ETV Bharat / bharat

एलएसी पर चीन क्यों कर रहा है झड़प, 1962-2020 ड्रैगन की चाल 'डिकोड'

author img

By

Published : Jun 20, 2020, 10:02 PM IST

Updated : Aug 31, 2020, 11:49 AM IST

एलएसी पर चीनी सैनिकों ने फिर से दुस्साहस किया है. भारतीय सेना ने उसका करारा जवाब दिया है. इससे पहले चीनी सेना ने 15-16 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प की थी. तब हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए थे. चीनी सैनिकों को भी बड़ी संख्या में क्षति पहुंची थी. आइए जानते हैं आखिर चीन बार-बार इस तरह की हरकत क्यों करता है. भारतीय सेना के एम्युनिशन एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल राजीव ठाकुर से.

Ammunition Expert Retired Rajiv Thakur on india-China dispute
एम्युनेशन एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल राजीव ठाकुर

सोलन : पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी को लेकर भारत-चीन सीमा विवाद काफी तल्ख हो चुका है. 29-30 अगस्त से पहले 15-16 जून की रात को लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. वहीं झड़प के दौरान चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 40 जवान हताहत हुए थे, हालांकि चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की.

एक तरफ एलओसी पर भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग की घटना होती रहती है, वहीं दूसरी तरफ एलएसी पर भारत-चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग करने से बचते हैं, आखिर चीन क्यों बार-बार संधि का नाम देकर झड़प कर एलएसी पर विवाद खड़ा करता है, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में, सोलन के रहने वाले भारतीय सेना से एम्युनेशन एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल राजीव ठाकुर से.

1962 का भारत न समझे चीन

1962 का भारत न समझे चीन
कर्नल राजीव ठाकुर ने बताया कि जिस तरह से अग्रेशन के साथ चीन ने गलवान वैली में भारतीय सेना पर अटैक किया है, अब वक्त है चीन की बुलिंग टैक्टिस को ना से कम करने का. उन्होंने कहा कि जिस एरिया में यह विवाद खड़ा हुआ है, वह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण एरिया है.

उन्होंने कहा की 1962 और आज के समय में बहुत फर्क है, चीन यह बात भूल जाए कि 1962 का भारत आज भी वैसा ही है. आज इंटरनेशनल स्टेज पर भारत स्टैंड है अगर आज आर-पार की लड़ाई भी होती है तो भारत तैयार है.

उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय डिफेंस मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडिस ने आगाह कर दिया था कि हमें और देशों की बजाए अपने ईस्ट सेक्टर में चीन से सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आज तक भारत पंचशील पॉलिसी के तहत संधि करते आए हैं, हमने आज तक शांति के साथ कार्य किया है और उसी तरह से जवाब दिया है.

अब तक बातचीत से सुलझे हैं कई मुद्दे

एलएसी पर आखिर भारत-चीन के दरमियान गोली क्यों नहीं चली
कर्नल ठाकुर इसका जवाब देते हैं कि, साल 1967 में नथुला इस्टर्न सेक्टर में भारत-चीन में लड़ाई हुई थी. जिसमें भारत के 70 जवान शहीद हुए थे और चीन के करीब 500 जवान शहीद हुए थे. साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव चीन की यात्रा पर गए थे, इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए 9 बिंदुओं पर समझौता किया गया था.

इस समझौते के तहत भारत चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया गया था. दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि भारत-चीन एक दूसरे के खिलाफ बल या सेना के प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी और दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेंगी.

जिसके चलते 1996, 2003 और आज तक बॉर्डर टॉक्स चलती आई हैं. यही कारण है कि एलएसी के साथ लगते मैकमोहन और लद्दाख में दोनों तरफ की फौजों ने आज तक हथियार नहीं उठाए और न ही आज तक इस एरिया में कभी गोली चली है.

LAC और LOC में फर्क

पढ़ें- रूस विजय दिवस परेड में भाग लेने के लिए मॉस्को पहुंचा भारतीय सैन्य दल

पैंगोंग त्सो झील का विवाद ?
लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में करीब 14,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. इस झील की दूरी का 45 किलोमीटर का क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर चीन के क्षेत्र में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इसी झील के बीच से गुजरती है, लेकिन चीन यह मानता है कि पूरी पैंगोंग त्सो झील चीन के अधिकार क्षेत्र में आती है.

कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि वहां रोड नहीं है चलने के लिए ट्रैक है, जहां पर सिर्फ दोनों देश एक-दूसरे पर नजर रखते हैं. उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र स्ट्रेटेजिक इंपॉर्टेंट से कम है, लेकिन इसके साथ लगते गलवान वैली जहां पर यह हादसा हुआ है वह दोनों ही देशों के लिए जरूरी है.

चीन गलवान वैली पर क्यों नहीं चाहता भारत का कब्जा
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि गलवान वैली दौलत बेग ओल्डी सियाचिन एरिया के साथ लगती है. यहां भारत एक ब्रिज का निर्माण कर रहा है. यहां सेना की आखिरी पोस्ट भी है. इसके नीचे एक लैंडिंग ग्राउंड है जहां इंडियन आर्मी अपनी सेना को डेढ़ से दो घंटे में पहुंचाने में सक्षम है.

Ammunition Expert Retired Rajiv Thakur on india-China dispute
1913-1914 शिमला समझौता के दौरान मौजूद प्रतिनिधि. फाइल

आमतौर पर सेना को यहां पहुंचानें में आठ से नौ घंटे लग जाते थे. यह जगह दोनों ही देशों के लिए स्ट्रेटेजिक मायनों से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस जगह से आगे सियाचिन और एक्साई चीन वाला एरिया साफ तौर पर दिखाई देता है, जहां से भारत चीन पर नजर रख सकता है.

उन्होंने कहा कि एक वजह यह भी हो सकती है कि चीन पाकिस्तान इकोनॉमी के जो कॉरिडोर के रोड बन रहे हैं उस पर भारत इस जगह से नजर रख सकता है, इसलिए चीन बार-बार इस जगह पर विवाद कर रहा है, ताकि भारतीय सेना इस जगह को छोड़ दे.

एलएसी और एलओसी में फर्क
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) का हिस्सी हमारा सिर्फ पाकिस्तान के साथ लगता है, जो कि पहले से ही डिवाइड है कि यहां तक पाकिस्तान का एरिया है और इससे आगे भारत का.

उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई 740 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. इसको लेकर पाकिस्तान से 1947, 1965 और 1971 में तीन युद्ध हुए हैं. खास बात यह है कि नियंत्रण रेखा कोई लकीर नहीं है जिसे सीधे देखा जा सकता है बल्कि यह अदृश्य रूप से कायम है.

वहीं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) वह एरिया है जहां पर अभी तक किसी भी तरह से क्षेत्र को दो देशों के बीच न बांटा गया हो, जैसे कि भारत और चीन के बीच है. उन्होंने कहा की चीन के साथ 1962 में युद्ध के बाद एक्साइ चीन और लद्दाख में क्लियर डिमार्केशन नहीं हो पाई है.

अभी तक यहां बात करके और बॉर्डर टॉक्स के जरिए दोनों ही देश एक-दूसरे को अपने-अपने एरिया में रहने की हिदायत देते हैं. चाहे वह मैकमोहन का इलाका हो, अक्साई चीन हो या फिर लद्दाख वाला एरिया, आज तक बॉर्डर टॉक्स और अलग-अलग लेवल पर मीटिंग करके इन सब चीजों पर बात की गई है.

आज तक 1996 में 2003 और 2005 में दोनों ही देशों द्वारा इन सब चीजों पर बात होती रही है. और अभी तक यह बात चलती आई है, उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी भी कहा जाता है.

