्वाभाविक मध्यस्थ होगा. यह भारत और चीन के विश्वास को बनाए रखना चाहता है और दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है. मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के अलावा, रूस दोनों देशों को S-400 वायु रक्षा प्रणाली जैसे उन्नत हथियार की आपूर्ति करता है.

भारत और चीन द्वारा रूसी मध्यस्थता की एक स्वीकृति विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगी क्योंकि दोनों जुझारू पड़ोसियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निवर्तमान एक अवांछित मध्यस्थता प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

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