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जाने किस वजह से बेहाल है बघाट का ऐतिहासिक किला - सलोन में ऐतिहासिक किला

सोलन की ग्राम पंचायत शमरोड़ के ऐतिहासिक गांव धारों की धार में बघाट रियासत के पहले राजा जामवान और रानी जामवंती ने धारों की धार किले का निर्माण करवाया था. 22 घाटों से मिलकर बना बघाट, इस रियासत के सभी राजाओं की गाथा सुनाता है. जाने किले का इतिहास...

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Sep 23, 2019, 3:32 PM IST

Updated : Oct 1, 2019, 5:00 PM IST

सोलन: सोलन की ग्राम पंचायत शमरोड़ के ऐतिहासिक गांव धारों की धार में बघाट रियासत के पहले राजा जामवान और रानी जामवंती ने धारों की धार किले का निर्माण करवाया था. 22 घाटों से मिलकर बना बघाट, इस रियासत के सभी राजाओं की गाथा सुनाता है.

किले में राजा की सेना के लिए खासतौर पर महल का निर्माण भी किया गया था. महल की खास बात ये थी कि अगर कभी सेना के ऊपर आक्रमण होता तो महल के अंदर से गोली बाहर जा सकती थी, लेकिन बाहर से आने वाली गोली महल में नहीं आ सकती थी.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट, जाने बघाट किले का इतिहास

धारों की धार किला हमेशा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. देशी और विदेशी पर्यटक सुविधाएं न होने के बावजूद यहां पर जाते रहते हैं, लेकिन यहां सड़क सुविधा न होने की वजह से आधे घंटे तक पैदल सफर करना पड़ता है. साल 1996-97 में तत्कालीन उपायुक्त श्रीकांत बाल्दी ने पर्यटन विकास के लिए इस किले का स्वरूप तैयार तो किया था, लेकिन केवल 10 लाख रुपये ही स्वीकृत हुए थे. जो किले के रास्ता बनाने में ही खर्च हो गए थे. इनके बाद पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने किले को विकसित करने के लिए आदेश जारी किए थे, लेकिन अभी तक यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं हो पाया.

पढ़ेंः शिमला समझौते के 47 साल : हिमाचल के राजभवन में आज भी ताजा हैं यादें

बता दें कि धारों की धार किले के जरिए शिमला, कसौली, अर्की, चायल, सिरमौर में लगने वाली रियासतों पर नजर रखी जाती थी. इसके साथ ही लूटपाट के लिए गोरखा ने भी इस किले का इस्तेमाल किया था.

सोलन: सोलन की ग्राम पंचायत शमरोड़ के ऐतिहासिक गांव धारों की धार में बघाट रियासत के पहले राजा जामवान और रानी जामवंती ने धारों की धार किले का निर्माण करवाया था. 22 घाटों से मिलकर बना बघाट, इस रियासत के सभी राजाओं की गाथा सुनाता है.

किले में राजा की सेना के लिए खासतौर पर महल का निर्माण भी किया गया था. महल की खास बात ये थी कि अगर कभी सेना के ऊपर आक्रमण होता तो महल के अंदर से गोली बाहर जा सकती थी, लेकिन बाहर से आने वाली गोली महल में नहीं आ सकती थी.

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धारों की धार किला हमेशा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. देशी और विदेशी पर्यटक सुविधाएं न होने के बावजूद यहां पर जाते रहते हैं, लेकिन यहां सड़क सुविधा न होने की वजह से आधे घंटे तक पैदल सफर करना पड़ता है. साल 1996-97 में तत्कालीन उपायुक्त श्रीकांत बाल्दी ने पर्यटन विकास के लिए इस किले का स्वरूप तैयार तो किया था, लेकिन केवल 10 लाख रुपये ही स्वीकृत हुए थे. जो किले के रास्ता बनाने में ही खर्च हो गए थे. इनके बाद पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने किले को विकसित करने के लिए आदेश जारी किए थे, लेकिन अभी तक यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं हो पाया.

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बता दें कि धारों की धार किले के जरिए शिमला, कसौली, अर्की, चायल, सिरमौर में लगने वाली रियासतों पर नजर रखी जाती थी. इसके साथ ही लूटपाट के लिए गोरखा ने भी इस किले का इस्तेमाल किया था.

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Last Updated : Oct 1, 2019, 5:00 PM IST
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