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जानिए भारत के इन प्रमुख राज्यों में कैसा रहा दशहरा पर्व का रंग

दशहरे का पावन पर्व पूरे भारत में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन विजयादशमी यानी दशहरा मनाया जाता है. इस दिन भगवान राम ने राक्षसों के राजा लंकापति रावण का वध किया था, ऐसे में दशहरे का पावन त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. आइए जानते हैं इस साल किस राज्य में कैसा रहा विजयदशमी का त्योहार.

dussera
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Published : Oct 27, 2020, 10:03 PM IST

हैदराबाद : हिंदू धर्म के अनुसार मां दुर्गा और भगवान श्रीराम से जोड़कर देखा जाता है. इस त्‍योहार को मनाने का कारण यह है कि मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था. तो दूसरी तरफ मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं. इस त्योहार को भारत के हर राज्य में अनोखे तरीके से मनाया जाता है. चलिए हम आप को बतातें है किस राज्य में कैसे मनाया गया इस साल दशहरा.

बंगाल में सिंदूर की होली
यहां त्योहारों की चमक से लेकर रंगों तक स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है. दशहरे के दिन बंगाली समाज में सिंदूर खेलने की परंपरा है, इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है. नवरात्र के नौ दिन पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन शादीशुदा महिलाओं ने एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेली. वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी के बीच सुरक्षा के मद्देनजर साल्ट लेक सेंट्रल पार्क में रावण के 20 फीट ऊंचे पुतले का भी दहन किया गया.

विजयदशमी की धूम
विजयदशमी की धूम

कर्नाटक के मैसूर पैलेस में राजा ने की शस्त्र पूजा
कोरोना संक्रमण के इस दौर में कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरे का आयोजन हुआ. हालांकि, कोरोना महामारी के इस दौर में दशहरे का आयोजन धूमधाम से नहीं हो पाया. मैसूर दशहरे के नौवें दिन मैसूर पैलेस में आयुध पूजा (शस्त्र) का आयोजन किया गया. मैसूर के राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने अनुष्ठान को संपन्न किया. जिसके बाद धूमधाम से जंबो सवारी का आयोजन किया गया, इस दौरान महल के सभी उपकरणों, वाहनों, रथ की पूजा की गई. मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते हैं, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन एक विशेष पूजा होती है, जिसमें जंबो सवारी (हाथी का जुलूस) निकाला गया. प्रत्येक वर्ष यह कार्यक्रम 10 दिन चलता है.

दशहरा की धूम
दशहरा की धूम

हिमाचल का कुल्लू दशहरा
360 साल के इतिहास में पहली बार उत्सव में मात्र 11 देवता आए, देवभूमि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का इस साल कोरोना महामारी के चलते प्रशासन के कड़े दिशानिर्देशों के साथ आयोजन किया जा रहा है. विश्व विख्यात कुल्लू दशहरे में 360 सालों के इतिहास में पहली बार मात्र 11 देवी-देवताओं ने भाग लिया. हालांकि, हर साल 300 से ज्यादा देवी-देवता शामिल होते थे. कोरोना के चलते न तो कुल्लू में हजारों लोगों की भीड़ जुटी और न ही ढोल नगाड़ों की थाप पर श्रद्धालुओं का दल झूमा. रथयात्रा में भी सिर्फ 200 लोग ही शामिल हुए.

कुल्लू दशहरा
कुल्लू दशहरा

छत्तीसगढ़ की काछनगादी रस्म
अपनी अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ 16 अक्टूबर की रात काछनगादी रस्म के साथ शुरू हुआ. 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे बड़ा लोकपर्व भी कहा जाता है. 12 से ज्यादा रस्में इस उत्सव को अनूठा बना देती हैं और ये सारी रस्में ही बस्तर में मनाए जाने वाले दशहरे को अलग रंग देती हैं. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनूठी है. काछनगादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कन्या ने कांटों के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व को आरंभ करने की अनुमति दी थी. बस्तर दशहरा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब पर्व के दौरान हजारों की संख्या में रहने वाले श्रद्धालु रविवार को होने वाली मावली परगाव की रस्म में मौजूद नहीं हुए, लेकिन इस बीच दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि विधान से निभाया गया. इसके साथ ही जगह-जगह रावण दहन किया गया.