पढ़ें- नेपाल का अब बिहार में मोतिहारी की जमीन पर दावा, बांध का काम रोका

चीन के साथ लगी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल करीब 3,488 किलोमीटर की है, जबकि चीन मानता है कि यह बस 2,000 किलोमीटर तक ही है. यह सीमा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

यह तीनों सेक्टर में बंटी हुई है पश्चिम सेंटर यानी जम्मू कश्मीर में, मिडल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, पूर्व सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

पूर्वी हिस्से मे एलएसी और 1914 के मैकमोहन रेखा के संबंध में स्थितियों को लेकर भी चीन अड़ंगा डालता रहा है, अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र पर चीन अक्सर अपना हक जताता रहता है ,उसी तरह उत्तराखंड के बाड़ाहोती मैदानों के भू-भाग को लेकर भी चीन विवाद करता रहता है, वहीं भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है, इन्हीं सब चीजों को लेकर आज तक एलएसी पर विवाद चलता रहा है.

मैकमोहन नाम क्यों पड़ा
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच चीन ने सीमा निर्धारण के लिए शिमला समझौता हुआ था तो इस समझौते में मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है.

हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची इसमें अरुणाचल के स्थान को भारत का हिस्सा माना गया. मैकमोहन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी का ग्रेट बैंड है, यारलूंग जांगबो नदी के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती थी, इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.

पढ़ें- पाकिस्तान ने किया संघर्षविराम का उल्लंघन, रामपुर सेक्टर में चार लोग घायल

अब तक बातचीत से सुलझे हैं कई मुद्दे
कर्नल राजीव ठाकुर का कहना है कि 1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन ने बातचीत के जरिए भी कई मुद्दों को सुलझाया है. 1987 में सनदोरंगचु रीजन विवाद, 2013 में देपसांग विवाद, 2013 में चुमार और 2017 में डोकलाम विवाद को भारत चीन ने बातचीत के जरिए सुलझाया है.

कर्नल ठाकुर ने कहा कि आज भारत सक्षम है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना स्टैंड ले चुका है. 1962 में इंटरनेशनल डिफरेंस और वर्ड का ओपिनियन जो था उस समय चीन ने इसकी तरफ ना देखकर भारत को सॉफ्ट टारगेट समझकर अटैक किया था.

परंतु हाल ही में अमेरिका ने जी-7 में भारत को आमंत्रित किया है, जिसे भारत ने भी स्वीकार किया है और चीन को उससे बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा कि आज भारत शक्तिशाली है, लेकिन चीन भारत को काउंटर करना चाहता है. अगर चीन की जीडीपी ना बड़े तो चीन कमजोर हो जाएगा. उन्होंने कहा कि आज अगर हमारी सरकार बड़े निर्णय लेती है, जिससे चीन को मुंहतोड़ जवाब देना है तो सेना के साथ-साथ प्रत्येक भारतीय इसके लिए तैयार है.

सोलन : पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी को लेकर भारत-चीन सीमा विवाद काफी तल्ख हो चुका है. 29-30 अगस्त से पहले 15-16 जून की रात को लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. वहीं झड़प के दौरान चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 40 जवान हताहत हुए थे, हालांकि चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की.

एक तरफ एलओसी पर भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग की घटना होती रहती है, वहीं दूसरी तरफ एलएसी पर भारत-चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग करने से बचते हैं, आखिर चीन क्यों बार-बार संधि का नाम देकर झड़प कर एलएसी पर विवाद खड़ा करता है, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में, सोलन के रहने वाले भारतीय सेना से एम्युनेशन एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल राजीव ठाकुर से.

1962 का भारत न समझे चीन

1962 का भारत न समझे चीन
कर्नल राजीव ठाकुर ने बताया कि जिस तरह से अग्रेशन के साथ चीन ने गलवान वैली में भारतीय सेना पर अटैक किया है, अब वक्त है चीन की बुलिंग टैक्टिस को ना से कम करने का. उन्होंने कहा कि जिस एरिया में यह विवाद खड़ा हुआ है, वह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण एरिया है.

उन्होंने कहा की 1962 और आज के समय में बहुत फर्क है, चीन यह बात भूल जाए कि 1962 का भारत आज भी वैसा ही है. आज इंटरनेशनल स्टेज पर भारत स्टैंड है अगर आज आर-पार की लड़ाई भी होती है तो भारत तैयार है.

उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय डिफेंस मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडिस ने आगाह कर दिया था कि हमें और देशों की बजाए अपने ईस्ट सेक्टर में चीन से सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आज तक भारत पंचशील पॉलिसी के तहत संधि करते आए हैं, हमने आज तक शांति के साथ कार्य किया है और उसी तरह से जवाब दिया है.

अब तक बातचीत से सुलझे हैं कई मुद्दे

एलएसी पर आखिर भारत-चीन के दरमियान गोली क्यों नहीं चली
कर्नल ठाकुर इसका जवाब देते हैं कि, साल 1967 में नथुला इस्टर्न सेक्टर में भारत-चीन में लड़ाई हुई थी. जिसमें भारत के 70 जवान शहीद हुए थे और चीन के करीब 500 जवान शहीद हुए थे. साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव चीन की यात्रा पर गए थे, इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए 9 बिंदुओं पर समझौता किया गया था.

इस समझौते के तहत भारत चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया गया था. दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि भारत-चीन एक दूसरे के खिलाफ बल या सेना के प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी और दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेंगी.

जिसके चलते 1996, 2003 और आज तक बॉर्डर टॉक्स चलती आई हैं. यही कारण है कि एलएसी के साथ लगते मैकमोहन और लद्दाख में दोनों तरफ की फौजों ने आज तक हथियार नहीं उठाए और न ही आज तक इस एरिया में कभी गोली चली है.

LAC और LOC में फर्क

पढ़ें- रूस विजय दिवस परेड में भाग लेने के लिए मॉस्को पहुंचा भारतीय सैन्य दल

पैंगोंग त्सो झील का विवाद ?
लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में करीब 14,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. इस झील की दूरी का 45 किलोमीटर का क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर चीन के क्षेत्र में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इसी झील के बीच से गुजरती है, लेकिन चीन यह मानता है कि पूरी पैंगोंग त्सो झील चीन के अधिकार क्षेत्र में आती है.

कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि वहां रोड नहीं है चलने के लिए ट्रैक है, जहां पर सिर्फ दोनों देश एक-दूसरे पर नजर रखते हैं. उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र स्ट्रेटेजिक इंपॉर्टेंट से कम है, लेकिन इसके साथ लगते गलवान वैली जहां पर यह हादसा हुआ है वह दोनों ही देशों के लिए जरूरी है.

चीन गलवान वैली पर क्यों नहीं चाहता भारत का कब्जा
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि गलवान वैली दौलत बेग ओल्डी सियाचिन एरिया के साथ लगती है. यहां भारत एक ब्रिज का निर्माण कर रहा है. यहां सेना की आखिरी पोस्ट भी है. इसके नीचे एक लैंडिंग ग्राउंड है जहां इंडियन आर्मी अपनी सेना को डेढ़ से दो घंटे में पहुंचाने में सक्षम है.

Ammunition Expert Retired Rajiv Thakur on india-China dispute
1913-1914 शिमला समझौता के दौरान मौजूद प्रतिनिधि. फाइल

आमतौर पर सेना को यहां पहुंचानें में आठ से नौ घंटे लग जाते थे. यह जगह दोनों ही देशों के लिए स्ट्रेटेजिक मायनों से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस जगह से आगे सियाचिन और एक्साई चीन वाला एरिया साफ तौर पर दिखाई देता है, जहां से भारत चीन पर नजर रख सकता है.

उन्होंने कहा कि एक वजह यह भी हो सकती है कि चीन पाकिस्तान इकोनॉमी के जो कॉरिडोर के रोड बन रहे हैं उस पर भारत इस जगह से नजर रख सकता है, इसलिए चीन बार-बार इस जगह पर विवाद कर रहा है, ताकि भारतीय सेना इस जगह को छोड़ दे.

एलएसी और एलओसी में फर्क
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) का हिस्सी हमारा सिर्फ पाकिस्तान के साथ लगता है, जो कि पहले से ही डिवाइड है कि यहां तक पाकिस्तान का एरिया है और इससे आगे भारत का.

उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई 740 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. इसको लेकर पाकिस्तान से 1947, 1965 और 1971 में तीन युद्ध हुए हैं. खास बात यह है कि नियंत्रण रेखा कोई लकीर नहीं है जिसे सीधे देखा जा सकता है बल्कि यह अदृश्य रूप से कायम है.

