नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को राज्य सरकारों से कहा कि वे मानसून के दौरान बाढ़, चक्रवात और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचने के लिए बेहतर रूप से तैयार रहें. विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के आपदा प्रबंधन विभागों के राहत आयुक्तों और सचिवों के वार्षिक सम्मेलन के दौरान अपने संबोधन में केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने पूरे वर्ष चौबीसों घंटे तैयारी सुनिश्चित करने के लिए क्षमता और प्रतिक्रिया सजगता के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया.
इस संबंध में एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि गृह सचिव ने राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों को बेहतर तरीके से तैयार रहने को कहा, ताकि बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आपदाओं को रोकने के वास्ते दीर्घकालिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण का उल्लेख किया.
भल्ला ने उल्लेख किया कि पिछले कई वर्षों में निरंतर प्रयासों के माध्यम से, आपदा प्रबंधन प्रणाली मानव जीवन पर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सक्षम रही है. आने वाले दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दौरान होने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के वास्ते राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तैयारियों की समीक्षा के लिए दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. यह सम्मेलन कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद प्रत्यक्ष रूप से आयोजित किया जा रहा है.
गृह सचिव ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि 2014 के बाद आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आया है. क्योंकि पहले दृष्टिकोण केवल राहत केंद्रित होता था, लेकिन अब मानव जीवन को बचाने का दृष्टिकोण आपदा प्रबंधन का एक अतिरिक्त घटक बन गया है. सम्मेलन के दौरान, विभिन्न राज्य वर्षों में विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिए विकसित अपनी तैयारियों, अनुभव और सर्वोत्तम तरीकों को साझा करेंगे.
सम्मेलन में 27 राज्यों, सात केंद्रशासित प्रदेशों, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), केंद्रीय मंत्रालयों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. इसमें केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और अन्य वैज्ञानिक संगठनों तथा सशस्त्र बलों के अधिकारी भी शिरकत कर रहे हैं.