छत्तीसगढ़ में दशहरा
छत्तीसगढ़ में दशहरा

मध्य प्रदेश में छोटा हुआ रावण के पुतले का कद
मध्‍य प्रदेश में कोरोना काल के कारण इस बार विजयादशमी पर्व पर लोगों का उत्‍साह कम ही रहा. संक्रमण काल में दिशानिर्देशों और कोरोना के डर से लोगों ने औपचारिकता ही निभाई. शहरी और ग्रामीण अंचलों में भी रावण के पुतलों का दहन कार्यक्रम औपचारिक बनकर रह गया. जैसे-जैसे शाम ढलने लगी लोगों का हुजूम दशहरा मैदान की तरफ बढ़ने लगा. शाम को सैकड़ों लोग मैदान में पहुंचे और जैसे ही जलता हुआ तीर रावण के पेट में लगा वह धू-धू कर जलने लगा. लोगों ने आस्था के साथ जय श्रीराम का जयकारा लगाया और फिर शुरू हो गया एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला. इस बार दशहरा मैदान पर सिर्फ 21 फीट लंबे रावण का दहन हुआ. हर बार की तरह इस बार लंका भी नहीं बनाई गई थी.

विजयदशमी की धूम

पंजाब में पहली बार सिर्फ दशानन का दहन
राज्य में दशहरा उत्सव के अभी तक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब केवल रावण के पुतले का ही दहन किया गया. इस साल सुरक्षा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने दशहरा पर केवल 100 लोगों की इजाजत दी. इस बार पुतलों का कद तो छोटा हुआ ही है, साथ ही संख्या भी कम रह गई.

राजस्थान में दशानन के दहन पर कोराना का साया
द्वितीय आश्विन शुक्ल नवमींयुक्त दशमी पर रविवार को असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा मनाया गया. हालांकि, इस बार दशानन के दहन पर कोराना का साया नजर आया. पहली बार दशहरा पर शहर में सामूहिक मेलों का आयोजन नहीं हुआ. लोगों ने घरों के बाहर ही छोटे-छोटे रावण के पुतले दहन किए. इस दौरान आतिशबाजी भी की गई. रावण दहन के साथ ही कोरोना मुक्ति की भी प्रार्थना की गई. वहीं कुछ जगहों पर 15 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया गया, श्रीराम और लक्ष्मण स्वरूप में बाण चलाकर रावण का दहन किया.

आंध्र प्रदेश का तेप्पोत्सवम सेलिब्रेशन
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में भी दशहरे के आखिरी दिन मनाए जाने वाले 'तेप्पोत्सवम सेलिब्रेशन' में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हुई. इसके बाद रावण दहन की परंपरा को पूर्ण किया गया.

तेलंगाना के हैदराबाद में रावण दहन
तेलंगाना में विजयादशमी पर विशेष समारोह आयोजित किए गए. दशहरा पर्व पर राज्य के कई मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिली. नेताओं से लेकर फिल्मी सितारों तक सभी मंदिरों में प्रार्थना करते देखे गए. मंदिर प्रबंधन और पुजारियों ने विशेष पूजा की. वहीं कई जिलों में रावण दहन कार्यक्रम आयोजित किया गया. एक ओर हैदराबाद के जुबली हिल्स पद्मम्मा मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. तो दूसरी ओर वारंगल भद्रकाली मंदिर और कोंडागट्टू मंदिर में वाहन यात्रा निकाली गई. हैदराबाद के अंबरपेट में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने रावण दहन किया. कोरोना महामारी के चलते रावण दहन आयोजन में कम से कम लोग शामिल हुए.

तेलंगाना में दशहरा
तेलंगाना में दशहरा

दिल्ली में 125 फीट ऊंचा पुतला फूंका
दिल्ली के द्वारका में हर साल सबसे ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया जाता है. कोरोना काल में भी यहां रावण का 125 फुट ऊंचा पुतला फूंका गया.