वहीं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) वह एरिया है जहां पर अभी तक किसी भी तरह से क्षेत्र को दो देशों के बीच न बांटा गया हो, जैसे कि भारत और चीन के बीच है. उन्होंने कहा की चीन के साथ 1962 में युद्ध के बाद एक्साइ चीन और लद्दाख में क्लियर डिमार्केशन नहीं हो पाई है.

अभी तक यहां बात करके और बॉर्डर टॉक्स के जरिए दोनों ही देश एक-दूसरे को अपने-अपने एरिया में रहने की हिदायत देते हैं. चाहे वह मैकमोहन का इलाका हो, अक्साई चीन हो या फिर लद्दाख वाला एरिया, आज तक बॉर्डर टॉक्स और अलग-अलग लेवल पर मीटिंग करके इन सब चीजों पर बात की गई है.

आज तक 1996 में 2003 और 2005 में दोनों ही देशों द्वारा इन सब चीजों पर बात होती रही है. और अभी तक यह बात चलती आई है, उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी भी कहा जाता है.

पढ़ें- नेपाल का अब बिहार में मोतिहारी की जमीन पर दावा, बांध का काम रोका

चीन के साथ लगी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल करीब 3,488 किलोमीटर की है, जबकि चीन मानता है कि यह बस 2,000 किलोमीटर तक ही है. यह सीमा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

यह तीनों सेक्टर में बंटी हुई है पश्चिम सेंटर यानी जम्मू कश्मीर में, मिडल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, पूर्व सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

पूर्वी हिस्से मे एलएसी और 1914 के मैकमोहन रेखा के संबंध में स्थितियों को लेकर भी चीन अड़ंगा डालता रहा है, अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र पर चीन अक्सर अपना हक जताता रहता है ,उसी तरह उत्तराखंड के बाड़ाहोती मैदानों के भू-भाग को लेकर भी चीन विवाद करता रहता है, वहीं भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है, इन्हीं सब चीजों को लेकर आज तक एलएसी पर विवाद चलता रहा है.

मैकमोहन नाम क्यों पड़ा
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच चीन ने सीमा निर्धारण के लिए शिमला समझौता हुआ था तो इस समझौते में मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है.

हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची इसमें अरुणाचल के स्थान को भारत का हिस्सा माना गया. मैकमोहन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी का ग्रेट बैंड है, यारलूंग जांगबो नदी के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती थी, इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.

पढ़ें- पाकिस्तान ने किया संघर्षविराम का उल्लंघन, रामपुर सेक्टर में चार लोग घायल

अब तक बातचीत से सुलझे हैं कई मुद्दे
कर्नल राजीव ठाकुर का कहना है कि 1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन ने बातचीत के जरिए भी कई मुद्दों को सुलझाया है. 1987 में सनदोरंगचु रीजन विवाद, 2013 में देपसांग विवाद, 2013 में चुमार और 2017 में डोकलाम विवाद को भारत चीन ने बातचीत के जरिए सुलझाया है.

कर्नल ठाकुर ने कहा कि आज भारत सक्षम है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना स्टैंड ले चुका है. 1962 में इंटरनेशनल डिफरेंस और वर्ड का ओपिनियन जो था उस समय चीन ने इसकी तरफ ना देखकर भारत को सॉफ्ट टारगेट समझकर अटैक किया था.

परंतु हाल ही में अमेरिका ने जी-7 में भारत को आमंत्रित किया है, जिसे भारत ने भी स्वीकार किया है और चीन को उससे बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा कि आज भारत शक्तिशाली है, लेकिन चीन भारत को काउंटर करना चाहता है. अगर चीन की जीडीपी ना बड़े तो चीन कमजोर हो जाएगा. उन्होंने कहा कि आज अगर हमारी सरकार बड़े निर्णय लेती है, जिससे चीन को मुंहतोड़ जवाब देना है तो सेना के साथ-साथ प्रत्येक भारतीय इसके लिए तैयार है.

Last Updated : Aug 31, 2020, 11:49 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.