रावण दहन
रावण दहन

महाराष्ट्र के नवी मुंबई में रावण का दहन
नवी मुंबई में भी दस सिर वाले रावण के पुतले का दहन हुआ, जिसे देखने वालों की सड़क पर कमी नहीं थी.

हैदराबाद : हिंदू धर्म के अनुसार मां दुर्गा और भगवान श्रीराम से जोड़कर देखा जाता है. इस त्‍योहार को मनाने का कारण यह है कि मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था. तो दूसरी तरफ मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं. इस त्योहार को भारत के हर राज्य में अनोखे तरीके से मनाया जाता है. चलिए हम आप को बतातें है किस राज्य में कैसे मनाया गया इस साल दशहरा.

बंगाल में सिंदूर की होली
यहां त्योहारों की चमक से लेकर रंगों तक स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है. दशहरे के दिन बंगाली समाज में सिंदूर खेलने की परंपरा है, इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है. नवरात्र के नौ दिन पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन शादीशुदा महिलाओं ने एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेली. वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी के बीच सुरक्षा के मद्देनजर साल्ट लेक सेंट्रल पार्क में रावण के 20 फीट ऊंचे पुतले का भी दहन किया गया.

विजयदशमी की धूम
विजयदशमी की धूम

कर्नाटक के मैसूर पैलेस में राजा ने की शस्त्र पूजा
कोरोना संक्रमण के इस दौर में कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरे का आयोजन हुआ. हालांकि, कोरोना महामारी के इस दौर में दशहरे का आयोजन धूमधाम से नहीं हो पाया. मैसूर दशहरे के नौवें दिन मैसूर पैलेस में आयुध पूजा (शस्त्र) का आयोजन किया गया. मैसूर के राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने अनुष्ठान को संपन्न किया. जिसके बाद धूमधाम से जंबो सवारी का आयोजन किया गया, इस दौरान महल के सभी उपकरणों, वाहनों, रथ की पूजा की गई. मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते हैं, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन एक विशेष पूजा होती है, जिसमें जंबो सवारी (हाथी का जुलूस) निकाला गया. प्रत्येक वर्ष यह कार्यक्रम 10 दिन चलता है.

दशहरा की धूम
दशहरा की धूम

हिमाचल का कुल्लू दशहरा
360 साल के इतिहास में पहली बार उत्सव में मात्र 11 देवता आए, देवभूमि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का इस साल कोरोना महामारी के चलते प्रशासन के कड़े दिशानिर्देशों के साथ आयोजन किया जा रहा है. विश्व विख्यात कुल्लू दशहरे में 360 सालों के इतिहास में पहली बार मात्र 11 देवी-देवताओं ने भाग लिया. हालांकि, हर साल 300 से ज्यादा देवी-देवता शामिल होते थे. कोरोना के चलते न तो कुल्लू में हजारों लोगों की भीड़ जुटी और न ही ढोल नगाड़ों की थाप पर श्रद्धालुओं का दल झूमा. रथयात्रा में भी सिर्फ 200 लोग ही शामिल हुए.

कुल्लू दशहरा
कुल्लू दशहरा

छत्तीसगढ़ की काछनगादी रस्म
अपनी अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ 16 अक्टूबर की रात काछनगादी रस्म के साथ शुरू हुआ. 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे बड़ा लोकपर्व भी कहा जाता है. 12 से ज्यादा रस्में इस उत्सव को अनूठा बना देती हैं और ये सारी रस्में ही बस्तर में मनाए जाने वाले दशहरे को अलग रंग देती हैं. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनूठी है. काछनगादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कन्या ने कांटों के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व को आरंभ करने की अनुमति दी थी. बस्तर दशहरा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब पर्व के दौरान हजारों की संख्या में रहने वाले श्रद्धालु रविवार को होने वाली मावली परगाव की रस्म में मौजूद नहीं हुए, लेकिन इस बीच दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि विधान से निभाया गया. इसके साथ ही जगह-जगह रावण दहन किया गया.

छत्तीसगढ़ में दशहरा
छत्तीसगढ़ में दशहरा

मध्य प्रदेश में छोटा हुआ रावण के पुतले का कद
मध्‍य प्रदेश में कोरोना काल के कारण इस बार विजयादशमी पर्व पर लोगों का उत्‍साह कम ही रहा. संक्रमण काल में दिशानिर्देशों और कोरोना के डर से लोगों ने औपचारिकता ही निभाई. शहरी और ग्रामीण अंचलों में भी रावण के पुतलों का दहन कार्यक्रम औपचारिक बनकर रह गया. जैसे-जैसे शाम ढलने लगी लोगों का हुजूम दशहरा मैदान की तरफ बढ़ने लगा. शाम को सैकड़ों लोग मैदान में पहुंचे और जैसे ही जलता हुआ तीर रावण के पेट में लगा वह धू-धू कर जलने लगा. लोगों ने आस्था के साथ जय श्रीराम का जयकारा लगाया और फिर शुरू हो गया एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला. इस बार दशहरा मैदान पर सिर्फ 21 फीट लंबे रावण का दहन हुआ. हर बार की तरह इस बार लंका भी नहीं बनाई गई थी.

विजयदशमी की धूम

पंजाब में पहली बार सिर्फ दशानन का दहन
राज्य में दशहरा उत्सव के अभी तक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब केवल रावण के पुतले का ही दहन किया गया. इस साल सुरक्षा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने दशहरा पर केवल 100 लोगों की इजाजत दी. इस बार पुतलों का कद तो छोटा हुआ ही है, साथ ही संख्या भी कम रह गई.

राजस्थान में दशानन के दहन पर कोराना का साया
द्वितीय आश्विन शुक्ल नवमींयुक्त दशमी पर रविवार को असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा मनाया गया. हालांकि, इस बार दशानन के दहन पर कोराना का साया नजर आया. पहली बार दशहरा पर शहर में सामूहिक मेलों का आयोजन नहीं हुआ. लोगों ने घरों के बाहर ही छोटे-छोटे रावण के पुतले दहन किए. इस दौरान आतिशबाजी भी की गई. रावण दहन के साथ ही कोरोना मुक्ति की भी प्रार्थना की गई. वहीं कुछ जगहों पर 15 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया गया, श्रीराम और लक्ष्मण स्वरूप में बाण चलाकर रावण का दहन किया.

आंध्र प्रदेश का तेप्पोत्सवम सेलिब्रेशन
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में भी दशहरे के आखिरी दिन मनाए जाने वाले 'तेप्पोत्सवम सेलिब्रेशन' में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हुई. इसके बाद रावण दहन की परंपरा को पूर्ण किया गया.

तेलंगाना के हैदराबाद में रावण दहन
तेलंगाना में विजयादशमी पर विशेष समारोह आयोजित किए गए. दशहरा पर्व पर राज्य के कई मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिली. नेताओं से लेकर फिल्मी सितारों तक सभी मंदिरों में प्रार्थना करते देखे गए. मंदिर प्रबंधन और पुजारियों ने विशेष पूजा की. वहीं कई जिलों में रावण दहन कार्यक्रम आयोजित किया गया. एक ओर हैदराबाद के जुबली हिल्स पद्मम्मा मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. तो दूसरी ओर वारंगल भद्रकाली मंदिर और कोंडागट्टू मंदिर में वाहन यात्रा निकाली गई. हैदराबाद के अंबरपेट में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने रावण दहन किया. कोरोना महामारी के चलते रावण दहन आयोजन में कम से कम लोग शामिल हुए.

तेलंगाना में दशहरा
तेलंगाना में दशहरा

दिल्ली में 125 फीट ऊंचा पुतला फूंका
दिल्ली के द्वारका में हर साल सबसे ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया जाता है. कोरोना काल में भी यहां रावण का 125 फुट ऊंचा पुतला फूंका गया.

रावण दहन
रावण दहन

महाराष्ट्र के नवी मुंबई में रावण का दहन
नवी मुंबई में भी दस सिर वाले रावण के पुतले का दहन हुआ, जिसे देखने वालों की सड़क पर कमी नहीं थी.

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